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भैया गए दुबई, भाभी देवर से चुदगई 1

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मैं सविता हूं। इस घर की बहू, और अनिल की पत्नी। पांच साल हो गए इस शादी को, लेकिन अगर कोई पूछे कि इस शादी में मैंने क्या पाया, तो शायद जवाब देने के लिए मेरे पास कुछ खास नहीं है। हां, मैंने एक अच्छा परिवार पाया – मां, पिताजी, दादी और छोटा देवर राजू। लेकिन जो एक औरत अपने पति से उम्मीद करती है, वो मैं कभी नहीं पा सकी।

मैंने कभी बॉयफ्रेंड नहीं बनाया, क्योंकि मैंने सोचा था कि मेरा पति मेरा सबकुछ होगा। शादी के बाद जब मेरी पहली रात आई, तो मैं बहुत घबराई हुई थी। लेकिन अंदर से एक खुशी थी, एक उम्मीद थी कि आज मेरी जिंदगी बदल जाएगी। पर जब मैंने अपने पति का लंड देखा… 3 इंच का। मेरी सारी उम्मीदें टूट गईं।

वो रात मुझे आज भी याद है। उन्होंने मुझे छूने की कोशिश की, लेकिन उनका छोटा सा लंड… मेरी सील तक नहीं तोड़ पाया। मेरी पहली रात बिना किसी सुख के खत्म हो गई। मैंने खुद से कहा, “शायद आगे सब ठीक हो जाएगा।” लेकिन ऐसा कभी हुआ नहीं।

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अब दो साल हो गए हैं। अनिल दुबई में हैं। घर की सारी जिम्मेदारी मेरे ऊपर है। मैं सबके लिए भाभी हूं, जो हर वक्त हंसती रहती है, सबका ध्यान रखती है। लेकिन इस हंसी के पीछे मेरे अंदर का अकेलापन कोई नहीं देख सकता।

राजू, मेरे देवर, 22 साल का जवान लड़का। वो घर का हर काम संभालता है। हमेशा मदद करता है। दिनभर इधर-उधर हंसी-मजाक करता रहता है। उसकी मासूमियत और उसकी मर्दानगी… दोनों ही मुझे कभी-कभी अंदर से बेचैन कर देते हैं।

आज सुबह मां ने कहा, “सविता, जाकर राजू को उठा दे। वो सारा दिन सोता रहेगा तो काम कैसे होगा?”

मैं उसके कमरे में गई। दरवाजा हल्का सा खुला था। वो बेफिक्र होकर सो रहा था। शर्ट खुली हुई थी, और उसने सिर्फ शॉर्ट्स पहना हुआ था। मैं उसके पास गई।

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“राजू, उठ जा। नाश्ता ठंडा हो जाएगा,” मैंने धीरे से कहा।

वो करवट लेकर लेट गया। उसकी शॉर्ट्स की सिलवटें और ज्यादा खिंच गईं। मेरा दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उसकी जांघों के बीच जो उभार था, वो… इतना बड़ा, इतना लंबा। मैंने अपनी आंखें हटाने की कोशिश की, लेकिन नजरें टिक गईं।

तभी वो हल्का सा हिला। मैंने तुरंत अपनी नजरें हटाईं और उसका कंधा हिलाया, “अब उठ भी जा। मां नाराज हो जाएंगी।”

वो आंखें मलते हुए बोला, “हां भाभी, उठ रहा हूं।”

दोपहर को जब सब लोग खेतों में गए हुए थे, मैं बालकनी में कपड़े सुखा रही थी। हवा चल रही थी, और मेरी साड़ी का पल्लू हल्का सा खिसक गया। मुझे पता था कि राजू वहीं खड़ा है। उसकी नजरें मेरी नाभि पर थीं।

मैंने उसे देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा। मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। ऐसा लगा जैसे वो मुझे देख रहा है, लेकिन कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर रहा।

हम दोनों के बीच एक अजीब सा खिंचाव था। मैं जानती थी कि ये गलत है, लेकिन मुझे रोकने का मन नहीं कर रहा था।

रात को खाना खाकर सब अपने-अपने कमरे में सो गए। मैं आंगन में बैठी थी। ठंडी हवा चल रही थी। राजू वहीं आकर बैठ गया।

हम दोनों चुप थे। लेकिन उस खामोशी में भी बहुत कुछ था।

“भाभी, आप ठीक हैं?” उसने पूछा।

“हां, क्यों?” मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

“ऐसे ही, लगा कि आप कुछ सोच रही हैं,” उसने कहा।

मैंने सिर हिला दिया। सच तो ये था कि मैं सोच रही थी… उसके बारे में, उसके उस उभार के बारे में, जिसे मैंने सुबह देखा था।

रात गुजर गई, लेकिन मेरी आंखों से नींद कोसों दूर थी। राजू का चेहरा बार-बार मेरी आंखों के सामने आ रहा था। और वो उभार… जिसे मैंने सुबह देखा था।

मैंने खुद से कहा, “सविता, तुझे अपनी हद में रहना होगा। ये सब गलत है।” लेकिन मेरे दिल की धड़कनें और मेरे शरीर का बेचैन होना… ये सब मेरी सोच को झूठा साबित कर रहा था।

अगले दिन सुबह का वक्त था। मैं रसोई में थी, पर हाथ खुद-ब-खुद कांप रहे थे। राजू ने आते ही कहा, “भाभी, चाय बना दी है?”

मैंने उसे देखकर कहा, “हां, थोड़ी देर में लाती हूं।”

वो पास आकर बोला, “भाभी, आप ठीक लग नहीं रहीं। थकी-थकी सी लग रही हैं।”

मैंने उसकी तरफ देखा। उसकी मासूमियत में छिपी वो मर्दानगी अब मुझे और ज्यादा खींचने लगी थी।

दोपहर का समय था। घर के बाकी लोग बाहर खेतों में काम करने गए हुए थे। दादी अपने कमरे में भजन सुन रही थीं। घर में बस मैं और राजू थे।

मैंने उससे कहा, “राजू, कपड़े उतारकर आंगन में डाल देना। हवा अच्छी चल रही है, जल्दी सूख जाएंगे।”

“ठीक है भाभी,” उसने कहा और कपड़े उठाने चला गया।

जब मैं रसोई से बाहर आई, तो देखा कि वो कपड़े डाल रहा था। उसकी टी-शर्ट हल्की गीली थी और उसकी कसरती छाती साफ झलक रही थी। मैंने चाहकर भी अपनी नजरें उससे हटा नहीं पाईं।

तभी वो पलटा। उसकी नजरें मुझसे टकराईं। हम दोनों कुछ पल तक एक-दूसरे को देखते रहे। फिर उसने मुस्कुराकर कहा, “भाभी, कुछ चाहिए?”

मैं जल्दी से संभली और बोली, “नहीं, मैं बस देखने आई थी कि काम हुआ या नहीं।”

शाम को जब सब घर वापस आ गए, तो हर कोई थका हुआ था। मैं रसोई में खाना बना रही थी। राजू बार-बार अंदर-बाहर आ रहा था। कभी दादी के लिए पानी ला रहा था, तो कभी पिताजी के लिए।

मैंने उससे कहा, “राजू, तू बैठ जा। मैं सब संभाल लूंगी।”

उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “भाभी, मैं आपको अकेला थोड़ी छोड़ सकता हूं। आप सबका ध्यान रखती हैं, लेकिन आपका ध्यान कौन रखता है?”

उसके ये शब्द मुझे अंदर तक छू गए। मैंने बिना कुछ कहे काम में लग गई। लेकिन मेरा दिल… मेरी धड़कनें… तेज होती जा रही थीं।

रात का वक्त था। सब लोग अपने-अपने कमरे में थे। मैं आंगन में चारपाई पर बैठी थी। ठंडी हवा चल रही थी। राजू वहीं पास बैठा था।

हम दोनों चुप थे। लेकिन उस खामोशी में भी बहुत कुछ कहा जा रहा था।

“भाभी, आपको अकेलापन नहीं लगता?” उसने धीरे से पूछा।

मैंने उसकी तरफ देखा। उसकी आंखों में वो मासूमियत थी, लेकिन उसके सवाल में कुछ ऐसा था, जिसने मुझे अंदर तक झकझोर दिया।

“अकेलापन तो हर किसी को लगता है, राजू। लेकिन सब उसे कहां जाहिर करते हैं,” मैंने जवाब दिया।

वो कुछ देर तक मेरी तरफ देखता रहा। फिर बोला, “भाभी, आप बहुत अच्छी हैं। आप सबका ख्याल रखती हैं। लेकिन आप खुद के बारे में कभी नहीं सोचतीं।”

उसकी बातों ने मुझे कुछ पल के लिए रोक दिया। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या कहूं।

उस रात जब मैं अपने कमरे में गई, तो मेरा मन बेचैन था। दिमाग जैसे हज़ार सवालों से भरा हुआ था। मैंने खुद को संभालने की कोशिश की, लेकिन राजू की बातों ने मेरे अंदर का सन्नाटा तोड़ दिया था।

जैसे ही मैं बिस्तर पर बैठी, मां का फोन आ गया। “सविता, कैसी है तू? सब ठीक चल रहा है ना?”

“हां मां, सब ठीक है। आप बताइए, मयके में सब कैसे हैं?” मैंने जवाब दिया।

मां ने कहा, “अरे, सब ठीक है। पर पता है, पड़ोस की बेटी सुनीता का फिर से ब्याह हो रहा है।”

“फिर से? किसके साथ?” मैंने चौंकते हुए पूछा।

मां ने थोड़ा रुककर कहा, “अपने देवर के साथ। उसका पति गुजर गया था, तो अब घरवालों ने सोचा कि उसी के देवर से शादी करा दें। इससे लड़की भी घर में रहेगी और परिवार का नाम भी बना रहेगा।”

मुझे ये सुनकर अजीब सा लगा। फोन पर मां अपनी बात कहती जा रही थीं, लेकिन मेरा दिमाग कहीं और ही चला गया। “अपने देवर के साथ शादी…” ये शब्द मेरे दिमाग में बार-बार गूंज रहे थे।

फोन रखकर मैं सोच में डूब गई। अगर सुनीता अपने देवर से शादी कर सकती है, तो क्या मैं अपने देवर से…?

मैंने अपने मन को समझाने की कोशिश की। “सविता, ये सोच भी गलत है।” लेकिन मेरे अंदर की औरत, जो सालों से अधूरी थी, अब खुद से सवाल करने लगी।

“क्या गलत है? अगर मेरा पति मेरी जरूरतें पूरी नहीं कर सकता, तो क्या मैं हमेशा ऐसे ही अधूरी रहूं? अनिल का छोटा सा लंड मेरी सील तक नहीं तोड़ पाया। मैं आज भी एक शादीशुदा औरत होकर भी सील पैक हूं।”

ये सोचकर मेरी आंखें भर आईं। “क्या ये मेरा दोष है कि मैं औरत हूं? क्या मेरी इच्छाएं गलत हैं?”

और फिर एक ख्याल आया – “अगर मेरा पति अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा सकता, तो क्या मेरे देवर को ये जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए?”

मेरे अंदर की आवाज ने कहा, “ये गलत नहीं है। क्योंकि मेरे पास कोई और चारा नहीं है। लेकिन… मुझे ये जताने की जरूरत नहीं कि मैं ये चाहती हूं। मैं अपनी मर्यादा में रहूंगी, एक संस्कारी गृहिणी की तरह। मैं सिर्फ इशारे करूंगी। अगर राजू समझा, तो वो मेरी जरूरतें पूरी करेगा। और अगर नहीं, तो मैं वैसे भी अधूरी हूं।”

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उस ख्याल ने मुझे अंदर से शांत कर दिया। मैंने फैसला कर लिया कि मैं अपना किरदार एक आदर्श भाभी का ही रखूंगी। लेकिन मैं अपने इशारे ऐसे करूंगी कि राजू खुद मेरी ओर खिंचता चला आए।

ये सोचते-सोचते मेरी सांसें तेज़ होने लगीं। मेरे हाथ अनजाने में मेरी साड़ी के अंदर चले गए। मेरी उंगलियां मेरी चूत के ऊपर घूमने लगीं। “इतने सालों से इसने किसी मर्द का सुख नहीं पाया,” मैंने खुद से कहा।

मैंने अपनी उंगलियों को अपनी चूत के ऊपर रगड़ना शुरू किया। मेरी आंखों के सामने राजू का चेहरा और उसका बड़ा सा लंड आ गया।

“अगर वो मेरी सील तोड़ेगा, तो मुझे वो सुख मिलेगा, जो मैंने कभी नहीं पाया।” ये सोचते ही मेरी उंगलियां और तेज़ी से चलने लगीं। मेरी सांसें तेज हो गईं।

थोड़ी देर में मेरा पूरा शरीर जैसे झनझना उठा। मैं झड़ गई। मेरी आंखों में एक अजीब सा सुकून और चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी।

“जो होना है, वो होकर रहेगा,” मैंने खुद से कहा और सो गई।

अगले कुछ दिनों तक मैंने खुद को पहले जैसा ही दिखाने की कोशिश की। घर का काम, सबकी देखभाल, और अपनी जिम्मेदारियां निभाते हुए मैं वही संस्कारी भाभी बनी रही। लेकिन अब मेरा हर कदम सोच-समझकर होता था। मेरे इशारे सीधे नहीं थे, लेकिन उनमें इतनी मिठास और लचीलापन था कि राजू को खींचने के लिए काफी थे।

एक दिन की बात है। मां, पिताजी और दादी बाहर किसी रिश्तेदार के यहां गए हुए थे। घर में सिर्फ मैं और राजू थे। मैंने उसे पकोड़े बनाने के लिए बुलाया।

“राजू, आ तो जरा। तुझे भी कुछ नया सिखाती हूं।”

वो रसोई में आया। मैं जानबूझकर उसके करीब खड़ी हो गई। पकोड़े तलते हुए मैंने कहा, “तेरे भैया को तो ये सब बनाना आता ही नहीं। तू सीख ले, आगे काम आएगा।”

“आप क्यों टेंशन लेती हैं, भाभी? मैं तो हूं न सब सीखने के लिए,” उसने मुस्कुराते हुए कहा।

वो मेरे करीब खड़ा था। उसकी गर्म सांसें मेरे गालों को छू रही थीं। मैंने हल्के से अपने पल्लू को ठीक किया और कहा, “ठीक से देख, जल न जाएं।”

उसने तवे की तरफ देखते हुए कहा, “भाभी, मैं संभाल लूंगा। लेकिन आप ज्यादा पास मत खड़ी होइए। गर्म तेल उछल जाएगा।”

उसके ये कहने के अंदाज में जो चिंता थी, वो मुझे अंदर तक छू गई।

मैंने महसूस किया कि राजू अब मेरे इशारों को समझने लगा है। उसकी नजरें मेरी हर हरकत पर टिकी रहती थीं। लेकिन वो अब भी खुद से कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।

एक दिन जब मैं अपने कमरे में कपड़े रख रही थी, तो वो अचानक आ गया। “भाभी, ये सामान कहां रखना है?” उसने पूछा।

मैंने उसे अंदर बुलाया। “इधर रख दे, अलमारी में,” मैंने कहा।

जब वो सामान रखने के लिए झुका, तो उसकी कसरती पीठ और चौड़ी छाती पर मेरी नजरें टिक गईं। मैंने तुरंत अपनी नजरें हटा लीं।

“राजू, तुझे कब से इतने कामों की आदत हो गई?” मैंने हंसते हुए पूछा।

“जब से भाभी ने सिखाना शुरू किया,” उसने जवाब दिया।

उस रात जब मैं अपने कमरे में थी, तो मेरा मन बहुत बेचैन था। राजू का चेहरा बार-बार मेरी आंखों के सामने आ रहा था। मैंने खुद से कहा, “सविता, अब तुझे अपना रास्ता बनाना होगा। अगर ये सब यूं ही चलता रहा, तो कुछ नहीं बदलेगा।”

मैंने एक फैसला किया। मैं अपने इशारे और मजबूत करूंगी।

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सुबह जब मैं रसोई में थी, तो राजू ने आकर कहा, “भाभी, चाय बना दूं?”

मैंने हंसते हुए कहा, “तू जबसे ये काम सीख गया है, मेरी तो आधी टेंशन खत्म हो गई।”

उसने चाय बनानी शुरू की। मैं पास खड़ी होकर उसे देख रही थी। उसकी मजबूत कलाई और उस पर उभरी नसें… मेरी सांसें तेज हो रही थीं।

उसने चाय बनाकर मुझे दी और कहा, “भाभी, आप इतनी मेहनत करती हैं। कभी-कभी खुद के लिए भी सोचा करो।”

मैंने उसकी तरफ देखा और मुस्कुराई। “तू है न, मेरे बारे में सोचने के लिए।”

उसने मेरी बात पर कुछ नहीं कहा, लेकिन उसकी आंखों में जो चमक थी, वो बहुत कुछ कह गई।

बात अगली रात की है। घर में हमेशा की तरह सब अपने-अपने कमरों में सो चुके थे। मां, पिताजी, और दादी की आदत थी जल्दी सो जाने की, और मैं जानती थी कि राजू देर रात तक जागता है। उसके कमरे से हल्की-हल्की खटर-पटर की आवाजें अक्सर सुनाई देती थीं।

मेरा कमरा शौचालय के पास था, और मुझे पता था कि वो रात में एक-दो बार जरूर वहां आता है। मैंने अपनी योजना बना रखी थी। आज मैं उसे वो सब दिखाने वाली थी, जिसे देखकर वो खुद को रोक न सके।

मैंने खिड़की का पर्दा हल्का सा हटा दिया। कमरे में पीली रोशनी जलाई जो सबकुछ साफ-साफ दिखा सके, लेकिन इतनी हल्की हो कि किसी को शक न हो। मैं बिस्तर पर लेट गई और इंतजार करने लगी।

कुछ ही मिनटों में मैंने दरवाजे के बाहर से हल्की आहट सुनी। वो अपने कमरे से निकला था। उसकी परछाई साफ नजर आ रही थी। मेरी धड़कनें तेज हो गईं।

जैसे ही उसकी आहट पास आने लगी, मैंने अपनी साड़ी को कमर से ऊपर खिसकाना शुरू किया। मेरी उंगलियां धीरे-धीरे मेरी चूत के ऊपर चलने लगीं। मैं हल्के-हल्के आवाजें निकालने लगी।

“अनिल… आह्ह… तुमने मुझे कभी औरत जैसा महसूस ही नहीं कराया।”

मैंने जानबूझकर अपनी आवाज इतनी रखी कि खिड़की के बाहर से साफ सुनाई दे।

जैसे ही राजू शौचालय के पास आया, मैंने उसकी परछाई देखी। उसने खिड़की की तरफ देखा और वहीं रुक गया। मेरी सांसें तेज हो रही थीं, लेकिन मैंने अपनी हरकतें जारी रखीं।

“अनिल… आह्ह… तुम्हारा छोटा सा लंड… मेरे किसी काम का नहीं।”

मैंने साड़ी को और ऊपर खींच लिया। मेरी चूत अब साफ नजर आने लगी थी। मैंने जानबूझकर अपनी कमर को हल्का सा उठाया ताकि मेरी हरकतें और साफ दिखें।

वो खिड़की के पास खड़ा था। उसकी परछाई अब बिल्कुल स्थिर थी। मैं जानती थी कि वो मुझे देख रहा है। मैंने अपनी आवाजें और तेज कर दीं।

“अनिल… आह्ह… तुमने मुझे कभी संतुष्ट ही नहीं किया। क्या तुम्हें नहीं पता कि औरत को कैसे खुश किया जाता है?”

मेरी उंगलियां अब और तेजी से मेरी चूत के ऊपर चलने लगीं। मैं जानबूझकर अपनी कमर को और ऊपर उठाने लगी ताकि मेरी हर हरकत और साफ दिखाई दे।

राजू की परछाई अब हल्की सी हिली। शायद वो खुद को रोकने की कोशिश कर रहा था। लेकिन मुझे पता था कि वो ज्यादा देर तक नहीं रुक पाएगा। मैंने अपनी आवाज़ और ऊँची कर दी।

“अनिल… आह्ह… मुझे ऐसा आदमी चाहिए जो मुझे असली औरत जैसा महसूस कराए। तुम्हारे छोटे से लंड से कुछ नहीं होता।”

इतना कहकर मैंने अपनी साड़ी को पूरी तरह से कमर से ऊपर कर लिया। अब मेरी पूरी चूत साफ नजर आ रही थी। मैंने अपनी उंगलियां तेजी से चूत के अंदर-बाहर करनी शुरू कर दी।

राजू अब खिड़की के और करीब आ गया। उसकी परछाई अब बड़ी और साफ दिखने लगी। मैंने उसकी ओर बिना देखे ही अपने होंठों से एक हल्की मुस्कान दी और अपनी आवाजें और तड़प बढ़ा दी।

“आह्ह्ह… अनिल, तुम कभी मेरे लायक नहीं थे। कोई मर्द मेरी चूत को यूं खाली नहीं छोड़ता।”

मेरी सांसें तेज हो चुकी थीं। मेरी आवाजें पूरे कमरे में गूंज रही थीं। मुझे यकीन था कि राजू अब खुद को रोक नहीं पाएगा। उसने खिड़की के शीशे पर हाथ रखा, और मैं जान गई कि वो पूरी तरह से मेरा दीवाना बन चुका है।

“अगर तुम नहीं चोद सकते तो मुझे किसी मोटे-तगड़े लंड से चुदवा ही दो। कब तक मैं सील पैक रहूंगी?” मैंने जोर से कहा, ताकि राजू सुन सके। मेरी आवाज में गुस्सा और तड़प साफ झलक रही थी।

इतना कहते हुए, मैं बिस्तर से उठ खड़ी हुई और अपनी साड़ी और ब्लाउज पूरी तरह से उतार दिए। अब मैं पूरी तरह से नंगी खड़ी थी। कमरे की हल्की पीली रोशनी में मेरा पूरा बदन चमक रहा था। मैंने जानबूझकर खिड़की की तरफ मुंह करके अपनी चूत और बड़े-बड़े उरोज को रगड़ना शुरू कर दिया।

“अनिल… तुम्हारे जैसे नामर्द के साथ रहकर मैंने अपनी जवानी बर्बाद कर दी। क्या फायदा ऐसे मर्द का, जो अपनी बीवी की चूत भी नहीं भर सकता?” मैंने अपनी चूत पर हाथ फिराते हुए कहा, मेरी आवाज में बेइज्जती और गुस्सा दोनों थे।

मैंने अपने हाथ से अपने उरोज को मसलना शुरू किया और राजू की परछाई पर नजर डाली। वो अभी भी खिड़की के पास खड़ा था। उसकी सांसें तेज हो चुकी थीं। उसकी परछाई से साफ था कि वो अंदर आने की हिम्मत जुटा रहा है।

“अनिल, तुमसे तो बेहतर है कि मैं किसी दूसरे मर्द से अपनी प्यास बुझा लूं। तुम्हारी तरह नामर्द मर्दों की कोई जरूरत नहीं होती।” मैंने फिर से कहा और अपनी चूत को उंगलियों से रगड़ने लगी, मेरी आवाज में अब और भी तड़प आ गई थी।

मैंने खिड़की के पास जाकर अपने नंगे बदन को पूरी तरह से दिखाया। “देखो, ये बदन किसी मर्द का इंतजार कर रहा है। लेकिन तुमसे तो ये उम्मीद करना ही बेकार है।”

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राजू अब खिड़की से हटने की कोशिश कर रहा था, लेकिन मैं जानती थी कि वो वहां से हिलेगा नहीं। मेरा हर शब्द और हर हरकत उसे अंदर तक हिला रही थी। मैंने जानबूझकर अपनी आवाज और बढ़ा दी ताकि वो पूरी तरह से अपना आपा खो दे।

“काश, कोई मर्द होता मेरे पास जो मुझे चोद देता,” मैंने जानबूझकर जोर से कहा, ताकि हर शब्द राजू के कानों में गूंज जाए। मेरी आवाज में तड़प और गुस्सा दोनों साफ झलक रहे थे।

“तुम कमाते रहो दुबई में पैसा। तुम्हारे पैसों से मेरी चूत नहीं भरने वाली!” मैंने अपने उरोज को जोर से मसलते हुए अपनी चूत पर हाथ फेरा। मेरी हरकतें अब और ज्यादा उत्तेजक हो चुकी थीं।

मैंने खिड़की के पास जाकर अपने नंगे बदन को और उभार कर दिखाया। “देखो, ये बदन किसी मर्द का इंतजार कर रहा है। जो मुझसे औरत जैसा सुलूक करे। लेकिन तुम जैसे नामर्द से क्या उम्मीद करना!”

राजू की परछाई अब एकदम स्थिर थी। वो खिड़की के दूसरी तरफ खड़ा हर हरकत देख रहा था। मैंने जानबूझकर अपनी कमर को झटका दिया और अपनी चूत को उंगलियों से खोलकर उसे दिखाने लगी।

“अनिल, तुमसे तो अच्छा होता मैं किसी और के साथ होती। तुम्हारे जैसे मर्द से शादी करके मैंने अपनी पूरी जवानी बर्बाद कर दी।” मैंने अब अपनी उंगलियों को चूत के अंदर बाहर करना शुरू कर दिया और तेज आवाजें निकालने लगी।

राजू की परछाई अब थोड़ी हिलने लगी थी। मैं जानती थी कि वो अब खुद को संभालने की हालत में नहीं है। मैंने अपनी आवाज और ऊंची कर दी, “अनिल, अगर तुम्हें अपनी बीवी की फिक्र नहीं है, तो किसी और मर्द को भेज दो मेरी चूत भरने के लिए!”

जैसे ही मैंने अपनी बात खत्म की, राजू की परछाई एकदम स्थिर हो गई। ऐसा लग रहा था कि उसने अब अपना डर छोड़ दिया है और कुछ करने की ठान ली है। अगले ही पल, मैंने दरवाजे की हल्की आवाज सुनी। दरवाजा बंद तो था, लेकिन लॉक नहीं किया हुआ था। राजू ने धीरे-धीरे दरवाजा खोला और अंदर आ गया।

जैसे ही राजू कमरे में दाखिल हुआ, उसने सबसे पहले खिड़की के पर्दे खींचकर बंद कर दिए ताकि कोई बाहर से ना देख सके। फिर उसने दरवाजे को अंदर से लॉक कर दिया। अब वो पूरी तरह से निडर दिख रहा था। उसने अपनी शर्ट उतारी, फिर अपनी पैंट और अंत में अपनी चड्डी भी।

राजू का लंड अब पूरा खड़ा था, बड़ा और मोटा। उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा, “ये देखो, भाभी… ये कैसा लगा?” उसकी आवाज में आत्मविश्वास और उत्तेजना थी।

मैंने हल्की मुस्कान के साथ उसकी तरफ देखा और अपनी नजर उसके लंड पर टिकाई। “बहुत ही अच्छा लग रहा है, राजू,” मैंने तड़प भरी आवाज में कहा।

वो धीरे-धीरे मेरे पास आया और बिना कुछ कहे मेरे नंगे बदन को देखने लगा। उसकी आंखों में अब सिर्फ ख्वाहिश थी। उसने मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए और मुझे गहराई से चूमने लगा।

फिर उसने मेरे गले पर अपने होंठ रखे और धीरे-धीरे नीचे की तरफ बढ़ने लगा। उसने मेरे उरोजों को दोनों हाथों से पकड़कर चूसा और कहा, “भाभी, आपकी ये चीजें तो किसी को भी पागल बना देंगी।”

उसके होंठ मेरे पेट और कमर पर घूमने लगे। उसने मेरे हर नंगे हिस्से को चूमा और धीरे-धीरे अपनी जुबान से मेरी चूत के पास आ गया। “आपकी चूत तो इतनी नरम और गीली है, भाभी। मैं इसे आज पूरी तरह से भर दूंगा,” उसने कहा और अपनी जुबान से मेरी चूत को चाटने लगा।

“आह्ह… राजू,” मैंने तड़पते हुए कहा।

फिर उसने मेरी आंखों में देखते हुए कहा, “भाभी, मैं आपसे प्यार करता हूं। आपको ऐसे तड़पता हुआ नहीं देख सकता। मैं आपकी हर ख्वाहिश पूरी करूंगा।”

उसकी बातें और हरकतें मुझे पूरी तरह से दीवाना बना रही थीं। उसने मेरी टांगें फैलाकर अपने लंड को मेरी चूत के पास लाकर कहा, “अब मैं आपको दिखाऊंगा कि एक असली मर्द क्या कर सकता है।”

उसकी बातें और उसकी हरकतें अब मेरे सब्र का बांध तोड़ चुकी थीं। मैं पूरी तरह से उसके हवाले हो चुकी थी।

जैसे ही राजू ने अपना लंड मेरी चूत के पास रखा और अंदर धकेलने की कोशिश की, मैं महसूस कर सकती थी कि मेरी चूत कितनी तंग और बंद थी। यह लगभग पूरी तरह से सील पैक थी। उसका मोटा लंड अंदर जाने में बहुत मुश्किल हो रहा था, और हर धक्का मुझे दर्द दे रहा था।

“आह्ह… राजू, धीरे… ये बहुत दर्द कर रहा है,” मैंने रोने जैसी आवाज में कहा। लेकिन वो रुका नहीं। उसने अपनी पकड़ और मजबूत कर ली और अपने लंड को और गहराई तक धकेलने की कोशिश की।

मेरे चेहरे पर दर्द साफ झलक रहा था। “राजू, मत करो… मुझे बहुत दर्द हो रहा है।” मेरी आंखों से आंसू निकलने लगे। मैंने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन उसकी गर्मी और ख्वाहिश इतनी ज्यादा थी कि उसने मेरी बात अनसुनी कर दी।

“भाभी, थोड़ा सहन कर लो। मैं धीरे-धीरे करूंगा। आपका सारा दर्द खुशी में बदल जाएगा,” उसने मेरी आंखों में देखकर कहा। उसकी आवाज में प्यार और तसल्ली थी, लेकिन मेरा शरीर दर्द से कांप रहा था।

उसने अपने लंड को आधे रास्ते पर रोका और धीरे-धीरे मेरी चूत पर उंगलियों से रगड़ने लगा ताकि मुझे थोड़ा आराम मिल सके। “भाभी, आपकी चूत तो इतनी तंग है, जैसे इसे किसी ने छुआ ही न हो। मैं इसे पूरी तरह से खोल दूंगा।” उसकी बातों में एक अजीब सी दीवानगी थी।

लेकिन मैं दर्द से तड़प रही थी। “राजू, प्लीज… मत करो। मुझे सच में बहुत दर्द हो रहा है।” मेरी आवाज अब पूरी तरह से रोने जैसी हो चुकी थी। उसने मेरी आंखों से गिरते आंसुओं को अपने होंठों से पोंछा और कहा, “भाभी, मैं वादा करता हूं, ये आखिरी बार दर्द होगा। इसके बाद सिर्फ खुशी होगी।”

उसने फिर से अपनी कोशिश शुरू की, इस बार और भी संभलकर, लेकिन मेरा शरीर अब तक दर्द के सागर में डूब चुका था। मेरी चूत इतनी तंग थी कि हर धक्का मुझे चीखने पर मजबूर कर रहा था।

मुझे दर्द में देख, राजू थोड़ी देर के लिए रुक गया। उसने अपनी हथेलियों से मेरे आंसू पोंछे और मुझे शांत करने की कोशिश की। “भाभी, मैं आपको तकलीफ नहीं देना चाहता, लेकिन आपको मेरी जरूरत है। मैं आपको अधूरा नहीं छोड़ सकता। बस थोड़ा सहन कर लो, मैं वादा करता हूं कि आपको खुशी दूंगा,” उसने धीमी और मुलायम आवाज में कहा।

उसने मेरे नंगे बदन पर फिर से अपने होंठ फिराने शुरू कर दिए। उसने मेरे उरोजों को चूसा, मेरी गर्दन पर प्यार से किस किया और मेरे पेट पर अपनी जुबान फिराई, ताकि मेरा ध्यान दर्द से हट सके। उसकी हर हरकत में अब कोमलता और धीरज था।

“भाभी, आपकी चूत को संभाल कर खोलना पड़ेगा। मैं आपको चोट नहीं पहुंचाना चाहता,” उसने कहा और अपनी उंगलियां मेरी चूत पर फेरने लगा। धीरे-धीरे, उसने मेरी चूत को और गीला किया ताकि उसका मोटा लंड आसानी से अंदर जा सके।

मैं अब भी दर्द से तड़प रही थी, लेकिन उसकी बातें और हरकतें मुझे थोड़ा आराम दे रही थीं। “राजू, प्लीज… धीरे-धीरे करो। मैं इसे सह नहीं पा रही,” मैंने रोते हुए कहा।

“ठीक है, भाभी। मैं आपको तकलीफ नहीं दूंगा,” उसने कहा और धीरे-धीरे अपना लंड फिर से अंदर डालने की कोशिश की। इस बार उसने ज्यादा ध्यान रखा और अपना धक्का बहुत धीरे से दिया।

मेरी चूत अब भी तंग थी, लेकिन उसकी कोमलता और धीरज ने मेरे शरीर को थोड़ा आराम दिया। “बस थोड़ा और, भाभी। आप मुझे रोकेंगी नहीं, तो मैं इसे संभाल लूंगा,” उसने कहा और मुझे सहारा दिया।

धीरे-धीरे, उसका लंड मेरी चूत के अंदर जाने लगा। मैं अब भी दर्द महसूस कर रही थी, लेकिन उसकी कोमलता और प्यार ने मुझे थोड़ा सहने की ताकत दी। “राजू… बहुत दर्द हो रहा है,” मैंने कहा, लेकिन इस बार मेरी आवाज में कुछ कम विरोध था।

“बस थोड़ा और, भाभी। आप मुझे देखिए, सब ठीक हो जाएगा। मैं आपके साथ हूं,” उसने कहा और मेरी आंखों में देखते हुए मुझे चूम लिया। उसका प्यार और तसल्ली मेरी बेचैनी को कम करने लगे।

मुझे अभी भी दर्द हो रहा था, और मैं रोने की कोशिश कर रही थी, तभी राजू ने अचानक अपना हाथ मेरे मुंह पर रख दिया। “भाभी, चुप रहो… किसी को सुनाई दे गया तो दिक्कत हो जाएगी,” उसने धीमे लेकिन सख्त लहजे में कहा। उसकी आंखों में अब सिर्फ जुनून था।

मेरी आंखों से आंसू बह रहे थे, लेकिन मैं अब कुछ कह नहीं पा रही थी। राजू ने अपने दूसरे हाथ से मेरी कमर को कसकर पकड़ा और एक तेज झटका मारा। उसका पूरा लंड मेरी चूत के अंदर घुस गया।

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“आह्ह्ह…!” मैंने चीखने की कोशिश की, लेकिन उसका हाथ मेरे मुंह पर था। मेरी चूत अब पूरी तरह से भर चुकी थी, और दर्द ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया।

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“भाभी, बस अब सब ठीक हो जाएगा। आपकी चूत तो जैसे सिर्फ मेरे लिए बनी है। इतनी तंग और गर्म… वाह!” उसने कहा और धीरे-धीरे अपनी कमर को चलाना शुरू कर दिया।

मेरे पूरे शरीर में एक अजीब सा झटका लगा। दर्द के साथ-साथ एक अजीब सी सनसनी महसूस हो रही थी। उसकी पकड़ मजबूत थी, और उसका हर धक्का मुझे और ज्यादा गहराई तक महसूस हो रहा था।

“भाभी, अब आपकी चूत मेरी है। मैं इसे कभी खाली नहीं छोड़ूंगा,” उसने कहा और अपनी रफ्तार तेज कर दी। मेरी आंखों से आंसू निकल रहे थे, लेकिन उसके हर धक्के के साथ मेरा शरीर अब उसे जवाब देने लगा था।

“राजू… आह्ह… धीरे करो,” मैंने उसका हाथ हटाने की कोशिश की, लेकिन उसकी पकड़ और मजबूत हो गई। “नहीं, भाभी। आज मैं आपको पूरी तरह से अपना बना लूंगा।”

उसने अपनी कमर को और तेज चलाना शुरू कर दिया। मेरे शरीर ने अब दर्द के साथ-साथ कुछ और महसूस करना शुरू कर दिया था। उसकी हर हरकत मुझे एक अलग ही दुनिया में ले जा रही थी।

जैसे-जैसे राजू की रफ्तार बढ़ी, मेरा दर्द धीरे-धीरे कम होने लगा और उसकी जगह एक अजीब सा आनंद लेने लगा। मेरी चूत अब उसकी हर हरकत का जवाब देने लगी थी।

मैंने अपनी कमर को ऊपर-नीचे करना शुरू किया, जैसे मैं खुद उसे और गहराई तक महसूस करना चाहती हूं। “राजू… आह्ह… और जोर से,” मैंने धीरे-धीरे उसकी तरफ मुस्कराते हुए कहा। अब मेरी आंखों में दर्द नहीं, बल्कि ख्वाहिश साफ झलक रही थी।

राजू की पकड़ और मजबूत हो गई। उसने मेरे हिप्स को कसकर पकड़ लिया और बोला, “भाभी, आपकी चूत तो दीवाना बना रही है। आप खुद मुझे ऐसा मजा दे रही हैं, जैसे पहले कभी नहीं मिला।”

मैंने अपनी कमर को और ऊपर-नीचे करना शुरू किया, जैसे मैं उसकी हर धक्के को और ज्यादा गहराई तक ले जाना चाहती हूं। “राजू, तुमने मुझे ऐसा महसूस कराया, जैसा अनिल कभी नहीं कर सका। आह्ह… तुम सच्चे मर्द हो।”

राजू की आंखों में अब जुनून और बढ़ गया था। उसने मेरी कमर को पकड़कर और तेज धक्के मारने शुरू कर दिए। “भाभी, आप तो खुद कमाल की हो। आपकी हर हरकत मुझे और पागल बना रही है।”

मैंने अपने हिप्स को तेजी से ऊपर-नीचे करना जारी रखा, जैसे मैं खुद उसे और गहराई में खींच रही हूं। उसकी हर हरकत मेरे अंदर एक अजीब सी लहर पैदा कर रही थी।

“राजू, और तेज… मुझे और जोर से चोदो,” मैंने तड़प भरी आवाज में कहा। अब मेरा पूरा शरीर उसकी हरकतों के साथ खेल रहा था। उसकी हर हरकत मुझे और ज्यादा आनंद दे रही थी।

“भाभी, मैं आपको कभी खाली नहीं छोड़ूंगा। आप मेरी हो चुकी हैं,” उसने जोर से कहा और अपनी रफ्तार और तेज कर दी। मेरे शरीर ने अब पूरी तरह से उसका साथ देना शुरू कर दिया था।

राजू ने मेरी तरफ देखा और एक शरारती मुस्कान के साथ कहा, “भाभी, अब कुछ नया करते हैं। मुझे पूरी तरह से आप पर हक जमाने दो।” उसने मुझे बिस्तर पर से उठाया और घुमाकर मेरे हिप्स को पकड़ लिया।

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“अब मैं आपको पीछे से चोदूंगा। तैयार हो?” उसने धीरे से मेरे कान में कहा। उसकी आवाज में एक अलग ही दीवानगी थी।

मैंने बिना कुछ कहे अपने हाथ बिस्तर पर टिकाए और अपनी कमर को थोड़ा ऊपर उठाया। “राजू, कर लो जो करना है। मैं अब तुम्हारी हूं,” मैंने उसकी तरफ पीछे मुड़कर मुस्कुराते हुए कहा।

उसने अपने लंड को मेरी चूत पर रखा और धीरे-धीरे अंदर डालने लगा। “भाभी, आपकी चूत तो किसी खजाने की तरह है। जितना गहराई में जाऊं, उतना मजा आता है,” उसने कहा और अपनी पकड़ और मजबूत कर ली।

अब उसने जोरदार धक्के मारने शुरू कर दिए। उसकी हर हरकत मुझे पागल बना रही थी। मैं अपनी कमर को पीछे की तरफ धकेल रही थी, ताकि वो और गहराई तक मुझे भर सके।

“आह्ह… राजू, और तेज। मुझे पूरी तरह से चोद दो,” मैंने उसकी हर हरकत का जवाब देते हुए कहा।

उसने मेरी कमर को कसकर पकड़ लिया और बोला, “भाभी, अब आप मेरी हो चुकी हैं। मैं आपको पूरी तरह से अपनी बना लूंगा।”

उसकी रफ्तार और तेज हो गई। मेरे हिप्स अब उसकी हर हरकत का जवाब दे रहे थे। “राजू, तुम सच्चे मर्द हो। मुझे ऐसा मजा पहले कभी नहीं मिला,” मैंने कहा और अपनी सांसों को नियंत्रित करने की कोशिश की।

“भाभी, मैं आपको हर तरह से खुश करूंगा। आप बस मुझे अपना मान लो,” उसने कहा और मेरे हिप्स पर अपनी पकड़ और मजबूत कर ली। अब हम दोनों पूरी तरह से एक लय में थे। उसकी हरकतों ने मुझे एक अलग ही दुनिया में पहुंचा दिया था।

जैसे ही राजू ने अपनी रफ्तार बढ़ाई, मेरे पूरे शरीर में एक अजीब सी गर्मी फैलने लगी। उसकी हर हरकत मुझे एक नई ऊंचाई पर ले जा रही थी। मैं अपनी कमर को और तेज पीछे धकेलने लगी, ताकि वो मुझे पूरी गहराई तक महसूस कर सके।

“आह्ह… राजू, अब मैं और सह नहीं सकती। मैं बस खत्म होने वाली हूं,” मैंने हांफते हुए कहा। मेरी सांसें तेज हो गई थीं, और मेरा शरीर उसकी हर हरकत का जवाब देते हुए कांपने लगा।

“भाभी, मैं भी बस अब खत्म होने वाला हूं। आपकी चूत तो मुझे पागल बना रही है,” उसने जोर से कहा और अपनी पकड़ और मजबूत कर दी।

उसने अपनी रफ्तार को और तेज कर दिया। मेरे शरीर ने उसके हर धक्के का जवाब देना शुरू कर दिया। मेरी चूत अब पूरी तरह से गीली हो चुकी थी, और मैं पूरी तरह से उसके हवाले हो चुकी थी।

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“राजू… आह्ह… अब मैं…!” मैंने एक जोरदार चीख के साथ अपना सारा आनंद महसूस किया। मेरा पूरा शरीर कांपने लगा, और मैं बिस्तर पर गिर पड़ी।

उसी समय, राजू ने भी एक जोरदार धक्का मारा और अपनी पूरी गर्मी मेरी चूत के अंदर छोड़ दी। “भाभी, ये सब आपके लिए था,” उसने कहा और हांफते हुए मेरी कमर पर गिर पड़ा।

हम दोनों कुछ मिनटों तक एक-दूसरे के ऊपर लेटे रहे, हमारी सांसें तेज थीं, और हमारे शरीर अब भी उस पल की गर्मी महसूस कर रहे थे। उसने धीरे-से मेरे गाल पर किस किया और कहा, “भाभी, आप मेरी हैं। मैं आपको कभी अकेला नहीं छोड़ूंगा।”

मैंने उसकी तरफ मुस्कराते हुए देखा और कहा, “राजू, तुमने मुझे वो सब दिया, जिसकी मुझे बरसों से तलाश थी।”

कुछ देर तक हम दोनों बिस्तर पर लेटे रहे, हमारी सांसें धीरे-धीरे सामान्य हो रही थीं। राजू ने मेरी तरफ देखा, एक हल्की मुस्कान दी, और मेरे गाल को प्यार से सहलाया।

“भाभी, आपको तकलीफ तो नहीं हुई?” उसने नरम आवाज में पूछा।

मैंने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, “राजू, जो हुआ, वो बहुत खास था। लेकिन अब हमें संभलना होगा। कोई हमें इस हाल में देख न ले।”

राजू ने सिर हिलाया और धीरे-धीरे खड़ा हो गया। उसने अपने कपड़े उठाए और जल्दी-जल्दी पहनने लगा। मैं भी बिस्तर से उठी, अपनी साड़ी को ठीक किया और बालों को संवार लिया।

उसने दरवाजे की तरफ देखा और फिर मेरी तरफ। “भाभी, अब मैं अपने कमरे में चला जाता हूं। लेकिन मैं आपको कभी अकेला नहीं छोड़ूंगा। जब भी आपकी जरूरत हो, मैं हमेशा हाजिर रहूंगा।”

मैंने उसकी तरफ मुस्कराते हुए देखा और कहा, “राजू, जो हुआ, वो हमारा राज रहेगा। किसी को पता नहीं चलना चाहिए।”

उसने दरवाजे का लॉक खोला, चारों तरफ देखा कि कोई बाहर तो नहीं है, और फिर धीरे-से अपने कमरे की तरफ चला गया। मैंने दरवाजा बंद किया और बिस्तर पर बैठ गई, उन पलों को याद करते हुए जो अभी-अभी गुजरे थे।

कहानी का पार्ट 2: भैया गए दुबई, भाभी देवर से चुदगई – 2

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