मेरा नाम रीना है। मेरी उम्र 24 साल है, और मेरी शादी को तीन साल हो चुके हैं। मेरे पति, संजय, उम्र में मुझसे कहीं बड़े हैं। उनकी उम्र 38 साल है, और वो एक छोटी-मोटी नौकरी करते हैं। लेकिन आजकल लॉकडाउन की वजह से उनका काम पूरी तरह ठप है। घर में राशन का नामोनिशान नहीं, और संजय को हर रोज़ दारू चाहिए। खाने-पीने की तंगी और पति की लत ने मुझे ऐसी राह पर ला खड़ा किया, जिसके बारे में मैंने कभी सोचा भी नहीं था। मेरे पति ने मुझे अपने दोस्तों के हवाले कर दिया, और अब मेरी चुदाई रोज़ का किस्सा बन चुकी है। कमरे में मेरी आहें, बिस्तर की चरमराहट, और चुदाई की आवाज़ें बाहर तक जाती हैं, और मेरा पति बाहर सोया रहता है, सब सुनते हुए।
सोचिए, कोई औरत कमरे में “आह्ह… ओह्ह… और जोर से चोदो!” चिल्लाए, और उसका पति चुपचाप बाहर लेटा रहे। आप ऐसे मर्द को क्या कहेंगे? लेकिन दोस्तों, एक बात साफ कर दूं। ये सब मजबूरी में शुरू हुआ था, पर अब मुझे इसमें मज़ा आने लगा है। जब मेरी ज़रूरतें पूरी हो रही हैं, मैं चुदाई के मज़े ले रही हूँ, और मुझे वो सुख मिल रहा है जो मेरे पति कभी नहीं दे पाए, तो इसमें बुराई क्या है?
अब मैं आपको पूरी कहानी विस्तार से सुनाती हूँ।
संजय का दोस्त, रमेश गुर्जर, एक रईस आदमी है। बड़े बंगले, गाड़ियाँ, और ढेर सारा पैसा। दूसरी तरफ, मेरा पति एक छोटी सी नौकरी करता था, जो अब लॉकडाउन में बंद है। मालिक ने पैसे भी नहीं दिए। हमारा कोई बच्चा नहीं है, और मेरी शादी कम उम्र में ही हो गई थी। मैं हूँ तो हॉट और सुंदर। मेरी फिगर 34-28-36 है, और मेरी चूचियाँ इतनी टाइट और गोल हैं कि कोई भी मर्द देखकर पागल हो जाए। लेकिन संजय? वो मुझे कभी संतुष्ट नहीं कर पाए। जब तक मैं गर्म होती, वो तीन मिनट में ढेर हो जाते। उनका छोटा सा लंड, मुश्किल से तीन इंच का, मेरी प्यास कभी नहीं बुझा पाया।
लॉकडाउन में रमेश जी ने हमारे घर का बहुत ख्याल रखा। संजय को दारू से लेकर घर का किराया, राशन, और नकद पैसे तक, सब उन्होंने दिया। रमेश जी की शादी इसी साल हुई थी, लेकिन उनकी बीवी अपने पुराने यार के साथ भाग गई। शायद इसीलिए उनकी नज़रें मुझ पर थीं। उनकी वो भूखी निगाहें, जो मेरे बदन को ऊपर से नीचे तक चाटती थीं, मैंने कई बार महसूस की। लेकिन वो जल्दबाज़ी नहीं करते थे। वो धीरे-धीरे, चालाकी से सब कुछ अपने कब्जे में लेना चाहते थे।
एक रात, रमेश जी ने संजय को इतनी दारू पिलाई कि वो बेसुध हो गया। देर रात तक वो हमारे घर पर ही थे। जब संजय बाहर बरामदे में लुढ़क गया, रमेश जी मेरे करीब आए। मेरा दिल धड़क रहा था। उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और धीमी आवाज़ में बोले, “रीना, मैं तुम्हें वो सारी खुशियाँ दूँगा, जो संजय तुम्हें कभी नहीं दे पाया। मैं तुम्हारे पति को भी आगे बढ़ाऊँगा। बस तुम इसे गलत मत समझना। मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, और तुम्हारे साथ सेक्स करना चाहता हूँ।”
पहले तो मुझे लगा कि ये गलत है। लेकिन फिर सोचा, गलत क्या है? मेरे पति मुझे न खर्चे दे पा रहे हैं, न सुख। अगर रमेश जी मुझे वो सब दे सकते हैं, तो मैं क्यों मना करूँ? मैं चुप रही। मेरे होंठ काँप रहे थे। मैंने धीरे से अपने आँचल को नीचे सरका दिया। मेरी गोल-गोल, टाइट चूचियाँ ब्लाउज़ में कसी हुई थीं। मेरी साँसें तेज़ हो रही थीं। ऐसा लग रहा था जैसे मेरी सुहागरात हो। मैं डर भी रही थी, और उत्साहित भी। एक तरफ मन कह रहा था कि ये गलत है, दूसरी तरफ मेरी तड़पती चूत मुझे बेकरार कर रही थी।
रमेश जी ने दरवाज़ा बंद किया। संजय बाहर नशे में सोया था। वो मेरे पास आए और मेरे ब्लाउज़ के हुक खोलने लगे। उनकी एक उंगली मेरे होंठों पर फिर रही थी। मेरे शरीर में सिहरन दौड़ रही थी। मेरा गला सूख रहा था। उन्होंने मेरा ब्लाउज़ खोल दिया। मैं शर्म से साइड हो गई। फिर उन्होंने मेरी ब्रा का हुक भी खोल दिया। मैंने खुद ब्रा उतारी और नीचे फेंक दी। मेरी चूचियाँ, जैसे किसी 18 साल की कुँवारी लड़की की हों, बिल्कुल टाइट और गोल। रमेश जी उन्हें देखकर पागल हो गए। वो मेरी चूचियों पर टूट पड़े। उन्हें चूसने लगे, दबाने लगे, और मसलने लगे। “आह्ह…” मेरे मुँह से निकला। मेरी साँसें और तेज़ हो गईं।
फिर मैंने अपनी साड़ी नीचे फेंक दी। मेरा पेटीकोट का नाड़ा खुला, और रमेश जी ने मेरी पैंटी उतार दी। मेरी चूत पर हल्के-हल्के बाल थे। वो मेरी चूत को चाटने लगे। उनकी जीभ मेरी चूत के होंठों के बीच घूम रही थी। मैं तड़प रही थी। “ओह्ह… रमेश जी…” मैं सिसकारी। मेरी चूत गीली हो चुकी थी। माथे पर पसीने की बूँदें थीं। उन्होंने अपने सारे कपड़े उतार दिए। उनका लौंडा मेरे सामने था, मोटा और लंबा। उन्होंने इसे मेरी चूचियों के बीच रगड़ा, फिर मेरे मुँह में दे दिया। मैंने उसे चूसा। दो मिनट में ही उनका लौंडा और सख्त हो गया, करीब 8 इंच लंबा और 3 इंच मोटा।
अब वो चुदाई के लिए तैयार थे, और मैं भी। मैंने मेरे दोनों पैर फैलाए। वो बीच में आए। उनका लौंडा मेरी चूत के मुँह पर था। उन्होंने सुपाड़ा मेरी चूत पर रगड़ा और एक ज़ोरदार धक्का मारा। “आह्ह… मर!” मैं चीखी। मैंने तकिए को ज़स्ते पकड़ लिया। दर्द से मेरी जान निकल रही थी। संजय का लौंडा तो छोटा था, लेकिन ये 8 इंच का मोटा लौंडा पहली बार मेरी चूत में गया था। दो-तीन धक्कों बाद, मेरी चूत गीली हो चुकी थी। अब उनका लौंडा आसानी से अंदर-बाहर हो रहा था। “फच… फच…” की आवाज़ कमरे में गूँज रही थी। मैं सिसक रही थी, “आह्ह… ओह्ह… रमेश जी… आह्ह…” मेरे शरीर में करंट दौड़ रहा था। आज पहली बार मुझे असली मर्द मिला था।
वो ज़ोरो से चोदने लगे। मैं भी अपनी वासना की आग बुझाने में लग गई। मैं अपनी चूचियाँ दबा रही थी, उनके सीने को सहला रही थी, और उन्हें चूम रही थी। “चोदो मुझे, रमेश जी… और ज़ोर से चोदो!” मैं चिल्लाई। “आह्ह… ओह्ह… कितना मोटा लौंडा है तुम्हारा… मजा आ गया!” मैंने कहा। वो और जोश में आ गए। “रीना, तू कितनी गरम है… तेरी चूत तो जन्नत है!” वो बोले। “हाँ, चोदो मुझे… मेरी चूत को फाड़ दो!” मैंने कहा। मेरी आवाज़ इतनी तेज़ थी कि बाहर तक जा रही थी।
तभी संजय नशे में दरवाज़ा खटखटाने लगा। “रीना… धीरे बोल, बाहर सुनाई दे रहा है!” वो बोला। मैंने गुस्से में चिल्लाया, “सो जा, तू! आज मुझे अपनी गर्मी बुझाने दे!” मैं रुकी नहीं। रमेश जीने मुझे उल्टा किया और पीछे से चोदना शुरू किया। “फट्ट… फट्ट…” की आवाज़ और तेज़ हो गई। मैं चिल्ला रही थी, “आह्ह… ओह्ह… और घुसाओ… पूरा घुसाओ!” वो मेरी गांड पर थप्पड़ मारते हुए बोले, “ले, रीना… तुझे रोज़ चोदूँगा… तू मेरी रांड बन जा!” मैंने कहा, “हाँ, बन जाऊँगी… बस, चोदते रहो… मेरी चूत तुम्हारी है!”
उन्होंने मुझे कई पोज़ में चोदा। कभी खड़ा करके, कभी नीचे बिठाकर, कभी मेरे ऊपर चढ़कर। हर धक्के पर मेरी चूचियाँ उछल रही थीं। मैं पसीने से तर थी। “आह्ह… ओह्ह… रमेश जी, मेरे बच्चे का बाप बनो… मेरी चूत को अपना माल दो!” मैं बोली। वो हाँफते हुए बोले, “हाँ, रीना… तुझे मेरा माल दूँगा!” करीब डेढ़ घंटे की चुदाई के बाद, हम दोनों एक साथ झड़े। मैं थक कर नंगी ही उनके साथ सो गई।
उस रात के बाद, ये सिलसिला चल पड़ा। संजय रात को पीकर टुन्न रहता है, और मैं रमेश जी की रखैल बन चुकी हूँ।। लॉकडाउन में मेरी चुदाई और घर की खुशियाँ, दोनों बरकरार हैं।
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