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भाभी की अनबुझी प्यास

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हाय दोस्तों, मेरा नाम आशु पाठक है। मैं बलिया, उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूँ। मेरी उम्र ३२ साल है, और मैं सात साल से अपनी पत्नी रीता के साथ शादीशुदा जिंदगी जी रहा हूँ। मैं ५ फुट १० इंच लंबा हूँ, गठीला बदन, और मेरा लंड ६ इंच लंबा, २.५ इंच मोटा है, जो किसी भी औरत की चूत को पूरी तरह तृप्त कर सकता है। रीता २८ साल की है, गोरी, ५ फुट ४ इंच लंबी, भरी हुई चूचियाँ और ३६ इंच की गोल गांड वाली खूबसूरत औरत है। लेकिन ये कहानी मेरी पड़ोसन मनीषा भाभी की है। मनीषा भाभी ३० साल की हैं, ५ फुट २ इंच की हाइट, ३८ इंच की भारी गांड, और ३४ इंच की उभरी चूचियाँ, जो उनकी टाइट साड़ियों में हमेशा ललचाती रहती हैं। उनका रंग हल्का सांवला है, उनकी कातिल मुस्कान और मटकती चाल हर मर्द का लंड खड़ा कर देती है। उनके पति अविनाश भैया ३५ साल के हैं, विदेश में नौकरी करते हैं, और साल में एक-दो बार ही घर आते हैं, जिससे भाभी की जवानी अक्सर तड़पती रहती है।

ये बात २०१५ की दीवाली की छुट्टियों की है। बलिया में चारों तरफ रौनक थी। घरों में दीये जल रहे थे, मिठाइयों की खुशबू हवा में थी, और रीता के साथ रात की चुदाई का मज़ा अपने आप में अलग था। लेकिन मेरा मन मनीषा भाभी की मटकती गांड और भारी चूचियों में अटका हुआ था। उनके घर की बालकनी में वो अक्सर साड़ी सुखाती थीं, और उनकी गीली साड़ी में भीगी चूचियाँ देखकर मेरा लंड बेकाबू हो जाता था। दीवाली के एक दिन बाद मैं उनके घर मिलने गया। गली में बच्चे पटाखे जला रहे थे, और हवा में मिठास घुली थी। मैंने उनके लकड़ी के दरवाजे को खटखटाया। भाभी ने दरवाजा खोला। वो नीली साड़ी में थीं, पल्लू हल्का सा सरका हुआ, जिससे उनकी गहरी नाभि और चूचियों की उभरी लकीर साफ दिख रही थी। मेरा लंड तन गया, लेकिन मैंने खुद को संभाला।

“अविनाश भैया इस बार नहीं आए?” मैंने कुर्सी पर बैठते हुए पूछा। भाभी ने चाय का कप मेरे सामने रखा और उदास होकर बोली, “नहीं, वो इस दीवाली भी नहीं आए।” उनकी आवाज़ में तड़प थी, जैसे कोई अंदर से जल रहा हो। मैंने हल्का हंसकर कहा, “कोई बात नहीं भाभी, मैं तो आपके लिए हूँ!” भाभी ने मेरी तरफ देखा, होंठों पर हल्की मुस्कान आई, और बोली, “हाँ, लेकिन तू तो रीता के साथ मस्त रहता है, मुझे कब याद करता है!” उनकी बात में मज़ाक था, लेकिन उनकी साँसें कुछ और कह रही थीं।

हम दूसरी मंजिल की बालकनी में चाय पीते हुए बातें करने लगे। ठंडी हवा चल रही थी, और भाभी का पल्लू बार-बार सरक रहा था। उनकी चूचियाँ साड़ी में कसी हुई थीं, और मैं चोरी-चोरी उन्हें निहार रहा था। तभी गली में एक कुत्ता और कुत्ती आए। कुत्ता कुत्ती के पीछे दौड़ा और उसे पकड़कर ज़ोर-ज़ोर से चोदने लगा। मैंने देखा, भाभी की साँसें तेज़ हो गईं, और उनका चेहरा लाल पड़ गया। वो चाय का कप चम्मच से हिलाने लगीं, जैसे बेचैन हों। मैंने मज़ाक में कहा, “देखो भाभी, वो भी तो मज़े ले रहे हैं!” भाभी शरमा गईं, बोली, “आशु, तू भी ना, बेशर्म! मुँह दूसरी तरफ कर!” लेकिन उनकी आवाज़ में गुस्सा कम, मज़ा ज़्यादा था।

मैंने फिर कहा, “क्या हुआ भाभी, आपको भी तो शायद ऐसा ही मज़ा चाहिए!” भाभी ने गुस्से में कहा, “बस कर, तू पहले से बेशर्म हो गया है। जा, बाद में बात करेंगे।” मैंने माफ़ी माँगी और घर चला गया। लेकिन मन में लड्डू फूट रहे थे। मुझे यकीन था कि कुत्ते-कुत्ती की चुदाई देखकर भाभी की चूत में आग लग चुकी है। उनकी वो तड़पती साँसें, लाल चेहरा, सब बता रहा था कि आज कुछ होने वाला है।

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घर आकर मैं भाभी की चूत और गांड के बारे में सोचता रहा। उनकी नरम चूचियाँ, मटकती गांड, और वो बेचैन साँसें मेरे दिमाग में घूम रही थीं। मैंने सोचा, आज भाभी ज़रूर फोन करेंगी। लेकिन रात के आठ बज गए, कोई फोन नहीं आया। मैं उदास होकर खाना खाने जा रहा था कि भाभी का फोन रीता के मोबाइल पर आया। भाभी बोली, “आज आशु को घर बुलाया है। मैंने बड़े प्यार से खाना बनाया है।” रीता ने मुझसे कहा, “जाओ, भाभी ने इतने प्यार से बुलाया है, देर मत करो।”

मेरा लंड सुनते ही तन गया। मैंने रीता को यकीन दिलाया कि मुझे कोई दिक्कत नहीं, और खुशी से भाभी के घर पहुँच गया। दरवाजा खटखटाया, भाभी ने खोला। अब वो पतली सी नाइटी में थीं, जिसमें उनकी ब्रा और पैंटी की शेप साफ दिख रही थी। उनकी चूचियाँ नाइटी में उभरी हुई थीं, और मैं तो बस उन्हें घूर रहा था। भाभी बोली, “ऊपर चल, बालकनी में बैठते हैं।” मैं उनके पीछे-पीछे सीढ़ियाँ चढ़ा, उनकी मटकती गांड देखकर मेरा लंड पैंट में उछल रहा था।

बालकनी में बैठकर मैं खाने का इंतज़ार करने लगा। दस मिनट बाद भाभी खाने की थाली लेकर आईं। मैंने देखा, उनकी नाइटी और टाइट हो गई थी, जैसे वो मुझे ललचा रही हों। मैंने पूछा, “भाभी, आप अब भी नाराज़ हैं?” वो मुस्कुराईं, बोली, “नहीं, बस थोड़ा शरम आ गई थी।” मैं समझ गया, रास्ता साफ है। मैंने खाना टेबल पर रखा और धीरे से उनके पीछे जाकर उन्हें बाँहों में भर लिया। भाभी चुप रहीं, लेकिन उनकी साँसें तेज़ हो गईं। मैंने उनके कान में फुसफुसाया, “भाभी, क्या बात है, आप इतनी गर्म क्यों हो रही हैं?” वो शरमाते हुए बोली, “आशु, ये ठीक नहीं है, कोई देख लेगा।”

मैंने कहा, “कोई नहीं देखेगा, बस आप बोलो, क्या चाहिए आपको?” भाभी ने हल्का सा विरोध किया, “आशु, मैं शादीशुदा हूँ, ये गलत है।” लेकिन उनकी काँपती आवाज़ और तेज़ साँसें बता रही थीं कि वो तड़प रही हैं। मैंने उनकी कमर पर हाथ फेरा, उनकी नाइटी के ऊपर से उनकी गांड दबाई। वो सिहर उठीं, बोली, “आह, आशु, क्या कर रहा है?” मैंने उन्हें और कसकर पकड़ा, बोला, “भाभी, आपकी ये जवानी कितने दिन से तड़प रही है, मैं इसे शांत कर दूँगा।” भाभी ने अब विरोध छोड़ दिया, उनकी साँसें और भारी हो गईं।

मैंने उन्हें गोद में उठाया और उनके बेडरूम में ले गया। बेडरूम में हल्का सा अंधेरा था, सिर्फ़ एक दीये की रोशनी में उनका चेहरा चमक रहा था। मैंने उन्हें बेड पर लिटाया और उनकी नाइटी धीरे-धीरे खींच दी। उनकी काली ब्रा और पैंटी में वो किसी स्वर्ग की अप्सरा लग रही थीं। मैंने उनकी ब्रा के हुक खोले, उनकी चूचियाँ आज़ाद होकर उछल पड़ीं। गोल, भारी, और भूरे निप्पल्स, जो कड़े हो चुके थे। मैंने एक चूची को मुँह में लिया, धीरे-धीरे चूसा, और दूसरी चूची को उंगलियों से मसला। भाभी सिसकारी, “आह्ह, आशु, धीरे कर, दर्द हो रहा है!” मैंने उनकी चूची को और ज़ोर से चूसा, बोला, “भाभी, आपकी चूचियाँ कितनी रसीली हैं, इन्हें तो दिन-रात चूसने का मन करता है।”

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मैंने उनकी पैंटी पर हाथ फेरा, वो पहले से गीली थी। मैंने पैंटी उतारी, उनकी चूत बिल्कुल साफ थी, जैसे अभी नहाकर आई हों। चूत की फाँकें गीली और लाल हो चुकी थीं, और हल्की सी खुशबू मेरे नाक में गई। मैंने उनकी चूत पर उंगली फेरी, वो तड़प उठीं, “आह, आशु, मत सताओ, अब कुछ कर!” मैंने उनकी चूत पर जीभ रखी, हल्के से चाटा। भाभी की कमर उछल पड़ी, “उई माँ, ये क्या कर रहा है?” मैंने उनकी चूत को और ज़ोर से चाटा, उनकी फाँकों को जीभ से खोला, और उनके दाने को चूसा। भाभी चिल्लाईं, “आशु, बस कर, मर जाऊँगी!” उनकी चूत से पानी टपक रहा था, और मैंने उसे चाट-चाटकर साफ किया।

मैंने कहा, “भाभी, अब मेरा लंड चूसो, थोड़ा मज़ा मुझे भी दो।” भाभी ने पहले मना किया, “मैं ये नहीं करती, शरम आती है।” लेकिन मेरे ज़िद करने पर वो मान गईं। मैंने पैंट उतारी, मेरा लंड तनकर बाहर आया, उसकी नसें फूली हुई थीं। भाभी ने उसे हाथ में लिया, हल्के से सहलाया, और फिर मुँह में डाला। वो धीरे-धीरे चूसने लगीं, जैसे कोई लॉलीपॉप हो। “आह, भाभी, कितना मज़ा दे रही हो,” मैं सिसकार उठा। भाभी ने स्पीड बढ़ाई, मेरे लंड को गले तक लिया, और उनकी जीभ मेरे सुपारे पर घूम रही थी। मैंने उनकी चूचियाँ दबाईं, उनकी चूत को सहलाया, और वो और ज़ोर से चूसने लगीं।

पंद्रह मिनट तक भाभी ने मेरा लंड चूसा, लेकिन मैं झड़ा नहीं, क्योंकि मैं पहले मुठ मारकर आया था। मैंने भाभी को बेड पर लिटाया, उनकी टाँगें फैलाईं। उनकी चूत गीली और खुली हुई थी, जैसे मेरे लंड का इंतज़ार कर रही हो। मैंने अपना लंड उनकी चूत की फाँकों पर रगड़ा, वो तड़प उठीं, “आशु, मत तड़पा, डाल दे अब!” मैंने लंड का सुपारा उनकी चूत के मुँह पर रखा, हल्का सा दबाया। भाभी सिहर उठीं, “आह, धीरे, बहुत बड़ा है!” मैंने धीरे से लंड अंदर धकेला, उनकी चूत टाइट थी, जैसे सालों से कोई लंड न गया हो। मैंने आधा लंड डाला, भाभी चिल्लाईं, “उई माँ, निकाल, दर्द हो रहा है!”

मैंने उनकी चूचियाँ दबाईं, उनके होंठ चूसे, और बोला, “भाभी, थोड़ी सी सह लो, मज़ा आएगा।” मैंने हल्का सा लंड बाहर खींचा, फिर धीरे से और अंदर डाला। उनकी चूत गीली थी, लेकिन टाइट, और मेरा लंड उसमें रगड़ खा रहा था। मैंने धीरे-धीरे धक्के शुरू किए, हर धक्के के साथ भाभी की सिसकारियाँ बढ़ रही थीं, “आह, आशु, धीरे कर, मर जाऊँगी!” मैंने स्पीड बढ़ाई, पूरा लंड उनकी चूत में पेल दिया। उनकी चूत ने मेरे लंड को जकड़ लिया, जैसे वो उसे छोड़ना न चाहती हो। मैंने ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारे, बेड की चरमराहट और भाभी की सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं।

“भाभी, कैसी लग रही है मेरी चुदाई?” मैंने पूछा, उनकी चूचियाँ दबाते हुए। भाभी सिसकारीं, “आह, आशु, बहुत मज़ा आ रहा है, और ज़ोर से पेल!” मैंने उनकी टाँगें अपने कंधों पर रखीं, और गहरे धक्के मारने लगा। मेरा लंड उनकी चूत की गहराई तक जा रहा था, और हर बार जब मैं अंदर पेलता, भाभी की चूत से पानी छलकता। मैंने उनकी गांड के नीचे तकिया रखा, जिससे उनकी चूत और खुल गई। मैंने और ज़ोर से पेला, भाभी चिल्लाईं, “आशु, मेरी चूत फाड़ दी, बस कर!” लेकिन उनकी चिल्लाहट में मज़ा था, वो मेरे हर धक्के का जवाब अपनी कमर उछालकर दे रही थीं।

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पंद्रह मिनट तक मैंने उनकी चूत को पेला, उनकी चूचियाँ उछल रही थीं, और उनका चेहरा पसीने से भीगा था। भाभी अकड़ने लगीं, “आशु, कुछ हो रहा है, और ज़ोर से!” मैंने स्पीड और बढ़ाई, उनकी चूत ने मेरे लंड को और ज़ोर से जकड़ा, और वो ज़ोर से चिल्लाकर झड़ गईं। उनकी चूत से गरम पानी बह निकला, मेरे लंड को भिगोते हुए। लेकिन मेरा अभी बाकी था। मैंने उन्हें घोड़ी बनाया, उनकी भारी गांड मेरे सामने थी, जैसे कोई रसीला फल। मैंने उनकी गांड पर हल्का सा चपत मारा, बोला, “भाभी, अब तो तेरी चूत का भोसड़ा बन जाएगा!”

मैंने लंड उनकी चूत में पीछे से सटाया, सुपारा उनकी फाँकों में रगड़ा, और एक झटके में पूरा लंड पेल दिया। भाभी चीखी, “उई माँ, मर गई, इतना बड़ा लंड!” मैंने उनकी कमर पकड़ी, और ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने लगा। उनकी गांड हर धक्के के साथ हिल रही थी, और उनकी चूत मेरे लंड को चूस रही थी। मैंने उनकी चूचियाँ पीछे से पकड़ीं, ज़ोर से मसलीं, और बोला, “भाभी, कैसी लग रही है कुत्ती बनकर चुदाई?” भाभी सिसकारीं, “आह, आशु, पेल दे, मेरी चूत फाड़ दे!” मैंने और ज़ोर से पेला, मेरा लंड उनकी चूत की दीवारों से रगड़ खा रहा था, और हर धक्के के साथ भाभी की चीखें बढ़ रही थीं।

दस मिनट तक घोड़ी बनाकर चोदा, फिर मैं उनकी चूत में ही झड़ गया। मेरा गरम माल उनकी चूत में छलक पड़ा, और मैं उनके ऊपर लेट गया। हमारी साँसें मिल रही थीं, और हम दोनों पसीने से तर थे। भाभी बोली, “आशु, इतना मज़ा तो कभी नहीं आया।” मैंने उनकी चूची दबाई, बोला, “भाभी, ये तो बस शुरुआत है।” थोड़ी देर बाद मैं उठा, कपड़े पहने, और खाना खाया। रात साढ़े दस बजे घर लौट गया। अगले दिन मैंने भाभी को अरहर के खेत में भी चोदा, वो कहानी फिर कभी सुनाऊँगा।

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