Bhai behen sex story – Deepthroat sex story: मैं बबीता हूँ, उन्नीस साल की एक ऐसी लड़की जो अपने भाई कार्तिक के साथ एक गहरे और निषिद्ध रिश्ते में बंधी हुई है, जहाँ कार्तिक इक्कीस साल का है और हम दोनों बचपन से ही एक-दूसरे के इतने करीब रहे हैं कि जैसे दो जिस्म एक जान बन गए हों, क्योंकि माँ की मौत के बाद पापा की दुनिया रेलवे की ड्यूटी में सिमट गई थी और हम दोनों ने एक-दूसरे में वो सहारा पाया जो कभी-कभी सीमाएँ लाँघ जाता, खासकर कार्तिक के लिए जो माँ को पापा की मार से टूटते हुए जाते देखा था और वो दर्द उसके दिल में इतना गहरा बैठ गया था कि जैसे कोई काँटा जो निकलता नहीं बल्कि और गहरा चुभता जाता है, जबकि मैं छोटी थी लेकिन कार्तिक की आँखों में वो उदासी हमेशा नजर आती थी और हमारी रातें कभी-कभी उसकी छुअन से भरी होतीं जब हम एक ही कमरे में सोते, एक ही बिस्तर पर, गर्म चादर के नीचे हमारे शरीर की गर्माहट मिलती और हवा में वो हल्की सी खुशबू फैलती जो बचपन की मासूमियत की लगती लेकिन अब बड़ी होकर कुछ और ही महसूस होती, क्योंकि मैं जानती थी कि वो सोते हुए मेरे स्तनों को छूता, मेरी योनि पर हाथ फेरता, हल्के से, जैसे सपने में खोया हो और उसकी उँगलियों की गर्माहट मेरी त्वचा पर ऐसी लगती जैसे कोई गर्म हवा का झोंका, लेकिन मैं चुप रहती क्योंकि कहीं अंदर से वो छुअन मुझे अच्छी लगती, जैसे बचपन का कोई राज जो अब बड़ा हो रहा था और मेरे शरीर में एक अजीब सी सिहरन पैदा करता।
स्कूल के दिनों में मेरा बॉयफ्रेंड राघव आया, बारहवीं का वो हॉट और स्मार्ट लड़का जिसकी आँखें मुझे घूरतीं और दिल धड़कातीं, जैसे कोई आग जो धीरे-धीरे जल रही हो, और उसने प्रपोज किया तो मैं उसके प्यार में फँस गई, जैसे कोई जाल जो मीठा था और जिसमें फँसना अच्छा लग रहा था, क्योंकि हम कोचिंग साथ जाते और वो शुरू से ही टचिंग में आगे था, उसकी उँगलियाँ मेरी कमर पर सरकतीं जो मेरी त्वचा को गर्म कर देतीं और मैं सिहर जाती, जबकि डेटिंग के एक हफ्ते में ही हमने किस किया, गहरा, जीभ मिलाकर, उसकी साँस मेरी साँस में घुलती और उसके मुँह का स्वाद हल्का नमकीन लगता, साथ ही कोचिंग क्लास में सर पढ़ाते रहते और वो मेरी पैंटी में हाथ डाल देता, उँगलियाँ मेरी क्लिट पर रगड़ता जो मुझे इतनी गीली कर देता कि मैं दाँत काटकर सिसकारियाँ दबाती, “उफ्फ़… राघव… क्लास में…” लेकिन वो मुस्कुराता, “शश… तेरी चूत कितनी गीली हो रही है” कहकर और तेज़ करता, जबकि धीरे-धीरे वो मुझे सेक्स के लिए मनाने लगा, उसकी बातें कान में फुसफुसातीं जो मेरे कानों में गर्म हवा की तरह लगतीं, “बबीता, बस एक बार… मैं तुझे स्वर्ग दिखाऊँगा” और मैं मान गई लेकिन हमने सिर्फ ओरल किया—ब्लोजॉब, लिकिंग, सब कुछ, वो पल उत्तेजक थे, होटल रूम की मद्धम रोशनी में उसका लंड मेरे मुँह में, नमकीन स्वाद जो मेरी जीभ पर फैलता और उसकी जीभ मेरी योनि पर जो मुझे ऐसी सिहरन देती कि मेरी कमर उचक जाती, लेकिन घर की दीवारों से बाहर, जैसे कोई चोरी का सुख जो रोमांच से भरा था और हवा में वो मिश्रित खुशबू फैलती पसीने और उत्तेजना की।
फिर एक दिन कार्तिक को पता चल गया, क्योंकि वो राघव का दोस्त निकला और राघव ने होटल रूम का वीडियो शेयर कर दिया—मेरा ब्लोजॉब देते हुए, मेरे होंठ उसके लंड पर सरकते जो कैमरे में कैद हो गया था, और कार्तिक ने मुझे पकड़ा, हाथ पकड़कर कहा, “बबीता, मैं जानता हूँ तू राघव के लंड को चूस रही थी होटल में… वीडियो मेरे पास है, पापा को मत बताना, बस मेरी बात मान” जबकि उसकी आँखों में डर नहीं बल्कि प्यार था, वो गहरा प्यार जो ब्लैकमेल की आड़ में छिपा था और उसकी आवाज में एक कंपन था जो मेरे दिल को छू जाता, फिर वो बोला, “तू मेरी स्लेव बन जा… मैं तुझे रात-दिन चोदूँगा, लेकिन प्यार से, कभी दुख नहीं दूँगा” और मैं डर गई लेकिन कहीं अंदर से एक रोमांच भी था, जैसे बचपन की वो छुअन अब हकीकत बन रही हो और मेरे शरीर में वो ही सिहरन जाग रही थी, जबकि हम साथ सोते थे तो वो रात वैसी ही थी लेकिन अब मैं पूरी नंगी थी उसके बगल में, हमारी त्वचा की गर्माहट मिलती और हवा में उत्तेजना की महक फैल रही जो मर्दाना पसीने और मेरी योनि की हल्की नमी की मिली-जुली थी।
पहली रात, जैसे ही मैं नंगी बिस्तर पर लेटी, कार्तिक की साँसें तेज़ हो गईं और उसकी उँगलियाँ मेरी जाँघों पर सरकतीं, धीरे-धीरे ऊपर की ओर, मेरी योनि की गर्माहट को छूने से पहले रुक जातीं जो मुझे इतना तड़पातीं कि मैं अपनी साँसें रोक लेती, जबकि मैं महसूस कर रही थी अपनी चूत में वो हल्की सी नमी जो बचपन की उन रातों की याद दिला रही थी जब वो सोते हुए छूता था—अब वो छुअन जानबूझकर थी और मेरे मन में एक अजीब सी उत्तेजना जाग रही थी, जैसे गलत लेकिन मीठा पाप जो मेरे पूरे शरीर को गर्म कर रहा था, साथ ही हवा में उसकी मर्दाना खुशबू फैल रही थी, पसीने और लोशन की मिली-जुली जो मेरी नाक में चढ़ती और मुझे और उत्तेजित करती, आखिरकार उसकी उँगलियाँ मेरी योनि पर पहुँचीं, हल्के से रगड़तीं जो मेरी क्लिट को छूकर ऐसी आग लगाती कि मैं सिसक उठी, “आह्ह… कार्तिक… धीरे… उफ्फ़…” और मेरी कमर खुद-ब-खुद उचक गई, जैसे शरीर बागी हो रहा हो और मेरी योनि से वो चिपचिपी नमी रिस रही थी जो जाँघों को गीला कर रही थी, जबकि वो मुस्कुराया, अपनी साँस मेरे कान में फूँकते हुए जो गर्म हवा की तरह लगती, “बबीता, तू कितनी मुलायम है… तेरी चूत की ये गर्मी… मैं तुझे रात भर ऐसे ही तड़पाऊँगा” और उसकी उँगलियाँ अंदर सरकतीं, धीरे-धीरे, मेरी दीवारों को सहलातीं जो मुझे ऐसी सिहरन देतीं कि मेरी सिसकारियाँ कमरे में गूँजतीं, साथ ही दूसरी रात वैसी ही लेकिन अब वो मेरे स्तनों को दबाता, निप्पलों को मसलता जो दर्द और सुख का मिश्रण देता और मैं कराहती, “ओह्ह… कार्तिक… स्सी… चूस उन्हें…” लेकिन वो तड़पाता, सिर्फ छूता, जैसे खेल खेल रहा हो और उसकी उँगलियों की खुरदुरी बनावट मेरी नर्म त्वचा पर रगड़ती जो मुझे और गर्म कर देती।
तीसरी रात, कार्तिक ने अपनी पैंट उतारी, उसका लंड आधा खड़ा, छोटा लेकिन मोटा, मेरी आँखों के सामने लहराया जो मुझे देखकर और सख्त होता नजर आया, जबकि मैं हिचकिचाई लेकिन उसकी आँखों में वो मासूम लेकिन भूखी नजर थी, जैसे माँ की याद में डूबा हो और उसकी आँखों की चमक मुझे खींच रही थी, फिर “बबीता, मुझे ब्लोजॉब दे… धीरे से शुरू कर” वो फुसफुसाया, उसकी आवाज में कमांड और प्यार का मिश्रण जो मेरे कानों में मधुर लगता लेकिन उत्तेजक भी, जबकि मैं घुटनों पर बैठी, पहले जीभ से टिप को छुआ—नमकीन प्री-कम का स्वाद मुँह में फैला जो हल्का कड़वा लेकिन addictive लगता और उसकी मस्की खुशबू नाक में चढ़ी जो पसीने और मर्दानगी की मिली-जुली थी, मेरे मन में विचार घूमे: “ये गलत है, लेकिन उसका लंड इतना गर्म… मैं इसे चूसना चाहती हूँ” और धीरे-धीरे मैंने मुँह में लिया, होंठों से रगड़ती जो उसके लंड की नसों को महसूस कराती और वो सिसकारा, “ओह्ह… बबीता… ऐसे ही… आह्ह…” जबकि उसने मेरे बाल पकड़े, धीरे-धीरे डीप थ्रोट किया, मेरा गला दबाया और मैं गैग हुई, लार बाहर रिसी जो उसके लंड को चिपचिपा कर देती और डेढ़ घंटे तक चला—कभी तेज़, कभी धीमा, मेरी आँखें पानी से भर आईं लेकिन अंदर एक आग लग रही थी, जैसे उसकी स्लेव बनना मुझे उत्तेजित कर रहा हो और “तू मेरी रंडी है अब… चूस जोर से… आह्ह…” वो कराहा, जबकि मैं तेज़ हुई, उसके कूल्हों को पकड़कर जो मजबूत और गर्म लगते, ग्ग्ग्ग… ग्ग्ग्ग… गी… गी… गी… गों… गों… गोग की आवाजें मेरे मुँह से निकलतीं जैसे गला भरा हो और लंड अंदर-बाहर होता।
धीरे-धीरे हम आगे बढ़े, वो मुझे चोदने लगा और पहली बार उसका मोटा लिंग अंदर गया तो दर्द की लहर दौड़ी लेकिन सुख की आग में घुल गई जो मेरी योनि की दीवारों को फैलाती और मुझे भर देती, “उफ्फ़… कार्तिक… धीरे… स्सी…” मैं चीखी लेकिन वो रुकता नहीं, “बबीता, तू मेरी है… मैं तुझे चोदूँगा हर रात… मादरचोद, कितनी टाइट है तेरी चूत…” उसकी गालियाँ उत्तेजना बढ़ातीं, breathy और desperate जो मेरी साँसों के साथ मिलतीं और हमारा सेक्स रफ था लेकिन प्यार से भरा, जैसे ट्रॉमा का इलाज जो उसके स्पर्श में छिपा था, जबकि मेरे प्रीबोर्ड्स चल रहे थे, तनाव की लहरें दिमाग में घूमतीं लेकिन कार्तिक आता, पीछे से स्तनों को दबाता जो मेरे निप्पलों को सख्त कर देता, थप्पड़ मारता, “पढ़ रही है? अब पढ़… लेकिन मेरी उँगलियाँ तेरी चूत में…” और मैं हँस पड़ती, वो थप्पड़ पापा की याद दिलाते लेकिन अब दर्द सुख में बदल जाता, जैसे मैं उस ट्रॉमा को चुदाई से जीत रही हूँ और उसकी हथेली की जलन मेरी त्वचा पर लंबे समय तक रहती, साथ ही पापा की नाइट ड्यूटी में हम दिन-रात साथ होते, वो मेरी किताब उठाता, रोल करके मेरी गांड पर मारता जो तेज़ आवाज पैदा करता और “सही जवाब दे तो चोदूँगा” कहता, जबकि मैं तड़पती, उत्तेजना से पढ़ाई भूल जाती और मेरी योनि की नमी किताब की किनारों पर लग जाती।
बोर्ड एग्जाम्स के दौरान, सुबह-सुबह वो ब्लोजॉब माँगता, “बबीता, मुझे एनर्जी दे… तेरे मुँह की गर्मी से दिन अच्छा जाएगा” और मैं थकी होती लेकिन उसका लंड देखकर चूत में सनसनी होती जो पूरे शरीर में फैलती, जबकि एग्जाम से लौटकर, तनाव से भरी, वो वियाग्रा लेकर आता—एक घंटे की चुदाई, उसके धक्के इतने जोरदार कि बिस्तर हिलता और कमरे में थप-थप की आवाज गूँजती, “आह्ह… ओह्ह… कार्तिक… चोद मुझे जोर से… हाय… उफ्फ़… मेरी चूत फाड़ दे…” मैं कराहती, मेरा शरीर काँपता, पसीना हम दोनों को चिपका देता जो नमकीन स्वाद देता और उसकी गंध मेरे अंदर समाती जो मस्की और उत्तेजक थी, जबकि उसकी स्टैमिना मुझे थका देती लेकिन हर ऑर्गेज्म में एग्जाम का स्ट्रेस पिघल जाता, जैसे सेक्स मेरा स्ट्रेस रिलीवर बन गया हो और वो तरंगें मेरे शरीर में लंबे समय तक रहतीं, आह इह्ह ओह्ह ओह ! आह.. ह्ह्ह.. इह्ह.. ..! की सिसकारियाँ मेरे मुँह से निकलतीं जैसे हर धक्के पर शरीर झनझना रहा हो।
शुरू में मुझे गलत लगता लेकिन धीरे-धीरे आदत पड़ गई और वो आदत अब प्यार बन गई जो गहरा और भावुक था, क्योंकि हम दोनों माँ की कमी महसूस करते थे और कार्तिक मुझे माँ की तरह देखता, “बबीता, तू मेरी माँ है, मेरी प्रेमिका… तेरी चूत में डूबकर मैं माँ की याद भूल जाता हूँ” वो कहता और मैं पिघल जाती, “हाँ कार्तिक, चोद मुझे… तेरी माँ बनकर” जबकि हमारा प्यार गहरा हो गया, जैसे ट्रॉमा से निकला कोई बंधन जो हमें जोड़ता और हवा में वो भावनाओं की खुशबू फैलती, मैं जयपुर कॉलेज चली गई, वहाँ थोड़ी आजादी मिली लेकिन घर लौटते ही वो मुझे बाहों में भर लेता, “बबीता, आ जा… मैंने वियाग्रा ली है… आज तुझे ब्रूटल चोदूँगा” वो कहता और मैं मुस्कुराती, “कार्तिक, तू मेरा मादरचोद है… चोद मुझे जोर से” जबकि हमारी रातें गर्म होतीं, वो मुझे पीटता नहीं लेकिन रफ टच करता—थप्पड़, बाल खींचना, सब उत्तेजना के लिए जो मेरी त्वचा पर जलन छोड़ता और मैं наслаждалась, जैसे वो थप्पड़ माँ की यादों को मिटाते और मेरी सिसकारियाँ कमरे में भर जातीं, आह ह ह ह ह्हीईई आअह्ह्ह्ह की आवाजें निकलतीं जैसे शरीर की हर नस में आग लगी हो।
एक रात, जब पापा ड्यूटी पर थे, कार्तिक ने मुझे बिस्तर पर लिटाया और उसकी आँखें नम थीं, “बबीता, माँ को पापा ने मारा था… मैं डरता था… लेकिन तू मेरी जिंदगी है” जबकि मैंने उसके गाल पर हाथ रखा जो गर्म और नर्म लगता, “कार्तिक, मैं तेरी हूँ… हमेशा” और वो मुझे चूमने लगा, होंठों से शुरू करके गर्दन, स्तनों तक, उसकी जीभ मेरे निप्पलों पर घूमी जो गीली और गर्म थी, “आह्ह… कितने मीठे हैं तेरे चुचे… बबीता…” मैं सिसकारी, “ओह्ह… चूस उन्हें… हाय…” जबकि उसने मेरी टाँगें फैलाईं, योनि पर मुँह लगाया, उसकी जीभ अंदर-बाहर जो मेरी योनि की दीवारों को चाटती और मुझे गीला कर देती, मैं कमर उचकाती, “उफ्फ़… कार्तिक… आआह्ह… चाट मुझे… स्सी…” वो चाटता रहा, मेरी खुशबू सूँघता जो मीठी और मस्की थी, “तेरी चूत की महक… मादरचोद, मुझे पागल कर देती है”, आह्ह.. ह्ह.. आऊ.. ऊऊ.. ऊउइ ..ऊई ..उईईई.. की सिसकारियाँ निकलतीं जैसे जीभ की हर चाट पर क्लिट झनझना रही हो।
फिर वो ऊपर आया, अपना मोटा लिंग मेरी योनि पर रगड़ा जो गर्म और सख्त लगता, “बबीता, तैयार है?” मैंने सिर हिलाया, “हाँ… घुसा दे… चोद मुझे जोर से” जबकि वो अंदर घुसा, दर्द और सुख का मिश्रण जो मुझे भर देता, “आह्ह… कितना मोटा है तेरा… उफ्फ़…” मैं कराही और वो धक्के मारने लगा, “रंडी साली… ले मेरा मोटा लंड… तेरी चूत को फाड़ दूँगा… आह्ह… जोर से कमर हिला… चोद रहा हूँ तुझे, मेरी बहन… उफ्फ़…” उसकी गालियाँ breathy थीं, जैसे साँस फूल रही हो और मैं जवाब देती, “हाँ… मादरचोद… चोद जोर से… तेरी रंडी हूँ मैं” जबकि हमारा पसीना मिला, शरीर एक-दूसरे से चिपके जो चिपचिपे और गर्म थे, वो स्टैमिना से भरा था, घंटे भर चोदता रहा, पोजिशन बदलते—डॉगी, मिशनरी, मैं ऊपर और क्लाइमैक्स पर वो बुदबुदाता, “माँ… आह्ह…” और मैं कहती, “हाँ, मैं तेरी माँ हूँ… चोद मुझे” जो हमें और करीब लाता, जबकि वो झड़ गया और मैं भी क्लाइमैक्स पर पहुँची, “हाय… कार्तिक… आआह्ह… मैं गई…” और वो तरंगें पूरे शरीर में फैलतीं।
कॉलेज में मैं अकेली महसूस करती लेकिन कार्तिक का कॉल आता, “बबीता, घर आ… मैं तेरे बिना नहीं रह सकता” वो इमोशनल ब्लैकमेल करता लेकिन प्यार से जो मेरे दिल को छूता और मैं लौटती, हमारी रातें फिर वही, घर लौटकर हम पुराने अटारी में जाते, माँ की फोटो के सामने, वो मुझे चोदता जैसे माँ को जीवित कर रहा हो और वो जगह की धूल भरी खुशबू मिलती उत्तेजना से, अब हम दोनों एक-दूसरे से प्यार करते हैं, वो ट्रॉमा से निकल रहा है और मैं में माँ का प्यार ढूँढता है, मैं उसकी हूँ, पूरी तरह, हमारी कहानी निषिद्ध है लेकिन हमारी दुनिया में परफेक्ट।
कार्तिक ने मुझे अलग नहीं होने दिया, कॉलेज में भी वो आता लेकिन अब मैं खुश हूँ, हमारी अंतरंगता ने हमें जोड़ा, एक शाम जब मैं घर लौटी, वो मुझे दरवाजे पर ही चूमने लगा जो गहरा और उत्तेजक था, “बबीता, आज तुझे दिन भर चोदूँगा” मैं हँसी, “कार्तिक, तू मेरा जानवर है… आ…” हम कमरे में गए, कपड़े उतारे, उसकी बॉडी मजबूत थी, मेरी नरम, वो मेरे पूरे शरीर को चूमता, जीभ से चाटता जो गीली ट्रेल छोड़ती, “तेरी स्किन… कितनी सॉफ्ट… आह्ह…” मैं उसके लिंग को सहलाती, “तेरा लंड… मोटा और हार्ड… उफ्फ़…” फिर ब्लोजॉब, डीप थ्रोट, वो मेरे मुँह में झड़ता, “रंडी… पी ले मेरा माल…” मैं निगलती, स्वाद मीठा-नमकीन जो addictive लगता, फिर चुदाई, वो वियाग्रा लेकर आया, “आज ब्रूटल…” लेकिन प्यार से, धक्के जोरदार, मैं चीखती, “आह्ह… चोद… जोर से… मादरचोद…” हमारा पसीना, साँसें, सब मिला, क्लाइमैक्स पर हम एक-दूसरे को गले लगाते, “आई लव यू, बबीता…” “आई लव यू, कार्तिक…” अब ये आदत है, प्यार है, हमारी दुनिया अलग है लेकिन हमारी।