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मेनका की पहली चुदाई

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2017 की अप्रैल की बात है। दिल्ली की रोहिणी कॉलोनी, जहां मैं, सोनू, अपनी दूर की नानी के साथ रहता था। गर्मी अपने चरम पर थी—धूल भरी गलियां, बाहर बच्चों की चीख-पुकार, और पास की ढाबे से आती पराठों की महक। मैं तेईस साल का था, पतला-दुबला, और एक साइबर कैफे में जॉब करता था। दिनभर कंप्यूटर पर लोगों के फॉर्म भरना, आधार कार्ड बनाना, और शाम को थककर घर लौटना—यही मेरी जिंदगी थी। नानी का फ्लैट छोटा था—एक कमरा, एक तंग रसोई, और बाहर बरामदा जहां मैं रात को सिगरेट पीता था। जवानी की उम्र थी, और मन में कुछ न कुछ उथल-पुथल रहती थी।

मेरे फ्लैट के बगल में एक परिवार रहता था—भैया, भाभी, और उनकी तीन साल की बेटी महक। लेकिन मेरी नजरें हमेशा मेनका पर टिकती थीं। मेनका, बीस साल की, पांच फुट की, पतली कमर, और चूचियां जो उसके टाइट कुर्ते से बाहर झांकती थीं। वो अक्सर मेरे साइबर कैफे के सामने से गुजरती, और उसकी हल्की सी मुस्कान मेरे दिल में आग लगा देती। एक दिन हिम्मत करके मैंने उसे रोका। “हाय, मैं सोनू,” मैंने कहा, और अपना नंबर दे दिया। उसने हंसकर नंबर ले लिया, लेकिन बाद में मुझे पता चला कि वो मेरे छोटे यार की पुरानी गर्लफ्रेंड थी। मैंने सोचा, छोड़ो, इससे क्या। मैंने उससे बात करना बंद कर दिया।

लेकिन कहते हैं न, सच्चा प्यार वापस लौटता है। कुछ दिन बाद, दोपहर को मैं खाना खाने घर आया। नानी बाहर गई थीं, और मैं अकेला था। मैं बरामदे में उदास गाने सुन रहा था—कोई पुराना हिमेश का गाना। तभी मेनका बगल वाली भाभी के फ्लैट से निकली। उसने मुझे देखा और टोंट मारा, “क्या हुआ, ब्रेकअप हो गया?” मैंने मजाक में कहा, “हां, तू तो जानती ही है।” वो हंसने लगी और पास आ गई। मैं बर्तन धो रहा था, और उसने चिढ़ाया, “बेचारा, बर्तन भी खुद धोता है।” मैंने कहा, “इतना तरस आ रहा है तो तू धो दे।” उसने सचमुच मेरे सारे बर्तन धो दिए। उसकी उंगलियां पानी में भीग रही थीं, और मैं उसे देखता रह गया।

उस शाम मैंने अपने दोस्त रोहित को ये बात बताई। रोहित ने कहा, “अबे, मौका है। कल अगर वो फिर आए, तो हिम्मत कर और नंबर दे।” मैंने वैसा ही किया। अगले दिन, 5 अप्रैल 2017 को, मेनका दोपहर में भाभी के फ्लैट में थी। मैंने उसे बुलाया और अपना नंबर दिया। उसने मुस्कुराते हुए कहा, “ठीक है, सोनू। मैं कॉल करूंगी।” उसी शाम उसने मुझे मैसेज किया, और हमारी बातें शुरू हो गईं। रोज घंटों फोन पर बातें—वो अपनी जिंदगी की छोटी-छोटी बातें बताती, और मैं उसकी हंसी में खो जाता। धीरे-धीरे हम दोपहर का खाना साथ खाने लगे। नानी को लगता था कि वो बस पड़ोस की लड़की है, जो मदद के लिए आती है।

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7 अप्रैल को मैंने पहली बार उसे चूमा। हम मेरे कमरे में थे, नानी बाजार गई थीं। उसने मुझसे पूछा, “सोनू, सच बता, ये सब टाइमपास है, या तू मुझसे सचमुच प्यार करता है?” उसकी आंखों में डर था। “तू उस यार जैसा तो नहीं, जो मुझे इस्तेमाल करके छोड़ देगा?” मैंने उसका हाथ पकड़ा और कहा, “मेनका, तू मेरे लिए सबकुछ है।” उसने मुझे गले लगाया, और हमारी होंठें मिल गईं। उसका चुम्बन गर्म था, और उसकी सांसें मेरे चेहरे पर लग रही थीं। मेरा जिस्म कांप रहा था।

11 अप्रैल को मैंने उसे दोपहर में खाने के लिए बुलाया। नानी उस दिन पूरे दिन के लिए रिश्तेदार के घर गई थीं। मैंने मेनका के लिए पराठे बनाए—हालांकि वो थोड़े जले हुए थे। वो हंसते हुए खा रही थी, और मैं उसे देख रहा था। खाने के बाद मैंने कहा, “मेनका, एक सरप्राइज है।” मैंने उसे आंखें बंद करने को कहा। मेरे पास मां की पुरानी सिंदूर की डिब्बी थी। मैंने उसकी मांग में हल्का सा सिंदूर लगाया। वो हक्की-बक्की रह गई। “ये क्या, सोनू?” उसने पूछा। मैंने कहा, “अब तुझे यकीन है ना कि मैं तुझसे कितना प्यार करता हूं?” उसने मुझे इतनी जोर से गले लगाया कि मेरी सांस रुक गई।

हम एक-दूसरे को चूमने लगे। उसकी होंठें नरम थीं, और उसका स्वाद हल्का नमकीन। मैं उसकी गर्दन पर चूमा, और वो सिहर उठी। उसकी सांसें तेज हो गईं। “सोनू…” उसने धीरे से कहा। मैंने उसका कुर्ता ऊपर किया। उसकी गोरी त्वचा चमक रही थी। मैंने उसकी ब्रा का हुक खोला, और उसकी चूचियां मेरे सामने थीं—गोल, टाइट, और निप्पल हल्के भूरे। उसकी बायीं चूची पर एक छोटा सा तिल था, जो मुझे दीवाना बना रहा था। मैंने उस तिल को चूमा, फिर उसकी चूची को मुंह में लिया। वो सिसकारी ले रही थी, “हाय… सोनू…”

मैंने उसकी जींस उतारी। उसकी पैंटी गीली थी, और उसकी चूत की हल्की महक मेरे होश उड़ा रही थी। “सोनू, मैं तुझसे बहुत प्यार करती हूं,” उसने कहा। “मुझे आज तेरा सब चाहिए।” मैं घबरा गया। “मेनका, मैंने कभी… मतलब, ये सब…” उसने मेरी बात काटी, “मैं भी पहली बार, सोनू। तू मेरे साथ है, बस यही काफी है।” उसने मुझे अपने ऊपर खींचा। मैंने उसकी पैंटी उतारी। उसकी चूत गुलाबी और गीली थी, जैसे कोई फूल जो बारिश में भीग गया हो।

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मैंने उसकी चूत को चाटना शुरू किया। पहले तो मुझे अजीब लगा—हल्का नमकीन स्वाद, गर्मी। लेकिन उसकी सिसकारियां सुनकर मैं रुक नहीं सका। मैंने अपनी जीभ अंदर डाली, और वो तड़प उठी, “सोनू… हाय… और कर…” उसने मेरा लौड़ा पकड़ा। मेरा पांच इंच का लौड़ा पहले से सख्त था। उसने उसे मुंह में लिया और चूसने लगी। उसकी गर्म जीभ मेरे लौड़े के टोपे पर घूम रही थी। मैं सिसकारी ले रहा था, “मेनका… आह… ये क्या…” मेरे जिस्म में बिजली दौड़ रही थी। अचानक मुझे लगा कि कुछ निकलने वाला है। “मेनका, रुक… कुछ आ रहा है…” लेकिन उसने नहीं रोका। मेरा वीर्य उसके मुंह में निकल गया। मैं शर्म से पानी-पानी हो गया। “छी, मेनका, तूने ये क्या पिया?”

वो हंसने लगी। “अरे, बुद्धू, ये सूसू नहीं, तेरा प्यार है।” उसने मेरे गाल पर चूमा और कहा, “अब मेरी बारी।” उसने मुझे अपने ऊपर खींचा। मैं उसकी चूचियों को चूसने लगा, फिर उसकी नाभि पर जीभ फेरी। वो सिहर रही थी, “सोनू… तू कहां से सीखा ये सब…” मैं उसकी चूत पर पहुंचा। मैंने उसकी चूत को फिर से चाटा, इस बार और जोर से। उसकी सिसकारियां तेज हो गईं, “हाय… सोनू… बस…” उसका जिस्म कांपने लगा, और उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया। उसकी सांसें तेज थीं, और उसका चेहरा लाल हो गया था।

“सोनू, अब डाल दे,” उसने कहा। मैं घबरा गया। मेरा लौड़ा फिर खड़ा था, लेकिन मुझे डर लग रहा था। “मेनका, तुझे दर्द होगा…” उसने मेरी आंखों में देखा और कहा, “मुझे तेरा दर्द चाहिए, सोनू।” उसने अपनी चूत को उंगलियों से खोला। मैंने अपना लौड़ा उसकी चूत पर टिकाया। जैसे ही मैंने धक्का मारा, उसे दर्द हुआ। “आह… धीरे…” उसने कहा। मैं रुक गया। मेरे लौड़े में भी दर्द हो रहा था। मैंने फिर से धक्का मारा, और इस बार मेरा लौड़ा उसकी चूत में आधा घुस गया। उसकी चूत टाइट थी, और उसकी गर्मी मुझे पागल कर रही थी। उसने अपनी कमर उठाई, और मैंने एक और धक्का मारा। मेरा पूरा लौड़ा उसकी चूत में था।

उसके चेहरे पर दर्द और प्यार दोनों दिख रहे थे। “सोनू… रुक मत…” उसने कहा। मैं धीरे-धीरे धक्के मारने लगा। उसकी सिसकारियां कमरे में गूंज रही थीं, “आह… सोनू… और तेज…” मैंने रफ्तार बढ़ाई। उसकी चूचियां मेरे धक्कों के साथ हिल रही थीं। बेड खटखट की आवाज कर रहा था। मैंने उसे चूमते हुए उसकी चूची को दबाया। उसकी चूत गीली थी, और हर धक्के के साथ उसका पानी मेरे लौड़े को भिगो रहा था।

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मैंने उसे घोड़ी बनाया। उसकी गोल गांड मेरे सामने थी। मैंने पीछे से उसकी चूत में लौड़ा डाला। उसकी गांड मेरे धक्कों के साथ थरथर रही थी। “सोनू… हाय… और जोर से…” वो चीख रही थी। मैंने उसकी कमर पकड़ी और तेजी से चोदने लगा। गर्मी के बावजूद हम दोनों पसीने से तर थे। करीब पंद्रह मिनट बाद मेरा निकलने वाला था। “मेनका, कहां?” मैंने पूछा। “अंदर, सोनू… मुझे तेरा सब चाहिए…” उसने कहा। मैंने एक जोरदार धक्का मारा, और मेरा वीर्य उसकी चूत में उड़ेल दिया। वो मेरे नीचे कांप रही थी।

हम एक-दूसरे से लिपट गए। उसकी सांसें मेरे गाल पर लग रही थीं। “सोनू, मैं तुझसे बहुत प्यार करती हूं,” उसने कहा। मैंने उसे चूमा और कहा, “मैं भी, मेनका।” थोड़ी देर बाद मेरा लौड़ा फिर खड़ा हुआ। “एक बार और?” मैंने पूछा। उसने हंसकर कहा, “तू मेरा राजा है। जितना चाहे उतना ले।” इस बार मैंने उसे बेड के किनारे पर लिटाया और उसकी टांगें अपने कंधों पर रखीं। उसकी चूत मेरे वीर्य से चिपचिपी थी। मैंने लौड़ा डाला और चोदने लगा। वो सिसकार रही थी, “सोनू… तू वही है… हाय…” उसकी आवाज में प्यार और दर्द दोनों थे।

उस दिन हमने तीन बार चुदाई की। हर बार नया जोश, नया अहसास। आखिरी बार के बाद वो मेरे सीने पर सिर रखकर लेट गई। “सोनू, आज मैं पूरी तरह तेरी हो गई,” उसने कहा। मैं चुप रहा। मेरे मन में खुशी थी, लेकिन एक डर भी—क्या ये प्यार हमेशा रहेगा? लेकिन उस पल में, मेनका की गर्मी और उसकी सांसें ही मेरी दुनिया थीं।

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