ससुर जी ने मेरी कमर तोड़ दी चोदते चोदते

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(19902)

मेरा नाम मालती शर्मा है। मैं 22 साल की हूँ, एक खूबसूरत और जवानी से भरी औरत, जो अब खुद को लड़की नहीं, बल्कि एक पूर्ण औरत मानती हूँ। मेरी शादी को अभी छह महीने ही हुए हैं, और मैं अपने पति के साथ गाँव से दिल्ली आ गई। दिल्ली का सपना मेरे मन में बरसों से था—यहाँ की चमक-दमक, रंग-बिरंगी सड़कें, बड़े-बड़े मॉल, और पति के साथ रोमांटिक पल बिताने की चाहत। पर दोस्तों, सपने और हकीकत में फर्क होता है। मेरे सपने तो बस सपने ही रह गए। मेरे पति, रवि, 28 साल के हैं, दिखने में ठीक-ठाक, मगर उनकी एक ऐसी कमजोरी है, जिसने मेरी जिंदगी को पूरी तरह बदल दिया।

शादी के बाद मैंने सोचा था कि रवि के साथ मेरी जिंदगी प्यार और वासना की आग में डूबी रहेगी। मगर हुआ इसका उल्टा। रवि को एक ऐसी बीमारी है कि जब भी वो मेरे साथ सेक्स करने की कोशिश करते, उनका लंड खड़ा होने से पहले ही उनका सारा रस निकल जाता। मैं हर बार कोशिश करती—कभी साड़ी उतारकर, कभी टाइट कुर्ती पहनकर, कभी उनकी गोद में बैठकर—मगर हर बार नाकामयाबी। उनकी आँखों में हवस तो दिखती, पर शरीर साथ नहीं देता। मेरी चूत की आग बुझाने की बजाय, वो खुद ही ठंडे पड़ जाते। मैं क्या करती? औरत हूँ, मेरे अंदर भी वासना की भूख थी, जो हर रात मुझे तड़पाती थी।

धीरे-धीरे मेरी जिंदगी घुटन भरी हो गई। मैं किसी से कुछ कह भी नहीं सकती थी। कौन औरत चिल्लाकर कहेगी कि मेरा पति मुझे चोद नहीं पाता? ये दर्द मैं अकेले सहती रही। रवि से झगड़े होने लगे। छोटी-छोटी बात पर मैं चिड़चिड़ाने लगी। कभी दो दिन, कभी तीन दिन, हम एक-दूसरे से बात नहीं करते। घर में तनाव बढ़ता गया। इसी बीच मेरे ससुर जी, रमेश जी, ने मेरी जिंदगी में दखल देना शुरू किया।

रमेश जी 48 साल के हैं, मगर उनकी उम्र का कोई अंदाजा नहीं लगता। लंबे-चौड़े, गठीले बदन वाले, चेहरे पर हल्की-सी दाढ़ी, और आँखों में एक अजीब-सी चमक। वो दिल्ली में अपने बेटे के साथ बिजनेस चलाते हैं। घर में और कोई नहीं—सास तो कई साल पहले गुजर चुकी थीं। रमेश जी को शायद मेरे और रवि के बीच की दूरियाँ दिखने लगी थीं। वो समझ गए कि उनका बेटा मुझे वो सुख नहीं दे पा रहा, जो एक औरत को चाहिए।

रमेश जी ने धीरे-धीरे मुझे खुश करने की कोशिश शुरू की। वो मुझे दिल्ली घुमाने ले जाते। कभी मॉल, कभी रेस्तरां, कभी पार्क। वो मुझे जींस पहनने को कहते, ब्यूटी पार्लर जाने को कहते, मेरे लिए जूते, कपड़े, सैंडल खरीदते। मैं भी दिल्ली की सैर का मजा लेने लगी। मुझे अच्छा लगने लगा। आखिरकार, मेरे सारे शौक पूरे हो रहे थे। रवि जो नहीं कर पाए, वो रमेश जी कर रहे थे।

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एक दिन रवि को बिजनेस के सिलसिले में दुबई जाना पड़ा। दो महीने के लिए। अब घर में सिर्फ मैं और रमेश जी थे। एक रात, डिनर के बाद, रमेश जी ने मुझे शराब ऑफर की। मैंने पहले तो मना किया, मगर फिर सोचा, थोड़ा-सा मजा लेने में क्या हर्ज है? हम दोनों ने मिलकर शराब पी। नशा चढ़ा, और नशे में उम्र का लिहाज खत्म हो गया। रमेश जी मेरे पास आए, मेरा हाथ पकड़ा, और धीमी आवाज में बोले, “मालती, मुझे पता है तुम्हें किस चीज की कमी है। मैं वो कमी पूरी कर सकता हूँ। मेरे अंदर अभी भी वो जोश है, जो किसी जवान लड़के में होता है।”

मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई। मैंने कहा, “ससुर जी, मैंने तो सोचा था कि शादी के बाद पति के साथ जिंदगी रंगीन होगी, मगर सब बेकार हो गया। अब मुझे बस एक मर्द चाहिए, जो मेरी चूत की आग बुझा सके। भले ही वो आप ही क्यों न हों।”

बस, इतना सुनते ही रमेश जी ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया। उनकी गर्म साँसें मेरे चेहरे पर पड़ रही थीं। मैंने भी खुद को रोकना छोड़ दिया। मैंने उनकी कमीज के बटन खोल दिए, और उनके सीने को सहलाने लगी। उनकी छाती पर हल्के-हल्के बाल थे, जो मुझे और उत्तेजित कर रहे थे। उन्होंने मेरी साड़ी का पल्लू सरका दिया और मेरे ब्लाउज के ऊपर से मेरी चूचियों को दबाने लगे। “उफ्फ, मालती, तेरी चूचियाँ कितनी रसीली हैं,” वो बोले, और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए। उनकी जीभ मेरे मुँह में घुसी, और मैं भी उनके साथ चूमाचाटी में डूब गई।

रमेश जी ने मुझे बेडरूम में ले जाकर बिस्तर पर लिटा दिया। मेरी साड़ी पूरी तरह उतार दी, और अब मैं सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में थी। उन्होंने मेरे ब्लाउज के हुक खोल दिए, और मेरी ब्रा को एक झटके में उतार फेंका। मेरी चूचियाँ आजाद हो गईं—गोरी, गोल, और निप्पल्स सख्त। वो मेरी चूचियों को देखकर पागल हो गए। “क्या माल है तू, मालती,” वो बोले और मेरी एक चूची को मुँह में ले लिया। उनकी जीभ मेरे निप्पल्स को चाट रही थी, और दूसरी चूची को वो जोर-जोर से दबा रहे थे। “आआह्ह… ससुर जी… और चूसो…” मैं सिसकारियाँ लेने लगी।

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उन्होंने मेरे पेटीकोट का नाड़ा खींचा, और मेरी पैंटी भी उतार दी। अब मैं उनके सामने पूरी नंगी थी। मेरी चूत पहले से ही गीली हो चुकी थी। रमेश जी ने मेरे पैर फैलाए और मेरी चूत को देखकर बोले, “क्या चिकनी चूत है तेरी, मालती। आज इसे चाट-चाटकर लाल कर दूँगा।” उनकी जीभ मेरी चूत पर पड़ी, और मैं तड़प उठी। “उउउह्ह… ससुर जी… हाययय…” मैंने अपने पैर और फैला दिए, ताकि उनकी जीभ मेरी चूत की गहराइयों तक जाए। वो मेरी चूत को चाट रहे थे, मेरे क्लिट को चूस रहे थे, और मैं पागल हो रही थी। मेरी चूत से गर्म-गर्म पानी निकलने लगा।

“ससुर जी, अब और मत तड़पाओ… डाल दो अपना लंड मेरी चूत में,” मैंने उनसे मिन्नत की। उन्होंने अपनी पैंट उतारी, और उनका लंड बाहर आया। सात इंच लंबा, मोटा, और सख्त। मैंने उसे देखकर सोचा, यही तो चाहिए था मुझे। उन्होंने अपना लंड मेरी चूत के मुँह पर रखा और एक धक्का मारा। “आआह्ह्ह…” मैं चीख पड़ी। उनका लंड मेरी चूत को चीरता हुआ अंदर घुस गया। “कितनी टाइट है तेरी चूत, मालती,” वो बोले और जोर-जोर से धक्के मारने लगे।

“चोदो मुझे, ससुर जी… और जोर से… आआह्ह… उउउह्ह…” मैं सिसकारियाँ ले रही थी। उनकी हर धक्के के साथ मेरी चूचियाँ उछल रही थीं। वो मेरी चूचियों को मसल रहे थे, मेरे निप्पल्स को खींच रहे थे। “तेरी चूत को आज फाड़ दूँगा,” वो बोले और और तेज धक्के मारने लगे। “पच-पच… फच-फच…” उनकी जाँघें मेरी जाँघों से टकरा रही थीं, और कमरे में चुदाई की आवाजें गूँज रही थीं।

कुछ देर बाद वो नीचे लेट गए, और मैं उनके ऊपर चढ़ गई। मैंने उनका लंड पकड़ा और अपनी चूत के छेद पर सेट किया। धीरे-धीरे मैं उनके लंड पर बैठ गई। पूरा लंड मेरी चूत में समा गया। “हाययय… कितना मोटा है आपका लंड, ससुर जी…” मैंने कहा और ऊपर-नीचे होने लगी। “चोद मेरी रानी, जोर-जोर से उछल,” वो बोले और मेरी चूचियों को दबोच लिया। मैं जोश में आ गई। “आआह्ह… उउउह्ह… ओह्ह्ह…” मैं जोर-जोर से उछल रही थी, और उनका लंड मेरी चूत की गहराइयों को चूम रहा था।

फिर उन्होंने मुझे घोड़ी बनाया। मैं बेड पर घुटनों के बल झुक गई, मेरी गाँड हवा में थी। “क्या मस्त गाँड है तेरी, मालती,” वो बोले और मेरी गाँड पर एक चपत मारी। फिर उन्होंने अपना लंड मेरी चूत में डाला और पीछे से धक्के मारने लगे। “फच-फच-फच…” उनकी धक्कों की आवाज मेरे कानों में म्यूजिक की तरह बज रही थी। “हाययय… ससुर जी… और जोर से… मेरी चूत फाड़ दो…” मैं चिल्ला रही थी।

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“तेरी गाँड में भी डालूँ?” उन्होंने पूछा। “नहीं, ससुर जी… पहले मेरी चूत को शांत करो… गाँड बाद में,” मैंने कहा। वो हँस पड़े और बोले, “जैसी मेरी रानी की मर्जी।” फिर उन्होंने मुझे अलग-अलग पोज में चोदा—कभी बेड के किनारे पर, कभी मुझे गोद में उठाकर, कभी दीवार के सहारे। हर धक्के के साथ मेरी चूत और गीली होती गई।

पूरी रात चुदाई चलती रही। मेरी चूचियाँ दबते-दबते लाल हो गईं। मेरी चूत चौड़ी हो गई। सुबह तक मेरी कमर में दर्द शुरू हो गया, मेरी जाँघें काँप रही थीं, और पेट के निचले हिस्से में हल्का-हल्का दर्द था। मगर मैं खुश थी। पहली बार मुझे वो सुख मिला, जो मैं शादी के बाद तरस रही थी।

उसके बाद तो ये सिलसिला रोजाना चलने लगा। रमेश जी हर रात 2-3 घंटे मुझे चोदते। कभी-कभी वो शिलाजीत खा लेते, जिससे उनका जोश और बढ़ जाता। “तेरी चूत की आग मैं ही बुझाऊँगा,” वो कहते और मुझे अलग-अलग तरीके से चोदते। मेरी कमर में दर्द रहने लगा, मेरी चूचियाँ और बड़ी हो गईं, मगर मैं मजे में थी। मैं हर रात उनकी बाहों में खो जाती।

अब आप ही बताइए, क्या ये रिश्ता जायज है या नाजायज? क्या मुझे अपने ससुर के साथ ऐसे मजे लेने चाहिए? आपकी राय क्या है?

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