हेलो दोस्तों, मेरा नाम नीतू है। मैं छेदी पुरवा, बलरामपुर में रहती हूँ। मेरी उम्र 27 साल है, और मेरा फिगर 36-30-38 है। मेरी गोरी त्वचा, भरे हुए मम्मे, और गोल-मटोल गांड मुझे बेहद कामुक बनाती है। मेरी हॉटनेस की वजह से गाँव में हर मर्द की नजर मुझ पर टिक जाती है। बस में चढ़ूं तो हर कोई मुझे अपनी गोद में बिठाकर चोदने की सोचता है। मैंने अब तक कई लड़कों के लंड अपनी चूत में लिए हैं, लेकिन मुझे अपने बूब्स सबसे ज्यादा पसंद हैं। मेरे मम्मों का शेप और साइज ऐसा है कि लड़के बस उन्हें देखकर पागल हो जाते हैं। मैं अकेले में अपने बूब्स को सहलाती हूँ, निप्पल्स को मसलती हूँ, और अपनी चूत में उंगलियाँ डालकर मजे लेती हूँ। गाँव के कई लड़कों ने मुझे चोदा है। कई बार वो मुझे अकेले में बुलाते थे, लेकिन वहाँ दो-तीन लड़के मिलकर मेरी चूत और गांड की ठुकाई करते थे। मेरी चूत ने 9 इंच तक के लंड आसानी से खाए हैं, लेकिन अब वो साइज मुझे बोर करने लगा था। मुझे अब और बड़ा, मोटा लंड चाहिए था, जो मेरी चूत को फाड़ दे, उसकी गहराई को चीर दे। मैंने गाँव के हर बड़े लंड वाले मर्द से चुदवाया, फिर भी मेरी प्यास नहीं बुझी। अब मैं आपको बताती हूँ कि मुझे वो मोटा लंड कैसे मिला, जिसने मेरी चूत का असली दंगल किया।
मेरे परिवार में मेरे दादाजी, गाँव के सबसे अमीर आदमियों में से एक हैं। वो 65 साल के हैं, तगड़े कद-काठी के, और गाँव में सब उनकी इज्जत करते हैं। मेरे दो भाई हैं, दोनों शहर में नौकरी करते हैं। एक 32 साल का है, दूसरा 29 का, दोनों शादीशुदा। मेरी भाभियाँ भी गाँव में ही रहती हैं, लेकिन वो अपने मायके अक्सर चली जाती हैं। हमारा बड़ा सा घर है, और हर साल दादाजी गाँव में दंगल करवाते हैं। दूर-दूर से पहलवान आते हैं, और सारे हमारे घर पर रुकते हैं। ये बात दो साल पुरानी है, जब दंगल का सीजन था। मैं रोज दंगल देखने जाती थी। वहाँ मैं कुश्ती कम, पहलवानों के टाइट लंगोट में उनके तने हुए लंड ज्यादा देखती थी। उनके मोटे-मोटे लंड लंगोट में उभरे हुए दिखते, और मेरी चूत में गीलापन छा जाता। एक दिन मेरी नजर एक पहलवान पर पड़ी, जिसका लंड लंगोट में इतना बड़ा और तना हुआ था कि मेरी चूत में आग लग गई। उसका नाम था वीर सिंह, 30 साल का, लंबा-चौड़ा, मसल्स से भरा हुआ, और चेहरे पर एक रौबीली मुस्कान। उसकी काली आँखें और घनी मूछें उसे और सेक्सी बनाती थीं।
शाम को जब सारे पहलवान हमारे घर आए, मैं वीर को चुपके-चुपके ताड़ रही थी। वो भी मुझे घूर रहा था, जैसे मेरे बदन को अपनी नजरों से चोद रहा हो। हम दोनों गेट के बाहर खड़े थे। वीर ने पूछा, “नाम क्या है तेरा?” मैंने कहा, “नीतू।” उसने मुस्कुराकर बोला, “नाम जितना प्यारा, तू उससे भी ज्यादा प्यारी है।” मैंने शरमाते हुए “थैंक्यू” बोला। उस दिन से वीर मेरी तरफ कुछ ज्यादा ही खींचा चला आ रहा था। मैं भी उसके लंड को लंगोट में देखकर बेचैन थी। रात को बिस्तर पर लेटकर मैं अपनी चूत में उंगलियाँ डालती, वीर के मोटे लंड को सोचकर मुठ मारती, और बार-बार झड़ जाती। मुझे बस यही ख्याल था कि कैसे भी वीर से चुदवाऊँ। मुझे ये भी पता चल गया था कि वीर भी मुझे चोदना चाहता है। वो जब भी मिलता, मेरे बूब्स और गांड को ऐसे घूरता जैसे उन्हें खा जाएगा।
दंगल के दूसरे दिन मेरे नानाजी का देहांत हो गया। वो 70 साल के थे, और गाँव के बाहर रहते थे। सब लोग उन्हें देखने चले गए। घर में लड़कियों में सिर्फ मैं थी, क्योंकि मेरी भाभियाँ अपने मायके चली गई थीं। दादाजी पहलवानों की देखभाल के लिए रुक गए, और मुझे घर के कुछ कामों की वजह से रोक लिया गया। मेरे मन में चुदाई की आग भड़क रही थी। मैं सोच रही थी कि ये मौका है वीर के लंड को अपनी चूत में लेने का। मैं दादाजी को बुलाने बाहर गई। घर की गैलरी के पास गेहूँ की बोरियाँ रखी थीं। मैंने एक बोरी उठाने की कोशिश की, लेकिन वो नीचे गिर गई, जिससे रास्ते में रुकावट हो रही थी। मैंने दादाजी को बताया। उन्होंने वीर को बुलाया और कहा, “जा वीर, बोरियाँ ठीक कर दे।” वीर मेरे साथ अंदर आया। उसने सारे कमरे देखे, जैसे बहाना ढूंढ रहा हो। रास्ते में पानी पड़ा था, और मैं फिसलकर वीर के ऊपर गिर गई। मेरे बूब्स उसकी चौड़ी छाती से टकराए। मैंने महसूस किया कि उसका लंड लंगोट में तन गया था। वीर ने मुझे पकड़कर उठाया और बोला, “कमर में चोट तो नहीं लगी, नीतू?” मैंने कहा, “नहीं,” लेकिन मेरी कमर में तेज दर्द था। मैं उठ नहीं पा रही थी।
वीर ने मुझे अपनी मजबूत बाहों में उठाया और मेरे कमरे में ले गया। उसने पास रखा तेल लिया और मेरी कमर पर मालिश करने लगा। मैंने हरे रंग की सलवार-कमीज पहनी थी। वीर का हाथ मेरी कमर से मेरी गांड तक जा रहा था। उसका हर स्पर्श मेरी चूत को गीला कर रहा था। मैंने कहा, “वीर, जाओ, कोई देख लेगा तो शक करेगा।” उसने हँसकर बोला, “घर में कोई नहीं है। दादाजी सबको खेत दिखाने ले गए। मैंने पैर दर्द का बहाना बनाकर मना कर दिया।” मेरी चूत में आग और भड़क गई। वीर ने फिर मालिश शुरू की। उसने कहा, “तेरी सलवार पर तेल लग गया तो दाग पड़ जाएगा। थोड़ा नीचे कर दे।” मैंने नाड़ा खोल दिया, और सलवार ढीली होकर नीचे खिसक गई। वीर ने तेल लगाते हुए मेरी सलवार को और नीचे कर दिया, जिससे मेरी गांड का आधा हिस्सा दिखने लगा। उसका हाथ बार-बार मेरी गांड को छू रहा था। मैं सिसकारियाँ लेने लगी, “उफ्फ… वीर, ज्यादा नीचे मत छू, कुछ होने लगता है।” वो बोला, “बस यही तो मजा है, नीतू। तुझे और मजा चाहिए?” मैंने शरमाते हुए कहा, “हाँ, वही वाला मजा दे ना।”
वीर समझ गया कि मैं चुदने को तड़प रही हूँ। उसने कहा, “पहले सारे कपड़े उतार।” मैंने झट से अपनी कमीज उतार दी। मैंने हरे रंग की ब्रा पहनी थी, जो मेरे बूब्स को और सेक्सी दिखा रही थी। वीर की आँखों में वासना चमक रही थी। उसने मुझे अपनी बाहों में भर लिया और मेरे होंठ चूसने लगा। उसके होंठ मेरे होंठों को चूस-चूसकर लाल कर रहे थे। मैं भी उसका साथ दे रही थी। मेरी साँसें तेज हो रही थीं, दिल धक-धक कर रहा था। मैंने अपना हाथ उसके लंगोट पर रखा, जहाँ उसका लंड पहले से तन चुका था। वीर ने मेरी ब्रा की स्ट्रैप्स खींचकर मुझे और करीब खींच लिया। उसने मेरी ब्रा उतार दी। मेरे भूरे निप्पल्स को देखते ही उसका मुँह मेरे बूब्स पर चिपक गया। वो मेरे बूब्स को आम की तरह चूस रहा था, निप्पल्स को दाँतों से हल्के-हल्के काट रहा था। मेरे मुँह से “उफ्फ… सी… सी… इस्स्स… आह…” की सिसकारियाँ निकल रही थीं। उसने एक हाथ से मेरे बूब्स दबाए, दूसरे से मेरी सलवार के ऊपर से चूत को सहलाने लगा। मेरी चूत में खुजली बढ़ती जा रही थी।
वीर ने मेरी सलवार का नाड़ा और ढीला करके उसे पूरी तरह नीचे गिरा दिया। मैं सिर्फ पैंटी में थी। उसने मेरी पैंटी भी उतार दी, और मैं पूरी नंगी हो गई। मुझे शर्मिंदगी महसूस हो रही थी, लेकिन वीर की आँखों में मेरे नंगे बदन को देखकर जो भूख थी, उसने मुझे और गर्म कर दिया। उसने मुझे बिस्तर पर बिठाया, मेरी टाँगें खोलीं, और मेरी चूत को देखने लगा। मेरी चूत पर घनी झांटें थीं। उसने हँसकर कहा, “नीतू, तू इन्हें कभी साफ नहीं करती?” मैंने कहा, “टाइम नहीं मिला, वीर।” उसने अपना मुँह मेरी चूत पर रख दिया। उसकी जीभ मेरी चूत की फाँकों को चाट रही थी, मेरे दाने को दाँतों से हल्के-हल्के काट रहा था। मैं सिसकारियाँ ले रही थी, “इस्स्स… सी… सी… उफ्फ… ई… ई…” मेरी चूत गीली हो चुकी थी। वीर ने अपनी जीभ मेरी चूत की गहराई में डाल दी, जैसे मेरी चूत का सारा रस चूस लेना चाहता हो। उसने अपनी दो उंगलियाँ मेरी चूत में डालकर अंदर-बाहर करने लगा। मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया, और वीर ने उसे चाट-चाटकर साफ कर दिया।
अब वीर ने अपने कपड़े उतारे। वो सिर्फ लंगोट में मेरे सामने खड़ा था। उसकी बॉडी इतनी तगड़ी थी कि मैं उसके सामने बच्ची लग रही थी। उसका लंड लंगोट फाड़कर बाहर आने को बेताब था। उसने लंगोट उतारा, और मैं देखकर दंग रह गई। उसका लंड 10 इंच से ज्यादा लंबा और इतना मोटा था कि मेरी चूत में डर के साथ उत्साह भी जाग गया। मैंने उसका लंड पकड़ा, सहलाया, और फिर अपने मुँह में ले लिया। मैं उसे चूस रही थी, जैसे कोई लॉलीपॉप हो। वीर का लंड गर्म लोहे की तरह तप रहा था। वो जोश में आ गया था। मैंने उसका लंड मुँह से निकाला और बोला, “वीर, अब चोद दे मुझे।” उसने मेरी टाँगें खोलीं और अपने लंड का टोपा मेरी चूत के छेद पर रगड़ने लगा। मेरी चूत की खुजली और बढ़ गई। उसने एक जोरदार धक्का मारा, और उसका मोटा लंड मेरी चूत में घुस गया। मैं चीख पड़ी, “उउउ… आआआ… सी… सी…!” उसका लंड मेरी चूत की दीवारों को चीर रहा था।
वीर ने मेरी चूत में अपना पूरा लंड डालकर चोदना शुरू किया। हर धक्के के साथ मेरी चूत में दर्द और मजा दोनों मिल रहे थे। मैं चिल्ला रही थी, “आऊ… आऊ… हम्म… अह्ह… सी… सी… हा… हा…” वीर ने मुझे गोद में उठा लिया, जैसे मैं कोई हल्की-सी गुड़िया हूँ। वो मुझे उछाल-उछालकर चोद रहा था। उसका लंड मेरी चूत की गहराई को नाप रहा था, जैसे मेरी चूत का हर कोना चोदना चाहता हो। मेरी चूत बार-बार पानी छोड़ रही थी, जिससे उसका लंड और चिकना हो गया। वो और तेजी से मेरी चूत में अंदर-बाहर हो रहा था। फिर उसने मुझे बिस्तर पर लिटाया, मेरी एक टाँग उठाई, और अपना लंड मेरी चूत में डालकर कमर मटकाते हुए चोदने लगा। उसकी चोदने की स्टाइल इतनी मस्त थी कि मैं बस सिसकारियाँ ले रही थी।
मैंने वीर को लिटाया और खुद उसके लंड पर बैठ गई। मैं उसकी सवारी करने लगी, ऊपर-नीचे होकर उसका लंड अपनी चूत में ले रही थी। वीर ने मेरी कमर पकड़कर मुझे और तेजी से उछालना शुरू किया। मैं चिल्ला रही थी, “अई… अई… इस्स्स… उह्ह… ओह्ह… आह…” फिर वीर ने मुझे कुतिया की तरह झुकाया और पीछे से मेरी चूत में लंड डाल दिया। उसका लंड मेरी चूत को फाड़ रहा था। मेरी चूत ने फिर पानी छोड़ा, और उसका लंड पूरी तरह भीग गया। वीर ने अपना लंड मेरी चूत से निकाला और मेरी गांड में डालने की कोशिश की। मैं डर गई और बोली, “नहीं वीर, मेरी गांड में नहीं, बहुत दर्द होगा।” लेकिन उसने मेरी एक न सुनी। उसने मेरे हाथ पकड़े और अपना मोटा लंड मेरी गांड में घुसा दिया। मैं जोर-जोर से चीखने लगी, “अह्ह… सी… ई… ई… आह… हा… हा…” मेरी गांड फट रही थी, लेकिन कुछ मिनट बाद दर्द के साथ मजा भी आने लगा। वीर करीब 15 मिनट तक मेरी गांड मारता रहा।
आखिर में वीर झड़ने वाला था। उसने अपना लंड मेरी गांड से निकाला और मुठ मारते हुए मेरे बूब्स पर अपना सारा माल गिरा दिया। उसका गर्म माल मेरे बूब्स के बीच बहने लगा। मैंने अपनी उंगलियों से उसे चाट लिया। हम दोनों ने जल्दी-जल्दी कपड़े पहने, और वीर वहाँ से चला गया। उस दिन हमने एक बार और चुदाई की। अब हर साल जब वीर दंगल के लिए आता है, मैं मौका ढूंढकर उससे चुदवाती हूँ। उसका लंड मेरी चूत और गांड का दंगल हर बार करता है, और मुझे हर बार नया मजा मिलता है।