सभी पाठकों को मेरा आशीर्वाद! मेरा नाम चन्दन सिंह है. मेरी उम्र ५८ साल है. अब मैं अपनी नौकरी से सेवानिवृत हो चुका हूँ. बीच-बीच में कभी धार्मिक यात्रा पर निकल जाता हूं. इस साल कुम्भ मेले के दौरान मेरी विधवा सलहज शान्ति ने पहले से टिकट बुक करवा रखा था, जिसके बारे में मुझे बाद में पता चला.
शान्ति के बारे में आपको बता दूं कि उसकी उम्र 50 या उससे एक-दो साल ऊपर, शरीर पांच फीट आठ इंच की लम्बाई से कुछ ज्यादा ही लगता है, वज़न 90 किलो से ज्यादा ही होगा, 48 इंच का सीना आज भी कसाव लिये हुए है और जब मदमस्त हथिनी की तरह चलती है तो एक दूसरे से रगड़ खाते कूल्हों को देख कर लंड फुंकार मारने पर मजबूर हो जाता है. वो बिलकुल देसी माल है.
अबकी बार मेरा प्रोग्राम भी अचानक ही बना था. यात्रा बस संचालक के साथ मैं कई बार यात्रा कर चुका था इसलिए वो मुझसे आग्रह करने लगा. मैंने मना कर दिया था क्योंकि सर्दी का मौसम मुझे सूट नहीं होता है. मगर वो अपनी बात मनवाने पर उतारू था और कहने लगा कि मैं आप सिर्फ ग्राहक ही नहीं मेरे मित्र भी हो, मैं आपके लिए अलग से रूम की व्यवस्था भी करवा दूंगा, आप वहां पर निश्चिंत होकर ड्रिंक भी कर सकते हैं.
वैसे तो यात्रियों के लिए ड्रिंक करने की मनाही थी लेकिन वो मेरे बारे में अच्छी तरह जानता था इसलिए मुझे यात्रा के लिए कैसे मनाना है वो अच्छी तरह जानता था. मैंने उससे यात्रा का कार्यक्रम पूछा और कह दिया कि मेरी बोर्डिंग जयपुर से रख देना. उस झट से हाँ कर दी. मैंने उसको तीन-चार घंटे पहले फोन करने की हिदायत दे दी थी ताकि आखिरी समय में तैयारी करते हुए मुझे कोई परेशानी न हो.
यात्रा के दिन जब मैं निश्चित समय पर बस में चढ़ा तो मैंने एक सरसरी निगाह से सारे यात्रियों को देखा और मेरी नज़र मेरी सलहज पर गई. वो बस की सबसे पीछे वाली सीट पर बैठी हुई थी. मुझे देख कर एक बार हल्के मुस्कराई तो मैंने भी जवाबी मुस्कान दी.
मेरी सीट सबसे आगे थी क्योंकि मैं यात्रा बस संचालक के साथ ही बैठ कर जाता था. बस चल पड़ी. मेरी बगल में ही बस संचालक का कोई रिश्तेदार भी बैठा हुआ था.
दो घण्टे चलने के बाद बाथरूम वगैरह जाने के लिए बस रुकी और मेरी सलहज शान्ति देवी चलकर संवाहक के पास आई और मेरी तरफ देख कर कहने लगी कि कंवर साहब पीछे गाड़ी उछलने के कारण मेरी हालत खराब हो रही है. आप कृपया मुझे आगे शिफ्ट करवा दीजिये वरना मेरे पेट में दर्द हो जायेगा.
उसने संवाहक को बोल कर अपनी सीट बदल ली और मेरी बगल में ही आकर बैठ गई. उसका शरीर जब मुझसे स्पर्श हुआ तो मन में उसकी चूत चुदाई के ख्याल भी पनपने लगे. औरत चाहे जैसी भी हो जब उसके बदन का स्पर्श मिलता है तो लंड अपने आप ही उत्तेजित हो उठता है. वैसे भी मैंने काफी दिनों से चुदाई का आनंद नहीं लिया था इसलिए चुदाई की इच्छा भी तीव्र हो चली थी.
बार-बार सलहज के शरीर से छूने के कारण मैं उसकी चूत चुदाई का मन बना चुका था लेकिन मैंने बस में इस तरह की कोई मंशा जाहिर नहीं होने दी.
रात्रि नौ बजे हमे विश्राम के लिए एक धर्मशाला में पहुंचे जहां पर मैं पहले भी कई बार रुक चुका था. संचालक ने जुगाड़ करके मेरे ठहरने का इंतजाम पास के ही एक होटल में कर दिया था. मैंने घण्टा भरा संचालक की सहायता की और वहाँ से निकल कर उसको बोल दिया कि मेरा भोजन होटल में ही भिजवा दे. जनवरी की सर्द रात थी और ऊपर से हल्की-हल्की बारिश भी हो रही थी.
होटल में जाने के लिए निकला ही था कि बीच रास्ते में शान्ति देवी मुझे मिल गई.
पूछने लगी- कहाँ जा रहे हो?
मैंने कहा- होटल में कमरा बुक करवाया है. मुझे यहां जमीन पर नींद नहीं आयेगी. आप जानती भी हैं कि मुझे रात में ड्रिंक करने की आदत है इसलिए यहाँ पर तो वह सब हो नहीं पाएगा. वैसे भी आज सर्दी ज्यादा है तो सोच रहा हूँ कि एक दो घूंट लगा लूंगा तो रात आराम से कट जायेगी.
शान्ति ने मेरी तरफ देखा जैसे कुछ कहना चाह रही हो लेकिन कह नहीं पा रही हो.
मैंने ही पूछ लिया- आपको किसी चीज की जरूरत हो तो मुझसे कह दीजियेगा.
फिर वो बोली- कंवर साहब, मुझे भी ज़मीन पर सोने में बड़ी परेशानी होती है. आज सर्दी भी बहुत है इसलिए सिर्फ एक कम्बल से काम नहीं चल पायेगा शायद. अगर रहने के लिए कमरे की व्यवस्था हो जाती तो रात कट जाती.
मैंने कहा- आपको अगर मेरे साथ रहने में परेशानी न हो तो?
वो बीच में ही बोल पड़ी- आप भी कैसी बात करते हैं कंवर साहब, आपके साथ रहने में क्या परेशानी हो सकती है मुझे? रही बात आपके ड्रिंक करने की तो मैं आपकी पीने की आदत से वाकिफ हूँ. ससुराल में जब आते थे तो उस समय भी तो पीते थे. और सबसे जरूरी बात कि आप घर के आदमी हैं, किसी अजनबी के साथ कमरा शेयर करने से बेहतर है कि आपके साथ ही रह लूंगी.
मैंने कहा- ठीक है, जैसी आपकी इच्छा।
हम दोनों ही होटल की ओर चल पड़े. कमरे में जाकर देखा तो बेड दो थे लेकिन उसको एक साथ जोड़ कर डबल बेड बना दिया गया था.
मैंने शान्ति देवी की तरफ देखा और उसने मेरी तरफ। दोनों के मन में एक ही सवाल था शायद कि एक ही बिस्तर पर कैसे सो सकते हैं!
फिर मैंने ही कहा- शान्ति जी, यहाँ पर तो एक ही बेड है.
वो बोली- हाँ, मैं भी देख रही हूं. लेकिन मजबूरी में किया भी क्या जा सकता है. सोना तो पड़ेगा ही।
हम ने अपना सामान पास ही टेबल पर रख दिया और मैंने बैग से गिलास और चखना निकाल लिया. सलहज को भी मनुहार किया लेकिन उसने मना कर दिया.
मैंने बोतल वापस बंद कर दी और अंदर रखने ही वाला था कि वो बोल पड़ी- बंद क्यों कर रह हो?
मैंने कहा- जब आप कम्पनी नहीं दे सकतीं तो फिर ज्यादा लेने का भी क्या फायदा है. एक ही पैग काफी रहेगा.
जब उसने देखा कि मैं अपना मन मार रहा हूँ तो वो भी लेने के लिए तैयार हो गयी. मैंने उसके लिए भी एक पैग बना दिया.
पहले ही पैग में उसने ऐसा मुंह बनाया जैसे करेले का स्वाद चख लिया हो.
बोली- बहुत मुश्किल है. मुझसे नहीं होगा.
फिर ना-ना करते उसने तीन पैग खाली कर दिये. कुछ देर बाद खाना भी आ गया जो केवल एक ही आदमी के लिए था लेकिन हम दोनों ने उसे भी बांट लिया. खाना खाते हुए ही नशा चढ़ने लगा था. मेरी और सलहज की जुबान भारी होने लगी थी. अब और ज्यादा जागने की हिम्मत नहीं रह गई थी. हमने झूठी प्लेटें एक तरफ डालीं और दोनों ही कम्बल ओढ़कर लेट गये.
मैंने नींद आने से पहले ही उसको आगाह करते हुए कहा- शान्ति अगर नींद में मेरे हाथ-पैर तुमसे टकरा जायें तो नाराज मत होना.
मेरे मुंह से सहसा ही शान्ति नाम निकला, वैसे मैं उसको कभी सीधे नाम लेकर नहीं बुलाता था. लेकिन इस वक्त दिमाग में औपचारिकताएं निभाने की सुध नहीं रह गई थी. इसलिए जो मुंह से निकल रहा था वो कह दिया.
वो बोली- कोई बात नहीं चन्दन, तुम्हें पूरी छूट है तुम जो करना चाहो, कर सकते हो.
उसके मुंह से जब मैंने अपना नाम सुना तो माथा ठनक गया. मुझे उम्मीद नहीं थी कि उसे भी नशे का ऐसा सुरूर चढ़ा हुआ है कि वो मुझे नाम लेकर पुकारेगी.
मन एकदम से सेक्स करने की तीव्र इच्छा से भर गया और मेरा लौड़ा अपने आप ही तन गया. मैंने उसी वक्त उसकी छाती पर हाथ मारा तो उसके चूचे छूते ही शरीर में वासना की लहर दौड़ने लगी. मैंने शान्ति का मुंह अपने हाथों से पकड़ कर उसके गालों को सहला दिया तो उसने मेरे हाथ पर अपने हाथ रख दिये.
लाइन क्लियर थी. मैंने उसके मुंह को अपनी तरफ किया और जोर से उसके होंठों को चूस लिया.
प्रतिउत्तर में उसने भी मेरे होंठों को चूस कर अपना जवाब दे दिया.
फिर मैंने ब्लाउज के ऊपर से ही उसके चूचों को मसलना शुरू कर दिया. अगले ही पल मेरे हाथ उसकी साड़ी को खोलने में लग गये. उसकी साड़ी को खोलकर पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया और उसको नीचे से पूरी नंगी कर दिया.
कम्बल में अंधेरा था इसलिए कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. मैंने अपने हाथ से उसकी चूत को टटोला और उसको रगड़ने लगा तो उसकी सिसकारी छूट गई.
उसने टांगें उठाते हुए उनको घुटनों से मोड़ लिया और मैंने उसकी टांगों के बीच में मुंह रख दिया. उसकी मोटी सी चूत पर अपने होंठ रख कर चूसने लगा तो वो मेरे बालों को सहलाने लगी.
जब मैंने जीभ अंदर डाली तो उसने अपनी टांगें उठाईं और मेरे कन्धे पर रखते हुए मुझे अपनी टांगों के बीच में जकड़ लिया. मेरा मुंह उसकी चूत में पूरी तरह से घुस गया था.
उसकी चूत पानी छोड़ने लगी थी जिसका स्वाद मुझे अपने मुंह में महसूस हो रहा था. अब मैं उसको नंगी देखना चाहता था. मेरी वो ख्वाहिश उसने खुद ही पूरी कर दी और कहने लगी- चन्दन लाइट जला लो.
मैं भी तो यही चाहता था. मैंने उठकर लाइट जला दी और कम्बल हटा दिया. उसका भारी भरकम शरीर अपनी आंखों के सामने नंगा देख कर मैं उसके चूचों पर टूट पड़ा.
मैंने उसके ब्लाउज को खोला और उसके चूचों हाथों में भरने लगा. चूचे इतने मोटे थे कि मेरी हथेलियां छोटी पड़ गईं. मैंने उसके निप्पलों को चूस डाला. अब वो भी जोश में आ गई और उसने मेरे कपड़े खोलने शुरू कर दिये. अब सर्दी कहीं आस-पास भी महसूस भी नहीं हो रही थी.
मेरा लंड मेरी पैंट में तना हुआ था. उसने मेरी शर्ट खोली और उसे अलग करके फेंक दिया. फिर उसने मेरी पैंट भी खोल दी. मैंने उसको निकाल कर एक तरफ कर दिया. मेरे अंडरवियर में तन कर मेरे लौड़े का हाल बुरा हो गया था. उसने मेरा अंडरवियर नीचे कर दिया. मेरा सात इंच का लंड देख कर वो मुस्करा दी.
मैंने पूछा- कैसा है?
वो बोली- तुम्हारे साला जी से काफी तगड़ा है.
मैंने कहा- लोगी क्या अंदर?
वो बोली- ये भी कोई पूछने की बात है.
कहकर उसने मुझे अपने ऊपर खींच लिया और मेरे होंठों को चूसने लगी. फिर उसने मुझे नीचे लिटा दिया और मेरे लंड को हाथ में लेकर एक-दो बार सहलाया और फिर अपने मुंह में भर लिया. उसके लंड चूसने के तरीके से मुझे पता चल गया था कि ये खायी-खेली है.
पन्द्रह मिनट तक मैंने मजे से उसके मुंह में देकर अपना लंड चुसवाया.
फिर मैंने उसको बेड पर सीधी लिटा दिया और चूत के छेद पर निशाना सेट करके एक धक्का दे मारा. चूंकि उसकी चूत गीली थी और कई सालों से शायद उसने लंड भी नहीं लिया था इसलिए चूत नवयौवना की भांति लंड को अंदर नहीं ले रही थी.
हम दोनों बुरी तरह से उत्तेजित भी थे इसलिए जल्दी-जल्दी में लंड फिसल रहा था. मुझे लग रहा था कि वो मेरे धक्के के साथ ही चूत की दीवारों को संकुचित कर लेती थी जिससे लंड बार-बार उसकी चूत पर रगड़ खा रहा था. वह इस घर्षण का मजा ले रही थी और मुझे लंड को अंदर घुसाने की जल्दी थी.
मैंने उसकी जांघों को दोनों हाथों से पकड़ कर दोनों तरफ फैला दिया और उसकी चूत पर लंड को लगाकर पहले हल्का धक्का दिया तो टोपा घुस गया. आह्ह … मजा आ गया. कई सालों के बाद चूत का स्वाद मिला था. पत्नी के स्वर्गवास के बाद लंड किसी गुफा में लेटने के लिए जैसे तरस गया था. मैंने टोपे को थोड़ा और अंदर धकेला तो उसने चूत को भींचने की कोशिश की लेकिन अब शेर गुफा में प्रवेश कर चुका था.
मैंने एक जोर का धक्का मारा और पूरा का पूरा लंड उसकी चूत में उतार दिया. उसने उम्म्ह… अहह… हय… याह… बोल कर मुझे अपनी बांहों में लपेट लिया और मैंने गांड की हरकत चालू कर दी. धीरे-धीरे गांड को हिलाते हुए मैं सलहज की चूत मारने लगा.
ज्यादा उत्तेजना के कारण जल्दी ही स्खलित होने का भी भय था इसलिए धीरे-धीरे ही आनंद लेने की कोशिश कर रहा था. मैं शान्ति को अस्थाई रूप से अपनी अर्धांगिनी बनाना चाह रहा था ताकि समय-समय पर उसकी चूत का भोग मुझे मिलता रहे. इसलिए लम्बी पारी खेलना और भी जरूरी हो गया था.
लंड को चूत में डालकर मैंने ध्यान को दूसरी तरफ लगाने के लिए उसके शरीर के दूसरे हिस्सों पर नज़र डालनी शुरू की. चुदाई धीरे-धीरे आनंद के साथ चल रही थी.
दस मिनट तक उसकी चूत मारने के बाद मैंने उसे उठने के लिए कहा और बेड के किनारे पर लाकर उसको घोड़ी बना लिया, स्वयं नीचे खड़ा हो गया और पीछे से उसकी चूत में लंड पेल दिया.
सर्दी का मौसम था लेकिन दोनों के बदन पर पसीना आ गया था. मैंने घोड़ी बनाकर उसकी चूत मारनी शुरू कर दी. अब मैं तेजी से उसकी चूत मारने लगा और अचानक ही शान्ति की बुर ने पानी छोड़ दिया.
फिर वो उल्टी घोड़ी बन कर लेट गयी और मैंने फिर से चूत में धक्के देने शुरू कर दिये. दस मिनट के बाद उसकी चूत ने फिर पानी फेंक दिया और वह मेरी छाती से लिपट गई. अब मैं भी होने ही वाला था.
वह मेरे सीने से अलग हुई और उसने मेरे लंड को अपने मुंह में लेकर चूसना शुरू कर दिया. मैंने सोचा कि अब झड़ने का वक्त आ गया है. वो आइसक्रीम की तरह मेरे लौड़े को चूस रही थी.
जब मेरा वीर्य निकलने को हुआ तो मैंने पूछा- कहां निकालूं?
तो उसने मुंह में ही निकालने का इशारा कर दिया. दो-तीन धक्कों के बाद मेरे लंड ने उसके मुंह में वीर्य भर दिया. दोनों ही शांत होकर गिर पड़े.
वो मेरे नंगे बदन से लिपटते हुए बोली- चन्दन, बहुत दिनों बाद चुदाई का सुख मिला है. अब तुम जब चाहो, जैसे चाहो, मेरी चूत को चोद सकते हो. मैं कभी मना नहीं करूंगी.
उसने मेरे सोये हुए लंड को अपने हाथ में पकड़ लिया और फिर पता नहीं कब मेरी आंख लग गयी.
सुबह हुई तो वो मुझसे पहले उठ गई थी.
उसने मुझे भी जल्दी ही उठा दिया.
बस के चलने का समय भी हो चला था. दोनों तैयार होकर बस के पास पहुंच गये. हम दोनों की ये यात्रा अब धार्मिक न रहकर हनीमून के जैसी हो गई थी. हम दोनों ने बीच रास्ते में ही बस को छोड़ दिया. हम अपनी ही मस्ती में घूमने लगे. मैंने उसको कुछ कॉस्मेटिक का सामान भी दिलवाया ताकि वो सज-संवर कर मेरे साथ संभोग करे.
पूरी यात्रा में उसकी चूत का रस लिया मैंने।
हम अभी भी चोरी-छिपे मिलते रहते हैं क्योंकि दुनिया के रीति-रिवाज से तो डरना ही पड़ता है. मगर जब भी साथ होते हैं तो पति-पत्नी की तरह ही रहते हैं.
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जब भी मौका मिलता है दोनों ही पास के किसी शहर में कार या टैक्सी से निकल जाते हैं और एक-दूसरे की प्यास बुझाते रहते हैं. इस तरह सलहज को भी एक साथी मिल गया और मेरे जीवन में पत्नी की कमी भी पूरी हो गई है.