Diwali Sex Story: दिवाली की रात थी, चारों तरफ रौशनी बिखरी हुई थी। गाँव का माहौल खुशियों से भरा था, घरों में दीये जल रहे थे, और मिठाइयों की मिठास हवा में घुल रही थी। मैं, राधा, 22 साल की हूँ, और इस बार दिवाली कुछ खास थी। मेरा भाई किशोर, जो मुझसे एक साल छोटा है, होस्टल से घर आया था। वो पिछले साल दिवाली पर नहीं आ पाया था, और इस बार उसकी आँखों में कुछ अलग सी चमक थी। मैंने सोचा शायद शहर की हवा ने इसे थोड़ा बदल दिया है।
रात के करीब आठ बज रहे थे। घर में पूजा-पाठ खत्म हो चुका था। मम्मी-पापा नीचे मेहमानों के साथ व्यस्त थे, और हम दोनों भाई-बहन छत पर दीये जलाने के लिए चले गए। मैंने लहंगा-चोली पहनी थी, गुलाबी रंग का लहंगा और उस पर कढ़ाई वाली चोली, जिसका गला थोड़ा गहरा था। छत पर हल्की ठंड थी, और हवा में आतिशबाजियों की हल्की सी गंध तैर रही थी। हम दोनों दीये जलाने में लगे थे। मैं नीचे बैठकर दीयों की बत्तियाँ ठीक कर रही थी, तभी मेरी चोली का गला मेरे घुटनों से दबने की वजह से मेरी चूचियाँ थोड़ी बाहर झाँकने लगीं। मेरी चूचियाँ वैसे भी भारी और गोल हैं, और उस चोली में वो और उभर रही थीं। शायद किशोर की नजर उसी पर पड़ी, और उसका मन डोल गया।
किशोर मेरे पास आया और बोला, “दीदी, आज दिवाली है। प्लीज मुझे गले लगा लो, मैं तुम्हें हैप्पी दिवाली बोलकर गले लगाना चाहता हूँ।” उसकी आवाज में कुछ अलग सा लहजा था, जो मैंने पहले कभी नहीं सुना था। मुझे थोड़ा अजीब लगा। मैंने सोचा, आज तक उसने कभी ऐसी बात नहीं की। फिर मैंने मन में कहा, शायद होस्टल की जिंदगी ने इसे थोड़ा खुला कर दिया है। गाँव में तो मैं ही अकेली हूँ, और वो शहर में नए दोस्तों के साथ रहता है। शायद ये आजकल का ट्रेंड है। मैंने ज्यादा सोचा नहीं और अपनी बाहें फैला दीं।
वो एकदम से मेरे पास आया और मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया। उसकी पकड़ इतनी जोरदार थी कि मेरे शरीर में एक अजीब सी सिहरन दौड़ गई। मेरी चूचियाँ उसके सीने से दब रही थीं, और उसकी गर्म साँसें मेरे गले पर महसूस हो रही थीं। मैंने भी उसे हल्के से जकड़ लिया, लेकिन मेरे मन में कुछ उलझन थी। फिर भी, मैंने सोचा, ये तो बस भाई-बहन का प्यार है। उसने मेरी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा, “दीदी, मैंने तुम्हें पिछले साल बहुत मिस किया। तुम आज बहुत सुंदर लग रही हो। इस दुनिया में तुमसे खूबसूरत कोई नहीं है।” उसकी बातें सुनकर मेरे गाल शरम से लाल हो गए। मैंने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, “बस कर, किशोर। इतनी तारीफ मत कर।”
तभी नीचे से मम्मी की आवाज आई, “राधा, किशोर, कितना टाइम लगेगा? दीये जल गए?” किशोर ने तुरंत जवाब दिया, “पापा, बस आधा घंटा और। हम अभी आ रहे हैं।” फिर उसने मम्मी-पापा को बताया कि वो गुप्ता जी के घर जा रहे हैं गिफ्ट देने। जैसे ही उनकी आवाज दूर हुई, किशोर ने छत पर जल रहा इकलौता दीया बुझा दिया। अंधेरा छा गया, बस दूर की आतिशबाजियों की हल्की रौशनी थी। उसने मुझे फिर से अपनी बाहों में खींच लिया, इस बार और जोर से। वो मुझे पानी की टंकी के पास ले गया, जहाँ एक दीवार और टंकी की वजह से कोई हमें देख नहीं सकता था।
“दीदी, आई रियली लव यू,” उसने धीमी आवाज में कहा। उसकी आवाज में एक अजीब सी तड़प थी। मैंने कहा, “किशोर, ये सब ठीक नहीं है। दिवाली का विश तो ऐसा नहीं होता।” लेकिन वो रुका नहीं। उसने मेरे चूतड़ों पर हाथ फेरना शुरू कर दिया। उसका स्पर्श इतना गर्म था कि मेरे शरीर में एक अजीब सी गर्मी दौड़ने लगी। मैंने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन मेरे शरीर ने मेरा साथ नहीं दिया। मेरी साँसें भी तेज हो रही थीं। उसने मेरे होठों को चूमना शुरू कर दिया, और मैं भी खुद को रोक नहीं पाई। मैंने उसके बाल पकड़े और उसके होठों को चूसने लगी। उसकी जीभ मेरे मुँह में थी, और मेरी जीभ उसकी जीभ से खेल रही थी।
वो मेरी चूचियों को चोली के ऊपर से दबाने लगा। उसका हर दबाव मेरे शरीर में आग लगा रहा था। मैंने धीरे से अपनी चोली की डोरी खोल दी। चोली ढीली हो गई, और मेरी भारी चूचियाँ आजाद हो गईं। मैंने कहा, “किशोर, नीचे हाथ डाल।” उसने तुरंत मेरी चूचियों को अपने हाथों में लिया और जोर-जोर से दबाने लगा। मेरी चूचियाँ इतनी बड़ी थीं कि उसके हाथों में पूरी समा नहीं रही थीं। वो बार-बार उन्हें मसल रहा था, और मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थीं। “आह… किशोर… और जोर से,” मैंने बेकाबू होकर कहा।
उसने मुझे घुमाया और मेरी गांड पर अपने लंड को रगड़ने लगा। उसका लंड इतना सख्त था कि मैं उसे अपने चूतड़ों पर साफ महसूस कर रही थी। मैंने पीछे से उसके सिर को पकड़ा और उसे और करीब खींच लिया। उसने मेरी चूचियों को पीछे से पकड़ लिया और जोर-जोर से दबाने लगा। मेरी साँसें अब पूरी तरह बेकाबू हो चुकी थीं। मैंने कहा, “किशोर, हैप्पी दिवाली… बस ऐसे ही प्यार कर।” वो हँसा और बोला, “दीदी, काश हर दिवाली ऐसी हो।”
उसने मेरा लहंगा ऊपर उठा दिया। ठंडी हवा मेरी नंगी टांगों को छू रही थी। उसने मेरी पैंटी को थोड़ा सा नीचे सरकाया और अपने लंड पर थूक लगाया। उसने मेरी चूत पर लंड रखा, लेकिन अंधेरे की वजह से उसे सही जगह नहीं मिल रही थी। पहला धक्का बेकार गया। मैंने हँसते हुए उसका लंड पकड़ा और अपनी चूत के मुँह पर सेट किया। “अब डाल,” मैंने कहा। उसने एक जोरदार धक्का मारा, और उसका मोटा लंड मेरी चूत में पूरा समा गया। मैं एकदम से सिहर उठी। उसका लंड इतना मोटा और लंबा था कि मेरी चूत पूरी तरह खिंच गई।
वो मेरी गांड पर थप्पड़ मारते हुए धक्के लगाने लगा। हर धक्के के साथ मेरी चूत में एक नई सनसनी दौड़ रही थी। “आह… किशोर… और जोर से… चोद मुझे,” मैंने सिसकारते हुए कहा। वो मेरी चूचियों को पीछे से पकड़कर और जोर से धक्के मारने लगा। मेरी चूत इतनी गीली हो चुकी थी कि उसका लंड आसानी से अंदर-बाहर हो रहा था। हर धक्के के साथ मेरे शरीर में आग लग रही थी। मैं भी पीछे से अपनी गांड हिलाकर उसका साथ दे रही थी। उसका लंड मेरी चूत की गहराइयों को छू रहा था, और हर बार जब वो पूरा अंदर जाता, मेरे मुँह से एक जोरदार सिसकारी निकलती।
“दीदी, तुम्हारी चूत कितनी टाइट है… मजा आ रहा है,” किशोर ने हाँफते हुए कहा। मैंने जवाब दिया, “हाँ, किशोर… और चोद… रुक मत।” वो और तेज हो गया। उसने मेरी कमर पकड़ ली और अपने धक्कों की रफ्तार बढ़ा दी। मेरी चूत में दर्द और मजा दोनों एक साथ हो रहे थे। उसका लंड मेरी चूत की दीवारों को रगड़ रहा था, और हर धक्के के साथ मेरी सिसकारियाँ तेज हो रही थीं। “आह… ऊह… किशोर… और जोर से… मेरी चूत फाड़ दे,” मैंने बेकाबू होकर कहा।
करीब पंद्रह मिनट तक वो मुझे उसी तरह चोदता रहा। छत पर सिर्फ हमारी साँसों की आवाज और मेरी सिसकारियाँ गूँज रही थीं। तभी उसने कहा, “दीदी, मैं झड़ने वाला हूँ।” मैंने कहा, “अंदर ही डाल दे, किशोर।” उसने एक आखिरी जोरदार धक्का मारा, और मैंने महसूस किया कि उसका गर्म वीर्य मेरी चूत में भर रहा है। मेरे शरीर में एक जबरदस्त कंपन हुआ, और मैं भी झड़ गई। हम दोनों हाँफते हुए वहीँ ढेर हो गए।
थोड़ी देर बाद उसने मुझे फिर से गले लगाया और कहा, “दीदी, हैप्पी दिवाली।” मैंने भी हँसते हुए कहा, “हाँ, किशोर, ऐसी दिवाली तो जिंदगी में पहली बार हुई।” तभी नीचे दरवाजे की आवाज आई। मम्मी-पापा वापस आ गए थे। हमने जल्दी से अपने कपड़े ठीक किए और फिर से दीये जलाने लगे।
अगले दिन घर में मेहमानों की भीड़ थी। किशोर और मैं एक-दूसरे को तिरछी नजरों से देख रहे थे। दिन भर तो कुछ खास नहीं हो पाया, लेकिन मेरे मन में एक आग सी जल रही थी। रात को जब सब सो गए, किशोर मेरे कमरे में चुपके से आया। उसने दरवाजा बंद किया और मेरे पास बिस्तर पर बैठ गया। “दीदी, कल रात वाला मजा फिर से चाहिए,” उसने धीरे से कहा। मैंने मुस्कुराते हुए उसका हाथ पकड़ा और कहा, “तो रुक क्यों रहा है, किशोर? आ जा, आज फिर से दिवाली मना लेते हैं।”
उसने मेरी साड़ी को धीरे-धीरे ऊपर उठाया। इस बार कोई जल्दबाजी नहीं थी। उसने मेरी जाँघों को सहलाया, और मेरी पैंटी को धीरे से उतार दिया। उसने अपनी उंगलियाँ मेरी चूत पर फेरी, और मैं फिर से गीली हो गई। उसने मुझे बिस्तर पर लिटाया और मेरी टाँगें फैला दीं। उसका लंड फिर से सख्त था, और इस बार उसने धीरे-धीरे मेरी चूत में डाला। मैंने उसकी पीठ को नाखूनों से खरोंच दिया। वो धीरे-धीरे धक्के मारने लगा, और मैं हर धक्के के साथ सिसकार रही थी। “किशोर… और गहरा… मेरी चूत को पूरा भर दे,” मैंने कहा।
इस बार हमने पूरी रात एक-दूसरे के जिस्म की गर्मी में डूबकर बिताई। हर बार जब वो मेरी चूत में झड़ता, मेरे शरीर में एक नया जोश आ जाता। सुबह होने से पहले वो अपने कमरे में चला गया, लेकिन उसकी आँखों में वही चमक थी। मैंने सोचा, काश ये दिवाली कभी खत्म न हो।