कविता और अरुण का रोल प्ले

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अगली सुबह जब कविता और अरुण बिस्तर से उठे, तो दोनों के बीच एक नई ऊर्जा और उत्साह था। रात का खेल दोनों के बीच एक नई मस्ती और जोश लेकर आया था। अरुण के दिमाग में अब इस खेल को और आगे बढ़ाने का ख्याल आ चुका था, और उसने तय कर लिया था कि वह इसे एक कदम और आगे ले जाएगा।
कहानी का पिछला भाग: कविता और उसके पति अरुण के मसालेदार जीवन का शुरुआत – 1

अभी तक कविता इसे हल्के-फुल्के मजाक के रूप में देख रही थी, लेकिन अरुण अब इसे और गहराई से अनुभव करना चाहता था। उसके मन में अब एक नया विचार था – पूरे दिन का रोल-प्ले। वह चाहता था कि कविता और वह दोनों दिनभर अपने तय किए गए किरदारों में रहें। यहां तक कि जब वह दफ्तर से फोन करे, तो कविता उसी किरदार में जवाब दे, न कि उसकी पत्नी के रूप में।

नाश्ते की टेबल पर अरुण ने यह प्रस्ताव कविता के सामने रखा।

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“कविता, कल रात का खेल तुम्हें याद है?” अरुण ने हल्की मुस्कान के साथ कहा।

कविता ने शरारत भरी मुस्कान के साथ जवाब दिया, “हां, कैसे भूल सकती हूं। मजेदार था।”

“तो क्यों न आज इसे और भी रोमांचक बनाया जाए?” अरुण ने धीरे से अपनी चाय का घूंट लेते हुए कहा।

कविता ने जिज्ञासा से पूछा, “कैसे?”

“हम पूरे दिन एक रोल-प्ले खेलेंगे। जैसे कल रात, लेकिन इस बार यह सिर्फ बिस्तर तक सीमित नहीं रहेगा। दिनभर हम अपने किरदारों में रहेंगे। मैं ऑफिस में रहूं या तुम घर पर, तुम उसी किरदार में रहोगी, और जब भी हम बात करेंगे, वह पति-पत्नी के रूप में नहीं, बल्कि उन किरदारों के रूप में होगी,” अरुण ने अपनी योजना बताते हुए कहा।

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कविता हंसी और बोली, “अच्छा! और कौन से किरदार चुनोगे?”

अरुण ने थोड़ी देर सोचने के बाद कहा, “तुम एक कामवाली बाई का किरदार निभाओगी, जिसका नाम होगा ‘रेखा’। और मैं, मैं बनूंगा तुम्हारा मालिक ‘राहुल’।”

कविता ने हंसते हुए कहा, “राहुल? ये नाम तो तुम्हारे दोस्त का है।”

अरुण ने थोड़ा चौंकते हुए कहा, “हां, लेकिन बस खेल के लिए… वैसे राहुल के बारे में ज्यादा मत सोचो।”

कविता ने हल्के से मुस्कराते हुए कहा, “ठीक है, मालिक! मैं बन जाऊंगी तुम्हारी कामवाली रेखा, लेकिन देखना, कहीं तुम मुझसे ज्यादा काम न करवा लो।”

अरुण ने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा, “कामवाली हो, तो काम तो करवाना ही पड़ेगा। और सिर्फ काम ही नहीं, बाकी सब कुछ भी…” उसकी आंखों में हल्की सी शरारत थी।

दोपहर में ऑफिस से कॉल:

अरुण ऑफिस चला गया और कविता घर पर काम में लग गई। पूरे दिन कामवाली रेखा के किरदार में डूबना उसे दिलचस्प लग रहा था।

थोड़ी देर बाद, दोपहर में, अरुण ने कविता को फोन किया। उसने पहले ही तय कर लिया था कि वह उसे ‘रेखा’ के नाम से ही बुलाएगा।

“हैलो, रेखा?” अरुण ने फोन पर हल्की सी शरारत भरी आवाज़ में कहा।

कविता ने तुरंत अपना रोल निभाते हुए कहा, “जी मालिक, बोलिए।”

“तुमने काम पूरा कर लिया?” अरुण ने मजाकिया अंदाज में पूछा।

“हां मालिक, घर पूरा साफ कर दिया है। अब और क्या हुक्म है?” कविता ने अपनी आवाज़ में एक ताज़गी और चुलबुलापन लाते हुए कहा।

“अभी तो बस काम की बात कर रहा हूं, लेकिन रात के लिए भी कुछ हुक्म है। तुम्हें पूरी तरह तैयार रहना है।” अरुण की आवाज़ में अब हल्की गर्माहट थी, और उसकी बातें कविता के शरीर में हल्की गुदगुदी पैदा कर रही थीं।

कविता ने हल्की सिसकारी के साथ जवाब दिया, “जो हुक्म मालिक, रेखा पूरी तरह से तैयार रहेगी।”

रात का समय:

शाम ढलने लगी, और अरुण का उत्साह बढ़ने लगा। घर लौटते ही उसने देखा कि कविता ने अपने रोल में पूरी तरह से ढल चुकी थी। उसने एक साधारण सी साड़ी पहन रखी थी, जो कामवाली के किरदार को पूरी तरह से दिखा रही थी। उसकी कमर के आसपास की गोलाइयां और गोरी त्वचा उसके पतले ब्लाउज के नीचे से झांक रही थीं, और उसकी बड़ी-बड़ी आंखें अरुण को एकदम से खींचने लगीं।

“मालिक, आ गए आप?” कविता ने धीरे से सिर झुकाते हुए कहा, उसकी आवाज़ में आज खास शरारत थी।

अरुण ने उसकी कमर को धीरे से छुआ और कहा, “तैयार हो?”

कविता ने हल्के से हंसते हुए कहा, “हां मालिक, पूरी तरह से।”

अरुण ने उसके करीब जाकर उसकी साड़ी की पल्लू को धीरे से खींचा। “चलो, अब काम का वक्त नहीं, मस्ती का वक्त है।”

कविता ने उसकी आंखों में देखते हुए कहा, “मालिक, आप मुझे सजा देने वाले थे ना?”

अरुण ने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा, “हां, लेकिन ये सजा नहीं, एक इनाम होगा।” उसने उसकी साड़ी को और नीचे खींच दिया, और उसके नंगे पेट पर अपनी उंगलियां फिराने लगा। कविता की सांसें तेज़ होने लगीं, और उसके होंठों से हल्की सिसकारी निकलने लगी।

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“आप बहुत शरारती हैं, मालिक,” कविता ने धीरे से कहा, उसकी आवाज़ में हल्की मस्ती और तड़प साफ झलक रही थी।

अरुण ने अब उसकी साड़ी को पूरी तरह से उतार दिया और उसकी गोरी जांघों को अपनी उंगलियों से सहलाने लगा।

“आज तुम मेरी कामवाली नहीं, बल्कि मेरी खास हो।” उसने हल्की हंसी के साथ कहा और उसकी चूचियों को अपने हाथों में कसकर पकड़ लिया।

कविता का पूरा शरीर अरुण के इस नए स्पर्श से कांप उठा। उसकी आंखें अब बंद हो चुकी थीं, और उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा था। अरुण ने अब उसे बेड पर लिटा दिया और उसके ऊपर झुककर उसकी चूत की लकीर पर धीरे-धीरे अपनी उंगलियां फेरीं।

“मालिक… आह… ये तो…” कविता की सिसकारियां अब और भी तेज़ हो चुकी थीं। उसका शरीर अरुण के हर स्पर्श पर और भी सुलगने लगा था।

अब तक कविता पूरी तरह से रेखा के किरदार में डूब चुकी थी। अरुण ने उसकी चूत में अपनी उंगलियां और गहराई तक धकेलनी शुरू कर दीं, और उसकी चूचियों को जोर से दबाने लगा।

अब तक कविता पूरी तरह से रेखा के किरदार में खो चुकी थी। अरुण, जो खुद को ‘राहुल मालिक’ मान रहा था, अपने हाथों से कविता के शरीर की हर नस को महसूस कर रहा था। दोनों का शरीर पसीने से तर-बतर था, और कमरे में केवल उनकी सिसकारियों और मस्ती की आवाज़ें गूंज रही थीं। कविता का दिल तेजी से धड़क रहा था, और उसकी चूत अब और ज्यादा गीली हो चुकी थी।

“रेखा, तुम तो बहुत मस्त हो, तुमने मेरे घर का नहीं, मेरे शरीर का भी बहुत ख्याल रखा है,” अरुण ने शरारत भरी आवाज़ में कहा, उसकी उंगलियां कविता की चूत में गहराई तक धंस चुकी थीं।

“मालिक, आप जैसे चाहो वैसे मेरे शरीर का इस्तेमाल कर सकते हो,” कविता ने हल्के से तड़पती आवाज़ में कहा। उसका शरीर अरुण के हर स्पर्श पर झूम रहा था।
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अरुण ने अब अपनी उंगलियों को कविता की चूत से बाहर निकाला और अपना लंड उसकी नंगी चूत पर धीरे-धीरे रगड़ने लगा। “तुम्हें पता है, रेखा? तुम्हारी ये चूत तो जैसे मेरे लंड के लिए ही बनी है।”

“मालिक, आपकी ये बात सुनकर तो मेरा शरीर और भी जल रहा है,” कविता ने हल्की सिसकारी लेते हुए कहा, उसकी आवाज़ में अब भी मस्ती और तड़प का मेल था।

अरुण ने अपने लंड को धीरे-धीरे उसकी चूत के अंदर धकेलना शुरू किया। “आह… मालिक… ये तो बहुत…” कविता की आवाज़ अब और भी उत्तेजित हो चुकी थी। उसकी चूत अब पूरी तरह से अरुण के लंड के लिए खुल चुकी थी, और उसका शरीर हर धक्के पर सिहर उठ रहा था।

“अब चुप रहो और बस मुझसे झड़ने का इंतजार करो,” अरुण ने हल्की हंसी के साथ कहा, और अपना लंड पूरी ताकत से उसकी चूत में धकेल दिया। कविता का पूरा शरीर अब अरुण के धक्कों से हिलने लगा था। उसकी चूत अरुण के लंड को कसकर जकड़े हुए थी, और उसकी सिसकारियां पूरे कमरे में गूंज रही थीं।

अरुण ने अब अपनी रफ्तार और तेज कर दी। हर धक्का कविता के शरीर को उछाल रहा था, और उसकी चूत से अब रस टपकने लगा था। उसकी चूत इतनी गीली हो चुकी थी कि अरुण को हर धक्के के साथ उसकी चूत से रस का बहाव महसूस हो रहा था।

“मालिक… आह… आह… और जोर से…” कविता की आवाज़ अब बेकाबू हो चुकी थी। उसकी चूत अब अरुण के हर धक्के पर और भी भीग रही थी।

अरुण ने उसकी कमर को कसकर पकड़ रखा था, और अब उसकी टांगों को और चौड़ा करके अपना लंड उसकी चूत में गहराई तक धंसा दिया। “तुम्हारी ये चूत तो जैसे मेरे लिए ही बनाई गई है,” अरुण ने धीरे से कहा और उसकी चूत के अंदर अपना लंड और गहराई तक धकेल दिया।

कविता की चूत अब पूरे तरीके से अरुण के लंड को जकड़ चुकी थी। उसका शरीर अरुण के हर धक्के पर थरथराने लगा था। “मालिक… उफ्फ… अब और मत तड़पाओ… आह…” कविता की आवाज़ में अब केवल तड़प और मस्ती थी।

अरुण ने अब अपनी रफ्तार और तेज कर दी, और उसकी हर धक्का कविता की चूत को और भी गहरा कर रहा था। कविता की चूत अब पूरी तरह से अरुण के लंड पर कस चुकी थी, और उसकी चूत से लगातार रस टपक रहा था।

“मालिक… आह… मुझे लग रहा है कि मैं झड़ने वाली हूं…” कविता ने हल्की सिसकारी लेते हुए कहा। उसकी चूत अब पूरी तरह से अरुण के लंड से भर चुकी थी, और उसका शरीर अब झड़ने की कगार पर था।

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अरुण ने अब अपनी ताकत और बढ़ाई और अपनी मर्दानगी को कविता की चूत के अंदर जोर से धकेल दिया। “तुम्हें पूरा मजा दूंगा, रेखा,” उसने हंसते हुए कहा।

कविता का पूरा शरीर अब मस्ती से कांप रहा था। उसकी चूत से रस की बाढ़ बहने लगी थी, और उसकी सिसकारियां अब और तेज हो गई थीं।

“आह… आह… मालिक… मैं झड़ने वाली हूं…” कविता ने तेज सिसकारी लेते हुए कहा, और अगले ही पल उसकी चूत से तेज़ धार निकली। उसकी चूत से एक जोरदार स्क्वर्ट हुआ, और उसका रस अरुण के लंड और बिस्तर दोनों पर बिखर गया।

“आह… ये तो बहुत मस्त था,” अरुण ने हंसते हुए कहा, और उसकी चूत के अंदर अपना लंड और गहराई तक धंसाया।

कविता का शरीर अब पूरी तरह से सुकून में डूब चुका था, और उसकी चूत से रस लगातार टपक रहा था।

अब तक अरुण पूरी तरह से अपनी मर्दानगी दिखा चुका था, लेकिन उसका लंड अभी भी पूरी तरह से सख्त था। उसने कविता की चूत से अपना लंड बाहर निकाला और उसे पलटकर बेड पर लिटा दिया।

“अब तुम्हारी ये गांड भी मेरी है,” अरुण ने शरारत भरी आवाज़ में कहा और अपना लंड उसकी गांड के पास ले जाकर रगड़ने लगा। कविता ने हल्की सिसकारी ली और अपनी टांगें और चौड़ी कर दीं।

“आह… मालिक… धीरे से…” कविता ने तड़पती आवाज़ में कहा, उसकी आवाज़ में अब भी मस्ती और दर्द का मेल था।

अरुण ने धीरे-धीरे अपना लंड उसकी गांड के अंदर धकेला और उसे कसकर पकड़ लिया। उसकी गांड अब अरुण के लंड को पूरी तरह से समा रही थी, और उसका शरीर हर धक्के पर हिल रहा था।

“तुम्हारी गांड तो और भी मस्त है,” अरुण ने हंसते हुए कहा और उसकी गांड में जोर से धक्के मारने लगा।

अरुण ने उसकी गांड को कसकर पकड़ा और अपनी रफ्तार और तेज़ कर दी। अब हर धक्का और भी गहरा हो रहा था। कविता की गांड अब पूरी तरह से अरुण के लंड को समेटे हुए थी।

“आह… मालिक… धीरे से…” कविता ने तड़पते हुए कहा, उसकी आवाज़ में हल्की मस्ती और दर्द की लहर थी।

अरुण ने अपनी ताकत और बढ़ाई और अपनी मर्दानगी को उसकी गांड में और गहराई तक धकेला। “तुम्हारी ये तंग गांड तो जैसे मेरे लंड के लिए ही बनी है,” अरुण ने हल्की हंसी के साथ कहा और जोर से एक और धक्का मारा।

जैसे ही अरुण ने एक और जोरदार धक्का मारा, अचानक कविता की गांड से एक हल्की सी आवाज़ निकली — फ्रर्रर्रर्रर्र…। दोनों एक पल के लिए चौंक गए, लेकिन अरुण ने हंसते हुए कहा, “रेखा, ये तो बड़ा मजेदार हो गया!”

कविता की शर्म से चेहरा लाल हो गया, लेकिन उसकी मस्ती और तड़प अभी भी जारी थी। “मालिक… उफ्फ…” उसने हल्की शर्मिंदगी के साथ कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में अब भी एक अजीब सी मस्ती थी।

अरुण ने हंसते हुए कहा, “तुम्हारी ये गांड तो और भी मस्त लग रही है। अब इसे पूरी तरह से भरने का वक्त आ गया है।”

अरुण ने एक आखिरी जोरदार धक्का मारा और उसकी मर्दानगी अब पूरी तरह से कविता की गांड के अंदर धंस गई। उसकी गांड के अंदर का खिंचाव अब अरुण के लंड को और भी कसकर पकड़ रहा था।

“आह… मालिक… आह…” कविता की सिसकारियां अब और भी तेज़ हो चुकी थीं। उसका शरीर अरुण के हर धक्के पर सिहर रहा था, और उसकी चूत से अब भी रस टपक रहा था।
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अरुण ने अपनी मर्दानगी को पूरी ताकत से उसकी गांड में धकेला और अगले ही पल उसकी गांड के अंदर गहराई में अपना वीर्य छोड़ दिया।

“आह… रेखा… मैं भी झड़ गया…” अरुण ने हांफते हुए कहा और उसकी गांड के अंदर अपना सारा वीर्य उंडेल दिया।

कविता का पूरा शरीर अब शांत हो चुका था। उसकी चूत से रस टपक रहा था और उसकी गांड के अंदर अरुण का लंड अब थरथरा रहा था।

सेक्स के बाद, दोनों बिस्तर पर थके-हारे लेट गए। कमरे में हल्की-हल्की ठंडी हवा चल रही थी, लेकिन उनकी सांसें अब भी गर्म थीं। कविता और अरुण दोनों अपने शरीर के पसीने को महसूस कर रहे थे, लेकिन उनके दिमाग में अब भी खेल चल रहा था।

अरुण ने हल्के से कविता की कमर पर हाथ फेरते हुए कहा, “तुम्हें यह खेल कैसा लगा?”

कविता ने मुस्कराते हुए कहा, “बहुत मज़ा आया, अरुण।”

“तो क्यों न हम अगले एक हफ्ते तक इस तरह के रोल-प्ले करते रहें?” अरुण ने शरारत भरी आवाज़ में कहा।

कविता ने थोड़ी झिझक के साथ कहा, “एक हफ्ते? नहीं, इतना लंबा रोल-प्ले मैं नहीं कर पाऊंगी।”

“अरे, यह तो मज़ा बढ़ाने के लिए है। तुम चाहो तो किरदार भी चुन सकती हो।” अरुण ने शरारत से कहा।

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कविता ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “लेकिन मैं कैसे किरदार चुनूं? मुझे ऐसा कुछ समझ नहीं आता।”

अरुण ने हंसते हुए कहा, “ठीक है, फिर मैं तुम्हें दस विकल्प देता हूं। तुम बस एक चुन लो, और हम पूरे हफ्ते उसी रोल में रहेंगे।”

कविता ने हिचकिचाते हुए कहा, “नहीं, ये सब मेरे लिए मुश्किल होगा।”

“अरे नहीं, ये सब सिर्फ खेल है। और मैं तुमसे वादा करता हूं कि मजा आएगा,” अरुण ने उसे समझाते हुए कहा। “लेकिन इस बार हम असली नामों का इस्तेमाल करेंगे। जैसे, अगर हम टीचर और स्टूडेंट का रोल करते हैं, तो तुम्हारा असली नाम ही होगा, और मैं भी असली नाम से ही बुलाऊंगा।”
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कविता ने थोड़ा संकोच करते हुए पूछा, “असली नाम से? लेकिन क्यों?”

“क्योंकि इससे खेल और भी असली लगेगा। हम पूरे हफ्ते इन किरदारों में जीएंगे। चलो, मैं तुम्हें कुछ रोल्स बताता हूं,” अरुण ने कहा और कुछ विकल्प देने शुरू किए।

रोल-प्ले के 10 विकल्प:

  1. स्कूल टीचर और शरारती स्टूडेंट – तुम मेरी टीचर बनोगी, और मैं तुम्हारा शरारती स्टूडेंट।
  2. पड़ोसन और लड़का – तुम मेरी पड़ोसन हो, और मैं तुम्हें तंग करने वाला लड़का।
  3. हॉट डॉक्टर और मरीज – तुम एक सेक्सी डॉक्टर बनोगी, और मैं तुम्हारा मरीज।
  4. सेक्रेटरी और बॉस – तुम मेरी सेक्रेटरी हो, और मैं तुम्हारा बॉस।
  5. अनजान औरत और स्ट्रीट फॉलोअर – तुम एक अनजान औरत हो, और मैं तुम्हारा पीछा करने वाला लड़का।
  6. पुलिस वाली और अपराधी – तुम पुलिस वाली बनोगी, और मैं एक बड़ा अपराधी।
  7. दीदी और छोटा भाई – तुम मेरी बड़ी दीदी, और मैं तुम्हारा छोटा शरारती भाई।
  8. नर्स और घायल आदमी – तुम नर्स हो, और मैं एक घायल आदमी।
  9. मामी और भांजा – तुम मेरी मामी, और मैं तुम्हारा भांजा।
  10. मास्टर और गुलाम – तुम मेरी मालिक हो, और मैं तुम्हारा गुलाम।

कविता का चेहरा हल्का लाल हो गया, और वह हिचकिचाते हुए बोली, “अरुण, ये सब बहुत अजीब लग रहा है।”

“कोई बात नहीं, ये बस खेल है,” अरुण ने हंसते हुए कहा। “तुम बस एक चुन लो, और फिर देखो, कितना मजा आता है।”

कविता ने थोड़ी देर तक सोचा, और फिर धीरे से कहा, “वो… सातवां वाला… दीदी और छोटा भाई।”

अरुण की आंखों में एक शरारत सी चमक आई, और उसने तुरंत कविता को छेड़ते हुए कहा, “अरे वाह, तो अब मैं तुम्हारा छोटा भाई हूं… और तुम मेरी दीदी?”

कविता ने शरमाते हुए कहा, “अरुण, ऐसा मत बोलो, ये तो बस खेल है।”

“नहीं, नहीं, अब से तुम मेरी दीदी हो। तो क्यों न मैं तुम्हें तुम्हारे भाई के नाम से ही बुलाऊं?” अरुण ने और भी शरारत से कहा, उसकी आंखों में एक छिपी मस्ती थी।

“अरुण… प्लीज़, ऐसा मत करो,” कविता ने हिचकिचाते हुए कहा, लेकिन उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी।

अरुण ने थोड़ा और पास आकर कहा, “चलो, एक बार मुझे मेरे भाई का नाम लेकर बुलाओ… जैसे तुम उसे बुलाती हो।”

कविता ने शरमाते हुए उसकी ओर देखा और हल्के से कहा, “नहीं अरुण, मैं नहीं कर सकती।”

“अरे, एक बार तो बोलो… अगर तुम नहीं बोलोगी, तो मैं कैसे यकीन करूंगा कि तुम मेरी दीदी हो?” अरुण ने छेड़ते हुए कहा।

कविता ने थोड़ी झिझक के बाद, अरुण की ओर देखा और धीमे से बोली, “ठीक है… ‘अमित, मैं जल्दी ही तुम्हारी होने वाली हूं।'”

अरुण ने हंसते हुए कहा, “बस… अब तो मुझे पूरा यकीन हो गया कि तुम मेरी दीदी हो। अब इस हफ्ते मैं तुम्हारा छोटा भाई बनकर ही रहूंगा।”

कविता का चेहरा अब पूरी तरह से शर्म से लाल हो चुका था। उसने अरुण को हल्के से धक्का देते हुए कहा, “बस करो, अब सो जाओ।”

कहानी जारी रहेगा……………………

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