Virgin Sex Story:
हैलो दोस्तो यह मेरी पहली कहानी है, यह कहानी चुदाई का चक्रव्यूह सीरीज़ का पहला हिस्सा है।
मैं आंचल, 18 साल की एक मॉडर्न और आकर्षक लड़की हूं। जब से मैंने खुद को पहचाना है, मुझे हमेशा से ये महसूस होता था कि मैं थोड़ी अलग और सेक्सी हूं।
खासकर मेरी चाल, मेरा अंदाज़, और वो जो मेरे फिगर में था। मेरा फिगर 32-26-32 था, और यह सबसे ज्यादा लोगों का ध्यान खींचता था।
जब भी मैं स्कूल में स्कर्ट पहनकर जाती, लड़कों की नजरें तुरंत मेरी ओर खींच जातीं। वे मुझे देखकर मुस्कराते थे, और मैं उनकी नजरों में एक अजीब सी चमक देख सकती थी।
शुरुआत में मुझे थोड़ा अजीब लगता था, लेकिन फिर मुझे एहसास हुआ कि शायद इसमें कोई बुरी बात नहीं है।
मेरे स्तन गोल और उभरे हुए थे, जो मेरे फिगर को और भी आकर्षक बनाते थे। वे ठीक से आकार में थे, ना ज्यादा बड़े और ना ज्यादा छोटे। मेरे चूतड़ चौड़े और गोल थे, जो मेरी पूरी शख्सियत को एक अलग ही लुक देते थे। मेरी गोरी और चिकनी टांगें, वो सबकी नजरों में आ जातीं, और लड़के खुद को रोक नहीं पाते थे। कभी-कभी मैं उनकी तरफ देखती और थोड़ी शरारत से मुस्कराती, उनकी नज़रों से नज़रें मिलाती।
स्कूल जाते वक्त जब लड़कों की नजरें मुझे घूरने लगतीं, तो मैं बस चुपचाप मुस्कराकर आगे बढ़ जाती। उनकी नजरें मेरे फिगर पर टिक जातीं और मैं उनकी आँखों में एक अजीब सी चमक देख सकती थी। मुझे लगता था, “क्या वो मेरी टांगे हैं जो इन्हें आकर्षित करती हैं? क्या यही वजह है कि वे मुझे इस तरह देखते हैं?” लेकिन फिर मुझे एहसास हुआ कि यह सब कुछ था – मेरा पूरा शरीर, मेरे स्तन, मेरी टांगे, और शायद मेरी छोटी सी पैंटी भी, जो मेरी सुंदर चूत को अंदर छुपाए थी।
मैं 11वीं कक्षा में पढ़ाई कर रही थी। मेरी ज़िंदगी में एक ही दोस्त थी, शिवांशी, और हम दोनों एक-दूसरे के बिना कभी भी कुछ नहीं कर सकते थे। हमारी दोस्ती की एक खास बात थी-हम दोनों को एक-दूसरे की आदतें, मूड, और ख्वाहिशें बिना बोले ही समझ में आ जाती थीं। वह मेरी सबसे क्लोज दोस्त थी।
शिवांशी… अगर कहूं वह बहुत खूबसूरत थी, तो ये शब्द कम लगेंगे। उसकी टांगें? ओह, बस ! वो छोटी स्कर्ट और हॉट पोज़ के साथ, जैसे किसी फिल्म स्टार का जलवा हो। उसकी चाल में वो खास बात थी कि जब वह पास से गुजरती, तो लोग अपनी नजरें नहीं हटा पाते थे। उसकी स्कर्ट इतनी छोटी होती थी कि बस, हर कदम पर लगता था जैसे आज तो चूत के दर्शन हो जायेंगे। और वही वजह थी कि लोग उसे बार-बार घूरते रहते थे।
शिवांशी के स्तन मुझसे बड़े और सुंदर थे, जो उसकी सुंदरता को और भी बढ़ाते थे। वह हमेशा अपने बालों को स्टाइलिश तरीके से सजाती थी, जो उसकी सुंदरता को और भी निखारता था। वह हमेशा अपने दोस्तों के साथ रहती थी, और स्कूल में ज्यादातर लड़के उसके दोस्त थे।
हम दोनों का फैशन सेंस एक जैसा था। हम दोनों एक जैसे कपड़े पहनते थे, यहाँ तक कि हमारी पैंटी और ब्रा भी एक जैसी होती थी। हम दोनों छोटी स्कर्ट पहनते थे, जो हमारे लुक को और भी हॉट बनाती थी। हमारा स्टाइल, हमारे कपड़े, हमारा मेकअप – सब कुछ एक जैसा था।
शिवांशी मुझसे कहती, “तू तो सबसे हॉट है, मैं तेरी तरह बनना चाहती हूँ।” और मैं उसे कहती, “नहीं, तू पहले से ही सबसे हॉट है।”
मैं, एक सीधी-सादी लड़की थी। सेक्स या रिलेशनशिप के बारे में मुझे कुछ खास जानकारी नहीं थी। मैं हमेशा अपनी पढ़ाई, दोस्ती और छोटी-छोटी खुशियों में व्यस्त रहती थी। मैं एक शरीफ लड़की थी, जो लड़कों से दूरी बनाए रखती थी, इसलिए मुझे सब शरीफ और सीधी मानते थे।
मेरी दोस्त शिवांशी और मैं हमेशा मस्ती करती रहती थीं, और हमारे बीच कभी रोमांस या प्यार की बातें नहीं होती थीं।
एक दिन, क्लास में अंकित ने मुझे प्रपोज़ किया। वह हमारी क्लास का था, और थोड़ा आवारा और गुंडा टाइप का लड़का था, जिसकी आँखें मुझ पर बार-बार पड़ती थीं। मैं जानती थी कि वह मुझे सच में पसंद करता था, लेकिन उसकी नज़रें ज्यादातर मेरे स्तनों या गांड़ पर होती थीं, जो मुझे असहज कर देती थीं। मैं समझ सकती थी कि उसके इरादे अच्छे थे, लेकिन मैंने महसूस किया कि उसका प्यार मुझसे नहीं, मेरे शरीर से था। वह मुझे सिर्फ अपनी भावनाओं के लिए नहीं, बल्कि मेरी शारीरिक आकर्षण के लिए भी चाहता था, जिसे वह चोदना चाहता था।
मैं जानती थी कि अंकित अच्छा लड़का है, लेकिन मुझे यह भी समझ में आ गया था कि उसकी चाहत सिर्फ मेरे दिल से नहीं, बल्कि मेरी शारीरिक आकर्षण से थी। और ये मैं नहीं चाहती थी।
इसलिए मैंने उसे सीधे मना कर दिया। “क्या सोच रहे हो तुम?” मैंने हल्के से हंसते हुए कहा। “मुझे ऐसी बातें पसंद नहीं आती।”
उसकी आँखों में थोड़ी हैरानी और झुंझलाहट थी, लेकिन मैं किसी भी हालत में उसकी बातों में फंसने वाली नहीं थी। मैंने साफ कहा, “मुझे ऐसा कुछ नहीं चाहिए।”
अंकित थोड़ी देर के लिए खामोश हो गया, लेकिन मैंने उसे यह एहसास दिला दिया कि मैं उस तरह के रिश्ते के लिए तैयार नहीं थी। मैं अपनी दुनिया में खुश थी, और मुझे अपनी जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीने का पूरा हक था।
इसके बाद अंकित ने मुझे लगातार परेशान करना शुरू कर दिया। वह अक्सर मेरे पास आता, मुझे घूरता और बिना वजह की बातें करने की कोशिश करता। कभी वह मेरे पीछे-पीछे चलता, कभी अचानक से मेरे पास आकर कुछ पूछता, और कभी मेरे सामने खड़ा हो जाता, जैसे जानबूझकर मुझे असहज करने की कोशिश कर रहा हो। मुझे यह सब बहुत असहज महसूस होने लगा। मुझे लगता था कि वह कुछ ज्यादा ही सीमा पार कर रहा है।
एक दिन, जब हम दोनों क्लास के बाद स्कूल में अकेले थे, तो उसने मुझे और भी ज्यादा परेशान करने की कोशिश की। अचानक से उसने मेरे बूब्स छूने की कोशिश की। मुझे यह सहन नहीं हुआ। मेरे मन में गुस्से का सैलाब उमड़ आया, और मैंने बिना देर किए उसे जोर से चांटा मार दिया। वह थोड़ी देर के लिए हतप्रभ हो गया, और फिर खामोशी से वहां से चला गया। मुझे उस दिन यह एहसास हुआ कि मैंने सही किया, लेकिन इस घटना के बाद मुझे यह डर था कि वह अब मुझसे बदला लेने की कोशिश कर सकता है।
उस दिन छुट्टी के वक्त, शिवांशी ने मुझे आकर बताया, “अंकित सुसाइड करने जा रहा है, अपने फार्महाउस पर।”
यह सुनकर मुझे जोर का झटका लगा। मैं समझ नहीं पा रही थी कि मुझे क्या करना चाहिए। वह सच में ऐसा कर सकता था? क्या मुझे उसकी मदद करनी चाहिए?
शिवांशी ने फिर कहा, “चल, अभी मेरे साथ स्कूटर पर।”
मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था, लेकिन शिवांशी ने जो कहा, उसे मैं बिना किसी सवाल के मान गई। मुझे यह महसूस हो रहा था कि मुझे कुछ करना चाहिए, और इसलिए मैंने उसकी बात मानी। मैंने शिवांशी के साथ स्कूटर पर बैठने का फैसला किया।
“चलो जल्दी चलें, शिवांशी!” मैंने कहा।
“हाँ, चलो!” शिवांशी ने जवाब दिया।
जैसे ही हम दोनों स्कूटर पर बैठ कर तेज़ी से चलने लगे, हवा ने मेरी स्कर्ट को उड़ाना शुरू कर दिया। हर दूसरी हवा की थपेड़ी के साथ मेरी स्कर्ट और ऊपर उठ रही थी, जिससे मेरी जांघें और पैर दिखने लगे थे। न जाने कितने लोगों ने मुझे इस हालत में देख लिया होगा । मुझे एक अजीब सी घबराहट हो रही थी, लेकिन उस वक्त मेरा ध्यान पूरी तरह से सिर्फ और सिर्फ अंकित पर था। मन में सिर्फ यही सोच रही थी कि क्या वह सच में अपनी जान ले लेगा? मुझे उसकी मदद करनी चाहिए या कुछ और? मैं सोच रही थी कि क्या मैंने उसे ठीक से समझा है? क्या वह सच में मुझसे प्यार करता है या सिर्फ मेरे शरीर को चाहता है?
तभी, शिवांशी ने मेरे कान में धीरे से कहा, “तेरी पैंटी दिख रही है।”
उसकी बात सुनते ही मुझे जैसे झटका सा लगा। एक पल के लिए मैंने अपनी स्थिति को महसूस किया, और फिर मैंने जल्दी से अपनी स्कर्ट को ठीक करने की कोशिश की।
लेकिन स्कर्ट छोटी होने की वजह से वह फिर से ऊपर उठने लगी, जिससे मेरी पैंटी दिखने लगी। यह घटना मुझे थोड़ी शर्मिंदगी में डाल गई, लेकिन इस समय मेरा ध्यान उस पर था जो शिवांशी ने बताया था।
मुझे अपनी स्कर्ट की चिंता छोड़कर, अब मुझे एक और बड़ा फैसला लेना था।
हम दोनों स्कूटर पर काफी दूर शहर से बाहर निकल आईं और आखिरकार अंकित के फार्महाउस तक पहुँच गईं। चारों ओर बिल्कुल खामोशी थी, और आस-पास कोई भी घर नहीं दिख रहा था। फार्महाउस के अंदर घुसते ही, हमें एक अजीब सी शांति का एहसास हुआ। जैसे ही हम अंदर पहुंचे, देखा कि अंकित के कमरे के बाहर उसके कुछ दोस्त खड़े थे। वे थोड़ा घबराए हुए थे, लेकिन कोई खास चिंता उनके चेहरों पर नहीं थी। अंदर से दरवाजा बंद था ।
“क्या हुआ है?” मैंने अंकित के दोस्तों से पूछा।
“हमें नहीं पता,” उनमें से एक ने जवाब दिया। “लेकिन वह अंदर से दरवाजा बंद कर लिया है और किसी से भी बात नहीं कर रहा है।”
शिवांशी ने मुझे देखा और हम दोनों धीरे-धीरे दरवाजे के पास पहुँचे। मेरी धड़कन तेज़ हो रही थी, मन में यही सवाल था कि अंदर क्या हो रहा होगा। क्या वह सच में अपनी जान लेने जा रहा था?
तभी प्रदीप ने मेरे सीने पर हाथ रखा और कहा, “घबराओ मत, आंचल। सब ठीक हो जाएगा।” लेकिन मुझे उसका हाथ रखना अच्छा नहीं लगा। मुझे लगा कि वो बस मेरे बूब्स टच करना चाह रहा था ।
मैंने जल्दी से उसका हाथ हटाया और कहा, “मुझे ठीक है, प्रदीप। मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत नहीं है।” मैंने दरवाजे को धीरे से खटखटाया और कहा, “अंकित, मैं हूँ। मुझसे बात करो।” लेकिन अंदर से कोई जवाब नहीं आया।
मैंने हिम्मत जुटाई और दरवाजे के पास जाकर कहा, “अंकित, प्लीज बाहर आ जाओ।”
कुछ पल तक अंदर से कोई जवाब नहीं आया। फिर अचानक उसकी आवाज़ आई, “क्या करूं बाहर आकर?”
वह बिल्कुल भी घबराया हुआ नहीं लग रहा था। उसकी आवाज़ में एक अजीब सा ठंडापन था, जैसे उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता था कि हम कितनी परेशान हैं। उसकी बातों में बिल्कुल भी वो डर या अपील नहीं थी, जो मुझे उम्मीद थी।
शिवांशी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और मुझे देखा, जैसे कह रही हो, “अब क्या करेंगे?” मैं थोड़ी देर चुप रही, फिर धीरे से बोली, “उससे बात करके समझाते हैं।” मैंने दरवाजे की ओर मुंह किया और फिर से कहा, “अंकित, प्लीज, हमें समझाओ। क्या तुम सच में ऐसा कुछ कर रहे हो?”
कुछ देर तक अंदर से कोई जवाब नहीं आया, और हम दोनों एक दूसरे को देखकर सिर्फ खड़े रहे। मुझे समझ आ गया कि अब हम दोनों को कुछ और करना पड़ेगा, अगर हमें अंकित को बाहर लाना है।
मैं जानती थी कि मुझे अंकित से इस वक्त कुछ समझदारी से बात करनी होगी, लेकिन जैसे ही मैंने उसके सामने खड़े होकर बात शुरू की, मेरे मुंह से अनजाने में यह निकल गया, “जो भी तुम कहोगे, मैं वो करने को तैयार हूं।”
यह शब्द मेरे मुंह से निकले तो मुझे खुद पर विश्वास नहीं हुआ। मैंने क्या कह दिया था? और अब इस पर क्या प्रतिक्रिया मिलेगी, मुझे समझ में नहीं आ रहा था। यह मेरी ज़िंदगी की दूसरी सबसे बड़ी गलती साबित होने वाली थी, लेकिन अब यह शब्द बाहर आ चुके थे और मुझे इसके असर का सामना करना था।
अचानक, दरवाजा खोलकर अंकित बाहर आया। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जैसे वह मेरी बातों का इंतजार कर रहा था। वह धीरे-धीरे बाहर आया और हाथ में ज़हर की बोतल पकड़े हुए था। उस बोतल को देखते ही मेरी धड़कन तेज हो गई। वह मुस्कुराते हुए बोला, “तुमने कहा था कि तुम कुछ भी करोगी।”
उसकी बात सुनकर मेरा दिल जैसे धड़कना बंद हो गया। मुझे डर लग रहा था, लेकिन मैंने खुद को संभाला और उसकी आँखों में सीधा देखते हुए कहा, “हां, जो तुम कहोगे, वो करूंगी। लेकिन पहले तुम ये ज़हर की बोतल फेंक दो।”
मेरी आवाज़ में थोड़ी दृढ़ता थी, क्योंकि मुझे समझ में आ गया था कि अगर मुझे इस स्थिति से निकलना है, तो मुझे उसे अपनी शर्तों पर लाना होगा। अंकित के हाथ में वो बोतल मेरे लिए जैसे खतरे का संकेत थी, और मुझे यह समझना था कि उसे बिना किसी हिचकिचाहट के दूर करना होगा।
अंकित ने मेरी बात सुनी और एक शरारती मुस्कान के साथ कहा, “ठीक है, तो फिर एकदम नंगी हो जा।”
यह सुनकर मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई। मैं चौंक गई, यह क्या कह रहा था? मेरी आँखें फैल गईं और मैं पल भर के लिए कुछ बोल नहीं पाई। मैं शॉक्ड थी, और मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि मुझे क्या कहना चाहिए। मैंने जल्दी से पूछा, “क्या?”
अंकित ने अपनी बात दोहराई, और इस बार उसकी आवाज़ में पूरी तरह से सख्ती थी, “सुनाई नहीं देता क्या? तू इसी वक्त एकदम नंगी हो जा।”
उसकी बातों में अब कोई मजाक नहीं था, बल्कि एक डरावनी गंभीरता थी, जैसे वह सचमुच चाहता था कि मैं ऐसा करूँ। मेरी धड़कन तेज़ हो गई, और मुझे एहसास हुआ कि वह किसी भी हद तक जा सकता था। मैंने खुद को जल्दी से संभाला और कहा, “जो तुम कह रहे हो, वो मुझसे नहीं होगा।”
अंकित ने मेरी बात को नजरअंदाज करते हुए जवाब दिया, “ठीक है, फिर मैं ज़हर पी लेता हूं।”
उसकी यह बात सुनकर, मुझे घबराहट और डर दोनों महसूस हुआ। वह अब उस बोतल को खोलने की तैयारी में था, और मुझे समझ में आ गया कि यह स्थिति मेरे लिए बेहद खतरनाक हो सकती थी।
हमारे चारों ओर खामोशी थी। अंकित के दोस्त और शिवांशी चुपचाप खड़े यह सब देख रहे थे। मेरी आँखों में सवाल था, लेकिन शिवांशी की आँखों में कोई जवाब नहीं था। वह बस मुझे देखती रही, जैसे वह भी समझ नहीं पा रही थी कि अब हमें क्या करना चाहिए।
अंकित ने फिर से शिवांशी की तरफ देखा और कहा, “शिवांशी, मैंने कुछ गलत कहा क्या इसे?”
शिवांशी ने कुछ देर सोचा और फिर कहा, “नहीं, तुम अपनी जगह सही हो।”
शिवांशी के मुंह से यह सुनकर मुझे जैसे जोर का झटका लगा। मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि वह ऐसा कह सकती है। मेरी आँखें उसकी तरफ गईं, लेकिन वह बस चुप खड़ी रही।
मैंने गुस्से में कहा, “अगर ऐसा है, तो तू इसे नंगी करके दिखा अंकित।”
अंकित ने मेरी बात सुनी और उसकी आँखों में एक अलग ही चमक थी। वह हँसते हुए बोला, “यह कौन सी बड़ी बात है? मैं अभी इसे कर देता हूं।”
फिर उसने शिवांशी की तरफ देखा और एक घमंडी मुस्कान के साथ कहा, “तुम दोनों कह रही हो कि मैं सही हूं, तो मैं इसे क्यों न साबित करूं?” फिर उसने शिवांशी से कहा, “चल, कपड़े उतार कर नंगी हो जा। यह तो कुछ भी नहीं है। तुम चाहती तो हो ही ऐसा, नहीं?”
मुझे लगा जैसे वह हमारी कमजोरी का फायदा उठाने की कोशिश कर रहा था। पूरी स्थिति अब बेहद गड़बड़ हो गई थी, और मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि हमें क्या करना चाहिए।
शिवांशी ने बिना किसी झिझक के, एकदम आराम से अपने कपड़े उतार दिए। उसने अपनी टी-शर्ट को पहले उतारा, फिर अपनी स्कर्ट को भी। वह इतनी आसानी से अपने कपड़े उतार रही थी, जैसे कि वह अपने घर में अकेली हो।
जब उसने अपने सभी कपड़े उतार दिए, तो वह सबके सामने नंगी खड़ी हो गई। उसके बूब्स बिल्कुल ओपन थे और उसने ढकने की कोशिश भी नहीं की बल्कि अपने हाथ अपनी गांड़ पर रख लिए।
उसने अपने पैंटी और ब्रा भी उतार दिए और वे कपड़े अंकित को पकड़ा दिए। मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं। मुझे तो ऐसा लगा जैसे मेरा दिल ही थम सा गया हो। मेरी पूरी सूरत लाल हो गई, और मैं यह सोचने लगी कि वह इतनी आसानी से ऐसा कैसे कर सकती है?
मुझे यह देखकर बहुत शर्म आई, लेकिन साथ ही यह भी महसूस हुआ कि शिवांशी को एक भी झिझक नहीं थी। वह बिलकुल शांत और बेफिक्र नंगी खड़ी थी, जैसे उसे इस बारे में कोई फर्क ही नहीं पड़ता। वह सबके सामने बिल्कुल नॉर्मल थी, जबकि मैं तो खुद को ही संभाल नहीं पा रही थी। मन में यह सवाल उठने लगा, “वह इतनी आसानी से ऐसा कैसे कर सकती है?” मुझे तो सबके सामने अपने कपड़े उतारने का ख्याल भी शर्मिंदगी से भर देता है, लेकिन वह बिल्कुल आराम से नंगी खड़ी थी, जैसे यह कुछ बड़ा न हो।
मैंने हैरान होकर शिवांशी से पूछा, “तुम ऐसा कैसे कर सकती हो?”
शिवांशी ने मुझे ध्यान से देखा और फिर धीरे से मुस्कुराते हुए कहा, “आंचल, जब तुम पैदा हुई थी तो कौन सा कपड़ा पहने थी? तब भी नंगी थी न? अब ऐसा क्या हो गया? थोड़ी सी गांड़ और बूब्स क्या उभर आए? किसी की जिंदगी से बढ़कर हो गया क्या ये?”
“लेकिन शिवांशी, मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा। तुम इतनी आसानी से सबके सामने यह कैसे कर सकती हो?” मैंने फिर से पूछा, इस बार मेरी आवाज़ में एक अजीब सा संकोच था, जैसे किसी पहाड़ को अपने कंधों पर महसूस कर रही हो।
वह थोड़ी देर चुप रही, उसकी आँखों में जैसे कोई गहरी सोच चल रही हो। फिर उसने धीरे से कहा, “तुम सोच रही हो कि मुझे शर्म नहीं आ रही? हां, आ रही है। लेकिन अगर हमें किसी की मदद करनी है, तो हमें अपनी शर्म को पीछे छोड़ना पड़ता है। हमें यह सब करना पड़ता है, क्योंकि यह किसी की ज़िंदगी बचाने के लिए है।”
अचानक अंकित ने एक कदम और बढ़ाते हुए कहा, “आंचल, मुझे पता है तुम मुझे पसंद करती हो, लेकिन अगर तुम यह नहीं करोगी तो क्या होगा? तुम्हें क्या लगता है, मैं तुम्हारे बिना रह सकता हूँ?” उसकी आवाज़ में अब घातक दबाव था।
अंकित ने मेरे कंधे पर हाथ रखा, फिर उसका हाथ मेरे बूब्स पर घूमने लगा। मैंने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन उसने मुझे देखा और बोला, “आंचल, तुम्हें मुझे समझना होगा। मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता।”
वह कुछ देर के लिए रुकी, फिर उसने मेरी आँखों में सीधे देखा और बोली, “अंकित तुझे इतना पसंद करता है, क्या हो जाएगा अगर वह तुझे नंगी देख लेगा? तुम क्यों उसे इतना बड़ा मुद्दा बना रही हो? मैंने भी तो जान बचाने के लिए यह सब किया था।”
उसकी बातें मेरे दिल में जैसे हथौड़े की तरह लगीं। वह थोड़ी देर चुप रही, फिर गंभीरता से बोली, “अगर वह कुछ कर लेता है, तो तू खुद को कैसे माफ करेगी? क्या तुम चाहोगी कि बाद में तुम्हें खुद पर अफसोस हो?”
उसकी आवाज़ मेरे दिमाग में गूंजने लगी। मेरी नसों में घबराहट दौड़ गई, लेकिन फिर समझ में आया कि अगर मुझे खुद को साबित करना है, तो मुझे अब अपनी शर्म और डर को पीछे छोड़ देना होगा। मुझे यह समझ में आ गया कि अगर किसी की मदद करनी है, तो कभी-कभी अपनी हदें पार करनी पड़ती हैं।
मैंने गहरी सांस ली, जैसे हर एक सांस से मेरा डर थोड़ा सा कम हो रहा था। धीरे-धीरे मैंने अपने कपड़े उतारने का फैसला किया। पहले शर्ट, फिर स्कर्ट, फिर ब्रा और पैंटी। जब मेरी ब्रा उतरी, तो मेरे गोल-गोल स्तन देखकर सबकी आँखें फटी रह गईं। मेरी योनि पर बाल देखकर शिवांशी मुस्कुराई और बोली इन्हें साफ भी कर लिया कर।
मैं अपने हाथ से अपने स्तन ढकने लगी, लेकिन अंकित ने मेरे हाथ को हटा दिया और बोला, “इन्हें खुला रहने दो। तुम्हारे बूब्स बहुत सुंदर हैं।”
अब मैं दस लड़कों के सामने एक रण्डी की तरह नंगी खड़ी थी। जहां मेरे बदन पर एक भी कपड़ा नहीं था, मुझे यह एहसास हुआ कि मैंने खुद के डर को पार कर लिया है, और अब मैं इसे पूरी तरह से स्वीकार कर रही हूं, बिना किसी हिचकिचाहट के।
वह बहुत शर्मिंदगी महसूस कर रही थी, और यह स्थिति उसे असहज कर रही थी। तभी अंकित ने अपनी पेंट की ज़िप खोली और अपना काला सा लण्ङ बाहर निकला। उसे देख कर मैं और भी ज्यादा घबराई हुई थी। उसने हंसी के साथ कहा, “चल, अब इसे चूस।”
मैंने तुरंत मना कर दिया, “पहले शिवांशी को बोल, वह इसे चूस ले।”
शिवांशी ने हमारी बात सुनी और थोड़ी देर चुप रही। फिर उसने बड़ी चालाकी से कहा, “अगर मैंने इसे पहले चूस लिया, तो यह जूठा हो जाएगा और अंकित शायद ये नहीं चाहेगा।”
अंकित ने तुरंत जवाब दिया, “ये मेरा लण्ङ है और इस पर सिर्फ आंचल का हक है।”
मैं घबराई हुई थी, , और इससे मुझे बहुत घिन आ रही थी। लेकिन फिर अंकित ने इसे जैसे और बड़ा कर दिया और मेरे मुंह की तरफ बढ़ाया।
मैंने गहरी सांस ली, और यह सब सोचते हुए, धीरे-धीरे अंकित के लण्ङ को मुंह में लिया और उसे चूसना शुरू किया। जैसे ही मैंने उसे चूसा, उसका स्वाद बहुत बुरा लगा। मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैंने कुछ गलत किया हो। बहुत घिन आ रही थी कि जिससे वह पेशाब करता है वहीं आज मेरे मुंह में है ।
मैंने खुद को किसी तरह संभाला, लेकिन मेरा दिल तेज़ी से धड़क रहा था। अंकित कभी-कभी अपना “लण्ङ” मेरे मुंह के और अंदर डाल देता, जिससे वह मेरे गले तक पहुंच जाता। इस पर मुझे सचमुच उल्टी हो गई। मेरा मुंह उल्टी से भर गया था, और मैने उल्टी कर दी ।
अंकित ने मुझे पानी दिया, लेकिन वह पानी नहीं था, उसमें उसने शराब मिलाई थी। मैंने उसे पीने से मना कर दिया, लेकिन अंकित ने मुझे मजबूर किया। मैंने उसे पी लिया, और जल्द ही मुझे महसूस होने लगा कि मेरा सिर घूमने लगा है और मेरे पैर कमजोर हो रहे हैं।
शराब का नशा धीरे-धीरे मुझ पर चढ़ने लगा, और मेरे सिर में एक अजीब सी घूमने की अनुभूति होने लगी। अंकित अब पूरी तरह नंगा हो गया और मुझे किस करने लगा, उसके होंठ मेरे होंठों पर रखे हुए थे। शराब के असर से मैं धीरे-धीरे मदहोश होने लगी थी, और मेरे शरीर में एक अजीब सी कमजोरी महसूस होने लगी थी।
इस दौरान, बाकी लड़के भी नंगे हो गए और मेरे पास आ गए। कोई मेरे निप्पल चूस रहा था, कोई मेरे बूब्स को मसल रहा था, तो कोई मेरी चूत और गांड़ में उंगलियां डाल रहा था। वे सभी मुझे गर्म करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन मैं धीरे-धीरे बेहोश होती जा रही थी।
थोड़ी ही देर में मेरी चूत ने भी अपना पानी निकालना शुरू कर दिया। मुझे ऐसा मजा पहले कभी नहीं आया था।
तभी अंकित ने मुझे उठाया और टेबल पर लिटा दिया। मेरी टांगे पूरी इस तरह फैल गई थी कि हर एक ने मेरी चूत अच्छे से देख ली , फिर उसने अपना लंड मेरी चूत पर रखा और रगड़ने लगा। फिर एक ही झटके में उसने पूरा लंड अंदर डाल दिया।
मेरे मुंह से दर्द से चीख निकल पड़ी। “आह्ह्ह… उफ्फ… उई मां!” मै चिल्लाते हुए बोली, “मम्मी, प्लीज़ इसे निकालो, मुझे बहुत दर्द हो रहा है।”
यह सुनकर बाकी लड़के हंसने लगे और बोले, “साली, अभी तो तेरी सील ही तोड़ी है। अब देख, तुझे कितना मजा आएगा।”
जब अंकित ने लंड मेरी चूत से निकाला, तो मेरी चूत से खून निकल रहा था। मै डर गई, लेकिन वहां मेरी सुनने वाला कोई नहीं था।
अंकित पीछे हट गया और उसकी जगह प्रदीप आया। उसने अपना लंड मेरी चूत में डाल दिया। शुरुआत में मुझे दर्द हुआ, लेकिन जैसे-जैसे प्रदीप ने धक्के मारना शुरू किया, मुझको भी मजा आने लगा। अब मैं खुद को संभाल नहीं पा रही थी।
मैने दोनों हाथों से दो लड़कों के लंड पकड़ लिए और उन्हें सहलाने लगी। फिर एक लंड को अपने मुंह में लेकर जोर-जोर से चूसने लगी।
सब लड़के बारी-बारी से मेरी चूत मार रहे थे। तभी फिर से अंकित वापस आया। उसने अपने लंड पर तेल लगाया और मेरे पास आया। उसने कहा, “घोड़ी बन जा।”
जैसे ही मैं घोड़ी बनी, अंकित ने बिना परवाह किए अपना मोटा लंड एक ही झटके में मेरी गांड में डाल दिया।
मै चीख पड़ी, “हाय राम, मैं मर गई! मम्मी, बचाओ मुझे! आह्ह… आह्ह… प्लीज, इसे निकालो मेरी गांड से।”
लेकिन मेरी चीख-पुकार का किसी पर कोई असर नहीं हुआ। वहां मेरी सुनने वाला कोई नहीं था।
इसी दौरान मैने देखा कि शिवांशी मेरी वीडियो बना रही थी। यह देखकर मुझे गुस्सा आया और समझ लिया कि यह सब एक योजना थी मुझे चोदने के लिए। मैने खड़े होकर शिवांशी को थप्पड़ मारने की कोशिश की, लेकिन तभी अंकित ने मुझे पीछे से मेरे बालों को पकड़ लिया।
उसने फिर से अपना लंड मेरी गांड में डालते हुए कहा, “बहन की लोडी, वो मेरी रंडी है। अगर तूने उसकी तरफ आंख भी उठाई, तो मैं तेरा गला काट दूंगा।”
इसके बाद अंकित मुझे खड़े-खड़े जोर-जोर से चोदने लगा।
अंकित जोर-जोर से मुझे खड़े-खड़े चोद रहा था। मै, जो दर्द और गुस्से से भरी थी, अब धीरे-धीरे गांड चुदाई का भी मजा लेने लगी थी।
काफी देर तक ऐसे चुदाई के बाद विशाल मेरी तरफ आया। उसने मुझको पकड़कर सोफे पर अपने ऊपर बैठा लिया। विशाल मेरे बूब्स को चूस रहा था और नीचे से उसने अपना लंड मेरी चूत में डाल दिया।
तभी पीछे से प्रदीप आया और उसने मेरी गांड में अपना लंड डाल दिया। अब मेरी चूत और गांड, दोनों में लंड थे। दोनों मिलकर मुझे चोद रहे थे।
मुझ को अब खुद भी जोश आ गया था। मै चिल्लाई, “आह्ह… आह्ह… और जोर से चोड़ो! मेरी गांड और चूत दोनों फाड़ दो और मेरे हाथ में दे दो।”
इतने में अंकित वापस आया और उसने मुझ मासूम के खाली मुंह को अपने लंड से भर दिया। अब मेरे तीनों होल—चूत, गांड, और मुंह—तीनों में लंड थे। मै तीनों होल से चुद रही थी।
उसी वक्त मेरी नजर शिवांशी पर पड़ी। मैने देखा कि शिवांशी खुद भी चार लड़कों से चुद रही थी।
करीब दो घंटे तक लगातार चुदाई के बाद उन सभी लड़कों के लंड का पानी मेरे पूरे शरीर पर फैला हुआ था। मेरा चेहरा, बूब्स, चूत, और गांड—सब जगह लंड का पानी था। मै पूरी तरह थक चुकी थी और सो गई।
जब मेरी आंख खुली, तो मैने महसूस किया कि मेरा चेहरा चिपचिपा हो रखा था। मैने उठने की कोशिश की, लेकिन उठ नहीं पाई।
शिवांशी मुझे पकड़कर बाथरूम में ले गई। वहां उसने मुझ को गर्म पानी से नहलाया। नहाने के बाद शिवांशी ने मुझे कुछ कपड़े पहनने के लिए दिए, लेकिन वे कपड़े बहुत छोटे थे।
मैने शिवांशी से अपने कपड़ों के बारे में पूछा, तो शिवांशी ने कहा, “बहन, तेरे सारे कपड़े तो इन कुत्तों ने कब के फाड़ दिए हैं।”
मैने बिना ब्रा और पैंटी के केवल टी-शर्ट और स्कर्ट पहन ली और घर की तरफ निकल गई। मेरे निप्पल ऊपर से विजिबल थे और चूत किसी तरह बस छुपी हुई थी ।
रास्ते में सभी लोग मेरे बूब्स और नंगी टांगों को घूर रहे थे।
घर पहुंचकर मैंने शिवांशी द्वारा दी गई दवाइयां खाईं और सो गई।
अगली कहानी: मेरी चुदाई का चक्रव्यूह भाग 2 – मै जलील हुई
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