नोकरानी बन कर चुदी

5
(9998)

Nokarani ki boss se chudai मैं अब २८ साल की हूँ। मेरे पति को गुजरे हुए एक साल हो चुका था। वो एक हादसे में चल बसे थे। मैं एमए पास हूँ। एक प्राइवेट स्कूल में टीचर थी, लेकिन सैलरी बहुत कम मिलती थी।

उन्हीं दिनों मेरी एक सहेली ने बताया कि सेठ विनय के घर में घर की देखभाल के लिए एक औरत की जरूरत है। मैं जाकर उनसे मिल लूँ, वो अच्छी तनख्वाह देंगे। बस उन्हें ये मत बताना कि ज्यादा पढ़ी-लिखी हूँ।

मैं सेठ विनय के घर सुबह ७.३० बजे ही पहुँच गई। वो उस वक्त घर पर ही थे। मैंने घंटी बजाई तो उन्होंने मुझे अंदर बुला लिया। मैंने उन्हें बताया कि उनके यहाँ नौकरी के लिए आई हूँ।

उन्होंने मुझे ध्यान से देखा और कुछ सवाल पूछे… फिर बोले, “कितना वेतन लोगी?”

“जी… जहाँ मैं काम करती थी वहाँ मुझे २५०० रुपये मिलते थे!”

“अभी ३००० दूँगा… फिर काम देखकर बढ़ा दूँगा… तुम्हें खाना और रहना फ्री है… जाओ पीछे सर्वेंट क्वार्टर है।” उन्होंने चाबी देते हुए कहा, “सफाई कर लेना… आज से ही काम पर आ जाओ!”

मेरी तो जैसे किस्मत खुल गई। किराए के मकान का खर्चा बच गया और खाना मुफ्त! फिर ३००० रुपये तनख्वाह। मैं तुरंत चाबी लेकर पीछे गई, ताला खोला तो शानदार दो कमरों का मकान, सभी सुविधाएँ मौजूद थीं। मैंने जल्दी से सफाई की और घर आकर जो थोड़ा-बहुत सामान था, दिन में शिफ्ट कर लिया। मेरा ५ साल का एक लड़का और मैं… और इतना बड़ा घर!

सेठ जी काम पर जा चुके थे। पर घर में ताला था। शाम को जब सेठ जी आए तो मैं उनके पास गई। उन्होंने सारा काम बता दिया। विनय सेठ कोई ३५ साल के थे। और बड़े मीठे स्वभाव के थे।

मैंने झटपट शाम का खाना बनाया… मेरा खाना क्वार्टर में ही अलग बनता था। उन्होंने हिदायत दी कि मुझे हमेशा नहा-धोकर साफ रहना है… साफ कपड़े… बाल बंधे हुए… एकदम साफ-सुथरी… वगैरह। उन्होंने पहले से तैयार नए कपड़े मुझे दे दिए।

विनय बहुत मोटे इंसान थे। कहते हैं कि उनकी बीवी उनके मोटापे के कारण छोड़कर भाग गई थी। विनय का एक दोस्त जो उससे अमीर था और दिखता भी हीरो की तरह था… उसकी रखैल बनकर अलग मकान में रहती थी। विनय सेठ एकदम अकेले थे।

विनय सेठ को अब मैं विनय कहकर ही संबोधित करूँगी। विनय को जिम जाते हुए २ महीने हो चुके थे। उनका मोटापा अब काफी कम हो चुका था। शरीर गठीला हो गया था। मैं भी अब उनकी ओर आकर्षित होने लगी थी। औरत को मर्द की जरूरत होती है, ये मैं जानती थी। मेरा ज्यादातर समय खाली रहने में ही गुजरता था। खाली दिमाग शैतान का घर होता है।

मैं भी भरपूर जवान थी। मेरे स्तन भी पुष्ट थे और पूरा उभार लिए हुए थे। मेरा जिस्म अब कसमसाता था। रह-रहकर मेरे उरोज कसक जाते थे। रह-रहकर अंगड़ाइयाँ आने लगती थीं, कपड़े तंग से लगते थे। मेरे आगे और पीछे के निचले भाग भी अब शांत होने के लिए कुछ मांगने लगे थे।

एक बार रात को लगभग १० बजे मुझे ख्याल आया कि मुख्य गेट खुला ही रह गया है। सोने से पहले मैं जब बाहर निकली तो मैंने देखा कि विनय की खिड़की थोड़ी-सी खुली रह गई थी। मैंने यूँ ही अंदर झाँका तो मेरे बदन में जैसे चींटियाँ रेंगने लगीं।

विनय बिलकुल नंगा खड़ा था और कुछ देखकर मुठ मार रहा था। मैं वहीं खड़ी रह गई। मेरा दिल धक-धक करने लगा था। शायद वो कोई ब्लू फिल्म देख रहा था और मुठ मार रहा था। मेरा हाथ बरबस ही चूत पर चला गया और दबाने लगी। मेरी चूत गीली होने लगी… जहाँ मैं चूत दबा रही थी वहाँ पेटीकोट गीला हो गया था।

उसके मुँह से वासना भरी गालियाँ निकल रही थीं। “चोद साली को और चोद… माँ चोद दे इसकी… हाय… भोसड़ी के क्या लंड है…” ऐसा ही मुँह से अस्पष्ट शब्द बोले जा रहा था। फिर उसके मुँह से आह निकल गई और उसके लंड से लंबी पिचकारी निकल पड़ी। वीर्य लंड से झटके खा-खाकर निकल रहा था।

मेरा दिल डोलने लगा। मेरी छाती धड़कने लगी। पसीने की बूंदें छलक आईं। मैं वहाँ से हटकर मुख्य द्वार को बंद कर आई।

उस रात मुझे नींद नहीं आई। बस करवट बदलती रही। चुदने के विचार आते रहे। विनय का लंड चूत में घुसता नजर आने लगा था। जाने कब आँख लग गई। सुबह उठी तो मन में कसक बाकी थी।

खड़ी होकर मैंने अंगड़ाई ली और अपने बोबे को देखा और धीरे से उसे मसलने लगी, मुझे मेरी चोली तंग लगने लगी थी और फिर ब्लाउज के बटन बंद करने लगी। सामने जाली वाली खिड़की से विनय मुझे ये सब करते हुए देख रहा था। मेरा दिल धक से रह गया। मैंने यूँ दर्शाया कि जैसे मैंने विनय को देखा ही नहीं। पर मुझे पता चल गया कि विनय मेरे अंगों का रस लेता है।

मैं भी अब छिप-छिपकर खिड़की से उसकी सेक्सी हरकतें देखने लगी। और फिर घर में आकर खूब तड़पने लगती थी। कपड़े उतार फेंकती थी, जिस्म को दबा डालती थी। विनय अब भी खिड़की पर छुप-छुपकर मुझे देखता था। सिर्फ उसे बहकाने के लिए अब मैं भी दरवाजे पर कभी अपने बोबे दबाती और कभी चूत दबाती थी ताकि वो भी मेरी तरह तड़पे और वासना में आकर मुझे चोद दे।

इसे भी पढ़ें:  Hindi Sex Story :ट्रैन में 2 लंडों से पंजाबन की चुदाई

पर वो मेरे सामने नॉर्मल रहता था। मेरी चोली अब छोटी पड़ने लग गई थी। उरोज मसलते-मसलते फूलने और बड़े होने लग गए थे। एक बार तो जब वो खिड़की से देख रहा था मैंने एक मोमबत्ती लेकर उसके सामने अपनी चूत पर रगड़ ली थी।

इसी तरह छह महीने बीत गए। इसी बीच विनय ने मेरी तनख्वाह ५००० रुपये कर दी थी। ये सब मेरी सेक्सी अदाओं का इनाम था।

मुझे भी अब चुदने की इच्छा तेज होने लगी थी। इन दिनों विनय के जाने के बाद मैं अक्सर उनके बेडरूम में जाकर टीवी देखती थी। आज मैंने कुछ सीडी टीवी के पास देखी। मैंने यूँ ही उसे उठा ली और देखने लगी। एक सीडी मुझे लगा कि ये शायद ब्लू फिल्म है। मैंने उनमें से एक सीडी प्लेयर में लगाई और देखने लगी।

उसे देखते ही मैं तो एकदम उछल पड़ी। मेरा अनुमान सही निकला, वो ब्लू फिल्म ही थी। मैं जिंदगी में पहली बार ब्लू फिल्म देख रही थी। मेरे दिल की एक बड़ी हसरत पूरी हो गई… बहुत इच्छा थी देखने की।

सीन आते गए मैं पसीने में तर हो गई। मेरे कपड़े फिर से तंग लगने लगे, लगता था सारे कपड़े उतार फेंको। मेरा हाथ अपने आप चूत पर चला गया और अपना दाना मसलने लगी। कभी-कभी अँगुली अंदर डालकर चूत घिस लेती थी…। मेरी साँसें और धड़कन तेज हो चली थीं।

अचानक मैंने समय देखा तो विनय का लंच पर आने का समय हो गया था। मैंने टीवी बंद कर दिया। अपने आप को संयत किया और अपने कपड़े ठीक कर लिए और डाइनिंग टेबल ठीक करने लगी।

मेरी नजरें अब बदल गई थीं। मर्द के नाम पर बस विनय ही था जिसे मैं रोज देखती थी। मैंने उसे नंगा भी देखा… मुठ मारते भी देखा… पेंसिल को खुद की गाँड में घुसाते हुए भी देखा…। मेरे दिल पर ये सब देखकर मेरे दिल पर छुरियाँ चल जाती थीं।

मैं अपने कमरे में जाकर कपड़े बदल आई और हल्की-सी ड्रेस पहन ली, जिससे मेरे उरोज और जिस्म सेक्सी लगें। मैं वापस आकर विनय का इंतजार करने लगी। विनय ठीक समय पर आ गया।

आते ही उसने मुझे देखा और देखते ही रह गया। वो डाइनिंग टेबल पर बैठ गया। मैं झुक-झुककर अपने बोबे हिलाकर खाना परोसने लगी। वो मेरे ब्लाउज में बराबर झाँक रहा था। मेरे बदन में कंपकंपी छूटने लगी थी। अब मैं उसे जवान और सेक्सी नजर आने लगी थी।

मैंने उसके पीछे जाकर अपने बोबे भी उससे टकरा भी दिए, फिर मैं भी सिहर उठी थी। उसने अपना खाना समाप्त किया और अपने कमरे में चला गया। मैं उसे झाँककर देखती रही। अचानक उसकी नजर सीडी पर पड़ी और वो पलक झपकते ही समझ गया।

विनय अपने बिस्तर पर लेट गया और आँखें बंद कर लीं। विनय के मन में खलबली मची हुई थी। मुझे लगा कि विनय काफी कुछ तो समझ ही गया है।

मैं उसके बेडरूम में आ गई। कहीं से तो शुरू तो करना ही था, “सर मोजे उतार दूँ?”

“ह… हाँ… उतार दो… और सुनो क्या तुम मेरी कमर दबा सकती हो…?” उसने मुझे पटाने की एक कोशिश की। मेरा दिल उछल पड़ा। मुझे इसी का तो इंतजार था।

मैंने शरमाकर कहा, “जी… दबा दूँगी…!”

मुझे कोशिश करके आज ही उसे जाल में फाँस लेना था और अपनी चूत की प्यास बुझा लेनी थी। आखिर मैं कब तक तड़पती, जब कि विनय भी उसी आग में तड़प रहा था। विनय ने अपनी कमीज उतार दी।

इतने में बाहर हॉर्न की आवाज आई। मुझे गुस्सा आने लगा। मेरा बेटा सचिन स्कूल से आ गया था। कहीं गड़बड़ न हो जाए, या मूड बदल न जाए।

“सर… मैं अभी आई…!” कहकर मैं जल्दी से बाहर आई और सचिन को कहा कि वो खाना खा ले और फिर आराम कर ले। मैं सेठ जी को लंच कराकर आती हूँ। उसे सब समझाकर वापस आ गई।

विनय ने अपना ढीला-सा पजामा पहन लिया था और उल्टा लेटा हुआ था। मैंने तेल की शीशी उठाई और बिस्तर पर बैठ गई। मैंने तेल उसकी कमर में लगाया और उसे दबाने लगी। उसे मजा आने लगा। मैं उसे उत्तेजित करने के लिए उसकी चूतड़ों की जो थोड़ी-सी दरार नजर आ रही थी उस पर भी तेल लगाकर बार-बार छू रही थी।

“रानी… तेरे हाथों में जादू है… जरा नीचे भी लगा दे…” मैं समझ गई कि वो रंग में आने लगा है। गर्म लोहे पर चोट करनी जरूरी थी, वरना मौका हाथ से निकल जाता।

मैंने कमर से थोड़ा नीचे दरार के पास ज्यादा मलना शुरू कर दिया, और अपना हाथ उसके चूतड़ के उभारों को भी लगा देती थी। मुझे लगा कि उसका लंड अब बिस्तर से दबकर जोर मार रहा है। उसके जिस्म की सिहरन मुझे महसूस हो रही थी। मौका पाकर इस स्थिति का मैंने फायदा उठाया।

मैंने कहा, “सर अब सीधे हो जाओ… आगे भी लगा देती हूँ…!” जैसे ही वो पलटा, उसका तन्नाया हुआ लंड सामने खड़ा हुआ आ गया।

मैं सिहर उठी, “हाय राम…! ये क्या…!” मैंने अपना चेहरा छिपा लिया।

विनय ने कहा, “सॉरी रानी…! मेरे जिस्म पर सात-आठ महीने बाद किसी औरत का हाथ लगा था… इसलिए भावनाएँ जाग उठी!” उसने मेरा हाथ पकड़ लिया।

“सर जीऽऽऽ… शरम आती है… मैंने भी किसी मर्द को बहुत समय से छुआ ही नहीं है…!” मैंने आँखों पर से हाथ हटा लिया… और जैसे हामी भरते हुए विनय का साथ दिया।

इसे भी पढ़ें:  Fauji Baap aur Kuwari Beti 2

“फिल्म कैसी लगी थी… मजा आया…?”

“ज्… जी… क्या कह रहे हैं आप…?” मैं सब समझ चुकी थी… मैं जानबूझकर शरमा गई। बस विनय की पहल का इंतजार था, सो उसने पहल कर दी। मेरी चूत फड़क उठी थी। मैंने अपना हाथ नहीं छुड़ाया… वह मेरा हाथ खींचकर अपने और समीप ले आया।

मेरा बदन थरथरा उठा। चेहरे पर पसीना आ गया। मेरी आँखें उसकी आँखों से मिल गईं… मैं होश खोने लगी… अचानक मेरी चूचियों पर उसके हाथ का दबाव महसूस हुआ… वो दब चुकी थीं… मैं सिमट गई, “सर प्लीज…! नहीं… मैं मर जाऊँगी…!”

विनय ने तकिए के नीचे से एक पाँच सौ का एक नोट मेरी चोली में घुसा दिया। पाँच सौ रुपये मेरे लिए बड़ी रकम थी… मैं पिघल उठी। मेरा काँपता जिस्म उसने भींच लिया। मैंने अपने आप को उसके हवाले कर दिया।

“पसीना पोंछ लो!” उसने चादर के एक कोने से मेरा चेहरा पोंछ दिया और मेरे नरम काँपते होंठों को उसने अपने होंठों से दबा लिए। मेरी इच्छा पूरी हो रही थी। पैसे भी मिल रहे थे और अब मैं चुदने वाली थी। मेरा शरीर वासना की आग में सुलग उठा। चूत पानी छोड़ने लगी, शरीर कसमसाने लगा। उसकी बलिष्ठ बाहें मुझे घेरने लगीं। मेरा हाथ नीचे फिसलता हुआ उसके लंड तक पहुँच गया।

मैंने इजाजत मांगी… “सर… छोटे साहब को…?”

“रानी… मेरी रानी… जरा जोर से थामना… कहीं छूट न जाए…!” उसने अपने लंड को और ऊपर उभार लिया। मेरा हाथ उसके लंड पर कस गया। उसने मुझे एक ही झटके में बिस्तर पर खींचकर पटक दिया। और सीधे मेरी चूत पर वार किया। मेरी चूत को हाथ अंदर डालकर दबा दी। मैं तड़प उठी। वो चूत मसलता ही गया। मैं छटपटाती ही रही। पर उसका हाथ अलग नहीं हटाया।

“हाऽऽऽय… रे… सर जी… मर गई… क्या कर रहे हो… आऽऽह… माई रे…” मेरी खुशी भरी तड़पन उसे अच्छी लगने लगी।

“कहाँ थी तू अब तक रे… क्या मस्त हो रही है…” विनय नशे में बोला। मेरी चूत दबाकर मसलता रहा… पर ये ५०० रुपये का नशा भी साथ था… उसकी इच्छा मुझे पूरी जो करनी थी। मेरे सारे कपड़े एक-एक करके उतरते जा रहे थे। हर बार मैं जानकर नाकाम विरोध करती…!

अंततः मैं वस्त्रहीन हो गई। मेरी चूचियाँ बाहर छलक पड़ीं… मेरा नंगा जिस्म चमक उठा। मैंने नशे में अपनी आँखें खोलीं तो विनय का बलिष्ठ शरीर नजर आया… जिसे मैं छुप-छुपकर कितनी बार देख चुकी थी। उसका चेहरा मुझे अपनी चूत की तरफ झुकता नजर आया। मेरी क्लीन शेव चूत की पंखुड़ियों के बीच रिसता पानी उसे मदहोश करने लगा।

उसकी जीभ का स्पर्श मुझे कंपकंपाने लगा। मैंने सिसकारी भरते हुए कहा, “सर… नहीं प्लीज… मत करिए…” पर उसने मेरी टाँगों को चीरकर चूत और खोल दी और उसके होंठ मेरी चूत से चिपक गए… मैंने अपनी चूत मस्ती में और उभार दी।

“रानी… ना-ना करते पूरी चुद जाओगी…” कहकर उसने चूत पर जीभ गहरी घुसाकर निकाल ली… मैं उत्तेजना से कसमसा उठी। अब मेरा दाना और चूत दोनों ही जीभ से चाट रहा था। बहुत साल बाद मुझे फिर से एक बार ये सुख मिल रहा था।

वो धीरे-धीरे मेरी चूत की पंखुड़ियों को चूसने लगा, जीभ को अंदर-बाहर करके मुझे तड़पाता रहा। “आआह… सर… इतना मत चाटो… उउउ… मेरी चूत गीली हो गई…” मैं सिसकारियाँ भर रही थी, मेरी साँसें तेज हो रही थीं। उसने मेरे दाने को होठों में दबाकर चूसा, जैसे कोई मीठा फल हो। “उम्म्म… सर… आआह…” मेरी कमर खुद-ब-खुद ऊपर उठने लगी।

फिर उसने मुझे घुमाकर उल्टी कर दिया और चूतड़ों को थपथपाने लगा। यानी अब मेरी गाँड की बारी थी…! मेरा दिल खुशी के मारे उछल पड़ा। गाँड चुदवाना मेरा पहला शौक रहा है उसके बाद फिर चूत की चुदाई का आनन्द…!

“सर नहीं ये नहीं… प्लीज… मेरी फट जाएगी!” मैंने अपने नखरे दिखाए… पर ये क्या… विनय ने एक ५०० का नोट और लहरा दिया…

“ये इस प्यारी गाँड चुदाई के मेरी रानी…!” मैं और पिघल उठी… मेरे मन चाहे काम के अब मुझे १००० रुपये मिल चुके थे, इससे ज्यादा और खुशी क्या हो सकती थी। विनय ने थूक का एक बड़ा लौंदा मेरे चूतड़ों को चीरके छेद पर टपका दिया। और उछलकर मेरी पीठ पर चढ़ गया… कुछ ही देर में उसका लंड मेरी गाँड के छेद में घुस चुका था। दर्द झेलना तो मेरी आदत बन चुकी थी।

“आह रे… घुस गया सर…!”

“रानी तू कितनी अच्छी है… पहले कहाँ थी रे…!”

“आप ही ने मुझ गरीबन पर ध्यान नहीं दिया… हाय गाँड चुद गई रे…!”

“रानी… मैं तुझे रानी ही बनाकर रखूँगा… तूने तो मुझे खुश कर दिया है आज…!”

धचक-धचक लंड घुसता रहा… मेरी गाँड चुदती रही… आज मेरी गाँड को लंड का प्यारा-प्यारा मजा मिल गया था। मैं विनय की अहसानमन्द हो चुकी थी। वो धीरे-धीरे लंड को अंदर-बाहर करता रहा, हर धक्के के साथ मेरी गाँड की दीवारें खिंचतीं, “फच-फच” की आवाज आ रही थी। “आआह… सर… धीरे… उउउ… आपका लंड इतना मोटा है… मेरी गाँड फाड़ रहा है…” मैं तड़प रही थी, लेकिन मजा भी ले रही थी। उसने मेरी कमर पकड़कर और जोर से धक्का मारा, “चोद साली… ले मेरी रानी… तेरी गाँड कितनी टाइट है…” वो गालियाँ दे रहा था, जो मुझे और गर्म कर रही थीं।

इसे भी पढ़ें:  चाचा ने मुझे बस में चोदा

कुछ देर बाद मैंने भी अब थोड़ी-सी मन की करने की सोची… और कहा, “सर… आप कहें तो मैं अब आपको चोद दूँ…?”

“कैसे… आदमी कैसे चुद सकता है…?”

“आप बिस्तर पर सीधे लेट जाइए… मैं आपके खड़े लंड पर बैठकर आपको चोदूँगी…” विनय हँस पड़ा।

“छुरी तरबूज पर पड़े या तरबूज छुरी पर… चुदेगी तो चूत ही ना…” मैं शरमा गई।

“हटो जी… आ जाओ ना…!” विनय नीचे लेट गया… उसका खड़ा लंड मेरी चूत को चुनौती दे रहा था। मैं धीरे से उसके लंड पर निशाना लगाकर बैठ गई। पर विनय को कहाँ चैन था। उसने नीचे से ही अपने चूतड़ उछालकर मेरी चूत को लपेटे में ले लिया और चूत को चीरता हुआ लंड अंदर घुस पड़ा।

मेरा बैलेंस गड़बड़ा गया और धच्च में लंड पर पूरी बैठ गई। मेरे मुँह से चीख निकल पड़ी। लंड चूत की पूरी गहराई पर जाकर गड़ चुका था। मेरी चूत से थोड़ा-सा खून निकल पड़ा। मैंने अँगुली से देखा तो लाल रंग… पर ये तो लड़कियों के साथ चुदाई में साधारण-सी बात होती है। पर विनय घबरा उठा, “अरे… ये क्या… खून… सॉरी…!”

मैंने उसके होंठों पर अँगुली रख दी… “चुप रहो न… करते रहो…!”

पर इसका मुझे तुरंत मुआवजा मिल गया… एक ५०० रुपये का नोट और लहरा उठा। ये विनय क्या कर रहा है? १५०० रुपये मेरे लिए बहुत बड़ी रकम थी।

“नहीं चाहिए मुझे…” पर उसने मुझे दिए हुए नोटों के पास उसे रख दिया। हमारा कार्यक्रम आगे बढ़ चला… अब मुझे पूरी जी-जान से उसे संतुष्ट करना ही था। मैंने अपनी चूत अंदर ही अंदर सिकोड़ ली और टाइट कर ली… फिर उसके लंड को रगड़ना शुरू कर दिया। टाइट चूत करने से मेरी चूत को चोट भी लग रही थी… पर विनय को तंग चूत का मजा आने लगा था।

“फचक-फचक” की आवाज से कमरा गूँज रहा था, मैं ऊपर-नीचे हो रही थी, मेरी चूचियाँ उछल रही थीं। “आआह… सर… आपका लंड मेरी चूत को फाड़ रहा है… उउउ… कितना गहरा घुस रहा है…” मैं सिसकार रही थी, वो मेरी कमर पकड़कर नीचे से धक्के मार रहा था, “ले साली… चोदूँगा तेरी चूत को… भोसड़ी वाली… मजा आ रहा है न?” उसकी गालियाँ मुझे और उत्तेजित कर रही थीं। मैंने अपनी चूत को और सिकोड़ा, लंड को दबाकर रगड़ा, “हाँ सर… चोदो मुझे… आआह… उईईई…”

फिर मैंने पोजीशन बदली, उसे ऊपर आने दिया। वो मेरी टाँगें फैलाकर लंड को चूत पर रगड़ने लगा, धीरे-धीरे अंदर धकेला। “पच-पच” की आवाज आने लगी, गीली चूत में लंड आसानी से फिसल रहा था। “ओओओ… सर… धीरे… मेरी चूत दुख रही है…” लेकिन मैं और चाह रही थी। उसने स्पीड बढ़ाई, हर धक्के के साथ मेरी चूचियाँ हिल रही थीं, मैं उन्हें दबा रही थी। “चोदो सर… जोर से… आआह… हाँ ऐसे… उउउ…”

पर नतीजा… मैं चरमसीमा पर पहुँच गई… साथ ही विनय भी अपना शरीर लहराने लगा।

“मेरी जानु… मेरी जान… मैं तो गया… निकला जा रहा है अब… रानीऽऽऽ हाय… ऊईईईऽऽऽऽ” विनय के साथ-साथ मेरा भी रस निकलने लगा… उसका लंड भी मेरी चूत में अपना वीर्य छोड़ने लगा। हम दोनों आपस में लिपट पड़े। मैं तो पूरी झड़ चुकी थी… उसका वीर्य को मेरी चूत में लिपटकर निकालने का मौका दे रही थी… कुछ ही देर में हम दोनों निढाल पड़े थे।

विनय उठा और पास में पड़ा तौलिया लपेटकर बाथरूम में चला गया। मुझे भी कुछ नहीं सूझा तो मैं भी उसी के साथ बाथरूम में घुस गई और पानी से अपनी चूत और लगा हुआ वीर्य साफ करने लगी।

“आज तो रानी… तुमने मेरी आत्मा को प्रसन्न कर दिया… अब एक काम करो… सामने ब्यूटी पार्लर में जाओ और उससे कहना कि मैंने भेजा है…”

मैं सर झुकाए बाहर आकर कपड़े पहनने लगी। और नोट गिनकर अपने ब्लाउज में संभालकर रखने लगी। पर ये क्या… विनय ने झटके से मेरे हाथों से सारे नोट ले लिए…

“क्या करोगी इनका… ये तो कागज के टुकड़े हैं…” मेरा दिल धक से रह गया… मेरे होश उड़ गए, रुपये छिनने से मुझे ग्लानि होने लगी।

पर दूसरे ही क्षण मेरे चेहरे पर दुगनी खुशी झलक उठी। विनय ने अलमारी खोलकर गहने मेरी ओर उछाल दिए, “सजो मेरी रानी… आज से तुम मेरी नौकरानी नहीं… घरवाली की तरह रहोगी… और रहे रुपये! तो ये सब तुम्हारे हैं…!”

Related Posts

आपको यह कहानी कैसी लगी?

स्टार्स को क्लिक करके आप वोट कर सकते है।

Average rating 5 / 5. Vote count: 9998

अभी तक कोई वोट नहीं मिला, आप पहला वोट करें

We are sorry that this post was not useful for you!

Let us improve this post!

Tell us how we can improve this post?

Leave a Comment