हेलो दोस्तों, मैं आज आपके लिए एक गर्मागर्म कहानी लेकर आया हूँ। ये मेरी जिंदगी का वो खूबसूरत दिन था, जब मैंने अपनी भाभी, उर्मिला, की मस्त चुदाई की थी। उर्मिला भाभी कोई साधारण औरत नहीं थीं, वो थीं एकदम कातिलाना हसीना। उम्र करीब 30 साल, गोरा रंग, भरा हुआ बदन, और वो साड़ी पहनती थीं तो बस दिल थामकर देखना पड़ता था। उनके बड़े-बड़े रसीले स्तन ब्लाउज में ऐसे तने रहते थे जैसे कोई ज्वालामुखी फटने को तैयार हो। उनकी कमर पतली, और गोल-गोल गांड ऐसी कि चलते वक्त लहराती थी, मानो कोई लचकता हुआ समंदर। उनकी मुस्कान? उफ्फ, वो तो ऐसी थी कि बिना बारिश के ही मन में बिजलियाँ कड़कने लगें। मैं उस वक्त 25 साल का था, जवान खून, और भाभी को देखकर हर बार लंड में आग सी लग जाती थी।
वो मेरे फ्लैट के ठीक नीचे रहती थीं। उनका पति, मेरा भैया, एक कंपनी में नौकरी करता था। भैया ठीक-ठाक इंसान थे, लेकिन हसीन तो बिल्कुल नहीं। साधारण चेहरा, साधारण कद-काठी, और भाभी जैसी माल औरत के सामने तो वो बिल्कुल फीके लगते थे। मैं अक्सर उनके घर जाता था। घंटों गप्पें मारते थे। भाभी के साथ हंसी-मजाक, उनकी बातें, उनकी वो चुलबुली अदा, सब कुछ मुझे उनकी ओर खींचता था। मन में हमेशा एक आग सी जलती थी कि काश, इन्हें चोदने का मौका मिल जाए। पर डर भी लगता था। कहीं कुछ गलत बोल दिया तो भाभी नाराज हो जाएँगी, या भैया को बता देंगी। इसलिए मैंने पहले उनके दिल में जगह बनाई। भैया को इतना सम्मान देने लगा कि वो मुझे अपना छोटा भाई मानने लगे। और भाभी? वो तो मुझे अपना प्यारा देवर कहकर चिढ़ाती थीं। धीरे-धीरे मैं उनके परिवार का हिस्सा बन गया।
लेकिन एक दिन जैसे मेरे सिर पर पहाड़ टूट पड़ा। पता चला कि भैया-भाभी अपना फ्लैट छोड़कर कहीं और शिफ्ट होने वाले हैं। मैंने तो सर पीट लिया। इतनी मेहनत की थी, और अब सब बेकार? लेकिन थोड़ी राहत की बात थी कि वो ज्यादा दूर नहीं गए, बस 100 मीटर की दूरी पर नया फ्लैट लिया था। फिर भी, मेरा उनके घर आना-जाना कम हो गया। हफ्ते में एक-दो बार ही जा पाता था।
एक दिन सुबह करीब 9 बजे मैं उनके नए फ्लैट पर पहुंचा। मेरा ऑफिस पास ही था, और मैं 10 बजे निकलता था, लेकिन उस दिन जल्दी पहुंच गया। भैया तो 8 बजे ही ड्यूटी पर चले जाते थे। भाभी ने दरवाजा खोला और मुस्कुराते हुए बोलीं, “अरे, मुकेश, आ जा, आ जा! क्या हाल है तेरा?” मैंने कहा, “ठीक है, भाभी, लेकिन आप लोग इतना दूर चले आए, अब मन नहीं लगता।” वो हंसते हुए बोलीं, “अच्छा? तो भैया को बोल दे कि वापस पुराने फ्लैट में चलें!” मैंने कहा, “नहीं, अब तो वो वापस नहीं आएंगे।” वो बोलीं, “चल, बैठ, चाय बनाती हूँ।”
उस दिन ठंड का मौसम था। भाभी ने हल्की नीली नाइटी पहनी थी, और अंदर ब्रा नहीं थी। जब वो चलती थीं, तो उनके बड़े-बड़े स्तन ऐसे हिलते थे जैसे दो तरबूज आपस में टकरा रहे हों। नाइटी में उनके निप्पल साफ दिख रहे थे, और मैं तो बस उनको घूरता रह गया। मेरा लंड पैंट में तन गया, और मैंने सोचा, इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा। आज तो बोल ही देता हूँ। मैंने हिम्मत जुटाई और हड़बड़ाते हुए कहा, “भाभी, आपसे एक चीज मांगनी है।” वो रसोई से चाय और नमकीन लेकर आईं और बोलीं, “क्या चाहिए? बोल ना!” मैंने कहा, “वो… आपके पास है।” वो हंस पड़ीं और बोलीं, “अरे, बदतमीजी तो नहीं कर रहा ना?” मैंने कहा, “नहीं, भाभी, बदतमीजी की क्या बात? मुझे… मुझे एक किस चाहिए।”
वो ठहाके मारकर हंसने लगीं और बोलीं, “अच्छा? तो 9 बजे आ जाना, जब तुम्हारे भैया आएंगे, उनके सामने ही ले लेना!” मैंने गंभीर होकर कहा, “भाभी, मैं मजाक नहीं कर रहा।” वो भी एकदम सीरियस हो गईं और बोलीं, “मैं भी मजाक नहीं कर रही। भैया के सामने ले लेना, मैंने तो मना नहीं किया।” उनकी आँखों में एक शरारत थी, लेकिन मैं डर भी रहा था। दिल की धड़कन तेज हो गई थी, सांसें भारी थीं। मैंने फिर कहा, “भाभी, प्लीज, एक बार दे दो ना, आपका क्या जाएगा?” वो चुप रहीं। फिर खड़ी होकर दरवाजे की तरफ गईं, बाहर झांककर देखा, और दीवार से सटकर खड़ी हो गईं।
मैं समझ गया कि वो शायद हाँ कह रही हैं। मैं उठा और उनके पास गया। उनके गुलाबी होंठों को देखकर मेरा मन डोल गया। मैंने धीरे से उनका हाथ पकड़ा और उनके होंठों पर किस करने की कोशिश की। वो शरमाने लगीं, हंसने लगीं, जैसे चाहती भी थीं और नहीं भी। मैंने फिर हिम्मत की और उनके होंठों पर किस कर दी। उनके होंठ मुलायम, गर्म, और रसीले थे। मैंने धीरे से उनके गाल पर भी किस किया, और मेरा एक हाथ उनके बड़े-बड़े स्तनों पर चला गया। मैंने धीरे से दबाया, लेकिन उनके स्तन इतने बड़े थे कि मेरे हाथ में समा ही नहीं रहे थे। मैंने जोर से दबाना शुरू किया, और वो एकदम से छिटककर अलग हो गईं। उनका चेहरा गंभीर हो गया। वो बोलीं, “ये सब मैं आज तुम्हारे भैया को बता दूँगी।” मेरी तो सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। मैं डर गया। मैंने तुरंत सॉरी बोला और वहाँ से भाग निकला।
ऑफिस पहुंचा, लेकिन मेरा मन काम में नहीं लग रहा था। मैं बार-बार सोच रहा था कि अब क्या होगा। अगर भाभी ने भैया को बता दिया तो? करीब 12 बजे ऑफिस के लैंडलाइन पर फोन आया। मैंने उठाया तो दूसरी तरफ भाभी की आवाज थी, “हेलो, मैं बोल रही हूँ।” मैं घबरा गया। मुझे लगा कि भैया को बुलवाने के लिए फोन किया है। मैंने डरते-डरते कहा, “हाँ, भाभी, बोलो।” वो बोलीं, “तुमने क्या किया था?” मैंने कहा, “कुछ भी तो नहीं, भाभी। अगर कुछ गलत हो गया तो माफी मांगता हूँ। मैं दोबारा ऐसी बदतमीजी नहीं करूँगा।” वो बोलीं, “नहीं, मुझे चाहिए। तुम करो। मुझे कुछ नहीं पता, तुम अभी मेरे पास आओ।” मैंने कहा, “भाभी, प्लीज, सॉरी।” वो गुस्से में बोलीं, “अगर नहीं आए तो मैं सबको बता दूँगी।” मैंने डरते हुए कहा, “ठीक है, कल सुबह आ जाऊँगा। आज ऑफिस में काम है, छुट्टी नहीं मिलेगी।”
अगले दिन मैं सुबह 8:30 बजे ही उनके घर पहुंच गया। लेकिन वहाँ ताला लगा था। भैया तो 8 बजे ड्यूटी पर चले जाते थे। पता चला कि भाभी अपनी सहेली के घर गई थीं, जो बगल के फ्लैट में रहती थी। मैं वहाँ गया। भाभी ने मुझे देखा और बोलीं, “अब मैं घर कैसे जाऊँ? ये क्या सोचेगी?” मैंने कहा, “उनको बोल दो कि मुकेश को पैसे की जरूरत है, मैं घर से पैसे देकर आ रही हूँ।” भाभी ने वैसा ही किया, और मेरे साथ अपने फ्लैट पर आ गईं।
जैसे ही हम फ्लैट में घुसे, भाभी ने दरवाजा बंद किया। फिर बिना कुछ बोले, उन्होंने अपनी सलवार की डोरी खोल दी। सलवार नीचे गिर गई, और फिर उन्होंने पैंटी भी उतार दी। वो बेड पर लेट गईं और अपने कुर्ते से अपनी चूत को ढक लिया। उनकी गोरी, गोल-मटोल जांघें और तने हुए बड़े-बड़े स्तन कुर्ते के ऊपर से साफ दिख रहे थे। मेरा लंड पैंट में तनकर खड़ा हो गया। मैं उनके ऊपर टूट पड़ा। मैंने उनके होंठों को अपने होंठों से चूमना शुरू किया। उनके होंठों का स्वाद ऐसा था जैसे कोई गर्म शहद चख रहा हूँ। मैंने उन्हें अपनी बाहों में कस लिया। उनके स्तन मेरी छाती से दब रहे थे, और कुर्ते का गला नीचे खिसकने से उनकी गहरी दरार साफ दिख रही थी। मैंने धीरे-धीरे उनके कुर्ते को ऊपर उठाया। उनकी चिकनी जांघों को सहलाते हुए मैंने उनके पैर अलग किए।
मैंने उनकी चूत को देखा। गुलाबी, गीली, और पूरी तरह से तैयार। मैंने अपनी जीभ से उनकी चूत को चाटना शुरू किया। भाभी की सिसकारियाँ निकलने लगीं, “आह्ह… मुकेश… उफ्फ…” मैंने उनकी क्लिट को धीरे-धीरे चूसा, और वो अपने कूल्हे हिलाने लगीं। मैंने अपनी उंगलियाँ उनकी चूत में डालीं और धीरे-धीरे अंदर-बाहर करने लगा। भाभी की सांसें तेज हो गईं, और वो बोलीं, “बस कर, अब और मत तड़पा… जल्दी कर ना…” मैंने अपनी पैंट उतारी और अपना 7 इंच का मोटा लंड बाहर निकाला। लंड का सुपाड़ा गीला हो चुका था। मैंने उसे उनकी चूत के मुहाने पर रखा और धीरे से रगड़ा। भाभी कराह उठीं, “आह्ह… डाल दे… प्लीज…”
मैंने एक हल्का सा धक्का मारा, और मेरा लंड उनकी गीली चूत में आधा घुस गया। भाभी ने जोर से सिसकारी भरी, “उह्ह्ह… हायyy…” मैंने धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू किए। उनकी चूत इतनी टाइट थी कि मेरा लंड हर धक्के में और सख्त होता जा रहा था। मैंने उनके दोनों चूतड़ों को अपने हाथों में पकड़ लिया और जोर-जोर से धक्के मारने लगा। हर धक्के के साथ उनकी चूत से फच-फच की आवाज आ रही थी। भाभी की सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं, “आह्ह… मुकेश… और जोर से… हायyy… चोद दे मुझे…” मैंने उनकी बात मानी और पूरी ताकत से धक्के मारने लगा। उनके बड़े-बड़े स्तन कुर्ते से बाहर निकल आए थे और हर धक्के के साथ उछल रहे थे। मैंने एक हाथ से उनके स्तन को दबाया और निप्पल को मसलने लगा। भाभी की आँखें बंद थीं, और वो बस सिसकारियाँ ले रही थीं, “उह्ह… हायyy… कितना मोटा है तेरा… आह्ह…”
मैंने उनकी दोनों टांगें अपने कंधों पर रखीं और और गहराई तक धक्के मारने लगा। उनकी चूत पूरी तरह गीली थी, और मेरा लंड हर बार पूरा अंदर-बाहर हो रहा था। करीब 15 मिनट तक मैंने उन्हें चोदा। फिर मैंने महसूस किया कि मैं झड़ने वाला हूँ। मैंने कहा, “भाभी, मैं झड़ने वाला हूँ…” वो बोलीं, “अंदर मत करना… बाहर निकाल…” मैंने अपना लंड बाहर निकाला और उनके पेट पर झड़ गया। उसी वक्त भाभी भी झड़ गईं। उनकी साँसें तेज थीं, और वो मेरी बाहों में लेट गईं। हम दोनों कुछ देर तक ऐसे ही लेटे रहे। फिर मैंने उन्हें एक बार फिर चूमा और अपने कपड़े पहनकर निकल गया।
तीसरे दिन मैं फिर उनके घर गया, लेकिन वहाँ ताला लगा था। पड़ोसी ने बताया कि भाभी अपने गाँव चली गई हैं और दो महीने बाद आएँगी। मैंने दो महीने तक उनका इंतजार किया। जब मैं फिर उनके घर गया, तो भाभी मिलीं। वो बोलीं, “मुकेश, मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनने वाली हूँ।” मैं चौंक गया और बोला, “ये कैसे हो सकता है? ये भैया का होगा।” वो बोलीं, “मैंने भैया को पिछले एक साल से छूने तक नहीं दिया। वो तो चोद ही नहीं पाते।” मैं हैरान था। कुछ दिन बाद भाभी गुजरात चली गईं। उसके बाद उनसे कोई संपर्क नहीं हो पाया।
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