Sister Brother Incest Hindi एक रात हमारे घर पर मेरी दीदी आई हुई थी। अगले दिन मुझे उसे लेकर एक गांव की शादी में जाना था। वो मुझसे उम्र में काफी बड़ी थी, लेकिन दिखती बिल्कुल सोलह साल की जवान लड़की जैसी थी। उसका बदन इतना आकर्षक था कि किसी का भी मन डोल जाए। दीदी के लंबे-लंबे बाल थे, रंग एकदम गोरा और चिकना, और उसकी चूचियां इतनी बड़ी और उभरी हुई कि देखते ही लंड खड़ा हो जाए। वो अक्सर मेरे सामने ही कपड़े बदल लिया करती थी, बिना किसी झिझक के। उस दिन उसने नीले रंग की साड़ी पहनी हुई थी। मौसम गर्मी का था, तपती दोपहर से रात तक हवा में उमस भरी हुई थी। घरवाले सब पहले ही शादी में चले गए थे, मैं घर पर अकेला था, इंतजार कर रहा था दीदी का।
जैसे ही दीदी घर आई, उसने दरवाजा खोला और अंदर आते हुए बोली, “आज कितनी गर्मी है भाई, जा तू घर का गेट बंद कर दे और अपने कमरे का एसी चला दे।” मैं उठा, गेट बंद किया और कमरे में जाकर एसी ऑन कर दिया। एसी की ठंडी हवा कमरे में फैलने लगी। दीदी कमरे में आई और बिना देर किए अपनी साड़ी का पल्लू हटा दिया। फिर कुर्सी पर बैठ गई और पूछा, “मम्मी-पापा कब गए?” लेकिन मेरा ध्यान तो उसकी तरफ था। मैं उसके ब्लाउज से झांकती चूचियों को घूर रहा था। ब्लाउज इतना टाइट और पतला था कि अंदर की सफेद ब्रा साफ दिख रही थी, और चूचियां इतनी कसी हुई लग रही थीं मानो ब्रा और ब्लाउज को फाड़कर बाहर आना चाहती हों। दीदी रात को भी ब्रा पहनकर सोती थी, कभी उतारती नहीं।
दीदी ने फिर बोला, “तेरा ध्यान कहां है? मैं पूछ रही हूं मम्मी-पापा कब गए?” मैंने जल्दी से उसकी आंखों की तरफ देखा और कहा, “सुबह ही चले गए।” दीदी बोली, “अच्छा, चल मैं तेरे लिए कुछ खाना बना देती हूं।” वो उठी और अपनी साड़ी पूरी उतार दी। अब वो सिर्फ ब्लाउज और नीला पेटीकोट पहने थी, जो इतना टाइट था कि उसकी गांड और जांघों की शेप साफ नजर आ रही थी। बिना साड़ी के वो और भी सेक्सी लग रही थी। वो ऐसे ही रसोई में चली गई और खाना बनाने लगी। मैं भी पीछे-पीछे रसोई में आ गया और खड़ा होकर उसे देखने लगा। वो इधर-उधर घूमती, सामान उठाती, तो कभी उसकी गांड मेरे लंड से टकरा जाती, कभी उसकी चूत का उभार मेरे शरीर से छू जाता। हर टक्कर से मेरा लंड सख्त होता जा रहा था। मन में बस यही चल रहा था कि काश दीदी को चोद पाऊं, लेकिन डर था कि कहीं वो गुस्सा न कर दे या डांट दे।
खाना तैयार हो गया। दीदी प्लेट लेकर मेरे कमरे में आई और बोली, “चल, खा ले।” मैं खाना खाने बैठ गया। दीदी मेरे सामने फर्श पर बैठ गई और अपना पेटीकोट थोड़ा ऊपर करने लगी। उसने घुटनों तक ऊपर किया, फिर नाड़ा ढीला करके पेटीकोट को और नीचे सरका दिया। लेकिन वो मेरी उम्मीद से ज्यादा नीचे कर दिया था। अब उसकी टूंडी और उससे नीचे का हिस्सा साफ दिख रहा था, क्योंकि पेटीकोट चूत के ठीक ऊपर ही रुका हुआ था। मुझे उसके चूत के ऊपर काले-काले बाल नजर आए, जो शायद ट्रिम किए हुए थे। उसकी गोरी जांघें इतनी चिकनी लग रही थीं, हल्के-हल्के बालों के साथ, जो और भी आकर्षक बना रहे थे। मेरा लंड अब पूरी तरह खड़ा हो चुका था, पैंट में तंबू बना रहा था।
मैंने खाना खाया, तो दीदी बर्तन उठाने के लिए आगे झुकी। उसके ब्लाउज से चूचियों के बीच की गहरी दरार साफ दिखी, जो इतनी गहरी थी कि नजर हटाना मुश्किल था। मैंने किसी तरह खुद पर काबू किया। दीदी बर्तन लेकर रसोई गई, मैं टीवी ऑन करके देखने लगा। थोड़ी देर बाद दीदी चाय बनाकर लाई। एक कप मुझे दिया और दूसरा लेकर मेरे सामने कुर्सी पर बैठ गई। बोली, “आज गर्मी बहुत है, तू इस एसी को और कूलिंग पर कर दे।” मैंने रिमोट से कूलिंग बढ़ा दी। अब कमरा और ठंडा हो गया। दीदी ने अपने ब्लाउज के बटन खोलने शुरू कर दिए। मैं बस देखता रहा, मेरा लंड और सख्त होता गया। उसने सारे बटन खोल दिए और हाथ ऊपर करके बैठ गई। अब उसकी सफेद ब्रा पूरी तरह दिख रही थी, और बगलों में छोटे-छोटे बाल थे, जो उसे और रियल लगवा रहे थे। दीदी बोली, “चल, सो जाएं।” हमने चाय खत्म की और बेड पर लेट गए।
मैं बेड पर लेटा, दीदी ब्लाउज के बटन खुले छोड़कर मेरे बगल में लेट गई। उसने पूछा, “कुछ परेशानी तो नहीं हो रही?” मैंने कहा, “नहीं।” फिर मैंने पूछा, “घर पर भी आप ऐसे ही सोती हो?” वो बोली, “कैसे?” मैंने उसके ब्लाउज और ब्रा की तरफ इशारा किया। दीदी बोली, “हां, जब घर पर कोई नहीं होता तो मैं सारे कपड़े उतारकर सोती हूं।” फिर बोली, “यहां भी तो कोई नहीं है।” मैं बोला, “मैं तो हूं।” वो बोली, “तू तो मेरा बेटा जैसा है, तुझसे कैसी शर्म? जब तेरे सामने कपड़े बदल लेती हूं, तो अब क्या शर्म?” फिर दीदी ने करवट बदली और दूसरी तरफ मुंह कर लिया।
अब दीदी की गांड मेरी तरफ थी, पेटीकोट में इतनी उभरी हुई कि देखते ही मन करे छू लूं। दीदी बोली, “चल सो जा, सुबह जल्दी उठना है।” मैं चुपचाप उसकी गांड देखता रहा। करीब दस मिनट बाद, मैंने धीरे से अपनी पैंट उतारी और दीदी की तरफ मुंह करके लेट गया। अपना लंड उसकी गांड पर टिका दिया। दीदी ने भी अपनी गांड थोड़ी पीछे सरका ली, जिससे लंड गांड के छेद पर दब गया और पेटीकोट हल्का सा अंदर चला गया। मैं धीरे-धीरे धक्के लगाने लगा, जैसे नींद में कर रहा हूं। फिर एक हाथ दीदी के पेट पर रखा और धीरे-धीरे चूत के ऊपर के हिस्से पर उंगलियां घुमाने लगा, टूंडी के अंदर तक। दीदी जाग गई, लेकिन लेटे-लेटे बोली, “क्या कर रहा है, पीछे होकर सो ना।” मैंने ऐसे किया जैसे सुना नहीं। दीदी ने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया और सोने लगी।
मैंने फिर हाथ हरकत शुरू की और पीछे से धक्के लगाने लगा। दीदी बोली, “नहीं मानेगा।” मैं चुपचाप लेट गया। दीदी ने एक हाथ पीछे किया, मेरे लंड को गांड से हटाया और अपनी गांड पर हाथ रख लिया। थोड़ी देर बाद मैंने लंड निकर से निकाला और दीदी के हाथ पर रख दिया। दीदी ने उस पर हाथ रखा, फिर गांड से हाथ हटा लिया। शायद उसे मेरे लंड की लंबाई और मोटाई पसंद आ गई थी, क्योंकि वो थोड़ा सहलाने लगी। मैंने धीरे से उसका पेटीकोट जांघ तक ऊपर कर दिया, फिर पीछे से कमर तक। जैसे ही लंड गांड पर रखा, दीदी ने पीछे झटका दिया। मैं समझ गया, दीदी गरम हो चुकी है, लेकिन नाटक कर रही है। मैंने खुद को पीछे किया और दीदी की दोनों जांघों के बीच थूक लगाया। लंड दोनों जांघों में फंसा दिया। दीदी ने जांघें कसकर भींच लीं। अब मेरा लंड जांघों को गांड की तरह चोद रहा था, हर धक्के में जांघों की चिकनी त्वचा से रगड़ खाता।
फिर मैंने एक हाथ आगे से पेटीकोट में डाला और चूत की तरफ ले जाने लगा। दीदी ने ऊपर की जांघ थोड़ी उठा दी। जैसे ही चूत छुई, वो चिकनी और गीली थी, पानी निकल रहा था। मैं जोर-जोर से जांघों में धक्के लगाने लगा, एक हाथ से चूत सहलाता रहा। दीदी को मजा आ रहा था, वो हल्के-हल्के सिसकारियां लेने लगी, “आह… उम्म…” लेकिन बोली नहीं। उसने अपनी टांग उठाकर मेरे पीछे रख दी और लंड को हाथ से पकड़कर चूत से चिपका दिया, लेकिन अंदर नहीं डाला। मुझे बाहर से रगड़ने में मजा आ रहा था, इसलिए मैंने कोशिश नहीं की। फिर लंड चूत से हटाकर गांड के बीच रखा और धक्के लगाने लगा। दीदी पहले जैसी हो गई, लेकिन अब वो भी गांड पीछे करके साथ दे रही थी। मैंने फिर हाथ आगे से डाला और चूत की खाल पकड़कर खींचने लगा। दीदी को दर्द हुआ, वो बोली, “बहुत देर हो गई तुझे, तू अब सो जा, सुबह जाना नहीं है क्या?” मैंने अनसुना कर दिया।
अब मैं धक्के लगाता रहा, चूत को टटोलने लगा, चौड़ा करके सहलाने लगा। दीदी को बहुत मजा आ रहा था, वो मेरे लंड पर गांड जोर से दबा रही थी, मानो अंदर लेना चाहती हो। “ओह… आह…” उसकी सिसकारियां बढ़ गईं। मैं झड़ने वाला था, कई जोरदार झटके मारे, चूत को जोर से रगड़ा। दीदी की चूत से गर्म पानी निकला, “आआह… उफ्फ…” वो मेरे हाथ को कसकर पकड़ ली, लेकिन मैं रुका नहीं। चूत रगड़ता रहा जब तक मेरा पानी गांड के बीच नहीं निकल गया। मैं धक्के मारता रहा, दीदी भी धक्के मार रही थी, “फट… फट…” की आवाजें आने लगीं। मैंने जोर का झटका दिया, दीदी ने भी जोर से झटका दिया, “आआह…” और मेरा सारा पानी गांड के बीच निकल गया। थोड़ी देर रुका, तो दीदी ने लंड हाथ से निकाल दिया, जैसे कुछ पता नहीं। लेकिन मैं जानता था, उसे सब पता है।
मैं दूसरी तरफ मुंह करके लेट गया। फिर दीदी की साइड मुंह किया, देखा पेटीकोट पीछे से गांड से ऊपर और आगे से जांघ तक है। मैं आंख खोलकर देखता रहा कि दीदी क्या करेगी। वो मेरे सोने का इंतजार कर रही थी। मैं चुपचाप पड़ा रहा, जैसे सो गया हूं। कुछ देर बाद दीदी उठी, मेरे सर पर हाथ फेरा और बेड से उतर गई। पेटीकोट नीचे किया और देखने लगी, वो गीला हो चुका था। वो बाथरूम चली गई। मैं बाथरूम के पास गया और छेद से देखने लगा। दीदी खुद को देख रही थी, चूचियों को ब्रा के ऊपर से दबा रही थी, मेरे नाम से पुकारते हुए। पेटीकोट उठाया, गांड पर हाथ लगाया, मेरा पानी हाथ पर आया, उसे देखा और चाट लिया। फिर चूत से पानी लिया और चाटा। पेटीकोट कमर तक ऊपर करके बैठ गई, मग्गे में पानी लिया और चूत-गांड धोई। खड़ी होकर पेटीकोट मुंह से पकड़कर टांगें धोईं। टॉवल से पोछा, पेटीकोट नीचे किया और शीशे में देखा। फिर बाहर आई।
घड़ी देखी, रात का एक बज चुका था। मैं बेड पर लेट गया, सोने का नाटक किया। दीदी आई, मेरे बगल में लेट गई। ब्लाउज के बटन अभी खुले थे, पेटीकोट टूंडी से नीचे। मैं दीदी की तरफ मुंह करके सो रहा था। दीदी ने भी मेरी तरफ मुंह किया। उसका पेट मेरे लंड से टकराया, अंडरवियर में लंड खड़ा होने लगा। मैंने लंड निकाला और उसके गोरे पेट पर रगड़ने लगा। दीदी बोली, “तेरे पास लेटकर तो मैं दुखी हो गई, तू नहीं सोने देगा।” मैं चुप लेट गया। दीदी थोड़ी ऊपर हुई, जिससे लंड उसकी गहरी टूंडी में चला गया। मैं समझ गया, उसे लंड पसंद आया, अब वो फिर मजा लेना चाहती है। मैं टूंडी में लंड और अंदर करके धक्के मारने लगा, “फच… फच…” की आवाजें। फिर एक साइड की ब्रा ऊपर की, चूची मुंह में ली, चूसने लगा, चाटा, काटा। दीदी दर्द से, “आह… उफ्फ…” भरती। पीछे हाथ करके पेटीकोट में डाला, गांड दबाने लगा, नाखून गड़ाए।
अबकी बार मैं जल्दी झड़ गया, सारा पानी टूंडी में छोड़ दिया, दीदी का पेट गीला हो गया। मैं सीधा लेट गया, दीदी के पेट पर हाथ फेरने लगा, पानी फैला दिया। फिर चुपचाप लेट गया। दीदी ने सोचा मैं सो गया, ब्रा ठीक की और सो गई। सुबह उठा तो दीदी घर की सफाई कर रही थी, ब्लाउज उतारा हुआ, सिर्फ ब्रा और पेटीकोट में। हम एक-दूसरे से नजर नहीं मिला पा रहे थे। फिर नहाकर शादी में चले गए। इसके बाद दीदी ने मुझे कई बार चोदा और मुझसे चुदवाया।