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कामवाली की लड़की ‘मंजू’ संग चुदाई का महापर्व

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सभी दोस्तों को जाकिर का नमस्कार। मेरी जिंदगी में एक ऐसा मोड़ आया कि मैं अपनी कहानी आपके सामने रख रहा हूँ। मेरे घर में कामवाली आंटी कई सालों से काम करती थी। मैं उनकी बहुत इज्जत करता था, हमेशा उन्हें आंटी कहकर बुलाता था। मैं 23 साल का जवान लड़का था, और आंटी शायद 32-34 की होंगी। खैर, कुछ दिन पहले आंटी अचानक काम पर आना बंद हो गईं। मम्मी ने मुझसे कहा, “जाकिर, जाकर पता करो कि आंटी क्यों नहीं आ रही हैं।” मैं उनके घर गया। वहाँ आंटी से मुलाकात हुई। मैंने देखा कि उनका चेहरा उदास था। जब मैंने पूछा कि वो काम पर क्यों नहीं आ रही हैं, तो वो फफक-फफक कर रोने लगीं।

आंटी ने बताया कि उनका शराबी पति पहले तो बस शराब पीता था, लेकिन दो दिन पहले उसने सारी हदें पार कर दीं। वो पड़ोस की एक शादीशुदा औरत के साथ भाग गया। आंटी का दुख सुनकर मेरा दिल भी भर आया। मैं भी उनके साथ रोने लगा। तभी मेरी नजर उनकी जवान लड़की मंजू पर पड़ी। मंजू 20 साल की थी, और उसका चेहरा बिल्कुल अपनी माँ जैसा—गोरा, मासूम, और बेहद खूबसूरत। आंटी ने बताया कि अब उन्हें और ज्यादा काम करना पड़ेगा, क्योंकि मंजू की पढ़ाई का खर्चा उठाना था। मंजू के एग्जाम चल रहे थे, इसलिए आंटी उसे अपने सामने बिठाकर पढ़ाती थीं। मैंने घर आकर मम्मी को सारी बात बताई और कहा कि आंटी एक हफ्ते बाद काम पर लौटेंगी, जब मंजू के एग्जाम खत्म हो जाएँगे।

एक हफ्ते बाद आंटी अपनी लड़की मंजू के साथ हमारे घर काम पर आईं। आंटी अब कई घरों में काम करने लगी थीं ताकि ज्यादा पैसे कमा सकें। मंजू भी अपनी माँ का साथ देती थी। वो सुबह-सुबह मेरे लिए चाय बनाने लगी। एक दिन वो रसोई में आई और बोली, “भैया जी! कौन सी चाय पियेंगे, नीबू वाली या दूध की अदरक वाली?” मैंने कहा, “मंजू, नीबू वाली चाय लाओ।” वो मटक-मटक कर चलने लगी। उसके चूतड़ हिल रहे थे, और मैं उन्हें देखता रह गया। मंजू भले ही कामवाली की लड़की थी, लेकिन उसकी खूबसूरती किसी हीरोइन से कम नहीं थी। उसका गोरा चेहरा, भोली आँखें, और मासूम हँसी मुझे पागल करने लगी।

धीरे-धीरे मंजू रोज मेरे घर आने लगी। वो अपनी माँ के साथ मिलकर घर के सारे काम करती। मैं उसे दिनभर सोचता रहता। रात को बाथरूम में जाकर मंजू के नाम की म Rowling

मुठ मारने का मन करता। उसकी मटकती चाल, वो गोल-गोल चूतड़, और वो मासूम चेहरा सोचकर मेरा लंड खड़ा हो जाता। एक दिन उसकी चप्पल टूट गई, तो मैंने बाजार से उसके लिए नई चप्पल ला दी। फिर एक दिन मैंने उसे एक खूबसूरत सा सूट गिफ्ट किया। धीरे-धीरे मैंने उसे पटा लिया।

अगले दिन जब वो चाय लेकर आई, तो मैंने उसका हाथ पकड़ लिया। वो बोली, “इ का भैया जी? आपने मेरा हाथ क्यूँ पकड़ा?” मैंने उसका हाथ चूमते हुए कहा, “मंजू, मेरी जान, तुझे नहीं पता कि मैं तेरा हाथ क्यों पकड़ रहा हूँ? मैं तुझसे प्यार करता हूँ। सारी रात तेरे बारे में सोचता रहता हूँ।” वो शरमा गई, इधर-उधर देखने लगी, और अपने दुपट्टे को गोल-गोल ऐंठने लगी। मैंने उसका हाथ चूम लिया। वो छुड़ाने की कोशिश करने लगी, तो मैंने छोड़ दिया। अगले दिन वो मुझे “भैया” की जगह “जाकिर” कहकर बुलाने लगी। मैं समझ गया कि मेरा तीर निशाने पर लग गया है।

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एक दिन वो मेरे कमरे में झाड़ू लगा रही थी। मैंने उसे पीछे से पकड़ लिया और उसके गालों पर चुम्मा ले लिया। वो बोली, “जाकिर, ये क्या कर रहे हो? छोड़ो मुझे, कोई देख लेगा!” मैंने दरवाजा लात मारकर बंद किया और कहा, “जान, इतने दिन से मैं तुझे देख-देखकर तड़प रहा हूँ। आज तुझे नहीं छोड़ूंगा।” मैंने उसके गालों, होंठों, और गले पर पप्पियाँ लेनी शुरू कर दीं। वो शरमाती रही, लेकिन धीरे-धीरे वो भी सरेंडर हो गई। मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके नरम, रसीले होंठ चूसने लगा। उसकी साँसें गर्म थीं, और उसका जिस्म मेरे जिस्म से चिपक गया। मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं स्वर्ग में हूँ। उसकी चूचियाँ मेरे सीने से दब रही थीं, और मेरा लंड पत्थर की तरह सख्त हो गया। मैंने उसे बिस्तर पर लिटा दिया और उसकी कमीज के ऊपर से उसकी चूचियाँ दबाने लगा। उसका 34-27-32 का फिगर मुझे पागल कर रहा था।

“जाकिर, धीरे करो, मम्मी आ जाएँगी,” उसने शरमाते हुए कहा। मैंने कहा, “जान, आज कोई नहीं आएगा। आज तू मेरी है।” मैंने उसकी सलवार का नाड़ा खोल दिया और उसे नीचे सरका दिया। उसकी मेहरून रंग की चड्डी में उसकी चूत का उभार साफ दिख रहा था। मैंने उसकी चड्डी भी उतार दी। उसकी चूत बिल्कुल गोरी, साफ, और अनछुई थी। हल्की-हल्की झाँटों से सजी उसकी चूत किसी गुलाब की तरह थी। मैंने अपनी उंगलियाँ उसकी चूत पर फिराईं, और वो सिहर उठी। उसकी आँखें बंद हो गईं, और उसने अपनी कमर उठा दी। मैंने उसकी चूत पर अपनी जीभ रख दी और धीरे-धीरे चाटने लगा। उसकी चूत का स्वाद नमकीन और नशीला था। मैंने अपनी जीभ को उसकी चूत की फाँकों में गहराई तक घुमाया, और वो सिसकियाँ लेने लगी। “जाकिर, हाय, धीरे करो, गुदगुदी हो रही है,” वो बोली।

मैंने उसकी क्लिटोरिस को अपनी जीभ से जोर-जोर से चाटा। उसकी चूत गीली हो गई, और उसका माल मेरी जीभ पर लगने लगा। मैंने उसकी चूत को और जोर से चूसा, और वो अपनी कमर हिलाने लगी। “जाकिर, बस करो, मैं पागल हो जाऊँगी,” उसने सिसकते हुए कहा। मैंने अपनी जीभ और तेज चलाई, और उसकी चूत से मक्खन जैसा माल बहने लगा। मैंने अपनी उंगली उसकी चूत में डाली, और वो तड़प उठी। उसकी चूत इतनी टाइट थी कि मेरी एक उंगली भी मुश्किल से गई। मैंने धीरे-धीरे अपनी उंगली अंदर-बाहर की, और उसकी सिसकियाँ और तेज हो गईं। Kaamwali ki Chudai

मेरा लंड अब बेकाबू हो रहा था। मैंने अपने कपड़े उतार दिए। मेरा 7 इंच का मोटा लंड देखकर मंजू का चेहरा लाल हो गया। “जाकिर, ये तो बहुत बड़ा है! धीरे करना, मुझे डर लग रहा है,” उसने कहा। मैंने कहा, “जान, फिकर मत कर, मैं तुझे बहुत प्यार से चोदूंगा।” मैंने अपने लंड का सुपाड़ा उसकी चूत पर रगड़ा। उसकी चूत का माल मेरे सुपाड़े पर लग गया, और वो और गीली हो गई। मैंने धीरे-धीरे अपने लंड को उसकी चूत में डालना शुरू किया। उसकी टाइट चूत में मेरा लंड मुश्किल से घुस रहा था। वो दर्द से सिसकने लगी। मैंने एक जोरदार धक्का मारा, और मेरा लंड उसकी चूत में आधा घुस गया। मंजू की चीख निकल गई, और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। “जाकिर, दर्द हो रहा है, निकाल लो,” उसने कहा।

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मैंने उसके होंठ चूमे और कहा, “बस जान, थोड़ा सा दर्द होगा, फिर मजा आएगा।” मैंने धीरे-धीरे अपने लंड को अंदर-बाहर करना शुरू किया। उसकी चूत से खून की बूँदें टपकने लगीं, क्योंकि वो कुंवारी थी। मैंने उसके आँसुओं को चूमा और धीरे-धीरे पेलने लगा। कुछ देर बाद उसका दर्द कम हुआ, और वो अपनी कमर हिलाने लगी। “जाकिर, अब अच्छा लग रहा है,” उसने सिसकते हुए कहा। मैंने अपनी स्पीड बढ़ा दी और उसे जोर-जोर से चोदने लगा। उसकी चूत पूरी तरह खुल गई थी, और मेरा मोटा लंड आराम से अंदर-बाहर हो रहा था। उसकी सिसकियाँ कमरे में गूँज रही थीं। “हाय जाकिर, और जोर से, मार डाल मेरी चूत को,” वो चिल्लाने लगी।

मैंने उसे और जोर से पेला। उसकी चूचियाँ कमीज के ऊपर से उछल रही थीं। मैंने उसकी कमीज खींचकर ऊपर की और उसकी गोरी चूचियों को आजाद कर दिया। उसकी गुलाबी चूचियाँ देखकर मैं पागल हो गया। मैंने एक चूची मुँह में ले ली और जोर-जोर से चूसने लगा। दूसरी चूची को मैंने अपने हाथ से मसला। मंजू की सिसकियाँ और तेज हो गईं। “जाकिर, हाय, मेरी चूत फट जाएगी, धीरे करो,” उसने कहा, लेकिन उसकी कमर मेरे हर धक्के के साथ मचल रही थी।

करीब 20 मिनट तक मैं उसे पेलता रहा। उसकी चूत पूरी तरह गीली थी, और मेरा लंड उसके माल से चमक रहा था। आखिरकार मेरा माल निकलने वाला था। मैंने कहा, “मंजू, मैं झड़ने वाला हूँ।” वो बोली, “जाकिर, मेरी चूत में ही झड़ जाओ।” मैंने एक आखिरी धक्का मारा और अपने माल की पिचकारी उसकी चूत में छोड़ दी। उसकी चूत मेरे माल और खून से सन गई। मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके होंठ चूमने लगा। वो मेरे सीने से चिपक गई।

“जाकिर, ये गलत था, लेकिन मुझे बहुत मजा आया,” उसने शरमाते हुए कहा। मैंने उसके माथे को चूमा और कहा, “जान, ये तो बस शुरुआत है।” तभी बाहर से आंटी की आवाज आई, “मंजू! कहाँ मर गई?” मैंने जल्दी से मंजू को छोड़ दिया। वो अपनी सलवार ठीक करके भागी।

अगले दिन वो फिर आई। मैंने उसे अपने कमरे में खींच लिया और उसके गाल चूमने लगा। “मेरी जान का क्या हाल है?” मैंने मजाक में पूछा। वो बोली, “छोड़ो मेरा हाथ! कल तुमने मेरी चूत को इतना जोर से पेला कि रातभर दर्द होता रहा।” मैंने उसके गालों पर पप्पी दी और कहा, “जान, आज और मजा आएगा।” उस दिन आंटी किसी रिश्तेदार की शादी में गई थीं, तो घर में कोई नहीं था। मैंने मंजू को पूरी तरह नंगा कर दिया। उसकी ब्रा और पैंटी उतारकर मैंने उसे बिस्तर पर लिटा दिया। उसका गोरा जिस्म चाँदनी में चमक रहा था। मैंने उसकी चूचियों को चूसा और उसकी चूत को फिर से चाटा।

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इस बार हमने 69 की पोजीशन आजमाई। मंजू ने मेरा लंड मुँह में लिया और चूसने लगी। मैंने उसे लंड चूसना सिखाया, और वो धीरे-धीरे एक्सपर्ट हो गई। मैं उसकी चूत और गांड को जीभ से चाटता रहा। उसकी चूत का माल मेरे मुँह में आ रहा था, और उसकी गांड का छेद मेरी जीभ से सिहर रहा था। “जाकिर, हाय, ये क्या कर रहे हो? मेरी गांड मत चाटो,” उसने कहा, लेकिन मैंने उसकी गांड को और जोर से चूसा। हम दोनों एक-दूसरे के जिस्म को चाटते रहे, और कमरा हमारी सिसकियों से गूँज उठा।

कुछ देर बाद मैंने उसकी टाँगें फैलाईं और अपने लंड पर ढेर सारा तेल लगाया। इस बार मैंने उसे धीरे-धीरे चोदा ताकि दर्द न हो। मंजू मजे से अपनी कमर उठा-उठाकर चुदवाने लगी। “जाकिर, और जोर से पेलो, मेरी चूत को फाड़ दो,” वो चिल्लाई। मैंने अपनी स्पीड बढ़ा दी। उसकी चूत पूरी तरह खुल चुकी थी, और मेरा लंड आराम से अंदर-बाहर हो रहा था। वो मीठी-मीठी सिसकियाँ ले रही थी, और उसकी गर्म साँसें मेरे चेहरे पर लग रही थीं। मैंने उसकी चूचियों को मसला और उसके होंठ चूसता रहा।

करीब आधे घंटे तक मैंने उसे पेला। उसकी चूत से फिर से थोड़ा सा खून निकला, लेकिन इस बार उसे दर्द नहीं हुआ। वो मजे से चुदवाती रही। आखिरकार मैंने अपने माल की पिचकारी उसकी चूत में छोड़ दी। मैंने उसका माल अपनी उंगली से उठाया और उसकी माँग में भर दिया। “जाकिर, ये क्या किया?” उसने शरमाते हुए पूछा। मैंने कहा, “जान, आज से तू मेरी प्राइवेट माल है। जब तक तेरी शादी नहीं होती, मैं तेरी चूत मारता रहूँगा।” वो मेरे सीने से चिपक गई और बोली, “जाकिर, मैं सिर्फ तेरी हूँ।”

सात साल बीत गए, और मैं आज भी मंजू की चूत मार रहा हूँ। उसकी शादी अभी तक नहीं हुई, और हमारा ये चुदाई का महापर्व हर हफ्ते चलता रहता है। हर बार वो और खुलकर चुदवाती है, और मैं उसकी चूत और गांड के मजे लेता रहता हूँ।

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