नवंबर 2019 की दिल्ली की सर्दी थी। सुबह से कोहरा इतना घना था कि सड़क पर दस कदम आगे कुछ दिखता ही नहीं। मैं, सोनू, अपने छोटे से कॉल सेंटर के केबिन में बैठा था, जहां पुराना हीटर खटखट की आवाज के साथ मुश्किल से गर्मी दे रहा था। ऑफिस दिल्ली के एक पुराने कमर्शियल कॉम्प्लेक्स में था—टूटी-फूटी सीढ़ियां, दीवारों पर पान की पीक, और बाहर चाय की दुकान से आती सिगरेट और अदरक वाली चाय की महक। मेरा कॉल सेंटर छोटा था—सात कर्मचारी, चार पुराने डेस्क, और एक केबिन जिसमें ट्यूबलाइट हर पांच मिनट में झपकती थी। मैं चौबीस साल का था, शादी को दो साल हुए थे, और मेरी पत्नी ने हाल ही में एक बेटी को जन्म दिया था। वो अपने मायके में थी, दिल्ली से एक घंटे की दूरी पर। मैं अकेला था, और रातें लंबी और ठंडी लगने लगी थीं।
मेरी जिंदगी ठीक चल रही थी, लेकिन मन में एक खालीपन था। शादी के बाद भी जवानी की आग कभी-कभी बेकाबू हो जाती थी। उस दिन मैं ऑफिस में कुछ बिल चेक कर रहा था, जब मेरा दोस्त मोहित का फोन आया। “यार, तेरी पुरानी वाली मेनका ने कॉल किया था,” उसने हंसते हुए कहा। “उसे नौकरी चाहिए। तू अपने ऑफिस में रख लेगा?” मेनका। उसका नाम सुनते ही मेरे सीने में कुछ हलचल हुई। डेढ़ साल पहले हमारा ब्रेकअप हुआ था—कड़वाहट, गालियां, और फिर खामोशी। लेकिन उसकी यादें अभी भी मेरे जिस्म में सिहरन पैदा करती थीं। मैंने कहा, “ठीक है, उससे बात करवा।”
मोहित ने कॉन्फ्रेंस कॉल लगाई। “हाय, सोनू,” मेनका की आवाज में वही पुरानी शरारत थी, लेकिन थोड़ी थकान भी। “क्या हाल है?” मैंने खुद को संभालते हुए कहा, “सब ठीक। तू ऑफिस आ जा, चार बजे।” मैंने पता दिया, और उसने हां कहा। फोन रखते ही मैं खो गया। मेनका की वो छोटी सी काया—पांच फुट, पतली कमर, और वो टाइट चूचियां जो उसके कुर्ते से बाहर झांकती थीं। उसकी हंसी, जो मेरे कान में गूंजती थी। मैंने सिगरेट सुलगाई और खिड़की से बाहर कोहरे को देखने लगा।
शाम चार बजे मेनका ऑफिस पहुंची। उसने भूरे रंग का कुर्ता और टाइट जींस पहनी थी। कुर्ता इतना फिट था कि उसकी चूचियां साफ उभर रही थीं, और जींस ने उसकी गोल गांड को और निखार दिया था। वो मेरे केबिन में आई, कुर्सी पर बैठी, और अपने बालों को उंगलियों से संवारते हुए बोली, “क्या देख रहा है, बाबू?” उसका ‘बाबू’ कहना—वही पुराना अंदाज। मेरी नजरें उसकी चूचियों पर अटक गईं, लेकिन मैंने खुद को संभाला। “कुछ नहीं,” मैंने हंसकर कहा। “कह, क्या हाल है तेरा?”
हमने बीस मिनट तक पुरानी बातें की। उसने बताया कि उसकी जिंदगी में कुछ ठीक नहीं चल रहा। नौकरी छूटी, पैसों की तंगी, और कुछ पारिवारिक दिक्कतें। उसकी आवाज में एक उदासी थी, जो मुझे चुभ रही थी। फिर मैंने उसे ऑफिस दिखाया। मेरे स्टाफ में चार लड़कियां थीं—उर्मि, पूजा, शगुन, निशा—और दो लड़के, अर्पित और ध्रुव। अर्पित मेनका को पहले से जानता था। उसे देखते ही उसने मुझे चिढ़ाया, “अरे, ये तो वही है ना?” मैंने उसे चुप कराया और सबको बताया, “मेनका कल से टीम लीडर के तौर पर जॉइन करेगी।”
उर्मि ने मेरी तरफ देखा और होंठ सिकोड़ लिए। उर्मि, अठाईस साल की, तलाकशुदा। उसका फिगर भरा हुआ था—बड़ी-बड़ी चूचियां, भारी गांड, और आंखें जो हमेशा कुछ कहती थीं। वो ऑफिस में सबसे मेहनती थी, लेकिन मुझ पर लाइन भी मारती थी। मैंने उसे कभी गंभीरता से नहीं लिया। शाम को छुट्टी के वक्त उर्मि और अर्पित मेरे केबिन में आए। अर्पित ने पूछा, “भाई, अचानक टीम लीडर की क्या जरूरत? दो साल से तो सब ठीक था।” मैं समझ गया कि ये उर्मि का सवाल है। मैंने कहा, “यार, मेनका को जरूरत थी। मोहित ने फोन किया, तो मैंने हां कर दी।” उर्मि चुप रही, लेकिन उसकी आंखों में जलन थी।
फिर उर्मि ने अर्पित को बाहर भेजा और मुझसे बोली, “सोनू, मैं तुमसे कुछ नहीं मांग रही। बस इतना बता, मैं तेरे लिए क्या हूं? तू मुझे अपनी गर्लफ्रेंड तो बना सकता है।” उसकी आवाज में गुस्सा और मायूसी थी। मैंने वही जवाब दिया, “उर्मि, मैं शादीशुदा हूं। मुझे ये सब नहीं चाहिए।” वो गुस्से में बाहर चली गई।
अगले दिन मेनका ने जॉइन किया। वो काम में तेज थी, लेकिन उसका हर अंदाज मुझे बेचैन कर रहा था। कभी वो मेरे केबिन में आकर टेबल पर झुकती, और उसकी चूचियां मेरे सामने झूलने लगतीं। कभी वो कॉफी देते वक्त मेरे हाथ को जानबूझकर छूती। उसकी मुस्कान में एक चालाकी थी, जैसे वो जानती हो कि मेरा मन डोल रहा है। मैं उसे देखता, और पुरानी यादें ताजा हो जातीं—वो रातें जब मैं उसकी चूत की गहराई में खो जाता था। लेकिन अब मैं शादीशुदा था। मेरी बेटी थी। फिर भी, छह महीने से जिस्म की भूख मुझे काट रही थी।
एक दोपहर मेरी पत्नी का फोन आया। उसने बताया कि बेटी को ठंड की वजह से बुखार है। “शाम को रूम हीटर लेते आना,” उसने कहा। मैं परेशान हो गया। लंच के वक्त, जब हम सब ऑफिस की छोटी सी कैंटीन में खाना खा रहे थे, अर्पित ने मेरी चुप्पी देखी। “क्या हुआ, भाई?” उसने पूछा। मैंने बताया, “बेटी की तबीयत खराब है।” मेनका मेरे बगल में बैठी थी। उसने मेरी तरफ देखा, लेकिन कुछ बोली नहीं। लंच के बाद मैं किचन में सिगरेट पीने गया। किचन वॉशरूम के पास थी, और मेनका उधर से गुजरी। मुझे देखते ही वो अंदर आ गई। उसने बिना कुछ कहे मेरे गाल पर एक गहरा चुम्बन जड़ दिया। उसकी होंठों की गर्मी और उसकी सांसों की महक ने मुझे हिलाकर रख दिया। “टेंशन मत ले, सब ठीक हो जाएगा,” उसने धीरे से कहा। उसकी चूचियां मेरे सीने से दब रही थीं। मैंने उसे हल्के से पीछे धकेला, लेकिन मेरा लौड़ा खड़ा हो चुका था।
उसके बाद मेनका का व्यवहार और उकसाने वाला हो गया। वो कभी मेरे केबिन में आकर डबल मीनिंग बातें करती, जैसे, “सोनू, तू अब भी इतना गर्म है क्या?” कभी वो जानबूझकर मेरे सामने झुकती, और उसका कुर्ता नीचे सरक जाता। उर्मि को शक होने लगा। वो मेनका को देखकर मुंह बनाती, और मुझे गुस्से से घूरती। एक दिन सुबह से भारी बारिश और कोहरा था। ऑफिस में सिर्फ मेनका और उर्मि आईं। बाकी सबने छुट्टी ले ली। दोपहर को दोनों मेरे केबिन में आईं। मेनका ने कहा, “सोनू, आज ठंड बहुत है। कोई आया भी नहीं। एक बात मान ले।” मैंने हंसकर कहा, “जाओ, तुम दोनों भी निकल लो।” उर्मि ने तपाक से कहा, “अरे, बात तो सुन। आज तेरे साथ ड्रिंक करना है।”
मैंने मेनका की तरफ देखा। “तू कब से पीने लगी?” उर्मि ने तुरंत पूछा, “तुम इसे पहले से जानते हो?” मैंने सच बता दिया, “हां, मेनका मेरी पुरानी गर्लफ्रेंड थी।” उर्मि का चेहरा लटक गया। मैंने माहौल हल्का करने के लिए कहा, “चलो, क्या मंगवाना है?” उर्मि बोली, “इतनी ठंड में रम ही बनता है।” मैंने चौकीदार काका को बुलाया और कहा, “दो बोतल ओल्ड मॉन्क और चखना ले आ। अपने लिए भी कुछ ले लेना।”
काका आधे घंटे में सामान ले आए। हमने बारह बजे से पीना शुरू किया। चार पेग के बाद उर्मि को नशा चढ़ गया। वो बड़बड़ाने लगी, “अब समझ आया, तू मुझे क्यों इग्नोर करता है।” मैंने कहा, “उर्मि, तुझे ज्यादा हो गया। जाकर कॉलिंग केबिन में सो जा।” उसने नखरे किए, “तू मुझे सुलाकर आ।” मेनका ने मुझे गुस्से से देखा, लेकिन मैं उर्मि को सुलाने गया। उसे सोफे पर लिटाकर मैंने कंबल डाला। जैसे ही मैं जाने लगा, उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे चूमने की कोशिश की। मैंने उसे डांटा और वापस अपने केबिन में आ गया।
मेरे ऑफिस में कैमरे थे, लेकिन मेरे केबिन में नहीं। मेनका ने उर्मि का ये नाटक कैमरे में देख लिया। मेरे लौटते ही उसने तंज कसा, “क्यों नहीं किया? इतनी हॉट लड़की थी।” मैंने हंसकर कहा, “तुझे क्या जलन हो रही है?” उसने मेरी शर्ट पकड़ी और बोली, “मैं तेरी कुछ नहीं लगती?” उसकी आंखों में नशा था, और कुछ और भी। मैंने कहा, “और पीनी है?” उसने हां कहा। मैंने दूसरी बोतल खोली और टाइट पेग बनाए। दो पेग के बाद मेनका का चेहरा लाल हो गया। वो सोफे पर लेट गई। मैंने उसे कंबल ओढ़ाया। मेरा केबिन बाहर से अपारदर्शी था—कोई अंदर नहीं देख सकता था।
मैं बाहर जाने लगा, तो उसने कहा, “उर्मि के पास जा रहा है?” मैंने मजाक में कहा, “यहां लेटा तो गड़बड़ हो जाएगी।” उसने नशे में बोला, “चुपचाप लेट जा।” मैं उसके बगल में लेट गया। सोफा इतना तंग था कि हमारे जिस्म सट गए। मेनका ने करवट बदली, और उसकी गांड मेरे लौड़े से टकराई। मेरा लौड़ा धीरे-धीरे सख्त होने लगा। उसकी जींस के ऊपर से उसकी गांड की गर्मी मुझे महसूस हो रही थी। मैंने हिम्मत करके अपना हाथ उसके पेट पर रखा। उसने कुछ नहीं कहा। मेरी उंगलियां उसकी कमर पर फिसलीं, फिर धीरे से उसके कुर्ते के ऊपर से उसकी चूची पर। उसकी चूची गर्म और टाइट थी। मैंने हल्के से दबाया। उसके मुंह से एक सिसकारी निकली, “उफ्फ…”
उसने मेरे हाथ को और जोर से दबाया, जैसे कह रही हो, “रुकना मत।” मैंने उसे बिठाया और उसका कुर्ता उतार दिया। उसकी काली ब्रा में उसकी चूचियां कैद थीं। मैंने ब्रा खोली, और वो आजाद हो गईं। गोल, गोरी, और निप्पल हल्के भूरे। मैंने एक चूची को मुंह में लिया और चूसने लगा। उसकी सिसकारी तेज हुई, “सोनू… हाय… धीरे…” मैंने उसकी दूसरी चूची को उंगलियों से मसला। उसकी त्वचा नरम थी, जैसे मखमल। मैंने उसकी जींस उतारी। उसकी चूत पर हल्के बाल थे, और वो पहले से गीली थी। उसकी चूत की महक ने मेरे होश उड़ा दिए—हल्की नमकीन, हल्की जंगली।
मैंने उसे सोफे पर लिटाया और उसकी टांगें फैलाईं। उसकी चूत गुलाबी और चमक रही थी। मैंने अपनी जीभ से उसकी चूत के होंठों को चाटा। उसका स्वाद मेरी जीभ पर फैल गया। मैंने जीभ अंदर डाली, और उसकी चूत ने मेरी जीभ को जकड़ लिया। वो सिसकार रही थी, “सोनू… बस… और मत तड़पा…” मैंने उसकी चूत को चूसना जारी रखा। उसका जिस्म कांपने लगा, और उसने पानी छोड़ दिया। उसकी सांसें तेज थीं। मैंने अपना लौड़ा निकाला। पांच इंच, सख्त, और गर्म। मैंने उसे उसकी चूत पर रगड़ा। वो तड़प उठी, “डाल दे… प्लीज…”
मैंने धीरे से लौड़ा उसकी चूत में डाला। उसकी चूत इतनी टाइट थी कि मुझे रुकना पड़ा। उसने अपनी कमर उठाई, और मैंने एक और धक्का मारा। मेरा पूरा लौड़ा उसकी चूत में समा गया। उसकी गर्मी और तंगी ने मुझे दीवाना कर दिया। मैं धीरे-धीरे धक्के मारने लगा। उसकी सिसकारियां कमरे में गूंज रही थीं, “आह… सोनू… और तेज…” मैंने रफ्तार बढ़ाई। उसकी चूचियां मेरे धक्कों के साथ हिल रही थीं। मैंने उसे चूमते हुए उसकी चूची को दबाया। उसकी चूत बार-बार गीली हो रही थी।
मैंने उसे घोड़ी बनाया। उसकी गोल गांड मेरे सामने थी। मैंने उसकी चूत में पीछे से लौड़ा डाला। उसकी गांड मेरे हर धक्के के साथ थरथराती थी। मैंने उसकी कमर पकड़ी और तेजी से चोदने लगा। वो चीख रही थी, “हाय… सोनू… मार डाला…” मैंने उसकी गांड पर हल्का सा थप्पड़ मारा। वो सिहर उठी। करीब पंद्रह मिनट बाद मेरा निकलने वाला था। मैंने पूछा, “कहां?” उसने सिसकारी लेते हुए कहा, “अंदर… सब अंदर…” मैंने एक जोरदार धक्का मारा और अपनी सारी मलाई उसकी चूत में उड़ेल दी। वो मेरे नीचे कांप रही थी।
हम हांफते हुए एक-दूसरे से लिपट गए। उसकी सांसें मेरे गाल पर लग रही थीं। थोड़ी देर बाद मेरा लौड़ा फिर खड़ा हुआ। मैंने कहा, “एक बार और?” उसने हंसकर कहा, “तेरे लिए पूरी रात भी दूंगी।” इस बार मैंने उसे सोफे के किनारे पर बिठाया और उसकी टांगें अपने कंधों पर रखीं। उसकी चूत मेरे वीर्य से चिपचिपी थी। मैंने लौड़ा डाला और चोदने लगा। वो सिसकार रही थी, “सोनू… तू वही है ना… हाय…” उसकी आवाज में प्यार था, और शायद कुछ दर्द भी।
उस दिन हमने चार बार चुदाई की। आखिरी बार के बाद वो मेरे सीने पर सिर रखकर लेट गई। “सोनू, आज सब वैसा था, जैसे पहले,” उसने धीरे से कहा। मैं चुप रहा। मेरे मन में मेरी बेटी और पत्नी का ख्याल आया, लेकिन मेनका की गर्मी ने मुझे फिर खींच लिया। बाद में उर्मि को हमारे बारे में पता चला। उसने मुझे कोसा, लेकिन एक दिन उसने भी मुझे अपने करीब खींच लिया। वो कहानी फिर कभी।
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