कविता और अमित का नया खेल – दीदी और छोटा भाई (रोल-प्ले)

4.9
(2000)

अगली सुबह जब अरुण नींद से उठा, तो उसने पाया कि बगल में कविता नहीं सो रही थी। इसका मतलब साफ था कि वह किचन में नाश्ता बना रही होगी। यह सोचते ही उसके होंठों पर हल्की मुस्कान आई। तभी उसे याद आया कि अब वह अरुण नहीं है, बल्कि अपनी बीवी के छोटे भाई, यानी अमित का रोल कर रहा है। और इस बार वह इस रोल में पूरी तरह डूब जाना चाहता था। उसने खुद को इस खेल में खोने का फैसला कर लिया था, ताकि वह और कविता इस खेल का पूरा मज़ा ले सकें।

पिछली कहानी: कविता और अरुण का रोल प्ले

अरुण ने बिस्तर से उठकर अपने बाल ठीक किए, और धीरे-धीरे कमरे से बाहर निकल आया। फ्रेश होकर जब वह ऑफिस जाने के लिए तैयार होने लगा, तो उसका मन आज कुछ अलग ही मस्ती में था। तैयार होकर वह किचन की ओर बढ़ा और कविता से पूछा, “दीदी, मेरा नाश्ता तैयार है या नहीं? मुझे ऑफिस के लिए लेट हो रहा है।”

कविता भी अपने रोल में पूरी तरह रम चुकी थी। उसने नाश्ते की प्लेट मेज पर रखते हुए कहा, “हाँ, तुम्हारा नाश्ता तैयार है, लेकिन ये तुम्हारी रोज़ की आदत हो गई है, लेट उठो और जल्दी-जल्दी भागते हुए ऑफिस जाओ। कब सुधरोगे तुम? इतने बड़े हो गए हो, शादी भी हो गई है, फिर भी अक्ल नहीं आई।”

उसके हाव-भाव और आवाज़ में दीदी के रोल की गंभीरता थी। कविता ने आगे कहा, “ऐसे ही तुम अपनी बीवी को भी परेशान करते होगे, इसलिए तो वो तुम्हें छोड़कर मायके चली गई है।” यह कहते ही उसने ज़ोर-ज़ोर से हंसना शुरू कर दिया। उसकी हंसी में मस्ती और छेड़खानी थी।

अमित यानी अरुण ने देखा कि कविता इस खेल में पूरी तरह से खो चुकी है। वह समझ गया कि अब उसे भी इस खेल को और गहरा करना होगा। उसे एहसास हुआ कि अब भलाई इसी में है कि खेल को पूरे मज़े से खेला जाए, ताकि कविता को भी पूरा आनंद मिल सके।

अरुण ने नाश्ता करते हुए सोचा कि कैसे धीरे-धीरे राहुल की बातें उसे सही लगने लगी थीं। हालांकि, वह अभी भी राहुल से नाराज था क्योंकि वह कभी अपनी पत्नी को किसी और मर्द के साथ देखने का ख्याल भी नहीं कर सकता था, और खासकर अपने किसी जानने वाले के साथ तो बिल्कुल नहीं। मगर अब इस खेल के जरिए, वह अपनी और कविता की इच्छाओं को समझने की कोशिश कर रहा था। उसे डर था कि अगर वह यह सब असल में करता, तो उसकी रोज़मर्रा की जिंदगी में दिक्कत आ सकती थी। इसलिए यह रोल-प्ले उसके लिए एक सुरक्षित रास्ता था, खुद को और अपनी पत्नी को इस अनुभव से रूबरू कराने का।

जल्दी-जल्दी नाश्ता कर, अरुण ऑफिस के लिए निकल पड़ा। ऑफिस पहुंचकर उसने सोचा कि कुछ काम निपटा ले और फिर अपनी बीवी यानी अपनी ‘दीदी’ को कॉल करेगा। थोड़ी देर काम करने के बाद, उसने आखिरकार कॉल किया। फोन उठते ही कविता ने हंसी-मजाक वाले लहजे में कहा, “हाँ भाई, क्या हुआ?”

अमित ने कहा, “कुछ नहीं दीदी, बस ऐसे ही फोन कर लिया। ऑफिस में फ्री था। सोचा तुमसे पूछ लूं कि मूवी देखना पसंद करोगी? आज ऑफिस में ज्यादा काम नहीं है, तो हाफ-डे लेने का सोच रहा हूं।”

कविता ने थोड़ा रुककर, जैसे सोचते हुए कहा, “हाँ, क्यों नहीं चलते। वैसे भी तुम्हारे जीजू मुझे मूवी दिखाने नहीं ले जाते।” उसकी आवाज़ में हंसी और एक खेल-खेल में कही बात थी, जैसे वह पूरी तरह से इस नए रोल में डूब चुकी हो।

“ठीक है दीदी, तुम तैयार रहना। मैं कुछ देर में आता हूं, फिर हम मूवी देखने चलेंगे।”

फोन रखने के बाद अरुण सोचने लगा कि कविता अब पूरी तरह से खेल का हिस्सा बन चुकी है और इसे खुलकर एंजॉय कर रही है। वह भी अब इस मजे को दोगुना करना चाहता था। इसलिए उसने सोचा कि मूवी के दौरान कुछ ऐसा करेगा, जो उन्हें और भी गर्म और उत्साहित कर दे।

अरुण ने तुरंत दो मूवी टिकट बुक कर दीं, और घर के लिए निकल पड़ा। उसने जान-बूझकर ऐसी जगह मूवी की टिकट बुक की थी, जहां कम लोग आते थे और जो आते भी थे, वे अक्सर अपने पार्टनर के साथ मस्ती करने आते थे। इस तरह के माहौल में रोल-प्ले करना और भी दिलचस्प हो सकता था।

घर पहुंचते ही अरुण ने देखा कि कविता हल्के नीले रंग की साड़ी पहनकर तैयार थी। उसने गहरे गले का ब्लाउज पहन रखा था, जिसमें उसका क्लीवेज साफ़-साफ़ नजर आ रहा था। अरुण की नजरें खुद-ब-खुद उसकी साड़ी के पल्लू के नीचे झांकने लगीं, और उसके दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं। यह तो उनका रोज़ का नज़ारा था, लेकिन इस बार यह सीन कुछ और ही था। अब वह कविता को बीवी की तरह नहीं, बल्कि अपनी ‘दीदी’ की तरह देख रहा था, और कविता भी उसे ‘अमित’ समझकर खेल रही थी।

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अरुण ने गाड़ी स्टार्ट की और उसके पास जाकर मजाकिया अंदाज में बोला, “तुम तो आज बहुत खूबसूरत लग रही हो, दीदी।” उसकी नज़रें कविता के क्लीवेज पर टिक गईं, और कविता ने भी इस बात को नोटिस किया।

कविता ने हल्के से अपना पल्लू ठीक करते हुए कहा, “मैं तो रोज़ ऐसी ही दिखती हूं।” उसकी आवाज़ में एक हल्की शरारत थी, और वह गाड़ी में बैठ गई।

अब दोनों मूवी देखने के लिए निकल गए। करीब 20 मिनट की ड्राइव के बाद, वे सिनेमाघर पहुंच गए। जैसा कि अरुण ने सोचा था, थिएटर लगभग खाली था, और ज्यादातर सीटें खाली पड़ी थीं। अरुण ने जानबूझकर ऐसी सीट बुक की थी, जहां का माहौल थोड़ा निजी हो, ताकि रोल-प्ले के दौरान कोई बाधा न हो। उसकी योजना पूरी तरह से तय थी – वह इस खेल को और दिलचस्प बनाना चाहता था।

जैसे ही फिल्म शुरू हुई, एक कोने की सीट पर एक जवान कपल आकर बैठ गया। दोनों को देखकर ऐसा लग रहा था कि वे कॉलेज के स्टूडेंट होंगे।

मूवी कुछ देर ही चली थी कि लड़की अपनी सीट से उठकर लड़के की सीट के सामने जाकर घुटनों पर बैठ गई। वहां पर न तो ऊपर की तरफ बैठे लोगों को कुछ दिख रहा था और न ही नीचे वालों को। जो कुछ भी हो रहा था, वह केवल हमें ही नजर आ रहा था। शुरुआत में कविता ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन मैं करीब 2 मिनट तक इस मजेदार दृश्य को देखता रहा। तभी कविता की नजर भी उस पर पड़ी। लड़की लड़के का लंड मुंह में लेकर चूस रही थी, और लड़का मूवी देखने का नाटक कर रहा था। यह बेहद गर्म करने वाला दृश्य था। मेरा लंड खड़ा हो गया, और मैं 100% कह सकता हूं कि कविता की चूत भी गीली हो गई होगी क्योंकि मैं उसे अच्छी तरह जानता हूं। वह मेरी दीदी के रोल में जरूर थी, लेकिन है तो वह मेरी बीवी। मुझे पता है, उसे क्या चीज़ गर्म करती है, इसलिए मैंने यह प्लान बनाया था।

जैसे ही कविता को यह अहसास हुआ कि मैं उसे यह सब करते हुए देख रहा हूं, वह तुरंत मूवी देखने का नाटक करने लगी। लेकिन हम दोनों ही निगाहों से उस कपल को देख रहे थे। कुछ देर बाद लड़की ऊपर बैठ गई और लड़का उसका टॉप ऊपर करके उसके दोनों चूचियों को बारी-बारी से चूसने लगा। यह देखकर हम दोनों मस्त हो गए थे। तभी इंटरवल हो गया, और हम बाहर निकल आए। मैंने दीदी से पूछा, “कुछ खाना चाहोगी?” तो उसने कहा, “पॉपकॉर्न ले लो।” मैंने पॉपकॉर्न लिया और हम वापस थिएटर में बैठ गए। अभी मूवी शुरू होने में समय था, तो हम धीरे-धीरे बातें करने लगे।

मैंने पूछा, “तुम तो बड़े ध्यान से देख रही थी,” तो वह तुरंत शर्माने का नाटक करने लगी, क्योंकि अभी वह मेरी दीदी होने का रोल निभा रही थी। मैंने कहा, “मजेदार था ना?” उसने कुछ नहीं कहा और सिर झुका लिया। मैंने फिर कहा, “शर्माने वाली बात नहीं है, अब हम बड़े हो गए हैं और हमारी शादी भी हो चुकी है। तुम भी तो जीजू के साथ ऐसा कुछ करती होगी।” वह फिर भी कुछ नहीं बोली, लेकिन मुझे समझ आ गया था कि वह रोल निभा रही है जिसमें दीदी कोई खास विरोध नहीं करेगी, लेकिन सहयोग भी नहीं करेगी।

मूवी फिर से शुरू हो गई और वह कपल भी वापस आकर बैठ गया। मैंने पॉपकॉर्न दीदी के हाथों में दे दिया था, और वह उसे गोद में लेकर खाते हुए मूवी देखने का नाटक कर रही थी। लेकिन मैं जानता था कि उसकी नजरें उसी कपल पर टिकी हुई हैं। अब वह कपल एक ही सीट पर बैठ गया था, लड़का नीचे और लड़की उसकी गोद में। मैंने मौके का फायदा उठाते हुए मूवी देखने का नाटक करते हुए पॉपकॉर्न उठाने का बहाना किया और अपना हाथ उसकी कमर पर रख दिया। उसने हल्के से मेरी ओर देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा और फिर मूवी देखने का नाटक करने लगी।

मैंने अपना हाथ उसकी कमर पर धीरे-धीरे फिराया और उसकी नाभि पर उंगली फिराने लगा। वह भी अब गर्म होने लगी थी, क्योंकि मुझे पता था उसे कैसे गर्म किया जाता है। कुछ देर ऐसा करने के बाद, मैंने अपना हाथ थोड़ा ऊपर बढ़ाया और ब्लाउज के ऊपर से उसकी चूची को दबाना शुरू कर दिया। पहले मैंने उसकी दाईं चूची को दबाया, फिर बाईं चूची को। वह आंखें बंद करके मजा ले रही थी। अब मैंने पॉपकॉर्न उसके गोद से उठाकर बगल वाली खाली सीट पर रख दिया और उसका साड़ी में हाथ डालने लगा।

उसने साड़ी और पेटीकोट काफी टाइट बांध रखा था, इसलिए मेरा हाथ उसकी साड़ी के अंदर नहीं जा पा रहा था। फिर मैंने उसकी साड़ी को ऊपर कर दिया और उसकी जांघों तक खींच दिया। उसने मुझे हल्के से देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा, बल्कि उसने हल्का सा उठकर साड़ी को कमर तक खींचने में मेरी मदद की। अब उसकी दोनों जांघें पूरी तरह नंगी हो चुकी थीं। मैंने अपनी उंगलियों से उसकी चूत को छूना शुरू किया, जो पहले से ही काफी गीली थी। मैंने उसकी चूत के दाने को रगड़ना शुरू कर दिया और एक उंगली अंदर डाल दी। अपने दूसरे हाथ से मैं अपने लंड को हल्का-हल्का पैंट के ऊपर से सहला रहा था।

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जैसे ही मैंने उसकी चूत में उंगली डाली, वह हल्के से सिहर गई। मैंने उसका हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख दिया, जो कि अभी भी पैंट के अंदर था, लेकिन ऊपर से ही महसूस हो रहा था। उसने अपना हाथ नहीं हटाया और मैंने अपना काम जारी रखा। लगभग 5 मिनट तक उसकी चूत में उंगली करने के बाद वह हल्के से कांपने लगी और उसका शरीर अकड़ने लगा। मैं समझ गया कि वह झड़ रही है। उसने मेरा जिप खोलकर लंड बाहर निकाल लिया था और हल्के-हल्के मुठ मार रही थी। तभी मूवी खत्म हो गई, और हमारे रंग में भंग पड़ गया। लेकिन कोई बात नहीं, घर पर हम अकेले थे, क्योंकि मेरी बीवी मायके गई हुई थी और घर में कोई और नहीं था।

हमने जल्दी से अपने कपड़े सही किए और मूवी थिएटर से बाहर निकले, फिर गाड़ी में बैठ गए। अब तक मूवी थिएटर से निकलने के बाद हमने एक-दूसरे से कुछ भी बात नहीं की थी, बस शांति से चल रहे थे। वैसे तो हमारे बीच, पति-पत्नी होने के नाते, कोई शर्म वाली बात नहीं थी, लेकिन यह सिर्फ एक रोल का खेल था, और हम अपने-अपने रोल को बखूबी निभा रहे थे।

जैसे ही मैं गाड़ी में पहुंचा, मैंने उसे अपनी तरफ खींचते हुए उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए और उसे चूमने लगा। वह भी मुझे पूरा साथ देने लगी। अब मेरा एक हाथ उसकी चूची पर था और दूसरा उसकी नाभि पर। मैं उसकी चूची को मसलते हुए, उसकी नाभि पर गोल-गोल उंगलियां घुमा रहा था और हम लगातार किस किए जा रहे थे। उसका हाथ अब मेरी जांघ पर आ गया था, और मैं समझ चुका था कि वह मेरा लंड अपने हाथ में चाह रही थी।

मैंने एक हाथ पीछे खींचते हुए अपनी चेन खोल दी और अपना लंड उसके हाथ में थमा दिया। गाड़ी के अंदर ही वह मेरे लंड को अपने हाथों में लेकर मुठ मारने लगी, और मैं उसकी चूचियों को मसलता रहा। कुछ देर ऐसा होने के बाद, मैं अचानक से हट गया और मैंने कहा, “दीदी, घर पर चलते हैं, यहाँ कोई देख लेगा और वही सिनेमा हॉल वाले कपल जैसा हमारा भी हाल होगा। मैं नहीं चाहता कि हमें कोई इस हालत में देखे।”

वह भी मान गई और मैंने तुरंत गाड़ी स्टार्ट की, दिल में एक अजीब सी मस्ती दौड़ रही थी। रास्ते में मैंने खाने का ऑर्डर पैक करवा लिया क्योंकि आज रात का खाना बनाने का तो सवाल ही नहीं था। आज तो कुछ और ही पकने वाला था!

जैसे ही हम घर पहुंचे, मैंने दरवाजा बंद किया और दीदी को पीछे से पकड़ कर गले से चिपका लिया। उनके बदन की गर्मी मुझे दीवाना बना रही थी। मैंने बिना वक्त गंवाए उनके नर्म, गुलाबी होठों को अपने होठों में दबा लिया। “उम्ह्म्म… बाबू…” दीदी ने धीरे से सिसकारी भरी और मुझे कसकर पकड़ लिया। हमारी सांसें तेज हो रही थीं और होंठ जैसे एक-दूसरे से जुदा होने का नाम ही नहीं ले रहे थे।

कुछ ही पलों में, हम दोनों नंगे हो चुके थे। उनकी गोरी, चिकनी त्वचा पर मैं जगह-जगह अपने होठों से आग लगा रहा था। मैंने उनकी नाजुक गर्दन पर हल्के-हल्के चुंबन किए, जिससे उनकी धड़कनें और तेज हो गईं। “उफ्फ… बाबू, आज तो मुझे पागल कर दोगे,” दीदी की सांसें तेज हो रही थीं। मैं उनके स्तनों को अपने हाथों से दबाने लगा, उनके निप्पल सख्त हो चुके थे, और मैंने एक-एक करके उनके निप्पल्स को चूसना शुरू कर दिया।

“आह… बाबू… और… और… जोर से चूसो…” दीदी अब खुद को रोक नहीं पा रही थीं।

मैंने अपने हाथ से उनकी नंगी पीठ को रगड़ते हुए उनसे धीरे से पूछा, “दीदी, जीजू तुम्हें संतुष्ट नहीं करते क्या?”
वह शरमाते हुए बोलीं, “नहीं, उसमें इतना दम कहां है। वो तो शुरू होते ही खत्म हो जाता है। दो बार लंड रगड़ने के बाद ही पानी छोड़ देता है।”

यह सुनकर मेरी मर्दानगी और जाग उठी। मैंने उन्हें गले से कसकर लगाते हुए कहा, “कोई बात नहीं दीदी, आज से तुम्हारी सारी इच्छाओं को पूरा करने के लिए मैं हूं।”
फिर मैंने उन्हें सोफे पर धीरे से धकेला और खुद नीचे बैठकर उनकी टांगों को फैला दिया। मेरी नज़र उनकी चिकनी, बालों रहित चूत पर पड़ी। वह किसी कुंवारी लड़की की तरह लग रही थी।

“उम्ह्म्म… बाबू…” दीदी सिसकियां भरने लगीं, जब मैंने अपनी जीभ उनकी चूत के लकीर पर फिरानी शुरू की। मैं उनकी चूत को जीभ से अंदर तक चूसने लगा, और दीदी के हाथ मेरे सिर पर कसने लगे, जैसे मुझे और अंदर खींचना चाह रही हों। उनकी चूत से रस बहने लगा था।

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“बाबू, और अंदर… और… ओह्ह… आह्ह…” दीदी अब खुद को रोक नहीं पा रही थीं।

मैंने एक पल के लिए रुकते हुए पूछा, “लगता है तुम अभी सील पैक ही हो दीदी, जीजू ने कभी तुम्हें चोदा ही नहीं है।”
दीदी ने शर्म से नजरें झुका लीं और धीरे से बोलीं, “तुमने बिलकुल सही कहा, उनका लंड चूत पर रगड़ते ही पानी छोड़ देता है और मैं अब तक कुंवारी हूं।”

अब मेरा धैर्य खत्म हो चुका था। मैंने अपना लंड उनके सामने लाते हुए कहा, “दीदी, इसे चूसो। आज इसे तुम्हारे अंदर उतारने से पहले इसे पूरी तरह से तैयार करो। आज से अगले एक सप्ताह तक, जब तक मेरी बीवी वापस नहीं आ जाती, मैं तुम्हें दिन में कम से कम 5-7 बार चोदूंगा।”

यह सुनकर दीदी मुस्कुराई और बिना देर किए मेरे लंड को अपने होठों में ले लिया। “आह्ह… दीदी, हाय…” मैंने एक सिसकारी भरी। उनका मुँह बहुत गरम था, और वह मेरे लंड को धीरे-धीरे चूस रही थीं।

“और जोर से चूसो दीदी… हां… ऐसे ही…” मैंने उनके बालों को पकड़कर लंड को और गहराई तक उनके मुँह में डाल दिया।

वह बीच-बीच में सिसकारियां भरते हुए मुँह से लंड को अंदर-बाहर कर रही थीं। “आह… बाबू… आज तो मैं पूरी तरह तृप्त हो जाऊंगी।” उन्होंने अपनी चूत पर हाथ रखा और खुद को छूने लगीं।

कुछ देर बाद, मैंने उन्हें बिस्तर पर लिटा दिया। “अब मैं तुम्हें ऐसा पेलूंगा कि तुम्हारी सारी इच्छाएं पूरी हो जाएंगी।” मैंने अपना लंड उनकी टांगों के बीच लगाया, और धीरे-धीरे अंदर धकेलना शुरू किया।
“आह… बाबू… धीरे… उफ्फ… आह…” दीदी की सिसकारियां पूरे कमरे में गूंज रही थीं। उनकी चूत इतनी टाइट थी कि मैं भी संभल कर आगे बढ़ रहा था।

“बाबू, बस करो… आह… और नहीं सहा जा रहा,” लेकिन मैं जानता था कि यह सिर्फ मस्ती को और बढ़ाने के लिए कहा जा रहा था।

मैंने दीदी के स्तनों को कसकर दबाया और तेज धक्के मारने शुरू कर दिए। दीदी के चूत से लगातार रस निकल रहा था और वह पूरी तरह मस्ती में खो चुकी थीं। हम दोनों का बदन पसीने से भीग चुका था और हर धक्के के साथ दीदी का बदन मुझसे और कसकर लिपट रहा था।

“आह… बाबू… आज तो मेरी चूत फाड़ दी…” उन्होंने सिसकारी लेते हुए कहा।

कुछ देर बाद, हम दोनों एक साथ चरम पर पहुंचे। दीदी का बदन ऐंठने लगा और मैंने अपना सारा वीर्य उनके अंदर उंडेल दिया।
थोड़ी देर तक हम एक-दूसरे से लिपटे रहे। दीदी ने हांफते हुए कहा, “बाबू, अब मुझे हर रोज इसी तरह पेलते रहना।”

इसी के साथ हमारा यह रोल आज के लिए खत्म हो गया था। मैंने अपनी पत्नी से पूछा, “बेबी, कैसा लगा अपने ‘भाई’ से चुदवाकर?”
वह मुस्कुराते हुए बोली, “बहुत मजा आया!”

अगले एक हफ्ते तक हम दोनों ने पूरे दिन ऐसे ही ‘भाई-बहन’ का रोल प्ले किया और हर रात जमकर चुदाई की। अब मिलते हैं अगली कहानी में, एक नए रोल के साथ। हालांकि, मैंने अब तक यह तय नहीं किया है कि कविता को किसी गैर मर्द से चुदवाना है या नहीं।

फिर भी, हमें इस रोल प्ले में बहुत मजा आ रहा है। हालांकि, हो सकता है भविष्य में मैं ऐसे मोड़ पर पहुँच जाऊं जहाँ मेरी बीवी मेरे सामने ही किसी गैर मर्द का लंड चूस रही हो। लेकिन वह समय आने में अभी काफी वक्त है क्योंकि फिलहाल हम उसके लिए तैयार नहीं हैं।

अभी हम इस रोल प्ले का मजा ले रहे हैं और यह मुझे भी बहुत पसंद आ रहा है, और मेरी पत्नी को भी। कहानी जारी रहेगी, मिलते हैं अगली कहानी में!

 

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