मेरा नाम रिंकी है। मैं 21 साल की हूँ, गोरी, पतली कमर वाली, और 34B की चूचियों के साथ एक हॉट कॉलेज गर्ल। मेरे लंबे काले बाल और भूरी आँखें हर किसी का ध्यान खींचती हैं। मैं दिल्ली के एक मिडिल-क्लास मोहल्ले में रहती हूँ, जहाँ हमारा पुराना दो-मंजिला घर है। मेरे पापा रमेश एक सरकारी ऑफिस में क्लर्क हैं, और मम्मी सुनीता हाउसवाइफ। घर में मेरे अलावा मेरे दादा जी, रामलाल, रहते हैं, जो 68 साल के हैं। दादा जी लंबे, दुबले-पतले, और सफेद मूछों वाले हैं। उनकी आँखों में हमेशा एक चालाकी सी रहती है। वो मोहल्ले में सूद का धंधा करते हैं, जिससे उनके पास पैसों की कोई कमी नहीं। बाहर से देखो तो वो भोले-भाले बुजुर्ग लगते हैं, जो बच्चों को टॉफी बाँटते हैं, लेकिन असल में वो जवान लड़कियों के दीवाने हैं। उनकी चचेरी पोती, पिंकी, मेरी उम्र की ही है, 22 साल की, और मेरी बेस्ट फ्रेंड। वो थोड़ी चुलबुली, 32C की चूचियों वाली, और हमेशा टाइट कपड़े पहनने वाली लड़की है। पिंकी ने ही मुझे बताया था कि दादा जी ने एक बार उसकी चुदाई की थी, और तब से मेरे मन में भी उनके लिए एक अजीब सा आकर्षण पैदा हो गया।
हमारे मोहल्ले में दादा जी की इज्जत है, लेकिन लड़कियाँ उनके आसपास इसलिए ज्यादा रहती हैं क्योंकि वो गिफ्ट्स देते हैं—कभी चॉकलेट, कभी पैसे, तो कभी नए कपड़े। दादा जी की बातों में एक जादू है। वो इतनी चिकनी-चुपड़ी बातें करते हैं कि कोई भी उनके झाँसे में आ जाए। मैं भी उनसे खुलकर बात करती थी। रोज कॉलेज से लौटते वक्त मैं उनके लिए कुछ ना कुछ लाती—कभी समोसे, कभी जलेबी। दादा जी मुझे देखकर मुस्कुराते और कहते, “रिंकी, तू तो मेरी जान है।” उनकी ये बातें मुझे अच्छी लगती थीं, लेकिन कहीं ना कहीं मैं जानती थी कि उनकी नजर मेरी जवानी पर है।
मुझे जवान लड़के कभी पसंद नहीं आए। कॉलेज में लड़के मेरे पीछे पड़ते थे, लेकिन मुझे उनके फूहड़ मजाक और दिखावटी स्टाइल बोरिंग लगता था। मुझे बूढ़े मर्दों में ज्यादा मजा आता था। शायद इसलिए कि वो अनुभवी होते हैं, और उनकी बातों में एक अलग सी गहराई होती है। दादा जी को देखकर मुझे लगता था कि उनमें अभी भी वो दम है, जो एक जवान मर्द में नहीं। उनकी खुरदुरी त्वचा, सफेद बाल, और वो बूढ़ी लेकिन ताकतवर बॉडी मुझे आकर्षित करती थी।
बात उस सर्दी की रात की है, जब मम्मी-पापा मामा जी के घर गए थे। मामा जी की तबीयत खराब थी, तो वो दोनों रात भर के लिए गए। घर में सिर्फ मैं और दादा जी थे। रात के 8 बजे थे। हमने खाना खा लिया था—रोटी, दाल, और आलू की सब्जी। खाना खाने के बाद मैं दादा जी के कमरे में गई। उनका कमरा पुराना था, लकड़ी की चारपाई, पुरानी अलमारी, और एक छोटा सा टीवी। दीवारों पर दादी की फोटो टँगी थी, जो 30 साल पहले गुजर गई थीं। मैं चारपाई पर बैठ गई, और दादा जी पास की कुर्सी पर। वो अपनी धोती और कुर्ता पहने थे, और हाथ में एक पुराना रेडियो पकड़े थे, जिसमें भक्ति भजन बज रहे थे।
“दादा जी, आप रेडियो सुनते हो?” मैंने हँसते हुए पूछा।
वो बोले, “हाँ, बेटी। ये पुराने गाने और भजन मन को शांति देते हैं। लेकिन तू बता, तेरा कॉलेज कैसा चल रहा है?”
मैंने कहा, “बस, ठीक है। लेकिन पढ़ाई से ज्यादा तो दोस्तों के साथ मस्ती होती है।”
दादा जी हँसे और बोले, “अच्छा, कोई बॉयफ्रेंड बनाया कि नहीं?”
मैंने शरमाते हुए कहा, “नहीं, दादा जी। मुझे लड़के पसंद नहीं। सब बकवास करते हैं।”
वो मेरी तरफ देखकर बोले, “सही है, रिंकी। आजकल के लड़कों में दम नहीं। बीवी को खुश करना तो दूर, खुद ही दो मिनट में हाँफ जाते हैं।”
उनकी बात सुनकर मैं हँस पड़ी, लेकिन मेरे मन में एक अजीब सा ख्याल आया। मैंने पूछा, “दादा जी, आपकी और दादी की शादी कैसी थी? कुछ बताओ ना।” दादा जी की आँखें चमकने लगीं, लेकिन मैंने उस चमक को इग्नोर किया। वो बोले, “तेरी दादी तो बस 16 साल की थी जब हमारी शादी हुई। मैं 25 का था। वो इतनी डरपोक थी कि सुहागरात को मेरे पास आने से भी घबराती थी।”
मैंने उत्सुकता से पूछा, “फिर क्या हुआ?”
वो हँसते हुए बोले, “क्या हुआ? मैंने उसे प्यार से मनाया। लेकिन जब मैंने उसकी साड़ी उतारी और अपना लंड दिखाया, तो वो रोने लगी। कहने लगी, ‘ये तो बहुत मोटा है, मैं मर जाऊँगी।'”
मैं उनकी बात सुनकर हँस पड़ी, लेकिन मेरे जिस्म में एक सिहरन सी दौड़ गई। दादा जी अब खुलकर सेक्स की बातें कर रहे थे। वो बोले, “रिंकी, उस जमाने में लड़कियाँ इतनी टाइट होती थीं कि लंड अंदर जाने में घंटा लग जाता था। लेकिन मजा आता था।”
मैंने मजाक में कहा, “दादा जी, आप तो बड़े शरारती थे।”
वो बोले, “शरारती तो अब भी हूँ। मेरे में अभी भी वही जोश है।”
मैंने चौंकते हुए कहा, “अच्छा? अभी भी?”
वो सीना ठोकते हुए बोले, “हाँ, बेटी। मेरा लंड अभी भी वैसा ही है। 7 इंच का, मोटा, और टाइट। आजकल के लड़के तो इसके सामने कुछ भी नहीं।”
उनकी बातें सुनकर मेरे मन में डर और उत्साह दोनों थे। रात गहराने लगी थी, और माहौल गर्म हो रहा था। मैंने जानबूझकर पूछा, “दादा जी, दादी के बाद आपको कभी किसी की जरूरत नहीं पड़ी?”
वो बोले, “क्यों नहीं पड़ी? लेकिन मैं क्या करूँ? अब तो बस मूठ मारकर काम चलता है।”
मैंने मासूमियत से पूछा, “मूठ मारना क्या होता है?”
वो हँसे और बोले, “अरे, वही जो लड़के अपने लंड को सहलाकर करते हैं। तू नहीं जानती?”
मैंने शरमाते हुए कहा, “हाँ, थोड़ा-थोड़ा जानती हूँ।”
दादा जी मेरे और करीब आए। उनकी साँसें तेज थीं। वो बोले, “रिंकी, तू तो इतनी जवान और हॉट है। तुझे कभी मन नहीं करता?”
मैंने शरमा कर कहा, “दादा जी, आप भी ना। ऐसी बातें मत करो।”
वो बोले, “अरे, इसमें शरमाने की क्या बात है? ये तो जिस्म की भूख है।”
बातों-बातों में दादा जी ने मेरी जांघ पर हाथ रख दिया। मैं सिहर गई, लेकिन मुझे अच्छा भी लगा। मैंने कुछ नहीं कहा। वो धीरे-धीरे मेरी जांघ सहलाने लगे। फिर बोले, “रिंकी, तेरी चूचियाँ तो बड़ी मस्त हैं। कितनी साइज है?”
मैंने शरमाते हुए कहा, “दादा जी, आप भी ना। 34B है।”
वो बोले, “अच्छा? जरा देखूँ तो।” और इतना कहते ही उन्होंने मेरी टी-शर्ट के ऊपर से मेरी चूचियों को हल्के से दबा दिया।
मैंने सिसकारी भरी, “आह… दादा जी, ये क्या कर रहे हो?”
वो बोले, “बस, देख रहा हूँ। कितनी मुलायम हैं।”
उनके हाथ अब मेरी चूचियों को जोर-जोर से मसल रहे थे। मैं कामुकता की आग में जल रही थी। मैंने कहा, “दादा जी, ये गलत है।”
वो बोले, “गलत क्या? तू भी तो मजा ले रही है।”
मैं चुप रही। मेरे जिस्म में आग लग चुकी थी। दादा जी ने मुझे अपनी गोद में खींच लिया। उनकी खुरदुरी मूँछें मेरे गालों को छू रही थीं। वो मेरे होठों को चूमने लगे। “उफ्फ… दादा जी,” मैं सिसकारी। उनकी जीभ मेरे मुँह में थी, और मैं भी उन्हें चूमने लगी।
दादा जी ने मेरी टी-शर्ट उतार दी। मेरी काली ब्रा में मेरी चूचियाँ उभर रही थीं। वो बोले, “वाह, रिंकी, तू तो पूरी माल है।।।।”। उन्होंने मेरी ब्रा की हुक खोली, और मेरी चूचियाँ आज़ाद हो गईं। वो मेरी चूचियों को चूसने लगे। “आह्हँ… उफ्फ… दादा जी… धीरे…” मैं सिसकारियाँ ले रही थी।
फिर उन्होंने अपनी धोती खोल दी। उनका लंड बाहर था—7 इंच लंबा, मोटा, और नसों से भरा। मैंने डरते हुए उसे पकड़ा। “दादा जी, ये तो बहुत बड़ा है,” मैंने कहा।
वो बोले, “हाँ, रिंकी। इसे चूस, तुझे मजा आएगा।”
मैंने उनके लंड को मुँह में लिया। “आह्ह… रिंकी, तू तो कमाल है,” दादा जी सिसकारी। मैं उनके लंड को चूस रही थी, और वो मेरे बालों को सहला रहे थे।
फिर दादा जी ने मुझे चारपाई पर लिटा दिया। वो मेरे पैरों को चूमने लगे। उनकी जीभ मेरी जांघों तक गई। “उफ्फ… दादा जी, ये क्या कर रहे हो?” मैं सिसकारी। वो मेरी पैंटी उतारकर मेरी चूत चाटने लगे। “आह्ह… दादा जी, और चाटो… उफ्फ…” मैं पागल हो रही थी। उनकी जीभ मेरी चूत के दाने को छू रही थी।
दादा जी ने मेरी गांड के नीचे तकिया रखा और अपने लंड को मेरी चूत पर रगड़ा। “रिंकी, तैयार है?” उन्होंने पूछा।
मैंने डरते हुए कहा, “दादा जी, धीरे करना।”
वो बोले, “हाँ, मेरी रानी। डर मत।”
उन्होंने एक जोरदार धक्का मारा। “आह्ह… उफ्फ… दादा जी, फट गई,” मैं चीख पड़ी। मेरी चूत इतनी टाइट थी कि उनका लंड मुश्किल से अंदर गया। “चप्प… चप्प…” की आवाज़ गूँज रही थी। दादा जी ने मुझे सहलाते हुए कहा, “बस, थोड़ा दर्द होगा। फिर मजा आएगा।”
तीन-चार झटकों के बाद उनका लंड मेरी चूत में पूरा घुस गया। “आह्ह… दादा जी, धीरे…” मैं दर्द से सिसकारी। वो धीरे-धीरे चोदने लगे। “रिंकी, तेरी चूत तो जन्नत है,” वो बोले। पाँच मिनट बाद मेरा दर्द कम हुआ, और मैं भी उनकी कमर पकड़कर झटके देने लगी। “आह्ह… दादा जी, और जोर से… चोदो मुझे,” मैं चिल्ला रही थी।
“चप्प… चप्प… फच… फच…” की आवाज़ पूरे कमरे में थी। दादा जी जोर-जोर से धक्के मार रहे थे। “आह्ह… रिंकी, तू तो माल है… ले मेरा लंड,” वो गंदी बातें कर रहे थे। मैं भी कामुकता में बोली, “हाँ, दादा जी, फाड़ दो मेरी चूत… आह्ह…”
रात भर वो मेरे जिस्म के साथ खेलते रहे। कभी मेरी चूचियों को चूसते, कभी मेरी गांड को थपथपाते। “आह्ह… उफ्फ… दादा जी, और…” मैं सिसकारियाँ ले रही थी। उन्होंने मुझे अलग-अलग पोज में चोदा—कभी मेरे ऊपर, कभी मुझे अपने ऊपर बिठाकर।
सुबह होने तक मैं थक गई थी, लेकिन संतुष्ट थी। दादा जी ने मुझे गले लगाया और बोले, “रिंकी, तूने मुझे फिर जवान कर दिया।” मैंने शरमाते हुए कहा, “दादा जी, आप तो कमाल हो।”
अब जब भी मम्मी-पापा घर पर नहीं होते, दादा जी मुझे चोदते हैं। वो मुझे गर्म कहानियाँ सुनाते हैं, और मैं उनके लंड की दीवानी हो गई हूँ।
आपको मेरी कहानी कैसी लगी? क्या आपने भी कभी ऐसी गर्म रात का मजा लिया है? कमेंट में बताएँ!