मैं प्रिया, 23 साल की शादीशुदा औरत हूँ, या यूँ कहिए कि अभी भी लड़की जैसी हूँ। मेरी शादी को दो साल हो चुके हैं, पर अभी तक कोई बच्चा नहीं हुआ। जल्दबाजी में मैंने लव मैरिज की थी, प्यार में अंधी होकर। लड़कियों को चाहिए कि जब वो किसी से प्यार करें, तो पहले अपने होने वाले पति की जिस्मानी ताकत चेक कर लें। क्योंकि कई बार लड़कियां फंस जाती हैं—लड़का सुंदर, लंबा-चौड़ा, मस्त दिखता है, पर उसका लंड खड़ा ही नहीं होता। और अगर कभी खड़ा हो भी जाए, तो वो ठीक से चुदाई नहीं कर पाता। मेरे साथ भी यही हुआ। मेरा पति, देखने में तो बहुत खूबसूरत है, चौड़ा सीना, लंबी कद-काठी, पर जब बात बिस्तर की आती है, तो मैं अपनी चूत को फैलाकर इंतज़ार करती रहती हूँ, और वो दो मिनट में ही खल्लास होकर सो जाता है। ऐसी सिचुएशन में मैं क्या करूँ? रात को अकेले में अपनी भारी चूचियों को मसलती हूँ, अपनी गीली चूत में उंगली डालती हूँ, और बस उसी से काम चलाकर सो जाती हूँ। इसके अलावा और कर भी क्या सकती हूँ?
हमारा गांव का घर पुराना था, लकड़ी की खिड़कियों से हल्की हवा और चांदनी की रोशनी अंदर आती थी। रात का सन्नाटा ऐसा कि दूर कहीं कुत्तों की भौंकने की आवाज़ भी साफ सुनाई देती थी। उस रात मेरे पति के मामा जी घर आए थे। वो दिल्ली में रहते हैं, मेरी सास से छोटे, जवान, और इतने हॉट कि उनकी मर्दाना कद-काठी और गहरी आँखें किसी का भी दिल धड़का दें। शाम के चार बजे वो आए, और रात रुकने का प्लान था। लेकिन तभी हमारे पड़ोस में एक हादसा हो गया—पड़ोसी का एक्सीडेंट। मेरी सास और पति को हॉस्पिटल जाना पड़ा, वो भी दूसरे शहर, काफ़ी दूर। पति गाड़ी चलाकर गए, और सास उनके साथ। जाते-जाते सास ने मामा जी से कहा, “मैं जा रही हूँ, कोशिश करूँगी आज रात तक वापस आ जाऊँ। अगर न आ सकी, तो कल सुबह तक आ जाऊँगी। आपको एक दिन और रुकना पड़ सकता है। हम भाई-बहन तो बात भी नहीं कर पाए, पर क्या करें, ऊपर वाले ने ये सब कर दिया।”
घर में अब सिर्फ़ मैं और मामा जी थे। रात के नौ बज चुके थे। हमने खाना खा लिया था, और ड्राइंग रूम में पुरानी सीलन भरी दीवारों के बीच बैठकर इधर-उधर की बातें करने लगे। चांदनी रात थी, और खिड़की से ठंडी हवा कमरे में आ रही थी, जो मेरी साड़ी को हल्के-हल्के उड़ा रही थी। मामा जी की नज़रें मेरे चेहरे से नीचे मेरी चूचियों पर टिक रही थीं, जो मेरे तंग ब्लाउज़ में उभरी हुई थीं। उनकी आँखों में एक चमक थी, जैसे वो मेरे जिस्म को अपनी नज़रों से चाट रहे हों। एक घंटे की बातचीत के बाद, मामा जी ने अचानक गंभीर होकर पूछा, “कैसी हो प्रिया? सब कुछ ठीक चल रहा है ना? कोई दिक्कत तो नहीं है?”
उनका यूं पूछना और उनकी नज़रें, जो मेरे जिस्म को नाप रही थीं, मुझे बेचैन कर रही थीं। मैंने सोचा, ये मौका है अपनी भड़ास निकालने का। मैंने नहले पे दहला मारते हुए कहा, “मामा जी, जैसा मैंने सोचा था, वैसा पति मुझे नहीं मिला।”
मामा जी ने भौंहें चढ़ाईं और बोले, “क्या बात है? ऐसा क्या हो गया जो तुमको पसंद नहीं है मेरा भांजा?”
मैंने साफ-साफ कह दिया, “मामा जी, वो शरीर से तो अच्छे हैं, मोटे-ताजे, पर जो ताकत एक मर्द में होनी चाहिए, वो उनमें नहीं है।”
मामा जी ने हैरानी से पूछा, “क्या मतलब तुम्हारा? क्या बोलने की कोशिश कर रही हो?”
मैंने शर्म छोड़कर खुलकर कहा, “मामा जी, आज तक वो मुझे बिस्तर पे खुश नहीं कर पाए हैं।”
मामा जी की आँखें बड़ी हो गईं। बोले, “ये मैं क्या सुन रहा हूँ, प्रिया? ये तो बहुत गलत बात है! तुमने डॉक्टर को दिखाया?”
मैंने जवाब दिया, “कई हकीमों, डॉक्टरों को दिखा चुके हैं। वो दवाइयाँ देते हैं, कहते हैं कि कुछ दिन में ठीक हो जाएगा, पर आज तक कुछ ठीक नहीं हुआ।”
मामा जी ने गहराई से पूछा, “तुम मुझे पूरी बात बताओ, होता क्या है?”
मैंने बिल्कुल साफ कहा, “जब वो मेरे साथ सोने आते हैं, उनका लंड खड़ा तो होता है, पर दो-तीन मिनट में ही गिर जाता है। फिर वो चुपचाप सो जाते हैं।”
मामा जी का चेहरा गंभीर हो गया। बोले, “ये तो बहुत दुख की बात है। एक जवान औरत, जिसने लव मैरिज की, अपने माँ-बाप के खिलाफ जाकर, और ससुराल में उसका पति नामर्द निकले? मैं तुम्हारे दुख को समझ सकता हूँ, प्रिया।”
वो मेरे और करीब आए, और धीरे से मेरे कंधे पर हाथ रख दिया। उनकी गर्म उंगलियाँ मेरे कंधे को सहलाने लगीं, फिर धीरे-धीरे मेरे गाल तक पहुँच गईं। उनकी नज़रें मेरी चूचियों पर टिकी थीं, जो मेरे तंग ब्लाउज़ में सख्त होकर उभरी थीं। मैंने उनकी आँखों में देखा—वो लाल हो रही थीं, वासना से भरी हुई। उनके पजामे में उनका लंड साफ़ दिख रहा था, जो पहले से ही तनकर खड़ा था। मेरे दिल में तूफान उठ रहा था—अपनी हवस को शांत करूँ या रिश्ते की मर्यादा रखूँ? पर मेरी चूत की जलन ने मेरे दिल को हरा दिया। मैंने जानबूझकर अपनी साड़ी का पल्लू नीचे गिरा दिया।
मेरी गोरी, भरी-भरी चूचियाँ मेरे ब्लाउज़ में उभरी हुई थीं, और मेरे गुलाबी निप्पल हल्के-हल्के दिख रहे थे। मामा जी की आँखें चमक उठीं, जैसे कोई भूखा शेर मांस देख ले। वो खुद को रोक नहीं पाए और मेरी चूचियों पर हाथ रखकर उन्हें ज़ोर से दबाने लगे। मैं सिसकियाँ भरने लगी, “आह, मामा जी, धीरे!” पर मेरे जिस्म में करंट दौड़ रहा था। उन्होंने मेरे ब्लाउज़ के बटन एक-एक करके खोले, मेरी ब्रा को खींचकर उतारा, और मेरी नंगी चूचियों को देखकर पागल हो गए। मेरी गोल, सख्त चूचियाँ उनके सामने थीं, और मेरे निप्पल कड़े होकर उनकी ओर इशारा कर रहे थे। वो मेरे निप्पल को अपनी उंगलियों से मसलने लगे, और मेरे होंठों को चूमने लगे। उनकी गर्म साँसें मेरे चेहरे पर पड़ रही थीं, और मैं कामवासना में डूब रही थी।
उन्होंने मुझे बेड पर लिटा दिया, मेरी साड़ी को ऊपर उठाया, और मेरी चिकनी जाँघों को सहलाने लगे। उनका एक हाथ मेरी चूत की ओर बढ़ा, जो पहले से ही गीली हो चुकी थी। उनकी मोटी उंगली मेरी चूत के छेद में घुसी, और मैं चीख पड़ी, “आह, मामा जी, और अंदर!” वो उंगली को अंदर-बाहर करने लगे, मेरी चूत का रस उनकी उंगलियों पर चमक रहा था। वो बार-बार अपनी उंगली चाटते, और कहते, “प्रिया, तेरी चूत का रस तो अमृत है!” मैंने अपनी टाँगें और चौड़ी कर दीं, और उनसे कहा, “मामा जी, मेरी चूत चाटो, मुझे तड़पाओ मत!” वो मेरी चूत पर झुक गए, उनकी गर्म जीभ मेरे चूत के दाने को चाटने लगी। उनकी जीभ मेरी चूत के अंदर तक जा रही थी, और मैं सिसकियों के साथ उनके सिर को अपनी चूत में दबा रही थी। मैं बार-बार पानी छोड़ रही थी, और वो मेरे रस को अपनी जीभ से चाट-चाटकर साफ़ कर रहे थे। मेरी चूत की खुशबू उनके नथुनों में जा रही थी, और वो पागल हो रहे थे।
मुझसे रहा नहीं गया। मैंने कहा, “मामा जी, अब अपना लंड निकालो, मेरी चूत को फाड़ दो!” उन्होंने अपना पजामा उतारा, और उनका मोटा, 9 इंच का लंड मेरे सामने था, जैसे कोई लोहे का डंडा। उसकी नसें उभरी हुई थीं, और टोपा गुलाबी और चमकदार था। मैंने उसे अपने हाथों में लिया, उसकी गर्मी को महसूस किया, और फिर अपने मुँह में डाल लिया। मैं उनके लंड को चूस रही थी, जैसे कोई भूखी औरत। मेरी जीभ उनके टोपे पर गोल-गोल घूम रही थी, और मैं उनके लंड के रस को चख रही थी। वो सिसकियाँ भर रहे थे, “प्रिया, साली, तू तो रंडी की तरह चूस रही है!” मैंने 15 मिनट तक उनके लंड को चूसा, कभी जीभ से चाटा, कभी अपने होंठों से रगड़ा, और कभी पूरा मुँह में लेकर गला तक डाला। मेरा जिस्म कामवासना में जल रहा था, मेरे होंठ कांप रहे थे।
मामा जी ने मुझे बेड पर लिटाया, मेरी टाँगों को अपने कंधों पर रखा, और अपने मोटे लंड को मेरी चूत के छेद पर रगड़ा। वो बोले, “प्रिया, आज तेरी चूत की सारी प्यास बुझा दूँगा।” उन्होंने मेरी चूचियों को मसलते हुए एक ज़ोरदार धक्का मारा, और उनका पूरा लंड मेरी चूत में समा गया। मैं चीख पड़ी, “आह, मामा जी, कितना मोटा है!” वो ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने लगे, मेरी चूचियों को मसलते हुए, मेरे निप्पल को चूसते हुए। वो गालियाँ दे रहे थे, “प्रिया, तेरी चूत कितनी टाइट है, साली, तुझे चोदने का मज़ा ही अलग है।” मैं भी नीचे से अपनी गांड उछाल रही थी, उनके लंड को और अंदर लेने की कोशिश कर रही थी। मेरी चूत उनके लंड को निगल रही थी, और हर धक्के के साथ मेरे मुँह से सिसकियाँ निकल रही थीं, “हाँ, मामा जी, और ज़ोर से, मेरी चूत को फाड़ दो!”
करीब 30 मिनट की चुदाई के बाद, उन्होंने मुझे घोड़ी बनाया। मेरी गोल, गोरी गांड उनके सामने थी, और वो उसे देखकर पागल हो गए। उन्होंने पहले मेरी गांड के छेद को चाटा, अपनी जीभ को अंदर तक डाला। मैं सिहर उठी, मेरी चूत फिर से पानी छोड़ रही थी। फिर उन्होंने अपने लंड को मेरी गांड के छेद पर रखा और ज़ोर से धक्का मारा। दर्द के मारे मैं चीख पड़ी, “मामा जी, नहीं, बहुत दुख रहा है!” मैंने उनसे कहा, “प्लीज़, आज मेरी चूत को चोदो, गांड को कल सुबह मार लेना।” वो मान गए, और फिर से मेरी चूत में अपना लंड डाल दिया। पीछे से वो मेरी गांड पर थप्पड़ मार रहे थे, और ज़ोर-ज़ोर से मुझे चोद रहे थे। मैं चीख रही थी, “हाँ, मामा जी, और तेज़, मेरी चूत को रगड़ दो!” मेरी चूत उनके लंड से रगड़ खा रही थी, और हर धक्के के साथ मेरा जिस्म थरथरा रहा था।
फिर वो नीचे लेट गए, और मैं उनके ऊपर बैठ गई। मैंने उनका लंड पकड़ा, अपनी चूत में डाला, और ज़ोर-ज़ोर से उछलने लगी। मेरी चूचियाँ हवा में उछल रही थीं, और मामा जी उन्हें पकड़कर मसल रहे थे। मेरे निप्पल उनके उंगलियों के बीच दब रहे थे, और मैं कामवासना में पूरी तरह डूब चुकी थी। मेरी चूत उनके लंड को चूस रही थी, और मैं हर उछाल के साथ सिसक रही थी, “मामा जी, कितना मज़ा आ रहा है!” करीब दो घंटे की इस चुदाई के बाद, मामा जी ने अपना गर्म, गाढ़ा माल मेरी चूत के अंदर छोड़ दिया। मेरी चूत उनके रस से भर गई, और जब उन्होंने अपना लंड निकाला, तो मैंने उसे अपने मुँह में लिया। मैंने उनके लंड पर लगा हुआ माल चाट लिया, मेरे होंठ उनके रस से चमक रहे थे।
रात भर हम एक-दूसरे को खुश करते रहे, कभी चूमते, कभी चाटते, कभी चोदते। सुबह होते ही मामा जी बोले, “प्रिया, जाओ, फ्रेश होकर आओ। तूने वादा किया था कि अपनी गांड भी मरवाएगी।” मैं बाथरूम में गई, ठंडे पानी से नहाई, और वापस आकर उनकी गोद में लेट गई। मैंने अपनी गांड उनके सामने खोल दी। उन्होंने अपने लंड को मेरी गांड के छेद पर रगड़ा, और धीरे-धीरे उसे अंदर डाला। दर्द के साथ मज़ा भी आ रहा था। वो मेरी चूचियों को दबाते हुए, मेरी गांड को चोद रहे थे, और मैं सिसक रही थी, “मामा जी, धीरे, पर मत रुकना!” करीब एक घंटे तक उन्होंने मेरी गांड और चूत को बारी-बारी से चोदा। मेरा जिस्म पसीने से तरबतर था, और मैं थककर चूर हो चुकी थी।
अगले दिन, दोपहर का समय था। सास और पति अभी तक नहीं लौटे थे, और मामा जी की आँखों में वही वासना की चमक थी। मैंने उनसे कहा, “मामा जी, घर में तो बहुत मज़ा लिया, अब कुछ अलग करें।” वो मुस्कुराए और बोले, “चल, गाँव के बाहर वाला पार्क चलते हैं, वहाँ कोई नहीं होगा।” मेरे दिल में एक सिहरन दौड़ गई—खुले में चुदाई का ख्याल ही मुझे गीला कर रहा था। हम गाँव के बाहर उस पार्क में पहुँचे, जहाँ घने पेड़ और झाड़ियाँ थीं। दोपहर की धूप थी, लेकिन पेड़ों की छाँव में ठंडक थी। पार्क सुनसान था, सिर्फ़ चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई दे रही थी।
मैंने एक पतली सी साड़ी पहनी थी, और अंदर सिर्फ़ ब्लाउज़, बिना ब्रा के। मामा जी ने मुझे एक बड़े पेड़ के पीछे खींच लिया। वो बोले, “प्रिया, यहाँ कोई नहीं आएगा, अपनी साड़ी उतार दे।” मैंने अपनी साड़ी को कमर तक खींच लिया, मेरी चूत और जाँघें नंगी थीं। मेरी चूचियाँ मेरे ब्लाउज़ में कसी हुई थीं, और मेरे निप्पल साफ़ दिख रहे थे। मामा जी ने अपना कुरता उतारा, और उनका लंड उनके पजामे में फिर से तन गया। मैंने उनकी ओर देखा और कहा, “मामा जी, जल्दी करो, कोई आ न जाए!” वो मेरे पास आए, मेरी चूचियों को ब्लाउज़ के ऊपर से मसलने लगे, और मेरे होंठों को चूसने लगे। उनकी जीभ मेरे मुँह में थी, और मैं उनकी साँसों की गर्मी महसूस कर रही थी।
उन्होंने मुझे पेड़ के तने से टिका दिया, मेरी साड़ी को और ऊपर उठाया, और मेरी चूत को अपनी उंगलियों से रगड़ने लगे। मैं सिसक रही थी, “मामा जी, यहाँ? अगर कोई देख लेगा?” वो बोले, “प्रिया, यही तो मज़ा है, डर और चुदाई का मिश्रण!” उन्होंने अपना लंड निकाला, जो फिर से मोटा और तना हुआ था। मैंने अपनी टाँगें फैलाईं, और वो मेरी चूत में अपना लंड रगड़ने लगे। मैं गीली थी, और उनका लंड आसानी से मेरी चूत में घुस गया। वो ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने लगे, मेरी चूचियों को ब्लाउज़ के ऊपर से मसलते हुए। मैं पेड़ से टिकी थी, मेरी साड़ी कमर पर लटक रही थी, और मेरी चूत उनके लंड से रगड़ खा रही थी। हवा मेरे नंगे जिस्म पर लग रही थी, और दूर से किसी के आने की आहट ने मेरे दिल की धड़कन बढ़ा दी।
मैंने सिसकते हुए कहा, “मामा जी, तेज़ करो, मुझे चोद दो!” वो और ज़ोर से धक्के मारने लगे, मेरी चूत को अपने लंड से रगड़ते हुए। मेरी चूचियाँ उछल रही थीं, और मामा जी मेरे निप्पल को ब्लाउज़ के ऊपर से काट रहे थे। मैं चीख रही थी, “आह, मामा जी, मेरी चूत फट जाएगी!” तभी हमें झाड़ियों में कुछ हलचल सुनाई दी। मेरे दिल की धड़कन रुक गई, लेकिन मामा जी नहीं रुके। वो बोले, “प्रिया, डर मत, बस मज़े ले!” उन्होंने मुझे घुमाया, मेरी गांड को पेड़ की ओर किया, और पीछे से मेरी चूत में लंड डाल दिया। मेरी साड़ी अब मेरी कमर पर लटक रही थी, और मेरी गोरी गांड हवा में थी। वो मेरी गांड पर थप्पड़ मारते हुए मुझे चोद रहे थे, और मैं सिसक रही थी, “मामा जी, और ज़ोर से, मुझे रगड़ दो!”
करीब 20 मिनट की इस जोखिम भरी चुदाई के बाद, मामा जी ने अपना माल मेरी चूत में छोड़ दिया। मेरा जिस्म पसीने और रस से तरबतर था। मैंने जल्दी से अपनी साड़ी ठीक की, और हम दोनों हाँफते हुए पेड़ के पीछे छिप गए। कोई नहीं आया, शायद वो सिर्फ़ हवा थी, लेकिन उस डर ने चुदाई का मज़ा दोगुना कर दिया।
उस दिन और अगले तीन दिन, मामा जी हर मौके पर मुझे चोदते रहे। कभी रसोई में, कभी बाथरूम में, कभी छत पर। हर बार वो मेरी चूत को अपने मोटे लंड से भर देते, और मैं सिसकियाँ भरती। उन चार दिनों में मैंने वो सुख पाया, जो मैंने अपनी शादी के दो साल में कभी नहीं पाया। मामा जी ने मेरी हवस की आग को पूरी तरह शांत कर दिया, और मेरे जिस्म को जन्नत का मज़ा दिया।