दोस्तों को राघव का प्रणाम। दोस्तों, आपका लंड फिर से खड़ा करने के लिए मैं अपनी चुदाई की कहानी लेकर आया हूँ। बात कुछ महीनों पहले की है, जब मेरे कॉलेज के दोस्त की शादी थी। हम सब दोस्त उसकी शादी में हरियाणा के एक छोटे से गाँव में गए थे। गाँव का माहौल एकदम देसी था, चारों तरफ खेत, पुराने मकान, और वो हरियाणा की ठंडी हवा जो रात को और भी सुहानी लगती थी। शादी का जोश, ढोल की थाप, और गाँव की औरतों की चूड़ियों की खनक ने माहौल को और मस्त बना दिया था। लेकिन मेरी नजर तो बस एक लड़की पर अटक गई थी, जो मेरे दोस्त के पड़ोस में रहती थी। उसका नाम था निशा।
निशा, एक 18 साल की देसी माल, जिसका रंग एकदम गोरा था, जैसे दूध में केसर घुला हो। उसके बूब्स अभी पूरी तरह खिले नहीं थे, बस आधे साइज़ के, लेकिन उसकी कमर और चपटी सी गाँड में वो बात थी जो किसी का भी लंड खड़ा कर दे। वो ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी, गाँव की लड़की जो ठहरी, लेकिन उसकी आँखों में एक शरारत थी, जो मुझे बार-बार अपनी तरफ खींच रही थी। पहले दिन जब मैंने उसे देखा, वो अपने घर के आँगन में कपड़े सुखा रही थी। उसकी सलवार-कमीज़ में से उसका गोरा पेट झलक रहा था, और जब वो झुकती थी, तो उसकी कमीज ऊपर खिसक जाती थी। मैं बस उसे देखता रहा, और शायद उसने भी मुझे नोटिस कर लिया था।
पहले दो दिन मैंने उसे लाइन दी। कभी आँखों से इशारा, कभी मुस्कान के साथ “हाय” बोलना। वो भी हल्का-हल्का स्माइल देती थी, और उसकी आँखों में वो चमक थी, जो बता रही थी कि वो भी मेरे में इंटरेस्ट ले रही थी। तीसरे दिन मैंने सोचा, अब बहुत हो गया ये इशारे-विशारे। शादी का माहौल था, लोग अपने-अपने काम में व्यस्त थे, और मैंने मौका देखकर उसे छत पर बुलाया। मैंने उसे “चलती क्या” वाला इशारा किया, और वो हँस पड़ी। उसकी हँसी में वो देसी मस्ती थी, जो गाँव की लड़कियों में ही दिखती है। मैं छत पर गया, और थोड़ी देर बाद वो भी सीढ़ियाँ चढ़कर आ गई।
जैसे ही वो आई, मैंने उसका हाथ पकड़ लिया। शायद जल्दबाजी हो गई, क्योंकि वो पीछे हट गई। मैंने फट से हाथ छोड़ा और उससे पूछा, “मुझे इतना क्यूँ देखती हो?”
वो बोली, “आप मुझे अच्छे लगते हो।”
मैंने कहा, “तुम भी मुझे पसंद हो निशा!”
इस बार मैंने फिर से उसका हाथ पकड़ा, और वो हिली नहीं। मैंने उसे खींचकर एक चुम्मा दे दिया। उसने भी मुझे किस कर लिया, लेकिन इससे पहले कि मैं कुछ और करता, वो शरमाकर भाग खड़ी हुई। उसकी भागती हुई गाँड को देखकर मेरा लंड और तन गया। मैंने सोचा, ये तो बस शुरुआत है।
शादी वाले दिन की रात का किस्सा है। सब लोग थककर सो गए थे। ढोल-नाच का प्रोग्राम देर तक चला था, और मेहमानों की भीड़ की वजह से नीचे सोने की जगह नहीं थी। मैं अपने दोस्त के साथ छत पर सोने चला गया, लेकिन वहाँ भी भीड़ थी। मुश्किल से एक आदमी के लेटने की जगह थी। मैंने दोस्त से कहा, “तू सो जा, मैं मोबाइल पर मूवी देखता हूँ।” वो लेटा ही था कि बगल से आवाज़ आई, “जी, हमारी छत पर आ जाओ, यहाँ जगह नहीं है!”
ये निशा के पापा थे। मैंने चादर और तकिया उठाया, और छत फाँदकर उनके घर की छत पर चला गया। एक साइड में चादर बिछाकर मैं लेट गया।
अभी नींद भी ठीक से नहीं आई थी कि मुझे लगा कोई अपनी टाँग मेरी टाँगों से रगड़ रहा है। मैंने साइड में देखा, तो निशा थी। वो आँखें बंद करके सोने का नाटक कर रही थी, लेकिन उसकी टाँगों की हरकत बता रही थी कि वो जाग रही थी। मैंने देखा, उसके पापा और मम्मी चादर ओढ़कर दूर सो रहे थे। मैंने सोचा, जब ये गाँव की छोरी खुद लंड माँग रही है, तो मौका क्यों छोड़ूँ? मैंने हाथ बढ़ाकर उसकी चूँची दबा दी। निशा ने सलवार-कमीज़ पहनी थी, और कमीज के अंदर हाथ डालते ही पता चला कि उसने ब्रा नहीं पहनी थी। उसके छोटे-छोटे बूब्स को मैं मसलने लगा, और वो हल्की-हल्की सिसकारियाँ लेने लगी। फिर मैंने हाथ नीचे ले जाकर उसकी सलवार का नाड़ा खोल दिया। अंदर पैंटी भी नहीं थी। उसकी जवान देसी चूत को छूते ही मेरे जिस्म में करंट सा दौड़ गया। उसकी चूत गीली थी, जैसे वो पहले से ही गरम हो चुकी थी।
निशा ने मेरी तरफ देखा, होंठों को दाँतों तले दबाकर अपनी उत्तेजना को कंट्रोल करने की कोशिश कर रही थी। वो इतनी हॉर्नी लग रही थी कि मेरा लंड पैंट में तंबू बना रहा था। मैंने धीरे से एक उँगली उसकी चूत में घुसेड़ दी। वो मजे से उछल पड़ी, लेकिन चादर के अंदर थी, तो कोई हलचल बाहर नहीं दिखी। मैंने अपनी ट्रैक पैंट से लंड बाहर निकाला, जो अब फुल टाइट था। निशा ने उसे अपने नाज़ुक हाथों में पकड़ लिया और हिलाने लगी। उसकी गर्म हथेलियाँ मेरे लौड़े पर जादू कर रही थीं।
मैंने उसकी चूत में दूसरी उँगली भी डाल दी। उसकी चिकनाहट बढ़ चुकी थी, और मेरी उँगलियाँ उसकी चूत के अंदर-बाहर हो रही थीं। निशा ने मुझे चादर के अंदर आने का इशारा किया, ताकि कोई देख न ले। हम दोनों चादर में घुस गए। मैंने उसका सिर अपने लंड की तरफ खींचा, और वो समझ गई कि क्या करना है। उसने मेरे लौड़े को अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगी। उसका गर्म मुँह मेरे लंड पर ऐसा लग रहा था जैसे कोई रसीली चूत चूस रही हो। मैंने उसकी चूत को सामने देखा, तो खुद को रोक न सका। मैंने उसकी सलवार को और नीचे खींचा और उसकी चूत को चाटना शुरू कर दिया। उसकी चूत का स्वाद नमकीन और मस्त था, जैसे ताज़ा मलाई। निशा ने मेरा पूरा लंड मुँह में ले लिया और ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगी। दो मिनट में ही हम दोनों ने एक-दूसरे के मुँह में कामरस की पिचकारी छोड़ दी। उसका रस मेरे मुँह में था, और मेरा वीर्य उसके गले में उतर गया।
निशा सीधी लेट गई, और मैंने उसके बूब्स को अपने होंठों में भर लिया। उसके निप्पल कड़क हो चुके थे, और मैं उन्हें चूसते हुए उसकी चूत को फिर से सहलाने लगा। मेरा लंड एक मिनट में ही फिर से खड़ा हो गया। मैंने निशा को कान में कहा, “अब तुझे पीछे से लेना चाहता हूँ।” उसने अपनी गाँड मेरी तरफ कर दी, और मैंने उसकी चूत में फिर से उँगली डाली। उसकी चूत इतनी गीली थी कि मेरा लंड आसानी से फिसल गया। मैंने एक हाथ से उसका मुँह बंद किया, ताकि आवाज़ न निकले, और पीछे से ज़ोर का धक्का मारा। मेरा पूरा लौड़ा उसकी चूत में समा गया।
मैं अपनी कमर को आगे-पीछे करने लगा, और मेरा लंड उसकी चूत में मस्त अंदर-बाहर हो रहा था। निशा भी अपनी गाँड को हिलाकर मेरा साथ दे रही थी। उसकी चूत की गर्मी और टाइटनेस मेरे लंड को पागल कर रही थी। मैंने एक हाथ से उसके बूब्स दबाए और दूसरे से उसकी गाँड को सहलाया। उसकी गाँड का छेद देखकर मेरा मन डोल गया। मैंने सोचा, इस देसी माल की गाँड भी मारनी है। लेकिन उसकी चूत का मज़ा इतना मस्त था कि मैं बस उसी में खोया रहा। करीब 15 मिनट की चुदाई के बाद मैंने उसकी चूत में ही अपने वीर्य की पिचकारी छोड़ दी। उसकी चूत से मेरा रस टपक रहा था, और वो मजे से सिसकारियाँ ले रही थी।
हम दोनों चादर में ही लेट गए। उसने अपनी सलवार-कमीज़ ठीक की, और मैंने अपनी ट्रैक पैंट चढ़ा ली। निशा मेरे से अलग होकर सो गई, और मुझे उस रात गहरी नींद आई। इतनी मस्त चुदाई बहुत समय बाद की थी।
अगले दिन शादी की बरात पास के गाँव में गई। हम दोस्त दूल्हे के साथ मस्ती में लगे थे। रात को दुल्हन लेकर वापसी हुई, और पड़ोस की औरतें दुल्हन देखने आईं। निशा भी अपनी माँ के साथ आई थी। उसने चोली और लहंगा पहना था, और उसकी चोली में से उसके बूब्स का उभार साफ दिख रहा था। उसे देखकर मेरा लंड फिर से तन गया। मैंने उसे स्माइल दी, और उसने भी हल्की सी मुस्कान के साथ आँख मारी। मैंने उसे इशारे से पीछे बुलाया, और वो मेरे पीछे आ गई।
मैंने कहा, “यार, फिर से मूड हो रहा है।”
वो बोली, “रात को मज़ा नहीं आया क्या?”
मैंने कहा, “मज़ा आया, इसलिए तो लंड बिगड़ रहा है फिर से तुझे चोली में देखकर।”
वो बोली, “लेकिन अभी तो मुश्किल है ना। सब तरफ मेहमान ही मेहमान हैं, तुम खुद ही देखो।”
मैंने खेतों की तरफ इशारा करके कहा, “वो नीम के पेड़ के नीचे मिलोगी मुझे एक घंटे में, वहाँ अपनी जगह खोज लेंगे हम।” वो हँसकर हाँ कर दी। शायद उसे भी मेरे लंड का मज़ा लेने में रुचि थी।
मैं मक्के के खेत में नीम के पेड़ के पास बैठा था। चारों तरफ हरियाली थी, और खेतों की मिट्टी की सोंधी खुशबू हवा में थी। निशा चुपके से वहाँ आ गई। उसने अब लूज़ टी-शर्ट और पैंट पहनी थी। मैंने कहा, “चोली मस्त थी, वो क्यूँ उतार दी?”
वो बोली, “बुध्धूराम, वो शादी में पहनते हैं।”
मैंने कहा, “माल लग रही थी, एकदम कड़क वाला!”
मैंने उसका हाथ पकड़कर उसे खेत के अंदर ले गया। मक्के के पौधों के बीच हमने एक छिपी हुई जगह ढूंढ ली। मैंने उसे नीचे बिठाया, और उसने मेरे लंड पर हाथ रखकर दबा दिया। मैंने भी उसके बूब्स को चूसना शुरू कर दिया, और उसकी चूत से खेलने लगा। उसकी टी-शर्ट को मैंने ऊपर उठाया, और उसके निप्पल मेरे मुँह में थे। वो सिसकारियाँ ले रही थी, और उसकी चूत पहले से ही गीली हो चुकी थी।
मैंने कहा, “आज तो मैं तुझे एकदम नंगा करके चोदना चाहता हूँ, निशा।”
वो बोली, “ऐसा क्यूँ?”
मैंने कहा, “रात को कुछ देखा नहीं, इसलिए अब देखना चाहूँगा ना!”
मैंने उसके सारे कपड़े उतार दिए, और खुद भी नंगा हो गया। खेत की ठंडी मिट्टी पर हम दोनों नंगे लेटे थे। निशा शरमा रही थी, लेकिन उसकी आँखों में वही शरारत थी। मैंने अपने लंड को उसकी चूत के छेद पर रगड़ा, और वो सिहर उठी। उसकी चूत पानी छोड़ने लगी थी। मैंने उसे झुकाकर मेरे लंड को मुँह में लेने को कहा, और उसने बिना रुके मेरा लौड़ा चूसना शुरू कर दिया। उसका मुँह मेरे लंड पर ऐसा लग रहा था जैसे कोई पॉर्न स्टार चूस रही हो। करीब 10 मिनट के ब्लोवजॉब में मेरा पानी उसके मुँह में चला गया।
मैंने उसकी जाँघों को चूमा, और फिर उसकी चूत की तरफ बढ़ गया। उसकी चूत को चाटते हुए मैंने एक उँगली अंदर डाल दी। वो मस्ती में सिहर रही थी। मैंने उसकी चूत को इतना चाटा कि वो दो बार झड़ गई। फिर मैंने उसे घोड़ी बनाया और पीछे से मेरा लंड उसकी चूत में पेल दिया। निशा अपनी गाँड को हिलाकर मेरा पूरा साथ दे रही थी। मैंने उसके बूब्स को ज़ोर-ज़ोर से मसला, और कहा, “निशा, मैं पीछे डालूँ?”
वो बोली, “नहीं, नहीं, पीछे नहीं, दुखता है!”
मैंने सोचा, साली ये गाँड नहीं मरवाएगी। लेकिन मेरा मन नहीं माना। मैंने उसकी चूत को और 5 मिनट मारा, और फिर अचानक लंड निकालकर उसकी गाँड के छेद पर लगा दिया। उसने कुछ बोलने की कोशिश की, लेकिन मैंने एक धक्का मारा, और मेरा लंड का सुपाड़ा उसकी टाइट गाँड में घुस गया। वो ज़ोर से चिल्लाई, और मुझे लगा कोई सुन लेगा। उसकी गाँड से हल्का खून निकला, और वो रोने लगी।
वो बोली, “प्लीज़ निकालो इसे, वरना मैं मर जाऊँगी।”
मैंने कहा, “निशा, एक मिनट में दर्द कम न हुआ तो निकाल लूँगा।”
मैंने उसके बूब्स और जाँघों को सहलाया, और उसका दर्द धीरे-धीरे कम हुआ। मैंने उसकी गाँड के छेद पर थूक लगाया और धीरे-धीरे आधा लंड अंदर कर दिया। मेरा लंड भी दर्द कर रहा था, लेकिन गाँड मारने का मज़ा ही अलग था। मैंने धीरे-धीरे उसकी गाँड मारना शुरू किया, और निशा भी अब अपनी गाँड को हल्के-हल्के मटकाने लगी। करीब 10 मिनट बाद मेरा वीर्य उसकी गाँड में छूट गया, और खून के साथ मिक्स होकर बहने लगा। मैंने अपने रूमाल से उसकी गाँड साफ की।
मैंने पूछा, “निशा, कैसे लगा पीछे लेने में?”
वो बोली, “तुम बहुत खराब हो, पीछे मना किया फिर भी। मुझे कितना दर्द हुआ, वो तुम्हे क्या पता!”
हमने कपड़े पहने और खेत से निकल आए। निशा की टाँगें काँप रही थीं, और वो बोली, “शाम की दावत भी नहीं खा पाऊँगी तुम्हारे लंड की वजह से।”
मैंने कहा, “आई लव यू।”
वो बोली, “आई लव यू टू।”
शाम की दावत में वो सचमुच नहीं आई। अगले दिन सुबह जब हम निकल रहे थे, निशा छत से मुझे देख रही थी। मैंने उसे अपना मोबाइल नंबर दिया था, लेकिन उसने कहा कि उसके पास मोबाइल नहीं है। आज तक उसका कॉल नहीं आया, लेकिन उस गाँव की माल की चुदाई का मज़ा मैं कभी नहीं भूलूँगा।