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बुखार में गर्मी देने के चक्कर में बेटे से चुद गयी

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मैं क्या बताऊँ आपको? मेरा दिल आज भी उलझन में है। कल रात अपने बेटे सुखविंदर से चुदवाकर मुझे ऐसा सुख मिला, जो मैंने सालों से महसूस नहीं किया था। पर साथ ही एक माँ का दिल ये सोचकर काँप रहा है कि मैंने क्या कर डाला। मेरे मन में खुशी और ग्लानि दोनों एक साथ लड़ रहे हैं। कल रात की वो गर्माहट, वो जुनून, वो पापी जिस्मानी आग अभी भी मेरे बदन में सुलग रही है। आज सुखविंदर मेरे सामने नहीं आया। शायद उसे शर्मिंदगी हो रही है, या फिर वो अपने दोस्तों के साथ मेरी चुदाई की बातें शेयर कर रहा है, जश्न मना रहा है। मैं दिन भर अकेली थी, कभी उसकी बाहों की गर्मी याद करके मुस्कुरा रही थी, तो कभी अपने आप को कोस रही थी। अपने दिल का बोझ हल्का करने के लिए मैं अपनी चुदाई की ये कहानी लिख रही हूँ।

मेरा नाम आशा है, मैं 40 साल की हूँ, जालंधर में रहती हूँ। मेरा बेटा सुखविंदर 21 साल का है, जवान, हट्टा-कट्टा, और मेरे साथ ही रहता है। मेरा पति कनाडा में रहता है, साल में एक बार आता है, और मुझे अकेलेपन की आग में जलने के लिए छोड़ जाता है। मुझे सेक्स का बहुत शौक है, मेरी चूत हमेशा गर्म रहती है, लेकिन मेरी ये प्यास हमेशा अधूरी रह जाती है। जब मैं पड़ोस की औरतों को उनके पति के साथ हँसते-खिलखिलाते देखती हूँ, तो मेरा दिल जलता है। मैं सोचती हूँ, ये तो मजे ले रही हैं, और मैं अपनी चूत में उंगलियाँ डालकर उसकी आग को ठंडा करने की कोशिश करती हूँ। मेरा बदन, मेरी पर्सनैलिटी ऐसी है कि कोई भी मर्द मुझे देखकर ललचा जाए। मेरी चूचियाँ भरी-भरी, गांड उभरी हुई, और चेहरा ऐसा कि मर्दों के लंड खड़े हो जाएँ। मैंने एक-दो बार गैर मर्दों के साथ भी सेक्स किया, लेकिन कोई मुझे उस तरह संतुष्ट नहीं कर पाया, जैसा मैं चाहती थी। पर कल रात मेरे अपने बेटे ने मुझे वो सुख दिया, जो मेरे पति ने भी कभी नहीं दिया। अब मुझे जवान लंड का नशा चढ़ गया है। अब मैं अपनी कहानी पर आती हूँ।

परसों मुझे अचानक बुखार चढ़ गया। मुझे लगा शायद मौसम बदलने की वजह से है। लेकिन कल शाम को बुखार ने मुझे जकड़ लिया। रात के करीब नौ बजे मैं ठंड से थर-थर काँपने लगी। मेरे दाँत कटकटाने लगे, शरीर में ऐसी ठंड थी कि जैसे जान निकल रही हो। सुखविंदर ने मेरे ऊपर दो-दो रजाई डाल दीं, लेकिन मेरी ठंड कम नहीं हुई। मैं काँप रही थी, मेरे होंठ सूख रहे थे, और आँखों में डर था। सुखविंदर ने तुरंत डॉक्टर को बुलाया। डॉक्टर ने दवा दी और कहा कि एक घंटे में बुखार उतर जाएगा। वो चला गया, लेकिन मेरी ठंड कम होने का नाम नहीं ले रही थी। मेरा बेटा मुझे इस हाल में देखकर परेशान हो गया। उसकी आँखों में मेरे लिए फिक्र साफ दिख रही थी। वो मेरे सिर को दबाने लगा, मेरे माथे पर गीली पट्टी रखी, लेकिन कुछ फायदा नहीं हुआ। अचानक उसने धीमे से कहा, “मम्मी जी, मैं आपको अपनी बाहों में पकड़ लेता हूँ। मेरे शरीर की गर्मी से आपकी ठंड कम हो जाएगी।” उसकी आवाज में डर और प्यार दोनों थे। मैंने मना नहीं किया। मेरे दिल में भी कहीं न कहीं उसकी गर्माहट की चाहत जाग रही थी। मैंने उसे रजाई के अंदर बुला लिया।

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उसने मुझे अपनी मजबूत बाहों में कसकर जकड़ लिया। उसने अपने कपड़े उतार दिए और मेरे भी कपड़े उतारने लगा। “मम्मी, जिस्म से जिस्म की गर्मी मिलेगी, तो ठंड कम होगी,” उसने कहा। उस वक्त शायद उसके मन में कोई गलत ख्याल नहीं था। वो सिर्फ मुझे बचाना चाहता था। लेकिन जवानी का जोश और जिस्म की आग को भला कौन रोक सकता है? जब मेरी भारी-भारी चूचियाँ उसके चौड़े सीने से टकराईं, जब उसका हाथ मेरे नंगे पेट पर फिसलने लगा, मेरी गर्म साँसें उसके चेहरे से टकराने लगीं, तो मेरे अंदर भी कुछ हलचल होने लगी। मैंने महसूस किया कि उसका लंड मोटा, सख्त और लंबा होकर मेरी जाँघों को छू रहा था। “हाय… ये क्या हो रहा है…” मैंने मन में सोचा, लेकिन कुछ बोल नहीं पाई। मेरे जिस्म में आग सी लग रही थी। मैंने भी उसे जोर से पकड़ लिया और उसकी तरफ घूम गई। अब हम दोनों एक-दूसरे के जिस्म से चिपके हुए थे। उसका लंड मेरी जाँघों के बीच सटकर सलामी दे रहा था। “आह्ह… सुखविंदर…” मेरे मुँह से सिसकारी निकल गई। मुझे भी अब मजा आने लगा था। मैंने उसके घने बालों में उंगलियाँ फिराईं और अपने होंठ उसके होंठों से लगा दिए। वो भी मुझे पागलों की तरह चूमने लगा। “मम्मी… आप… आह्ह…” वो बुदबुदाया, और मैं उसके होंठों को चूसने लगी, जैसे कोई प्यासी औरत सालों बाद पानी पा गई हो।

ये सिलसिला दस मिनट तक चला। मेरी चूत अब पूरी तरह गीली हो चुकी थी। मैंने उसका मोटा, गर्म लंड अपने हाथ में पकड़ लिया और उसे ऊपर-नीचे करने लगी। “हाय… मम्मी… ये क्या कर रही हो…” उसने सिसकारी भरी। मैंने कहा, “बेटा, अब तू भी तो कुछ कर… मेरी चूचियाँ दबा…” उसने मेरी चूचियों को जोर-जोर से मसलना शुरू कर दिया। “आह्ह… ऊह्ह… और जोर से, सुखविंदर…” मैं सिसक रही थी। वो मुझे अपनी बाहों में और कसकर जकड़ने लगा। मुझे ऐसा लग रहा था कि आज मेरी चूत की सारी प्यास बुझ जाएगी। मैंने उसे ऊपर आने का इशारा किया। वो मेरे ऊपर चढ़ गया। मैंने अपनी टाँगें चौड़ी कर दीं। वो मेरी टाँगों के बीच आ गया और मेरी चूचियों को दोनों हाथों से मसलने लगा। “मम्मी, आपकी चूचियाँ कितनी रसीली हैं… आह्ह…” वो मेरे होंठों को चूसते हुए बोला। मैंने कहा, “बेटा, अब और बर्दाश्त नहीं होता… मेरी चूत में अपना लंड डाल दे… मेरी ठंड तभी जाएगी जब तू मुझे चोदेगा…” उसने हँसते हुए कहा, “मम्मी, मैं तो बस आपके हाँ कहने का इंतजार कर रहा था। आपकी चूत तो कब से मुझे बुला रही थी।” उसने अपना मोटा, सख्त लंड पकड़ा और मेरी गीली चूत पर सेट किया। मेरी चूत इतनी फिसलन भरी थी कि लंड आसानी से अंदर जाने को तैयार था। उसने एक जोरदार धक्का मारा और पूरा लंड मेरी चूत में उतार दिया।

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“आह्ह… ऊह्ह… सुखविंदर… कितना बड़ा है तेरा लंड…” मैं चिल्ला उठी। मेरे शरीर में जैसे बिजली दौड़ गई। उसका लंड मेरी चूत की गहराइयों को छू रहा था। मैं अपनी गांड को ऊपर-नीचे करने लगी। “फच-फच… छप-छप…” की आवाजें कमरे में गूँजने लगीं। वो मेरी चूत में लंड को जोर-जोर से पेल रहा था। “मम्मी, आपकी चूत कितनी टाइट है… आह्ह… कितना मजा आ रहा है…” वो सिसकते हुए बोला। मैंने कहा, “बेटा, और जोर से चोद… मेरी चूत को फाड़ दे… आह्ह… ऊह्ह…” मेरी सिसकारियाँ तेज हो गई थीं। मैं पूरी तरह कामवासना में डूब चुकी थी। वो मेरी चूचियों को मसल रहा था, मेरे निप्पल्स को चूस रहा था। “मम्मी, आपकी चूत में मेरा लंड ऐसे फिट हुआ है जैसे इसके लिए ही बना हो…” उसने कहा। करीब 30 मिनट तक उसने मुझे चोदा। मेरा शरीर पसीने से तर-बतर हो गया। उसका भी चेहरा पसीने से चमक रहा था। मैं झड़ने वाली थी। “आह्ह… सुखविंदर… और जोर से… मेरी चूत को चोद… और मार… ऊह्ह…” मैं चिल्ला रही थी। उसने पाँच-छह ऐसे धक्के मारे कि मेरी चूत में जैसे भूचाल आ गया। “फच-फच… छप-छप…” की आवाजें तेज हो गई थीं। उसका लंड मेरे पेट की गहराइयों तक जा रहा था। आखिरकार, मैंने एक लंबी सिसकारी भरी, “आह्ह… बेटा… मैं झड़ रही हूँ…” और उसी वक्त उसने मेरी चूत में अपना गर्म-गर्म वीर्य डाल दिया। “मम्मी… आह्ह… ले लो मेरा माल…” वो चिल्लाया। हम दोनों एक गहरी साँस लेकर शांत हो गए। मैं पूरी तरह तृप्त हो चुकी थी।

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ऐसी चुदाई मुझे 17 साल पहले अपने पति के साथ मिला करती थी। मुझे इतना सुख, इतना जुनून कभी नहीं मिला था। लेकिन बुखार और थकान की वजह से मैं तुरंत सो गई। हम दोनों एक-दूसरे को जकड़े हुए थे। सुबह जब आँख खुली, तो सुखविंदर कॉलेज चला गया था। अभी तक वो वापस नहीं आया। पता नहीं उसके मन में क्या चल रहा होगा। मेरे दिल में एक माँ की शर्मिंदगी है, लेकिन मेरी चूत अभी भी उस जवान लंड की गर्मी माँग रही है। मैं आशा करती हूँ कि सुखविंदर मुझे रोज ऐसे ही चोदेगा।

दोस्तों, आपको मेरी कहानी(Mother Son Sex, Incest Story, Maa Bete Ki Chudai, Desi Sex Story) कैसी लगी? क्या मुझे अपने बेटे के साथ ऐसा रिश्ता बनाए रखना चाहिए? क्या ये गलत है या मेरी जिस्मानी प्यास का हक है? अपनी राय जरूर बताएँ।

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