गाँव की हसीना की खलिहान में चुदाई

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Gaon ki ladki chudai(Village girl sex) मेरा नाम मुकेश है, उम्र 26 साल, गठीला बदन, गेहुंआ रंग, और चेहरे पर हमेशा एक हल्की सी मुस्कान रहती है। मैं अपने गाँव में रहता हूँ, जहाँ की हवा में ही कुछ अलग सी मस्ती है। ये कहानी सात साल पुरानी है, जब मैंने 12वीं का एग्जाम दिया था और रिजल्ट का इंतजार कर रहा था। उन दिनों मैं बिल्कुल फ्री था, बस गाँव की गलियों में घूमता, दोस्तों के साथ गप्पे मारता, और अपने बरामदे पर बैठकर दुनिया देखता।

उस दिन सुबह-सुबह मैं अपने घर के बरामदे पर बैठा ब्रश कर रहा था। सूरज अभी पूरी तरह निकला भी नहीं था, हल्की ठंडी हवा चल रही थी। तभी पड़ोस के घर से एक लड़की निकली। उसका नाम बाद में पता चला, सोनी। वो 18 साल की थी, गोरा रंग, लंबे काले बाल, और एक ऐसी चाल कि मानो गाँव की सारी नजरें उसी पर ठहर जाएँ। उसकी कसी हुई कमीज में से उसका फिगर साफ दिख रहा था, और सलवार में उसकी टाँगें ऐसी लग रही थीं जैसे किसी ने तराश कर बनाई हों। मैंने उसे पहले कभी नहीं देखा था, शायद वो अपनी नानी के घर आई थी। वो पड़ोस की बुआ से बात करने लगी, जो कि अनमैरिड थी और मेरी भी उनसे अच्छी बनती थी।

पहली नजर में ही सोनी ने मेरे दिल में आग लगा दी। मैं उसे देखता रहा, ब्रश करना भूल गया। फिर जानबूझकर मैं उस हैंडपंप के पास गया जो बाहर लगा था, ताकि उसे और करीब से देख सकूँ। फ्रेश होकर वापस बरामदे पर बैठ गया, लेकिन मेरी नजरें बार-बार उसी की तरफ जा रही थीं। वो थोड़ी देर बाद चली गई, पर मेरे दिमाग में उसकी तस्वीर बस गई। अगले दो-तीन दिन मैंने उसकी टाइमिंग नोट की। वो सुबह और शाम को बाहर निकलती थी, और मैंने गौर किया कि वो भी मुझे चोरी-छिपे देखने लगी थी। मेरे बरामदे का दरवाजा और उसके घर की खिड़की आमने-सामने थी। मैं कुर्सी लगाकर बाहर बैठता, और वो खिड़की के पास आकर बैठ जाती। कभी-कभी वो पलटकर मुझे देखती, और उसकी आँखों में एक शरारत सी चमकती। मुझे लगने लगा कि बात बन सकती है, बस हिम्मत करके बात शुरू करने की जरूरत है।

एक दिन मैं बुआ के घर गया। वो और सोनी वहाँ बैठी थीं। बुआ ने मुझे देखते ही कहा, “अरे मुकेश, तू तो बिल्कुल गायब हो गया। आजकल बहुत बिजी रहता है क्या?” मैंने हँसते हुए जवाब दिया, “नहीं बुआ, आप ही तो किसी के साथ बिजी रहती हैं, मैं तो डिस्टर्ब नहीं करना चाहता।” मेरी इस बात पर दोनों हँस पड़ीं। फिर हमारी बातें शुरू हुईं। बीच-बीच में मैं और सोनी एक-दूसरे को चोरी-छिपे देख लेते। बातों-बातों में पता चला कि सोनी ने भी 10वीं का एग्जाम दिया था और रिजल्ट का इंतजार करने अपनी नानी के घर आई थी। उसकी आवाज में एक अजीब सी मिठास थी, और वो बात करते वक्त बार-बार अपने बालों को सहलाती थी, जो मुझे और उकसा रहा था।

बुआ का घर मेरे लिए सोनी से मिलने का एकदम सही ठिकाना बन गया। हम रोज वहाँ मिलते, बातें करते, और धीरे-धीरे खुल गए। हर तरह की बातें होने लगीं—हँसी-मजाक से लेकर थोड़ी पर्सनल बातें तक। लेकिन मेरे मन में एक झिझक थी। मैंने पहले कभी किसी लड़की को इस तरह पटाने या चुदाई करने की नहीं सोची थी। डर था कि कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए। फिर एक दिन बुआ को कुछ काम से बाहर जाना पड़ा। हम दोनों अकेले थे। माहौल अचानक शांत हो गया। मेरी धड़कनें तेज हो गईं। तभी सोनी ने मेरी तरफ देखा, और धीरे से अपना हाथ बढ़ाकर मेरे हाथ में एक कागज थमा दिया। उसने कुछ नहीं कहा और चुपके से चली गई। मैं तो जैसे सातवें आसमान पर था। मेरे हाथ काँप रहे थे। मैंने जल्दी से बाहर निकलकर बुआ को बोला कि मैं बाद में आऊँगा, और घर पहुँचकर वह लेटर खोला।

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लेटर में उसने अपने दिल की बात लिखी थी। उसने बताया कि वो मुझे पसंद करती है और मुझसे मिलना चाहती है। मेरे तो जैसे पंख लग गए। मैंने भी तुरंत एक जवाबी लेटर लिखा, जिसमें मैंने अपने दिल की बात और थोड़ा रोमांटिक अंदाज डाला। उस लेटर को मैंने उसी शाम उसे दे दिया। बस, यहीं से हमारी लव स्टोरी शुरू हो गई।

अगले कुछ दिन हम शाम को अंधेरे में मिलते। मैं उसे चूमता, उसकी चूचियों को दबाता, उसकी गांड को सहलाता, और कभी-कभी उसकी चूत पर भी हाथ फेर देता। वो भी पूरा साथ देती। उसकी साँसें तेज हो जातीं, और वो मेरे करीब और सटने की कोशिश करती। एक दिन शाम को उसने मुझे अपने बरामदे पर आने का इशारा किया। अंधेरा हो चुका था। मैं वहाँ पहुँचा तो उसने मुझे जोर से अपनी बाहों में भींच लिया। मैंने उसका चेहरा उठाया और एक गहरा, गीला चुम्बन लिया। उसकी साँसें गर्म थीं, और उसका बदन मेरे बदन से चिपक रहा था। मैंने धीरे से उसकी चूचियों को दबाया और मजाक में कहा, “क्या बात है, आज तो बहुत प्यार आ रहा है, मेरी जान।” उसने जवाब नहीं दिया, बस मेरे और करीब सट गई।

मैंने उसकी कमीज के ऊपर से उसकी चूचियों को सहलाना शुरू किया। उसकी साँसें और तेज हो गईं। फिर मैंने उसकी कमीज में हाथ डाला और उसकी ब्रा के ऊपर से उसकी चूचियों को दबाया। वो हल्के-हल्के सिसकारियाँ लेने लगी, “उम्म… आह…”। मैंने उसे पास की चौकी पर बिठाया और उसकी कमीज के बटन खोलने लगा। उसने मेरे कान के पास आकर धीरे से कहा, “मुझे तुमसे कहीं अकेले में मिलना है।” मैंने हँसते हुए कहा, “अरे, अभी तो मिल ही रहे हैं।” वो थोड़ा चिढ़ गई और बोली, “नहीं, मेरा मतलब है कहीं ऐसी जगह जहाँ हम थोड़ा और वक्त बिता सकें।” मेरे दिमाग में लड्डू फूटने लगे। मैंने पूछा, “बता ना, कहाँ और कब?” उसने सोचकर कहा, “रात को खाना खाने के बाद सब सो जाते हैं। मैं बुआ के घर जाने का बहाना बनाऊँगी और फिर नानाजी के खलिहान में मिलते हैं। वहाँ रात को कोई नहीं आता।”

मैंने तुरंत हामी भर दी। हमारी डील पक्की हो गई। उस रात का इंतजार मेरे लिए किसी सपने से कम नहीं था। मैंने रात का खाना जल्दी खाया और बरामदे पर कुर्सी डालकर बैठ गया। दिल की धड़कनें तेज थीं। करीब आधे घंटे बाद सोनी बुआ के घर गई। गाँव में लोग जल्दी सो जाते हैं, तो घर में सब सो चुके थे। थोड़ी देर बाद वो बुआ के घर से निकली और मेरे पास आकर धीरे से बोली, “मैं जा रही हूँ, तुम पाँच मिनट बाद निकलना।” मैंने हल्का सा सिर हिलाया। मेरी उत्सुकता चरम पर थी।

पाँच मिनट इंतजार करने का धैर्य नहीं था, तो मैं चार मिनट में ही निकल पड़ा। खलिहान तक धीरे-धीरे चलकर पहुँचा। वहाँ सन्नाटा था, सिर्फ हल्की सी रोशनी जल रही थी। मैंने दबे पाँव अंदर कदम रखा। सोनी दरवाजे पर खड़ी थी। उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे अंदर खींच लिया। अंदर एक छोटा सा कमरा था, जिसमें एक खटिया पड़ी थी। हम दोनों खड़े होकर एक-दूसरे को देख रहे थे। माहौल में एक अजीब सी खामोशी थी, लेकिन मेरे शरीर में गर्मी बढ़ रही थी।

मैंने उसे अपनी बाहों में भरा और उसके होंठों को चूमना शुरू किया। उसकी जीभ मेरी जीभ से टकरा रही थी, और उसका गीला चुम्बन मेरे अंदर आग लगा रहा था। मैंने उसकी पीठ पर हाथ फेरा, फिर धीरे-धीरे उसकी कमीज के ऊपर से उसकी चूचियों को दबाया। वो हल्के से सिसकारी, “आह्ह… मुकेश…”। उसने मुझे और जोर से पकड़ लिया। मैंने उसकी कमीज के बटन खोले और उसकी ब्रा को ऊपर सरकाया। उसकी मध्यम आकार की चूचियाँ मेरे सामने थीं, निपल्स एकदम टाइट और गुलाबी। मैंने उसे खटिया पर लिटाया और उसकी चूचियों पर टूट पड़ा। मैं उन्हें चूसने लगा, कभी एक निपल को मुँह में लेकर चूसता, तो कभी दूसरे को। वो सिसकारियाँ ले रही थी, “उम्म… आह्ह… और जोर से…”। उसका एक हाथ मेरे सिर को अपनी चूचियों में दबा रहा था।

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मेरा एक हाथ उसकी सलवार के ऊपर से उसकी चूत पर चला गया। मैंने धीरे-धीरे उसे सहलाना शुरू किया। उसकी चूत गीली हो चुकी थी, और सलवार के ऊपर से ही उसकी गर्मी महसूस हो रही थी। वो अपनी गांड उठा-उठाकर मेरे हाथ पर अपनी चूत रगड़ रही थी, “आह्ह… मुकेश… ऐसे ही… और…”। मैंने उसकी सलवार का नाड़ा खोलने की कोशिश की, लेकिन वो उलझ गया। उसने हँसते हुए खुद ही नाड़ा खोला और सलवार को नीचे सरका दिया। उसकी पैंटी भी गीली थी। मैंने उसकी पैंटी उतारी, और अब वो मेरे सामने पूरी नंगी थी। उसकी चूत साफ थी, हल्के बालों के साथ, और उसकी गीली चमक मेरे लंड को और बेकाबू कर रही थी।

उसने मेरे लोअर को खींचकर नीचे किया और मेरे अंडरवियर में हाथ डालकर मेरा लंड बाहर निकाला। मेरा लंड 6 इंच का था, मोटा और सख्त। उसने उसे ऊपर-नीचे करना शुरू किया, और मैं सिसकारने लगा, “उफ्फ… सोनी… क्या कर रही हो…”। उसकी उंगलियाँ मेरे लंड पर जादू कर रही थीं। फिर मैंने अपना लोअर और अंडरवियर पूरी तरह उतार दिया। मैंने उसे फिर से खटिया पर लिटाया और उसकी चूचियों को चूसने लगा। मेरा एक हाथ उसकी चूत पर था, और मैंने अपनी एक उंगली धीरे से उसकी चूत में डाली। वो गीली और गर्म थी। मैंने उंगली अंदर-बाहर करनी शुरू की, और वो जोर-जोर से सिसकारने लगी, “आह्ह… उफ्फ… मुकेश… और तेज…”। उसकी आवाज में एक बेताबी थी।

थोड़ी देर बाद उसने मेरा लंड पकड़ा और बोली, “बस अब उंगली नहीं… ये डालो… मैं और बर्दाश्त नहीं कर सकती।” उसकी बात सुनकर मेरा जोश दोगुना हो गया। मैंने अपने लंड का सुपारा उसकी चूत पर रखा और एक हल्का सा धक्का मारा, लेकिन निशाना चूक गया। मैंने फिर कोशिश की, पर फिर फिसल गया। वो हँसी और बोली, “अरे, इतनी जल्दी क्या है? मैं भाग थोड़े जा रही हूँ।” उसने मेरा लंड पकड़ा और अपनी चूत के मुँह पर सेट किया। फिर बोली, “अब धीरे से डालो।” मैंने इस बार धीरे से धक्का मारा, और मेरा आधा लंड उसकी चूत में चला गया। वो सिसकारी, “आह्ह… रुको… थोड़ा रुको…”। मैं रुक गया और उसे चूमने लगा। उसकी साँसें तेज थीं, और उसने मुझे कसकर पकड़ रखा था।

थोड़ी देर बाद उसने अपनी कमर हिलाई, और मैंने धीरे-धीरे अपना लंड और अंदर डाला। उसकी चूत टाइट थी, लेकिन गीली होने की वजह से मेरा पूरा लंड धीरे-धीरे अंदर चला गया। “पच… पच…” की आवाजें आने लगीं। मैं समझ गया कि वो पहले भी चुद चुकी है, लेकिन उसकी चूत की टाइटनेस ने मुझे पागल कर दिया। मैंने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू किए। वो अपनी गांड उठा-उठाकर मेरे धक्कों का जवाब दे रही थी, “आह्ह… उफ्फ… और जोर से… मुकेश…”। मैं उसकी चूचियों को मसल रहा था, कभी उन्हें चूसता, तो कभी उसके होंठों को चूमता। उसकी सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं, “आह्ह… ओह्ह… चोदो मुझे… और तेज…”।

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मैंने अपनी स्पीड बढ़ा दी। हर धक्के के साथ उसकी चूत मेरे लंड को जकड़ रही थी। “पच… पच… पच…” की आवाजें तेज हो गईं। वो मेरे कंधों को पकड़कर अपनी गांड उठा रही थी, “हाय… मुकेश… कितना मोटा है तेरा लंड… आह्ह…”। अचानक उसने मुझे जोर से पकड़ा, उसकी टाँगें टाइट हो गईं, और उसकी चूत ने मेरे लंड को और जोर से जकड़ लिया। वो झड़ रही थी। “आह्ह… उफ्फ… मैं गई…” वो चिल्लाई। मैंने धक्के जारी रखे, और थोड़ी देर बाद उसका बदन ढीला पड़ गया। मैंने उसे चूमा, और वो मुझे पागलों की तरह चूमने लगी। उसने मेरे पीठ पर नाखून गड़ा दिए।

उसने हँसते हुए कहा, “मैं तो झड़ गई, पर तू तो अभी बाकी है।” मैंने जवाब दिया, “हाँ, मेरी जान, अब मेरी बारी है।” उसने मेरे होंठ को हल्के से काटा और बोली, “तो फिर चोद ना… पेल दे अपना लंड… मुझे फिर से चुदना है।” उसकी गंदी बातों ने मुझे और जोश में ला दिया। मैंने एक जोरदार धक्का मारा, और वो सिसकारी, “आह्ह… हाय… ऐसे ही…”। मैंने अपनी स्पीड और बढ़ा दी। उसकी चूत अब और गीली हो गई थी, और हर धक्के के साथ “पच… पच…” की आवाजें तेज हो रही थीं। वो अपनी गांड उठा-उठाकर मेरे लंड को पूरा अंदर ले रही थी, “हाय… मुकेश… तेरा लंड कितना मस्त है… चोद… और जोर से…”।

मैंने उसकी चूचियों को मसला, उसके निपल्स को चूसा, और धक्के लगाता रहा। उसकी सिसकारियाँ अब और तेज हो गई थीं, “आह्ह… उफ्फ… मैं फिर से… आह्ह…”। उसने फिर से मुझे टाइट पकड़ा, और उसकी चूत ने मेरे लंड को जकड़ लिया। वो दूसरी बार झड़ रही थी। मैं भी अब अपने चरम पर था। मैंने कहा, “सोनी… मैं झड़ने वाला हूँ…”। उसने हाँफते हुए कहा, “अंदर ही डाल दे… मैं पिल्स ले लूँगी।” मैंने 8-10 और तेज धक्के मारे, और फिर उसकी चूत में अपना सारा माल डाल दिया। “आह्ह…” मैं सिसकारा और उसके ऊपर ढेर हो गया।

हम दोनों थोड़ी देर वैसे ही पड़े रहे, एक-दूसरे की साँसें महसूस करते हुए। फिर उसने कहा, “चल, अब देर हो रही है।” मैंने मजाक में कहा, “एक राउंड और?” वो हँसी और बोली, “क्या, कल कहीं भाग रहा है? थोड़ा बचाकर रख, कल फिर चुदाई करेंगे।” हम दोनों हँसे, फिर अपने कपड़े ठीक किए। वो पहले निकल गई, और थोड़ी देर बाद मैं भी अपने घर चला गया।

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