दो दिन तक मैं मधु का इंतज़ार करता रहा, पर वो ना आई। मन में एक अजीब-सी बेचैनी थी, जैसे कोई तूफान अंदर उठ रहा हो। मैं किसी से कुछ कह नहीं सकता था, बस अपने मन को तसल्ली देता रहा। तीसरे दिन, मैं टूट गया। शाम को दो पैग शराब के गटक लिए और रात 9 बजे घर पहुँचा। जैसे ही बेडरूम में घुसा, मेरा दिल धक से रह गया। मधु रानी रंग की साड़ी में बिस्तर पर सो रही थी। उसके खुले बाल बिखरे हुए, ब्लाउज में उसकी जवानी उभरी हुई, और नाइट बल्ब की मद्धम रोशनी में वो किसी स्वर्ग की अप्सरा-सी लग रही थी। उसका गोरा चेहरा, गुलाबी होंठ, और साड़ी में लिपटा हुआ बदन—मानो मेरे सारे होश उड़ा रहा था। मैंने बैग एक तरफ रखा, मुँह-हाथ धोए, कपड़े बदले, सिर्फ बनियान और अंडरवियर में रह गया। गेट पर ताला मारा और सीधा उसके पास चला गया। उसके रसीले होंठों को चूमने लगा, एक-दो नहीं, चार-पाँच गहरे चुंबन लिए। मेरे होंठों का स्पर्श पाते ही मधु की आँखें खुल गईं। उसकी वो शर्त मैंने पूरी कर दी थी, जो उसने मुझसे माँगी थी।
जैसे ही मैंने उसके होंठ चूमे, उसने धीरे से मुँह घुमाया और मुझे देखा। रात के 9:15 बज रहे थे। मैं बिस्तर पर चढ़ने लगा तो उसने नरम आवाज़ में कहा, “पापा, मैंने खाना बना रखा है। चलो, पहले खाना खा लो। मैंने भी नहीं खाया।” उसने मेरे हाथ में टीवी का रिमोट थमाया और किचन की ओर चली गई। उसकी साड़ी का पल्लू हल्का-सा लहराया, और मैं उसकी कमर की मटकन देखता रह गया। हमने साथ बैठकर खाना खाया—साधारण-सी दाल, चावल और सब्ज़ी, पर मधु के साथ बैठकर खाने का मज़ा ही अलग था। खाना खाकर हम बेडरूम में लौटे और बिस्तर पर लेट गए। गर्मी थी, फैन पूरी रफ्तार से चल रहा था। मैं बनियान और अंडरवियर में था, पर मधु अभी भी उसी रानी रंग की साड़ी में थी, जो उसके गोरे बदन पर चमक रही थी। बाहर बारिश तो नहीं थी, पर आसमान में बिजली की चमक रह-रहकर दिख रही थी, जैसे मेरे मन का हाल बयान कर रही हो।
करीब 10 बजे मधु बाईं करवट लेकर लेट गई, उसका मुँह दूसरी तरफ था। मैं उसके पीछे लेट गया, धीरे से उसकी साड़ी के ऊपर से उसके कंधे पर हाथ रखा। उसकी त्वचा की गर्मी मेरे हाथों में उतर आई। मैं और करीब खिसक गया, मेरी साँसें उसके गले पर पड़ रही थीं। “मधु, क्या सोच रही है?” मैंने धीरे से पूछा।
उसने नरम, उदास स्वर में कहा, “पापा, इस बिस्तर पर तो मम्मी का हक है।”
उसकी बात सुनकर मेरा दिल भर आया। मैंने उसे अपनी बाहों में खींच लिया, उसके माथे को चूमा और कहा, “मधु, चिंता मत कर। जब वो आएगी, तब देखा जाएगा।” मेरे हाथ उसके मुलायम स्तनों की ओर बढ़े, जो साड़ी और ब्लाउज के नीचे उभरे हुए थे। मैंने धीरे-धीरे उन्हें दबाना शुरू किया। उसकी साँसें तेज होने लगीं। मैंने पूछा, “मधु, बड़ी लाइट जला दूँ?”
उसने शरमाते हुए, आँखें झुकाकर कहा, “पापा, जैसी आपकी मर्ज़ी।”
मैं उठा और सीएफएल जला दी। रोशनी में मधु का चेहरा और भी निखर आया। उसकी आँखें झुकी हुई थीं, जैसे वो अपनी ही भावनाओं से जूझ रही हो। मैंने उसे फिर से चूमा, इस बार उसके होंठों पर गहराई से। वो अचानक रोने लगी। मैं घबरा गया, उसे गले लगाकर पूछा, “क्या हुआ, मधु? बताओ ना।”
वो सुबक रही थी, उसकी आँखों में आँसू देखकर मेरा दिल पिघल रहा था। उसने कहा, “पापा, आप इतने अच्छे हो। फिर हमारे बीच ये रिश्ता ऐसा क्यों बन गया? ये सब गलत तो नहीं ना?”
मैंने उसे शांत करने की कोशिश की। “मधु, सुनो। मैं तुम्हारी मम्मी से खुश नहीं हूँ। पिछले एक साल से हमारे बीच कोई शारीरिक रिश्ता नहीं रहा। दूसरा, मैं तुझे बहुत चाहता हूँ। तू जवान हो गई है, इतनी सुंदर है। और तीसरा, मेरी शारीरिक भूख सिर्फ तू ही मिटा सकती थी। मौसम भी था, हम अकेले थे। बस, यही सब कारण थे कि हमारे बीच ये दैहिक रिश्ता बन गया।”
वो चुप थी, फिर बोली, “पापा, अब ना मैं आपकी बेटी रही, ना पत्नी बन सकती हूँ। आपने मुझे हमेशा बेटी की तरह प्यार दिया, मेरी रक्षा की। लेकिन अब अचानक पत्नी की तरह इस्तेमाल कर लिया। मैं अब क्या करूँ?”
उसके सवालों ने मुझे चुप कर दिया। मेरे पास जवाब नहीं था। मैंने उसके आँसू चूम लिए, क्योंकि मधु अब मेरी जान थी। उसे चुप कराने के लिए मैंने उसके होंठ अपने होंठों में ले लिए, गहरे चुंबन में डूब गया। मधु ने धीरे से कहा, “पापा, वादा करो कि जब तक मम्मी नहीं आती, आप मुझे अपनी बीवी की तरह इस्तेमाल करोगे। मेरे अंग-अंग पर अपने प्यार की मुहर लगा दो।” उसकी आवाज़ में एक अजीब-सी तड़प थी। फिर वो कामुक अंदाज़ में बोली, “पापा, आप मेरा बदन देखना चाहते हो ना? लो, मैं आपकी बाहों में, आपके बिस्तर पर हूँ। आज की रात आप मुझे गर्भवती कर दोगे ना?” ये कहते हुए उसने अपना चेहरा मेरे सीने में छुपा लिया, जैसे अपनी शर्म को ढक रही हो।
मेरा हाथ उसकी कमर तक पहुँच गया। मैंने उसे अपने सीने से सटा लिया। उसने कहा, “पापा, आप फिर पीकर आए हो ना? मैंने मना किया था। ऐसा करोगे तो मुझे खो दोगे।”
मैंने माफ़ी माँगी, “सॉरी, मधु। अब नहीं होगा।” फिर मैं उसकी ब्रा के बटन ढूँढने लगा, पर उसने ब्रा पहनी ही नहीं थी। उसने हँसकर पूछा, “पापा, क्या ढूँढ रहे हो?”
मैंने शरमाते हुए कहा, “कुछ नहीं।” मेरा दायाँ हाथ उसके कूल्हों पर चला गया, धीरे-धीरे नीचे खिसकने लगा। उसने पूछा, “पापा, मैं साड़ी में कैसी लग रही हूँ?”
मैंने कहा, “मधु, तारीफ क्या करूँ? तू बस लाजवाब है।” मेरे हाथ उसके गोल-मटोल नितंबों की गर्मी महसूस कर रहे थे। मैंने बाहर से ही उसके उभरे हुए नितंबों को दबाना शुरू किया। मधु मेरे और करीब आती गई। मैंने उसके ब्लाउज में हाथ डालने की कोशिश की, पर वो इतना टाइट था कि हाथ अंदर नहीं गया। फिर मेरा हाथ नीचे खिसक गया। इस बार मैंने उसकी साड़ी और पेटीकोट दोनों को धीरे-धीरे ऊपर उठाया। मेरे हाथ उसके नंगे, गर्म नितंबों पर थे। मेरी हथेलियाँ उसकी नरम त्वचा में धँस रही थीं। दूसरा हाथ उसके लंबे, रेशमी बालों को सहला रहा था।
जब मुझसे रहा नहीं गया, मैंने मधु को सीधा किया और उसके ऊपर लेट गया। मैंने उसके ब्लाउज के बटन खोल दिए। उसके सुडौल, गोरे 34 इंच के स्तन सामने थे, इतने खूबसूरत कि मैं देखता ही रह गया। उनके गुलाबी निप्पल मेरे मुँह में पानी ला रहे थे। मैंने बारी-बारी से उन्हें चूसा, अपनी जीभ से उनके चारों ओर गोल-गोल घुमाया। मधु की छाती धक-धक करने लगी, “आआह्ह… पापा…” उसकी सिसकारी ने मुझे और उकसाया। मैंने उसके गालों पर चूमा, फिर उसकी साड़ी के चुन्नट धीरे-धीरे निकाल दिए। उसने कोई विरोध नहीं किया, बस मेरी आँखों में देखती रही। मैंने साड़ी पूरी खींचकर किनारे रख दी। अब वो सिर्फ पेटीकोट और खुले ब्लाउज में थी। मेरे हाथ रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। मैं उसकी 34-26-36 की कर्वी फिगर को निहारना चाहता था। आखिरकार, मैंने उसके ब्लाउज और पेटीकोट को भी उतार दिया।
वाह! मधु का दूधिया बदन, उसकी मस्त फिगर! वो साक्षात कामदेवी रति की तरह लग रही थी। रोशनी में उसका गोरा जिस्म चमक रहा था। मैं उसे 20-25 सेकंड तक अपलक देखता रहा, जैसे कोई खजाना मेरे सामने खुल गया हो। फिर मैंने उसे बिस्तर पर 3-4 बार पलटाया। मेरे होंठ उसके बदन पर चलने लगे—उसके गले से लेकर उसकी नाभि तक। मधु की छाती ऊपर-नीचे होने लगी। उसके 34 इंच के स्तन, जो क्रिकेट की गेंद से थोड़े ही बड़े थे, मेरे मुँह में समा रहे थे। मैंने अपनी बनियान उतारी तो मधु मेरे अंडरवियर को गौर से देखने लगी। मेरा 7 इंच का लंड पहले से ही तन चुका था, और अंडरवियर में साफ दिख रहा था। मैंने करवट लेकर उसे फिर अपने सीने से सटा लिया। मेरी छाती के बाल उसके निप्पलों पर गुदगुदी कर रहे थे। हम दोनों एक-दूसरे से लिपट गए।
मधु के हाथ धीरे-धीरे मेरे अंडरवियर की ओर बढ़े। मैंने उसके हाथ का दबाव अपने लंड पर महसूस किया। उसने बाहर से ही मेरे 2 इंच मोटे लंड को सहलाना शुरू कर दिया। उसकी उँगलियाँ मेरे लंड की खाल को हल्के-हल्के रगड़ रही थीं। फिर उसकी मधुर आवाज़ मेरे कानों में गूँजी, “पापा, अब मत तरसाओ। मुझे चाहिए ये…” और उसने मेरा अंडरवियर नीचे खींच दिया। उसने मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में जकड़ लिया, जैसे कोई अनमोल चीज़ पकड़ी हो। मैं चुप था, उसकी वासना को भड़कते देखना चाहता था। मधु ने मेरा कच्छा घुटनों तक सरका दिया। मैंने टाँग उठाकर उसे उतार फेंका। वो मेरा लंड निहारने लगी, अपनी उँगलियों और अँगूठे से उसकी मोटाई नापने लगी। उसके अँगूठे और उँगली के बीच पौने इंच का गैप था।
मैं कमर के बल लेट गया। मैंने पूछा, “मधु, क्या देख रही है?”
उसने बिना शरमाए कहा, “पापा, आपका लंड तो बहुत मोटा है! इतना बड़ा… ऊफ्फ!”
वो मेरे लंड को हिलाने लगी, उसके गुलाबी सुपाड़े को चूमने लगी। उसकी जीभ मेरे लंड के टॉप पर गोल-गोल घूम रही थी। उसकी गर्म साँसें और जीभ का स्पर्श मेरे लंड से चिकना द्रव बहाने लगा। मधु उसकी खाल को ऊपर-नीचे कर रही थी। उसने कहा, “पापा, ये आपकी पैंट में कैसे समाता है? इतना बड़ा… ऊह!”
मैंने मस्ती में कहा, “जैसे शनिवार की रात तेरी चूत में समा गया था।”
वो नाराज़ हो गई, “पापा, गंदे कहीं के!”
मैंने पूछा, “तुझे कैसा लग रहा है?”
उसने कामुक स्वर में कहा, “पापा, जब मुझे ये सब इतना अच्छा लग रहा है, तभी तो मैंने इसे अपने हाथ में लिया है।” और उसने मेरे लंड का सुपाड़ा अपने मुँह में ले लिया। वो चूसने लगी, “स्स्स… चप-चप…” उसकी लार मेरे लंड की जड़ तक पहुँच गई। उसके बाल मेरे पेट और जाँघों पर गुदगुदी कर रहे थे। मैं आँखें बंद करके उस आनंद में डूब गया।
मैंने उसकी जाँघों के नीचे हाथ डाले और उसके गोल-मटोल चूतड़ों को उठाकर अपनी छाती पर रख लिया। उसकी चूत की मादक खुशबू मेरे नथुनों में घुस रही थी। मैंने उसके चूतड़ों के नीचे हथेलियाँ टिकाईं। उसकी चूत की दरार मेरे सामने थी, जैसे जन्नत का दरवाज़ा खुल गया हो। मधु की गुदा बार-बार सिकुड़ रही थी। मैं उसकी मोटी-मोटी फाँकों को कामुक होकर निहारने लगा। उसकी चूत का कट करीब 3 इंच लंबा था। मैंने उसके भगनासा पर पानी-सी बूँदें देखीं। मधु की चूत से रस टपक रहा था। वो पूरी तरह कामवासना में डूब चुकी थी। मैंने उसके चूतड़ नीचे किए और उसका रस चाटने लगा, “स्स्स… चट-चट…” मधु मस्ती में अपने चूतड़ इधर-उधर करने लगी, “आआह्ह… पापा… ऊह्ह…” वो सारा ध्यान अपनी चूत पर केंद्रित करना चाहती थी।
मधु ने खुद अपनी चूत मेरे मुँह पर रख दी और घिसने लगी, “ऊऊह्ह… पापा… और… और…” उसकी छोटी-छोटी झाँटें मेरे गालों पर चुभ रही थीं, पर उस आनंद में मैं सब भूल गया। मैंने उसके नितंब फैलाए और अपना चेहरा उनकी दरार में फँसा लिया। मेरी जीभ उसकी गुदा पर गुदगुदी करने लगी। मधु अपने चूतड़ ऊपर-नीचे करने लगी, “आआह्ह… पापा… कितना मज़ा… ऊईई…” उसकी चूत का रस मुझे मस्त कर रहा था। मैंने उसकी गुदा में थूक से गीली उँगली हल्के से घुमाई। मधु ने गर्दन घुमाकर मुझे देखा, उसकी आँखों में शरम और वासना का मिश्रण था। वो खुद अपना भगनासा मसलने लगी, “ऊह्ह… पापा… ये क्या कर रहे हो…” तभी बाहर तेज बारिश शुरू हो गई, जैसे हमारी वासना को और भड़का रही हो।
मैंने मधु को नीचे लिटाया और उसकी आँखों में देखा। वो मेरे 7 इंच लंबे, 2 इंच मोटे, हिलते हुए लंड को घूर रही थी। मैंने उसकी फुद्दी पर हाथ फेरा, उसकी गर्मी और गीलापन महसूस किया। उसकी दोनों टाँगें पीछे की ओर उठाईं और अपने लंड को उसकी चूत पर रगड़ने लगा। “पापा… ऊह… धीरे…” मधु सिसकारी। मैंने उसकी चूत के छेद पर लंड का सुपाड़ा टिकाया, हल्का-सा दबाव डाला, और फिर पूरी ताकत से अपना लंड उसके अंदर पेल दिया, “फच!” मधु कराह उठी, “आआह्ह… पापा… बहुत बड़ा है… ऊईई…” उसकी चूत टाइट थी, मेरा लंड उसकी गर्म मांसपेशियों में फँस रहा था। मैं धीरे-धीरे धक्के मारने लगा, “फच-फच… फच-फच…” कमरे में सिर्फ हमारी साँसें और चुदाई की आवाज़ गूँज रही थी।
मधु सिसकार रही थी, “पापा… धीरे… ऊह… आपका लंड… बहुत बड़ा है… आआह्ह…” मैंने उसकी टाइट चूत में अपना 6 इंच लंड और अंदर पेला, जोर-जोर से अपने चूतड़ आगे-पीछे करने लगा। मधु मुझे पीछे धकेलने की कोशिश कर रही थी, “पापा… आह… रुको ज़रा… दर्द हो रहा है…” पर मैं रुका नहीं। आज मैं उसकी नाभि तक लंड पहुँचाने के मूड में था। मैंने धक्कों की रफ्तार बढ़ा दी, “फच-फच-फच…” मधु की सिसकारियाँ और तेज हो गईं, “आआह्ह… पापा… ऊईई… और… और…” उसकी चूत का रस मेरे लंड को और चिकना कर रहा था। मैंने उसके 34 इंच के स्तनों को फिर से चूसा, उनके निप्पलों को दाँतों से हल्के से काटा। मधु की साँसें और तेज हो गईं, “ऊह… पापा… ये क्या… आआह्ह…”
करीब 7-8 मिनट तक मैं उसे चोदता रहा। फिर मैंने लंड बाहर निकाला, उसका गीला सुपाड़ा चमक रहा था। मैंने मधु को पोजीशन बदली—उसे बकरी की तरह घुटनों पर झुकाया, उसका पीछे का हिस्सा ऊपर उठा हुआ था। उसके सुडौल, 36 इंच के चूतड़ मेरे सामने थे। मैंने अपनी जाँघों के बीच उसके चूतड़ों को लिया और फिर से लंड उसकी चूत में डाल दिया, “फच!” मधु कराही, “आआह्ह… पापा… कितना गहरा… ऊईई…” मैंने उसकी पतली कमर कसकर पकड़ी और जोर-जोर से धक्के मारने लगा, “फच-फच-फच…” कमरा उसकी कामुक आवाज़ों से गूँज उठा, “आआह्ह… पापा… और… और तेज… ऊह…” मैं एक जंगली जानवर की तरह बेरहम हो गया। उसकी सिसकारियाँ और बारिश की आवाज़ मिलकर एक मादक संगीत बना रही थीं।
मधु बोली, “पापा… मुझे अपनी गोद में उठा लो…” उसकी बात सुनकर मैंने उसे बिस्तर से खींचा और गोद में उठा लिया। उसने अपने पैर मेरे कूल्हों के दोनों तरफ फैला दिए। मैंने अपने खड़े लंड को उसकी चूत पर टिकाया और उसे धीरे से नीचे दबाया। मधु उछली, “आआह्ह… पापा… ऊईई…” उसने अपने हाथ मेरे गले में डाल दिए, जैसे कोई हार। उसके 36 इंच के चूतड़ मेरी हथेलियों में थे। मैं उसे ऊपर-नीचे उछालने लगा, “फच-फच…” उसके खुले बाल हवा में लहरा रहे थे। मैंने कामुक होकर कहा, “मधु, कहाँ तक गया तेरा…?”
उसकी मोटी फाँकों से मेरे अंडकोष दब रहे थे। उसने मेरे होंठों पर अपने दाँत गड़ा दिए, “पापा… ये… बहुत अंदर… आआह्ह…” मुझे लगा मेरा लंड उसकी बच्चेदानी को धक्का मार रहा हो। मधु सिसकारने लगी, “ऊईई… पापा… और… ऊह…”
मैं 5 मिनट तक उसे गोद में उछालता रहा, पर उसका वजन मेरे लंड पर पड़ रहा था। मेरा 7 इंच लंबा लंड उसकी टाइट चूत में फँस रहा था। मैंने उसे धीरे से बिस्तर पर लिटाया और खुद भी थककर पीठ के बल लेट गया। मधु भी थक गई थी, पर उसकी आँखों में वासना अभी बाकी थी। उसने अपनी दायीं जाँघ उठाई और मेरी टाँगों के बाहर अपनी टाँगें फैलाकर खड़ी हो गई। मेरी नजर उसकी उभरी हुई फुद्दी पर गई। उसकी चूत गीली थी, और उसकी आँखों में लाल डोरे तैर रहे थे।
मधु ने धीरे-धीरे नीचे बैठना शुरू किया। उसने मेरे लंड को पकड़ा, अपनी चूत के छेद पर टिकाया और हल्के से “आह” के साथ उस पर धँस गई। उसने अपने दोनों हाथ मेरी छाती पर टिकाए और सिर्फ अपने चूतड़ों को आगे-पीछे करने लगी, “फच-फच…” मैं उसके कामसुख लेने के तरीके को देख रहा था। थोड़ी देर बाद उसने अपने बदन को पीछे झुकाया और चूतड़ ऊपर-नीचे करने लगी। मधु मुझे सचमुच चोद रही थी, “आआह्ह… पापा… कितना मज़ा… ऊह…” वो आँखें बंद करके अपने चूतड़ों से जोर मार रही थी। मैंने उसके 34 इंच के स्तनों को फिर से पकड़ा, उनके निप्पलों को मसला। मधु की सिसकारियाँ और तेज हो गईं, “ऊईई… पापा… और… और…”
करीब 6-7 मिनट बाद मधु मेरे लंड पर पूरी तरह बैठ गई। मुझे अपने लंड के चारों ओर गर्म पानी महसूस हुआ। वो झड़ चुकी थी, “आआह्ह… पापा… ऊह…” मैंने लेटे-लेटे 15-16 तेज धक्के मारे, अपने चूतड़ बिस्तर से 8-9 इंच उठाए। मेरे अंडकोष उसकी गुदा से सट गए। 5-6 सेकंड बाद मेरा वीर्य निकल गया और मधु की चूत भर गई, “फच-फच…” मधु मेरी छाती पर लेट गई। जैसे-जैसे मेरा लंड सिकुड़ता गया, हमारी झाँटें और अंडकोष हमारे बदन के रस से भीग गए। मधु ने अपने लहराते काले बालों से मेरे चेहरे को ढक दिया। हम दोनों अपनी साँसें काबू करने लगे।
तीन मिनट बाद मधु ने कहा, “पापा, आपकी मर्दानगी के आगे मैं हार गई। जब भी आपकी इच्छा हो, मेरा जिस्म आपके लिए हाज़िर है।” हम दोनों एक-दूसरे को चूमते रहे, और पता नहीं कब नींद आ गई।
आपको ये कहानी – Hindi sex story, Hinglish kahani, adult kahani, Madhu ki chudai, papa beti sex story, desi kahani, incest story, ghar mein chudai, father-daughter story, desi sex story, taboo story कैसी लगी? क्या आप चाहेंगे कि मधु और उसके पापा का रिश्ता आगे कैसे बढ़े? अपने विचार कमेंट में ज़रूर बताएँ!