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प्यार? प्यार से मेरी बूर की आग नहीं बुझती, राहुल

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मेरा नाम सान्वी वर्मा है। मैं अठाइस साल की हूँ, गोरा रंग, लंबे काले बाल, और भरा-पूरा जिस्म। मेरी हाइट ५ फीट ५ इंच है, और मेरी फिगर ३६-२८-३८ है। मेरी चूचियाँ टाइट और गोल हैं, और मेरे चूतड़ भारी और गदराए हुए हैं, जो मेरे चलने पर हिलते-डुलते हैं। मैं दिल्ली के एक पॉश अपार्टमेंट में रहती हूँ। मैं काफ़ी मॉडर्न हूँ, और अपने स्टाइल और पर्सनालिटी के लिए अपार्टमेंट में मशहूर हूँ। मेरे कपड़ों का चयन हमेशा बोल्ड होता है—टाइट टॉप्स, फिटिंग जींस, या स्पोर्ट्स सूट, जो मेरे जिस्म की हर नस को उभारते हैं। खासकर औरतों के बीच मेरी दोस्ती गहरी है। मैं खुलकर बात करती हूँ, हँसती-हँसाती हूँ, और हर किसी को अपनी ओर खींच लेती हूँ। शाम को जब मैं स्पोर्ट्स सूट पहनकर अपार्टमेंट में जॉगिंग करती हूँ, तो मेरे चूतड़ों का हिलना और मेरी चूचियों का उछलना हर मर्द की नजरों को चुरा लेता है। लेकिन मैं साफ कर दूँ, मेरी दोस्ती सिर्फ औरतों से है—मर्दों से मैं दूरी बनाकर रखती हूँ।

मेरे पति का नाम राहुल वर्मा है। वो ३२ साल के हैं, सांवला रंग, मध्यम कद, और बिजनेसमैन हैं। उनकी अपनी फैक्ट्री है, और वो अरबपति हैं। घर में कार, बंगला, नौकर-चाकर—किसी चीज की कमी नहीं। लेकिन एक कमी है, जो मेरी जिंदगी को अधूरा कर देती है। मेरी शादी को दो साल हुए हैं। अरेंज मैरिज थी। मेरे मम्मी-पापा ने राहुल को चुना, और मुझे लगा कि सब कुछ परफेक्ट होगा। लेकिन शादी की पहली रात ने मेरे सारे सपने तोड़ दिए। राहुल का लंड सिर्फ २ इंच का है। अब आप ही बताइए, मैं ठहरी २८ साल की जवान लड़की, जिस्म में आग, और मन में चुदाई की प्यास। मुझे कम से कम ८ इंच का लंड चाहिए, जो मेरी बूर को अंदर तक भरे। लेकिन २ इंच का लंड तो मेरी झांटों में ही फंस जाता है। अंदर जाने की बात तो दूर।

पहली रात को जब राहुल मेरे ऊपर चढ़े, मैंने अपनी दोनों टाँगें फैलाईं। मैंने एक टाइट नाइटी पहनी थी, नीचे ब्रा-पैंटी कुछ नहीं। लेकिन जब राहुल ने अपना लंड मेरी बूर पर रगड़ा, तो मुझे कुछ महसूस ही नहीं हुआ। बस एक छोटा सा उबक-डूबक सा एहसास। मैंने गुस्से में राहुल को धक्का दे दिया। “ये क्या है, राहुल? ये लंड है या कुछ और?” मैं चिल्लाई। राहुल का चेहरा लटक गया। “सान्वी, मैं कोशिश कर रहा हूँ…” वो बुदबुदाए। लेकिन मैं गुस्से में थी। “कोशिश? ये कोई कोशिश करने की बात है? तुम मुझे संतुष्ट ही नहीं कर सकते!” उस रात हम दोनों लड़ पड़े। फिर पीठ फेरकर सो गए।

ऐसा हर रात होने लगा। राहुल मेरे ऊपर चढ़ता, मैं अपनी टाँगें फैलाती, लेकिन उसका छोटा सा लंड मेरी बूर में घुस ही नहीं पाता। मैं गुस्से में उसे धक्का दे देती। फिर लड़ाई, और फिर अलग-अलग सोना। लेकिन सवाल ये है—बिना सेक्स के कोई कैसे रह सकता है? मैंने कुछ दिन तक अपनी बूर में उंगली डालकर काम चलाया। रात को बिस्तर पर लेटकर मैं अपनी पैंटी उतारती, अपनी टाइट चूचियों को दबाती, और अपनी बूर में उंगली डालकर “आह्ह… ऊह्ह…” करती। लेकिन ये काफी नहीं था। मेरी प्यास और बढ़ती गई। मैं जब भी किसी हट्टे-कट्टे मर्द को देखती—चाहे वो अपार्टमेंट का गार्ड हो, ड्राइवर हो, या कोई और—मेरा मन करता कि इसका लंड कितना बड़ा होगा? क्या ये मुझे चोदकर मेरी प्यास बुझा सकता है? लेकिन मैं लाचार थी। कुछ कर नहीं सकती थी।

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एक दिन मैंने राहुल से साफ-साफ कह दिया। हम दोनों ड्राइंग रूम में बैठे थे। मैंने एक टाइट कुर्ती और लेगिंग्स पहनी थी, जो मेरे जिस्म को और उभार रही थी। “राहुल, तुम हस्तमैथुन करके अपना वीर्य निकाल लेते हो और चैन से सो जाते हो। लेकिन मैं क्या करूँ? तुम्हारा २ इंच का लंड मेरी बूर में कुछ कर ही नहीं पाता। जब तुम मुझे संतुष्ट नहीं कर सकते, तो शादी क्यों की? मुझे अब क्या करना चाहिए?” मैंने गुस्से में कहा। राहुल चुप रहे। फिर बोले, “सान्वी, मैं जानता हूँ कि मैं तुम्हें संतुष्ट नहीं कर पा रहा। लेकिन मैं तुम्हें प्यार करता हूँ।” मैंने ताना मारा, “प्यार? प्यार से मेरी बूर की आग नहीं बुझती, राहुल। तुम्हारे मम्मी-पापा रोज ताने मारते हैं कि मैं दादी-दादा कब बनाऊँगी। क्या मैं उनसे कह दूँ कि तुम्हारा लंड इतना छोटा है कि मेरी बूर में एक बूंद वीर्य तक नहीं गया?”

मेरे शब्द सुनकर राहुल सन्न रह गए। मैं जानती थी कि मेरी बातें रंडी जैसी थीं, लेकिन मैं फ्रस्ट्रेट हो चुकी थी। मेरे जिस्म की आग मुझे अनाप-शनाप बोलने पर मजबूर कर रही थी। इस बातचीत के बाद करीब १० दिन तक हम दोनों में कोई बात नहीं हुई। हम अलग-अलग सोने लगे। मैं रात को अपनी बूर में उंगली डालकर “आह्ह… ऊह्ह…” करती, लेकिन वो प्यास अधूरी रहती।

एक रात राहुल मेरे पास आए। मैं बेड पर लेटी थी, एक पतली सी नाइटी में, जिसके नीचे मैंने कुछ नहीं पहना था। मेरी चूचियाँ नाइटी से साफ दिख रही थीं। राहुल ने कहा, “सान्वी, मुझे तुमसे एक जरूरी बात करनी है। मैं जानता हूँ कि मैं तुम्हें सेक्स में संतुष्ट नहीं कर पाता। लेकिन मैं नहीं चाहता कि तुम इस तरह तड़पो। क्यों न तुम किसी और से सेक्स करो? मुझे बुरा नहीं लगेगा। मैं इसका इंतजाम करूँगा। इससे मम्मी-पापा की दादा-दादी बनने की इच्छा भी पूरी हो जाएगी, और हमारी जिंदगी भी पटरी पर आ जाएगी।”

मैं शॉक हो गई। “राहुल, तुम ये क्या कह रहे हो?” मैंने कहा। वो बोले, “सान्वी, मैं तुम्हारी हालत समझता हूँ। प्लीज, मना मत करो।” मैंने कहा, “ठीक है, मुझे सोचने का समय दो।”

करीब १० दिन तक मैं इस बारे में सोचती रही। मैंने अपने घर में ही नजरें दौड़ानी शुरू कीं। हमारा नौकर, रमेश, नेपाली था। छोटा कद, पतला-दुबला। मुझे डर था कि कहीं उसका लंड भी छोटा न हो। हमारा ड्राइवर, सुरेश, ४५ साल का था। उसकी उम्र ज्यादा थी, और मुझे डर था कि वो मुझे संतुष्ट नहीं कर पाएगा। इस तरह मैंने दोनों को मन ही मन में रिजेक्ट कर दिया। पूरी रात मैं यही सोचती रही कि कौन मेरी प्यास बुझा सकता है। सुबह बेल बजी। मैंने एक पतली नाइटी पहनी थी, नीचे बिना ब्रा-पैंटी। दरवाजे पर दूधवाला था—विक्रम, हरियाणा का। ३० साल का, लंबा-चौड़ा, हट्टा-कट्टा, मूँछों वाला, एकदम मर्द। उसका रंग सांवला था, लेकिन उसकी आँखों में एक जंगलीपन था। वो मेरी चूचियों को घूर रहा था, जो मेरी नाइटी से साफ दिख रही थीं।

मुझे लगा, यही वो मर्द है जो मेरी बूर की आग बुझा सकता है। शाम को मैंने राहुल के लिए चाय बनाई। मैंने एक टाइट टॉप और शॉर्ट्स पहने थे, जो मेरे चूतड़ों और चूचियों को उभार रहे थे। हम चाय पीते हुए बात करने लगे। मैंने कहा, “राहुल, मुझे लगता है कि दूधवाले को पटाया जाए। वो हट्टा-कट्टा है। मुझे यकीन है कि उसका लंड बड़ा होगा। वो मुझे संतुष्ट कर सकता है। इससे तुम्हारे मम्मी-पापा जल्दी दादा-दादी बन जाएंगे, और तुम पापा। बाद में हम उससे ये रिश्ता तोड़ देंगे।” राहुल ने मेरी बात सुनी और बोले, “ठीक है, सान्वी। मैं इसका इंतजाम करता हूँ।”

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राहुल ने एक प्लान बनाया। उन्होंने अपने मम्मी-पापा से कहा, “चलो, आपको हरिद्वार ले चलते हैं। गंगा में डुबकी लगाइए।” उन्होंने पूछा, “सान्वी?” मैंने कहा, “मैं इस बार नहीं जा पाऊँगी। आप लोग जाइए।” अगले दिन सुबह ६ बजे वो लोग हरिद्वार चले गए। सुबह ८ बजे विक्रम दूध देने आया। मैंने जानबूझकर दरवाजा खुला छोड़ दिया और बाथरूम में नहाने चली गई। मैंने एक पतली नाइटी पहनी थी, जो गीली होकर मेरे जिस्म से चिपक गई थी। मैंने बाथरूम का दरवाजा थोड़ा खुला छोड़ा, ताकि वो मुझे देख सके। विक्रम ने बेल बजाई। मैंने कहा, “दूध किचन में रख दो।” उसने दूध रखा और बाथरूम की तरफ देखने लगा। मैं पूरी नंगी थी, शावर ले रही थी। मेरे गोरे जिस्म पर पानी की बूँदें चमक रही थीं। मेरी चूचियाँ टाइट थीं, और मेरी बूर साफ दिख रही थी।

विक्रम मुझे घूर रहा था। मैंने उसे देख लिया, लेकिन अनजान बनी रही। मैंने कहा, “भैया, जाते-जाते दरवाजा सटा देना।” वो बोला, “ठीक है, भाभी जी,” लेकिन वो वहीँ खड़ा रहा। मैं समझ गई कि वो मेरे जिस्म को निहार रहा है। मैं बाथरूम से निकली, नंगी ही। मेरे जिस्म पर पानी की बूँदें थीं। विक्रम सकपका गया। मैंने कहा, “अभी तक तुम यहीं हो?” और मैंने तौलिया ढूंढने का नाटक किया। वो मुझे भूखी नजरों से देख रहा था। मैंने कहा, “किसी को बताओगे तो नहीं?” वो बोला, “नहीं, भाभी जी।” मैंने कहा, “बेडरूम में आओ।”

वो बेडरूम में आया। मैं उसके करीब गई। मेरी नाइटी गीली थी, मेरी चूचियाँ और बूर साफ दिख रही थीं। उसने मेरे होंठों को चूमना शुरू किया। “आह्ह…” मैं कराह उठी। उसने मेरी चूचियों को जोर-जोर से दबाया। “उह्ह… धीरे…” मैंने कहा, लेकिन मेरे जिस्म में आग लग चुकी थी। उसका मर्दाना स्पर्श मुझे पागल कर रहा था। मैंने उसकी शर्ट उतारी। उसका सीना चौड़ा और पसीने से भरा था। मैंने उसका पजामा खींचा। उसका ८ इंच का मोटा लंड तनकर खड़ा था। “हाय… कितना बड़ा है…” मैंने बुदबुदाया। मैंने उसे मुँह में लिया और चूसने लगी। “आह्ह… भाभी… कितना अच्छा लग रहा है…” वो कराह रहा था। मैं उसका लंड चूस रही थी, मेरी जीभ उसके लंड के टोपे पर घूम रही थी। “ऊह्ह… चूसो… और जोर से…” वो चिल्लाया।

फिर उसने कहा, “भाभी, अब देर मत करो।” उसने मुझे बेड पर पटक दिया। मेरी नाइटी को खींचकर उतार दिया। मैं पूरी नंगी थी। उसने मेरी टाँगें फैलाईं और अपना मोटा लंड मेरी बूर पर रगड़ा। “आह्ह… डाल दो…” मैं चिल्लाई। उसने अपना लंड मेरी बूर में डाला। “उह्ह…!” मैं दर्द से कराह उठी। उसका ८ इंच का लंड मेरी बूर को चीरता हुआ अंदर घुस रहा था। “फच-फच… फच-फच…” की आवाज गूँज रही थी। “ले, साली, मेरा लंड ले,” वो गालियाँ दे रहा था। “आह्ह… चोदो मुझे… और जोर से…” मैं चिल्ला रही थी। उसने मेरी चूचियों को दबाया, मेरे निप्पल्स को चूसा। “ऊह्ह… हाय… कितना मजा आ रहा है…” मैं कराह रही थी।

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वो जोर-जोर से धक्के मार रहा था। मेरी बूर गीली हो चुकी थी। हर धक्के के साथ मेरी चूचियाँ उछल रही थीं। “फच-फच… फच-फच…” की आवाज कमरे में गूँज रही थी। उसने मेरी गांड में उंगली डाली। “आह्ह… और तेज… चोदो मुझे…” मैं चिल्ला रही थी। “रंडी, ले मेरा लंड… तेरी बूर को फाड़ दूँगा…” वो गालियाँ दे रहा था। मैं दो बार झड़ चुकी थी। मेरी बूर से रस टपक रहा था। उसने मुझे पलटा और मेरे चूतड़ों को दबाया। “क्या गदराई गांड है तेरी…” वो बोला और फिर से अपना लंड मेरी बूर में डाला। “आह्ह… ऊह्ह…” मैं कराह रही थी। वो मेरी गांड पर थप्पड़ मार रहा था। “चटाक… चटाक…” की आवाज गूँज रही थी।

करीब २० मिनट तक वो मुझे चोदता रहा। मैं तीन बार झड़ चुकी थी। मेरी बूर पूरी गीली थी। “आह्ह… अब बस…” मैंने कहा। लेकिन वो रुका नहीं। “रंडी, अभी तो मजा शुरू हुआ है…” वो बोला और और जोर से धक्के मारने लगा। आखिरकार उसने एक लंबी “आह्ह…” भरी और अपना लंड मेरी बूर से निकालकर मेरी चूचियों पर वीर्य डाल दिया। “ये क्या किया?” मैंने गुस्से में कहा। “तुझे मेरी बूर में डालना था!” वो हँसा और बोला, “ठीक है, भाभी जी। कल तेरी बूर में ही डालूँगा।”

इसके बाद मैं रोज विक्रम से चुदवाने लगी। हर सुबह वो दूध देने आता, और मैं उसे बेडरूम में ले जाती। मेरी बूर की आग अब बुझने लगी थी। मैं राहुल को भी अब प्यार करने लगी थी। छह महीने बाद मैं गर्भवती हो गई। मैं माँ बनने वाली हूँ। राहुल और उनके मम्मी-पापा बहुत खुश हैं। लेकिन मैंने विक्रम को कभी नहीं बताया कि बच्चा उसका है।

आपको मेरी कहानी कैसी लगी? क्या आपने भी कभी ऐसा अनुभव किया? नीचे कमेंट में अपनी राय जरूर बताइए।

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