कैसे दिलीप चाचा ने माँ को चोदा

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ये कहानी जनवरी 2024 की है, जब मैं, कमलेश, 19 साल का था। उस वक़्त मैं 12वीं कक्षा में पढ़ रहा था और साथ ही एक प्राइवेट नौकरी भी कर रहा था। आप सोच रहे होंगे कि 19 साल की उम्र में स्कूल और नौकरी दोनों कैसे? दरअसल, मैंने स्कूल में कुछ साल देर से दाखिला लिया था, क्योंकि बचपन में हमारी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। इसलिए, जब मैं 18 साल का हुआ, तो मैंने एक छोटी सी प्राइवेट नौकरी शुरू की—एक स्थानीय दुकान में हिसाब-किताब और स्टॉक मैनेज करने का काम। ये नौकरी मैं सुबह 8 से 1 बजे तक करता था, और फिर दोपहर 2 से 5 बजे तक स्कूल जाता था। स्कूल के बाद, मैं शाम 4 से 6 बजे तक ट्यूशन पढ़ने जाता था। मेरी ज़िंदगी व्यस्त थी, लेकिन माँ की मदद के लिए मैं ये सब करता था। माँ, दलजीत कौर, उस वक़्त 44 साल की थीं, और मेरे पापा से उनका तलाक तब हो गया था जब मैं 5 साल का था।

मेरे प्यारे दोस्तों, आज मैं आपके सामने एक ऐसी चुदाई की कहानी लेकर आया हूँ जो ना सिर्फ़ मस्त है बल्कि बिल्कुल सच्ची है। ये कहानी मेरी माँ की है, और मैं इसे वैसे ही बयान करूँगा जैसे सब कुछ मेरे सामने हुआ। हमारा घर शहर के एक शांत मोहल्ले में था, जहाँ मैं हर रोज़ स्कूल और नौकरी के बाद ट्यूशन जाता था। माँ की गोरी चमड़ी ऐसी थी कि दूध भी उनके सामने फीका लगे। उनकी हाइट 5 फुट 8 इंच थी, और उनकी गांड और बूब्स भरे हुए, गोल-मटोल, और सुडौल थे। उनकी सेक्सी फिगर देखकर कई बार मेरा मन डोल जाता था, लेकिन मैं हमेशा अपने आपको संभाल लेता था।

एक दिन, जनवरी 2024 में, मैं स्कूल से लौटा तो माँ घर पर थीं। ये मेरे लिए अजीब था, क्योंकि माँ उस वक़्त आमतौर पर अपने काम में बिजी रहती थीं। मैंने खुशी-खुशी माँ को गले लगाया और पूछा, “माँ, आज आप घर पर कैसे?”

माँ ने मुस्कुराते हुए कहा, “बेटा, आज नौकरानी नहीं आई, तो मैंने सोचा तुम्हारा खाना कौन बनाएगा? और कुछ घर का काम भी था। आज लंच तुम्हारे साथ करूँगी।” उनकी आवाज़ में एक गर्मी थी, जो मुझे पहले कभी महसूस नहीं हुई थी। हमने साथ में लंच किया, ढेर सारी बातें कीं। माँ ने मेरी पढ़ाई के बारे में पूछा, “कमलेश, तुम्हारा ट्यूशन कैसा चल रहा है? कितना कोर्स पूरा हुआ?” फिर बोलीं, “आज रात मुझे सब बताना, ठीक है? चलो, अब ट्यूशन का टाइम हो रहा है।”

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मैंने स्कूल की यूनिफॉर्म उतारी, कैजुअल कपड़े पहने, और साइकिल उठाकर ट्यूशन के लिए निकल गया। लेकिन ट्यूशन पहुँचकर पता चला कि मेरे सर के घर मेहमान आए हैं, और आज क्लास नहीं होगी। मैंने सोचा, अपने दोस्त विशाल के घर होकर आता हूँ। शायद वो फुटबॉल खेलने को तैयार हो। लेकिन विशाल किसी की बर्थडे पार्टी में गया था। निराश होकर मैं घर लौटने लगा।

घर के पास पहुँचा तो देखा कि एक काली SUV खड़ी थी। मुझे लगा शायद कोई मेहमान आया होगा। मैंने घंटी नहीं बजाई, क्योंकि मेरे पास हमेशा घर की चाबी रहती थी। चुपके से दरवाज़ा खोला और अंदर गया। उस वक़्त करीब 4:35 बजे थे। हॉल खाली था, और घर में सन्नाटा था। तभी माँ के बेडरूम से ज़ोर-ज़ोर से हँसने की आवाज़ आई। मैं चौंक गया। कौन हो सकता है? मैं धीरे-धीरे माँ के कमरे की तरफ बढ़ा। दरवाज़ा लॉक था। जैसे ही मैंने उसे हल्का सा धक्का दिया, हँसने की आवाज़ बंद हो गई, और माँ की सिसकारियाँ शुरू हुईं— “आह्ह… ऊह्ह…”।

मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। मैं डरते-डरते पास के कमरे में गया, जहाँ एक वेंटिलेटर माँ के रूम की तरफ खुलता था। उत्सुकता ने डर को दबा दिया। मैंने वेंटिलेटर से झाँका, और जो देखा, उसने मेरे होश उड़ा दिए। माँ और दिलीप चाचा, हमारे पड़ोसी, बेड पर बिल्कुल नंगे थे। चाचा माँ के ऊपर थे, उनका लंड माँ की चूत में ज़ोर-ज़ोर से अंदर-बाहर हो रहा था। दोनों एक-दूसरे को पागलों की तरह चूम रहे थे। माँ की सिसकारियाँ, “आह्ह… हाँ… और ज़ोर से…”, कमरे में गूँज रही थीं।

दिलीप चाचा, 48 साल के थे, मज़बूत कद-काठी, भूरी मूँछें, और गहरी आवाज़ वाले। वो अक्सर हमारे घर आते थे, और माँ के साथ उनकी दोस्ती थी। लेकिन ये इतनी गहरी थी, मुझे अंदाज़ा नहीं था। चाचा माँ के बड़े-बड़े बूब्स को ज़ोर से दबा रहे थे, और माँ की चूत में धक्के मार रहे थे। माँ की सिसकारियाँ तेज़ हो गईं, “आह्ह… ओह्ह… दिलीप… और ज़ोर से… उफ्फ…!”

चाचा ने रुककर माँ को देखा और हँसते हुए कहा, “दलजीत, तुम्हारी चूत तो आज भी उतनी टाइट है जितनी पहली बार थी।” माँ ने शरमाते हुए जवाब दिया, “बस करो, दिलीप… तुम भी तो कम नहीं… उफ्फ… ये लंड आज मुझे मार डालेगा।”

चाचा ने माँ के होंठ फिर से चूमे, और फिर बेड से उठकर अलमारी की तरफ गए। उन्होंने पुराना कंडोम उतारा और नया निकाला। चाचा का लंड करीब 7.5 इंच लंबा, मोटा, और सख्त था। कंडोम लगाने के बाद चाचा बेड पर लौटे। माँ ने अपनी साड़ी और ब्लाउज़ उतार दिए थे, और अब सिर्फ़ काली ब्रा और पैंटी में थीं, जो बेड के किनारे पड़ी थी। चाचा ने कहा, “दलजीत, अब पीछे से ले लो।” माँ ने हल्की हिचकिचाहट दिखाई, लेकिन फिर मुस्कुराकर पलट गईं।

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चाचा ने माँ की कमर के नीचे तकिया रखा, जिससे उनकी गांड ऊपर उठ गई। माँ की चूत गीली थी, और उसमें से पानी टपक रहा था। चाचा ने अपने लंड को माँ की चूत पर रगड़ा। माँ की सिसकारियाँ फिर शुरू हुईं, “उफ्फ… दिलीप… धीरे… आह्ह…”। चाचा ने हँसते हुए कहा, “धीरे क्या, दलजीत? तुम तो खुद बोल रही थीं, और ज़ोर से।” फिर चाचा ने एक ज़ोरदार धक्का मारा, और उनका लंड माँ की चूत में पूरा घुस गया। माँ की चीख निकल गई, “आह्ह… उफ्फ… कितना बड़ा है…!”

चाचा ने धीरे-धीरे धक्के शुरू किए। हर धक्के के साथ माँ का शरीर काँप रहा था। उनकी चूत से “पच-पच” की आवाज़ें आ रही थीं। माँ की सिसकारियाँ गूँज रही थीं, “आह्ह… ओह्ह… हाँ… और ज़ोर से… उफ्फ…”। चाचा ने माँ की पीठ, कंधों, और गर्दन पर हल्के-हल्के काटना शुरू किया। माँ ने अपनी गांड को और पीछे धकेला, जैसे वो चाचा के लंड को और गहराई तक लेना चाहती हों। चाचा ने माँ के बूब्स को पीछे से पकड़ा और ज़ोर-ज़ोर से दबाने लगे। माँ चिल्लाई, “आह्ह… और ज़ोर से दबाओ… उफ्फ… कितना मज़ा आ रहा है…!”

करीब 5 मिनट तक चाचा ने माँ को उसी पोज़िशन में चोदा। माँ की सिसकारियाँ तेज़ हो गईं, और वो चिल्ला रही थीं, “हाँ… दिलीप… और ज़ोर से… आह्ह… उफ्फ…!” अचानक माँ का शरीर काँपने लगा, और वो ज़ोर से चीखीं, “आह्ह… मैं झड़ रही हूँ… उफ्फ…”। माँ की चूत से पानी टपकने लगा, और वो बेड पर गिर गईं। चाचा का लंड अभी भी उनकी चूत में था। चाचा ने माँ को संभाला और धीरे-धीरे धक्के देना शुरू किया। माँ थक चुकी थीं, लेकिन चाचा रुकने के मूड में नहीं थे।

माँ ने हाँफते हुए कहा, “दिलीप… बस करो… अब और नहीं… उफ्फ… ये धक्के मुझे मार डालेंगे।” चाचा ने हँसते हुए जवाब दिया, “अरे, दलजीत, अभी तो खेल शुरू हुआ है। तुम तो पहले ही हार मान रही हो।” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा, “तुम आज कुछ ज़्यादा ही जोश में हो… उफ्फ… ऐसा मज़ा तो पहले कभी नहीं आया।”

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चाचा ने माँ को फिर चूमा, और दोनों एक-दूसरे के होंठों में खो गए। माँ ने चाचा के गालों को अपने हाथों से पकड़ा और उन्हें और करीब खींच लिया। उनका किस इतना गहरा था कि मैं देखता रह गया। मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था।

करीब 10 मिनट तक चाचा ने माँ को अलग-अलग पोज़िशन में चोदा—कभी लिटाकर, कभी गांड उठाकर, कभी गोद में बिठाकर। माँ की सिसकारियाँ और चाचा के धक्कों की आवाज़ कमरे में गूँज रही थी। आखिरकार, चाचा भी झड़ गए। उन्होंने कंडोम उतारा और माँ के बगल में लेट गए। माँ हाँफ रही थीं, और उनकी चूत से पानी टपक रहा था।

माँ ने हँसते हुए कहा, “दिलीप, तुम तो आज रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। पिछली बार तो 10 मिनट में थक गए थे।” चाचा ने जवाब दिया, “अरे, उस दिन टेंशन में था। आज तो बस तुम पर प्यार उमड़ रहा है।” दोनों हँसने लगे और फिर से चूमने लगे।

मैं चुपके से वहाँ से हट गया। मेरा दिमाग सुन्न था, लेकिन कहीं न कहीं मज़ा भी आ रहा था। दोस्तों, ये कहानी यहीं खत्म नहीं होती। मैं जल्द ही इसका अगला हिस्सा लेकर आऊँगा। आप बताइए, आपको ये कहानी कैसी लगी?

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