दोस्तों, मेरा नाम हर्षिदा है। उस समय मेरी उम्र 18 साल थी, और मैं उत्तर प्रदेश की रहने वाली हूँ। मैं आपको अपनी पहली चुदाई की कहानी सुनाने जा रही हूँ, जो बिलकुल सच्ची है। ये कहानी तब की है जब मैं दिल्ली में रहती थी। एक भैया ने मुझे पहली बार चोदा था, और वो अनुभव कैसा था, वो मैं आपको विस्तार से बताऊँगी। ये कहानी मेरे दिल के बहुत करीब है, और उस पल की हर बात आज भी मेरे जहन में ताजा है।
मैं दिल्ली में अपने भाई के साथ रहती थी। हमारे घर में मैं, मेरे भाई, भाभी और उनकी दो साल की छोटी बेटी थी। भाई का अपना काम था, और भाभी एक बड़े ब्यूटी पार्लर में जॉब करती थीं। सुबह आठ बजे दोनों काम पर निकल जाते थे। भाभी रात सात बजे लौटती थीं, और भाई दस बजे तक घर आते थे। दिन में घर में सिर्फ मैं और मेरी छोटी भतीजी रहते थे। मैं उस मासूम सी बच्ची का ध्यान रखती, उसे खिलाती, सुलाती, और दिनभर घर के छोटे-मोटे काम निपटाती।
हम जिस किराए के मकान में रहते थे, उसके ऊपर वाले फ्लोर पर एक कमरा था। वहाँ एक कपल रहता था, जिन्हें मैं भैया और भाभी कहती थी। उनकी उम्र भी ज्यादा नहीं थी, शायद 25-26 साल। जब भाभी प्रेग्नेंट हुईं, तो वो अपने गाँव चली गई थीं, और भैया अकेले रह गए थे। मैं यहाँ ऊपर वाले भैया की बात कर रही हूँ। वो लंबे-चौड़े, गोरे-चिट्टे, और हँसमुख इंसान थे। उनकी हँसी और बात करने का ढंग मुझे बहुत पसंद था।
मैं मुस्लिम परिवार से हूँ, तो मुझे ज्यादा बाहर घूमने-फिरने या लोगों से मिलने-जुलने की आजादी नहीं थी। दिल्ली जैसे बड़े शहर में भी मैं अकेली थी। हमारे मकान के आसपास भी कोई खास दोस्त नहीं थे। ऐसे में मुझे ऊपर वाले भैया के साथ समय बिताने का मौका मिला, और ये मेरी जवानी को खुलकर जीने का एक सुनहरा अवसर था। मेरे मन में कई बार खयाल आता था कि मैं अपनी जवानी को कैसे और किसके साथ बाँटूँ। मेरे अंदर की आग धीरे-धीरे सुलग रही थी।
एक दिन की बात है, दोपहर का समय था। मेरी भतीजी गहरी नींद में सो रही थी। भाई और भाभी दोनों काम पर गए थे। मैंने मुख्य दरवाजा बंद किया और ऊपर वाले भैया के कमरे की ओर चल पड़ी। उनका कमरा एकदम अलग-थलग था। चारों तरफ मकानों की दीवारें थीं, जो पीछे या साइड की थीं, तो कोई हमें देख नहीं सकता था। ये गोपनीयता मुझे और ज्यादा बेकरार कर रही थी।
जब मैं उनके कमरे पर पहुँची, तो भैया म्यूजिक सिस्टम पर गाने सुन रहे थे। उस समय म्यूजिक सिस्टम का बड़ा क्रेज था। मैंने दरवाजा खटखटाया। उन्होंने दरवाजा खोला और मुझे देखकर मुस्कुराए। “आओ, हर्षिदा,” उन्होंने कहा और मुझे अंदर बुलाया। मैं उनके छोटे से कमरे में दाखिल हुई। कमरा छोटा था, बस एक कुर्सी और एक बेड था। मैं कुर्सी पर बैठ गई। मेरे दिल की धड़कनें तेज थीं। मैं हँसमुख लड़की थी, लेकिन उस पल कुछ नर्वस भी थी।
मैं कई दिनों से सोच रही थी कि मैं सेक्स करूँ। पहली बार का उत्साह, वो उत्तेजना, वो जिज्ञासा मेरे अंदर कुलबुला रही थी। मेरे पास मौका भी था। मैं जानती थी कि अगर मैं चाहूँ, तो किसी को भी अपने जाल में फँसा सकती हूँ। लड़कियाँ या औरतें ऐसा कर सकती हैं। आप खुद सोचिए, अगर कोई लड़की आपको अपने करीब आने का मौका दे, तो क्या आप मना कर देंगे? शायद नहीं। मैं भी उसी आग में जल रही थी।
मैं कुर्सी पर बैठी थी, और भैया मुझे देख रहे थे। मैंने उनकी तरफ कातिलाना नजरों से देखा, मेरी आँखों में शरारत थी। मैं मचल रही थी, लेकिन समझ नहीं आ रहा था कि बात कैसे शुरू करूँ। उनका दरवाजा हल्का खुला था, लेकिन मैंने पहले ही नीचे का मुख्य गेट बंद कर दिया था, तो डर की कोई बात नहीं थी। मैं कुछ बोल नहीं पाई। मेरे अंदर का ज्वालामुखी फटने को था। अचानक, मैं उठी और उनकी गोद में जा बैठी। मैंने उन्हें कसकर पकड़ लिया। लेकिन तुरंत ही शर्मिंदगी महसूस हुई, और मैं वापस कुर्सी पर बैठ गई।
मेरा ये कदम देखकर भैया चौंक गए। वो मेरे पास आए और बोले, “हर्षिदा, ये क्या था?” उनकी आवाज में शरारत थी। वो मेरे करीब आए और मेरी चूचियों को छूने लगे। उस समय मेरी चूचियाँ छोटी-छोटी थीं, जैसे दो छोटे नींबू। मैं हँस रही थी, लेकिन साथ ही बचने की कोशिश भी कर रही थी। हर लड़की ऐसा करती है—मन में चुदने की इच्छा होती है, लेकिन बाहर से नखरे दिखाती है। मैं भी वही कर रही थी।
भैया ने मेरी कमीज़ के ऊपर से मेरी चूचियों को दबाना शुरू किया। उनकी उंगलियाँ मेरे निप्पलों को टटोल रही थीं। फिर वो मेरे गले के पास आए, मेरी कमीज़ के ऊपर से ही मेरी चूचियों को मसलने लगे। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं आसमान में उड़ रही हूँ। मेरा शरीर सिहर उठा। मैंने खुद को उनके बेड पर लेटा लिया। मेरे पैर जमीन को छू रहे थे, और मैं बेड पर आधा लेटा हुआ था। भैया मेरे ऊपर चढ़ गए और मुझे चूमने लगे।
वो मेरे गालों पर, होठों पर, गर्दन पर चूम रहे थे। मैं शरमा रही थी, लेकिन मेरा शरीर उनकी हर हरकत का जवाब दे रहा था। मैं अपनी चूचियों को उनके हाथों से बचाने की कोशिश कर रही थी, अपने पैरों को सटा रही थी ताकि वो मेरी चूत तक आसानी से न पहुँच पाएँ। लेकिन सच कहूँ, मेरे मन में चुदने की आग धधक रही थी। मैं बस थोड़ा नाटक कर रही थी।
भैया ने मेरी सलवार का नाड़ा खोल दिया। मैंने उस दिन न तो पैंटी पहनी थी, न ही ब्रा। जैसे ही उन्होंने मेरी सलवार नीचे की, उनकी नजर मेरी चूत पर पड़ी। वो बोले, “हर्षिदा, ये तो बिलकुल तंग है। बर्दाश्त कर पाओगी?” मैंने शरमाते हुए कहा, “जल्दी करो, लेकिन धीरे से। दर्द नहीं होना चाहिए।” वो मुस्कुराए और बोले, “ठीक है, दर्द नहीं होगा।”
उन्होंने अपनी पैंट उतारी। उनका लंड देखकर मेरी आँखें फट गईं। वो मोटा और लंबा था, शायद 7 इंच का। मेरी चूत तो एकदम संकरी थी। मुझे डर लग रहा था, लेकिन उत्तेजना उस डर को दबा रही थी। उन्होंने मेरे पैर फैलाए और अपना लंड मेरी चूत पर रगड़ने लगे। “आह्ह…,” मैं सिसक उठी। उनका लंड मेरी चूत के मुँह पर बार-बार फिसल रहा था। हर बार वो जोर लगाते, लेकिन लंड अंदर नहीं जा रहा था। मैं दर्द के डर से अपनी कमर इधर-उधर कर रही थी।
“हर्षिदा, रुक जाओ, मैं धीरे से डालता हूँ,” भैया ने कहा। मैंने खुद को शांत किया और उनकी मदद करने लगी। मैंने अपने पैर और फैलाए, और वो फिर से लंड को मेरी चूत पर सेट करने लगे। पहली बार में लंड का सुपारा मेरी चूत में गया। “उह्ह…,” मैं कराह उठी। दूसरी बार में लंड मेरी झिल्ली तक पहुँचा। मैंने दर्द महसूस किया, लेकिन साथ ही एक अजीब सी उत्तेजना भी। तीसरी बार में उन्होंने जोर से धक्का मारा, और मेरी झिल्ली टूट गई। “आह्ह… मम्मी…,” मैं चीख पड़ी। खून निकलने लगा।
मैं डर गई, लेकिन भैया ने मुझे संभाला। “पहली बार में ऐसा होता है, हर्षिदा। डरने की बात नहीं,” उन्होंने कहा। मैंने गहरी साँस ली और खुद को नॉर्मल किया। उनका लंड अभी भी पूरा अंदर नहीं गया था। उन्होंने धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू किए। “उह्ह… आह्ह…,” मेरी सिसकियाँ कमरे में गूँज रही थीं। हर धक्के के साथ उनका लंड मेरी चूत को और खोल रहा था। धीरे-धीरे दर्द कम हुआ, और एक अजीब सा सुख मेरे शरीर में फैलने लगा।
भैया ने मेरी कमीज़ उतार दी। मेरी छोटी-छोटी चूचियाँ उनके सामने थीं। मेरे निप्पल छोटे और गुलाबी थे। वो मेरी चूचियों को चूसने लगे। “आह्ह… गुदगुदी हो रही है,” मैं हँसते हुए बोली। लेकिन उस गुदगुदी में एक मादक सुख था। वो मेरी चूचियों को मसल रहे थे, चूस रहे थे, और साथ ही धीरे-धीरे मुझे चोद रहे थे। “सटासट… सटासट…,” उनकी चुदाई की आवाज कमरे में गूँज रही थी।
“हर्षिदा, मस्त चूत है तेरी,” भैया बोले। मैं शरम से लाल हो गई, लेकिन मेरे मुँह से निकला, “जालिम, धीरे करो ना!” वो हँसे और बोले, “अच्छा, अब और मजा देता हूँ।” उन्होंने अपनी रफ्तार बढ़ा दी। “आह्ह… उह्ह…,” मैं सिसक रही थी। मेरी चूत अब उनके लंड को पूरा समा रही थी। मैं अपनी गांड उठा-उठाकर उनकी चुदाई का जवाब दे रही थी। वो मेरे होठों को चूम रहे थे, मेरी गर्दन पर काट रहे थे। मैं उनके आगोश में सिमट गई थी।
“चोदो मुझे… और जोर से…,” मैंने बेकरारी में कहा। भैया ने मेरे पैर अपने कंधों पर रखे और जोर-जोर से धक्के मारने लगे। “सटासट… चपचप…,” मेरी चूत की गीली आवाजें कमरे में गूँज रही थीं। मैं “आह्ह… उह्ह… ओह्ह…” कर रही थी। मेरे शरीर में जैसे बिजली दौड़ रही थी। वो मेरी चूचियों को दबाते, चूसते, और मुझे चोदते जा रहे थे।
करीब 15 मिनट की ताबड़तोड़ चुदाई के बाद भैया बोले, “हर्षिदा, मैं झड़ने वाला हूँ।” मैंने कहा, “बाहर निकालो।” उन्होंने अपना लंड बाहर निकाला और मेरे पेट पर झड़ गए। मैं हाँफ रही थी। मेरा शरीर पसीने से तर था। उस दिन की चुदाई ने मुझे दर्द भी दिया, लेकिन साथ ही एक अनोखा सुख भी। तीन दिन तक मुझे दर्द रहा, और मैं चल भी नहीं पाई थी ठीक से। लेकिन जैसे ही दर्द खत्म हुआ, मेरे अंदर की चुड़क्कड़ लड़की जाग उठी।
तीन महीने बाद मेरे शरीर में गजब का बदलाव आया। मेरी गांड चौड़ी हो गई थी, चूचियाँ बड़ी और भरी-भरी हो गई थीं। मेरे गाल गोरे और होठ पिंक हो गए थे। मैं उस समय अपनी जवानी के पूरे रंग में थी। वो पल मेरी जिंदगी का सबसे खूबसूरत पल था, जिसे मैं कभी नहीं भूल सकती।
दोस्तों, आपको मेरी ये सच्ची कहानी कैसी लगी? क्या आपने भी कभी ऐसा अनुभव किया है? अपने विचार नीचे कमेंट में जरूर बताएँ।
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