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भाभी की मटवाली गांड को चोद दिया

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मैं महेश, उम्र 32 साल, एक मिडिल-क्लास आदमी, जो दिल्ली की एक छोटी सी फाइनेंस कंपनी में जॉब करता है। मैं दिखने में ठीक-ठाक हूँ, थोड़ा सांवला, मगर जिम जाता हूँ, तो बदन टाइट है। मेरा लंड 6 इंच का है, और मुझे हमेशा से गांड मारने का शौक रहा है। मेरी बीवी कुसुम, 30 साल की, गोरी, भरे हुए जिस्म वाली औरत है, मगर वो गांड मरवाने में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाती। उसकी गांड भी कमाल की है, पर उसका मूड बनाना मेरे लिए टास्क है। मेरा दोस्त अनिल, 35 साल का, एक फैक्ट्री मालिक है, जो हमेशा अपने बिजनेस में डूबा रहता है। वो लंबा, दुबला-पतला, और काम का दीवाना है। उसकी बीवी संगीता, 33 साल की, साधारण सी दिखने वाली औरत है, मगर उसकी गांड इतनी मोटी और उभरी हुई है कि जब वो चलती है, तो उसकी हर अदा लंड खड़ा कर देती है। संगीता का रंग गेहुंआ है, और उसकी आँखों में एक चुलबुली सी चमक है, जो कुछ न कुछ कहती रहती है।

बात उस रविवार की रात की है, जब मैं और कुसुम अनिल के घर गए। अनिल का घर दिल्ली के एक पुराने मोहल्ले में है, जहां तंग गलियां और पुराने मकान हैं। उस रात हवा में हल्की ठंड थी, और अनिल के घर की खुली खिड़कियों से बाहर की ठंडी हवा कमरे में आ रही थी। हम चारों ड्राइंग रूम में बैठे गप्पें मार रहे थे। अनिल अपनी फैक्ट्री की बातें कर रहा था, और कुसुम संगीता के साथ रसोई की बातें कर रही थी। मैं चुपके-चुपके संगीता को देख रहा था। उसने लाल साड़ी पहनी थी, जो उसके जिस्म से चिपकी हुई थी। जब वो हंसती, तो उसकी गांड हल्के से हिलती, और मेरा लंड पैंट में तनने लगता।

रात के करीब 11 बज गए थे। संगीता अचानक बोली, “आप लोग बैठो, मैं चाय बनाकर लाती हूँ।” वो रसोई की तरफ चली गई, और उसकी गांड का हर कदम मुझे पागल कर रहा था। थोड़ी देर बाद अनिल भी उठा और बोला, “मैं बाथरूम होकर आता हूँ।” मैं अकेला सोफे पर बैठा रहा, और मेरे दिमाग में संगीता की गांड घूम रही थी। तभी रसोई से संगीता की आवाज़ आई, “अनिल, ज़रा अंदर आकर ऊपर से शक्कर का डब्बा उतार दो।” अनिल बाथरूम में था, तो मैंने सोचा मौका अच्छा है। मैं रसोई में चला गया।

संगीता एक स्टूल पर चढ़कर अलमारी से डब्बा निकालने की कोशिश कर रही थी। उसकी साड़ी थोड़ी ऊपर उठी हुई थी, और उसकी गोरी जांघें दिख रही थीं। मैंने कहा, “भाभी, मैं उतार देता हूँ।” मैं उसके पीछे खड़ा हो गया, और जैसे ही मैंने डब्बा उतारने के लिए हाथ बढ़ाया, संगीता का पैर फिसला। वो एकदम मेरी बाहों में आ गिरी। उसके भारी बूब्स मेरे सीने से टकराए, और उसकी मोटी गांड मेरे लंड से रगड़ खा गई। मेरा लंड तुरंत खड़ा हो गया, और मैंने मौका देखकर उसकी गांड पर हाथ रख दिया। उसने मेरी तरफ देखा और हल्के से मुस्कुराई। फिर बोली, “अगर उंगली डालनी है, तो ढंग से डाल, मज़ा तो आए।”

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उसके शब्दों ने मेरे जिस्म में आग लगा दी। मैंने बिना वक्त गंवाए उसकी साड़ी को और ऊपर किया, और उसकी गांड को खुला देखा। उसकी पैंटी काली थी, और उसकी गांड इतनी चिकनी थी कि मेरा लंड पैंट में फटने को हो गया। मैंने एक उंगली उसकी गांड में डाली, और दूसरी उसकी चूत में। वो सिसकारी भरने लगी, “ऊईईई… आह्हह… थोड़ा धीरे, महेश!” मैंने उसकी चूत को और ज़ोर से रगड़ा, और उसकी गांड में उंगली अंदर-बाहर करने लगा। वो मज़े में सिसक रही थी, और उसकी चूत गीली हो चुकी थी। तभी अनिल की बाथरूम से आने की आहट हुई, और हम दोनों जल्दी से अलग हो गए। मैंने डब्बा उसे थमा दिया, और हम चुपचाप चाय पीने बैठ गए। लेकिन उसकी आँखों में वो चमक थी, जो बता रही थी कि वो मुझसे चुदवाने को तैयार है।

दो महीने बाद, मेरी किस्मत ने साथ दिया। कुसुम सर्दियों की छुट्टियों में अपने मायके कोटा चली गई, और मेरी मम्मी भी रिश्तेदारों के यहाँ घूमने गई थीं। उसी दिन अनिल का फोन आया, “यार, आज रात को अंडाकरी खाएंगे। संगीता शाम को तुम्हारे घर सब्ज़ी बना देगी। तू ऑफिस से पहले घर की चाबी उसे दे जाना।” मैंने चाबी संगीता को दे दी, और ऑफिस से जल्दी लौट आया। शाम के 4:30 बजे मैं घर पहुंचा, तो संगीता किचन में थी। उसने हल्के नीले रंग का गाउन पहना था, जो इतना पतला था कि उसके निप्पल और जांघें साफ दिख रही थीं। वो मुझे देखकर मुस्कुराई और बोली, “अनिल का फोन आया था। वो देर से आएगा, काम ज़्यादा है। तुम और मैं खाना खा लें।”

मैं समझ गया कि आज मौका है। संगीता के बच्चे भी अपनी नानी के घर गए थे, और घर में बस हम दोनों थे। वो बोली, “मैं नहाकर खाना बनाती हूँ। तुम्हारा बाथरूम यूज़ कर लूँ?” मैंने हाँ कहा, और वो बाथरूम चली गई। मैंने मौका देखकर टीवी पर एक ब्लू फिल्म लगा दी। जब संगीता नहाकर बाहर आई, तो उसने वही पतला गाउन पहना था, और उसके गीले बालों से पानी टपक रहा था। उसकी चिकनी जांघें और निप्पल गाउन के पार साफ दिख रहे थे। वो फिल्म देखकर हंस पड़ी और बोली, “इतनी गर्मी लग रही है, इसलिए ये पहना। तुम भी नहा लो, फिर खाना बनाते हैं।”

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मैं बाथरूम गया, लेकिन जल्दी नहाकर लौट आया। कमरे में पहुंचा, तो देखा संगीता सोफे पर बैठी ब्लू फिल्म देख रही थी, और उसका एक हाथ उसकी चूत पर था। वो मुझे देखकर बोली, “किचन में मेरी मदद करो।” मैंने कहा, “हाँ, मगर एक शर्त है। हम दोनों नंगे होकर किचन जाएंगे।” वो हंस पड़ी और बोली, “चलो, ठीक है।” उसने गाउन उतार दिया, और मैंने भी अपने कपड़े फेंक दिए। उसकी नंगी गांड और भरे हुए बूब्स देखकर मेरा लंड तन गया। मैंने उसे किचन काउंटर पर झुका दिया और उसकी गांड को चाटने लगा। उसकी गांड से हल्की साबुन की खुशबू आ रही थी, और उसका स्वाद मेरे मुँह में घुल रहा था। वो सिसक रही थी, “आह्हह… महेश, तू तो पागल कर देगा।”

मैंने उसका एक पैर काउंटर पर रखा और उसकी चूत को चाटना शुरू किया। उसकी चूत इतनी गीली थी कि मेरी जीभ हर चाट में और फिसल रही थी। वो बोली, “मादरचोद, तू इतना अच्छा चाटता है, मेरी चूत को और चूस!” मैंने उसकी चूत में जीभ डाली, और उसकी गांड में एक उंगली डाल दी। वो चिल्लाई, “ऊईईई… बस कर, नहीं तो मैं अभी झड़ जाऊंगी!” लेकिन मैं रुका नहीं। मैंने उसकी गांड को और चाटा, और उसकी चूत में दो उंगलियां डालकर रगड़ने लगा। उसका जिस्म कांप रहा था, और वो बार-बार मेरे सिर को अपनी चूत पर दबा रही थी।

फिर मैंने किचन में रखी बोरोलिन की ट्यूब उठाई और उसकी गांड में लगाई। उसकी गांड चिकनी हो गई, और मैंने अपना 6 इंच का लंड उसकी गांड के मुँह पर रखा। वो डरते हुए बोली, “महेश, तेरा लंड इतना मोटा है, मेरी गांड फट जाएगी!” मैंने कहा, “सब्र कर, भाभी, तुझे मज़ा आएगा।” मैंने धीरे से एक धक्का मारा, और मेरा लंड 2 इंच अंदर चला गया। वो चिल्लाई, “आईईईई… माँ, मर गई! धीरे कर, कुत्ते!” मैंने उसकी कमर पकड़ी और एक और धक्का मारा। इस बार 5 इंच लंड उसकी गांड में चला गया। वो गालियां बकने लगी, “मादरचोद, तेरी माँ की चूत, मेरी गांड छोड़ दे, मेरी चूत में डाल!”

मैंने हंसकर कहा, “संगीता, तेरी गांड का मज़ा लूंगा, फिर चूत की बारी आएगी।” मैंने तेल लिया, अपने लंड पर लगाया, और एक ज़ोरदार धक्का मारा। मेरा पूरा लंड उसकी गांड में समा गया। वो चिल्लाई, “ऊफ्फफ्फ… अब मज़ा आ रहा है, और ज़ोर से चोद!” मैंने उसकी गांड में धक्के मारने शुरू किए, और साथ में उसकी चूत में दो उंगलियां डाल दीं। उसकी सिसकारियां पूरे किचन में गूंज रही थीं, “आह्हह… महेश, मेरी गांड और चूत दोनों फाड़ दे!” मैंने 10 मिनट तक उसकी गांड चोदी, और उसका जिस्म हर धक्के के साथ हिल रहा था।

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फिर संगीता बोली, “अब मेरी बारी है, तुझे मज़ा देती हूँ।” उसने मुझे किचन की कुर्सी पर बिठाया और मेरे लंड को मुँह में ले लिया। वो लॉलीपॉप की तरह मेरे लंड को चूस रही थी, और उसकी जीभ मेरे लंड के टोपे पर घूम रही थी। मैंने उसके बाल पकड़े और उसका मुँह ज़ोर से अपने लंड पर दबाया। वो बोली, “आह्हह… तेरा लंड इतना मज़ेदार है!” उसने मेरे लंड को चूस-चूसकर मुझे झड़ने पर मजबूर कर दिया। मेरा वीर्य उसके मुँह में गिरा, और वो उसे पूरा गटक गई।

लेकिन वो रुकी नहीं। उसने मेरा लंड फिर से चूसना शुरू किया, और 5 मिनट में मेरा लंड दोबारा खड़ा हो गया। मैंने उसे काउंटर पर लिटाया और उसकी चूत में अपना लंड डाल दिया। उसकी चूत इतनी टाइट थी कि मेरा लंड हर धक्के में और मज़ा ले रहा था। वो चिल्ला रही थी, “महेश, मेरी चूत फाड़ दे, और ज़ोर से चोद!” मैंने 15 मिनट तक उसकी चूत चोदी, और हम दोनों एक साथ झड़ गए। उसकी सिसकारियां और मेरी गर्म सांसें पूरे कमरे में गूंज रही थीं।

उसके बाद हमने कपड़े पहने और खाना बनाया। संगीता ने मुस्कुराते हुए कहा, “अनिल को मत बताना, मगर ये मज़ा मैं फिर लूंगी।” मैंने हंसकर कहा, “भाभी, जब मन करे, मेरे घर आ जाना।” उस रात अनिल जब आया, हमने साथ में अंडाकरी खाई, और संगीता की चमकती आँखें मुझे बार-बार वो गर्म पल याद दिला रही थीं।

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