सभी दोस्तों को ललिता पाण्डेय की तरफ से दिल से नमस्ते। मैं उज्जैन की रहने वाली हूँ, और आज मैं आपको अपनी जिंदगी की एक ऐसी रात की कहानी सुनाने जा रही हूँ, जो मेरे लिए कभी न भूलने वाली बन गई। ये कहानी मेरे और मेरे ससुर जी, जिन्हें हम सब प्यार से बप्पा कहते थे, के बीच की है। ये एक ऐसी रात थी, जिसमें मैंने अपने सपनों को पूरा करने के लिए कुछ ऐसा किया, जो शायद कई लोग गलत समझें, लेकिन मेरे लिए ये एक जरूरी कदम था।
मेरे पिताजी बहुत गरीब थे। मेरी शादी के वक्त वो न तो दहेज में नकद दे पाए, न ही कोई गाड़ी या कार। इस वजह से मेरी शादी शहर में नहीं हो सकी। मजबूरी में मुझे गांव में शादी करनी पड़ी। मेरी शादी महाकालेश्वर मंदिर के पास एक छोटे से गांव में रामकुमार से हुई। जब मैं ससुराल आई, तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं। यहाँ 50 बीघा खेत थे, 5 गायें, 5 भैंसें, और दूध-दही, सब्जी-दाल की कोई कमी नहीं थी। लेकिन काम? काम इतना था कि मेरी जान निकल जाती थी। मेरे ससुराल में कुल 13 लोग थे—मेरे सास-ससुर, चार ननदें, तीन देवर, एक जेठ-जिठानी, और हम पति-पत्नी। मैं सुबह 5 बजे उठती, खेत में घास काटने जाती, फिर मशीन में अनाज पीसकर जानवरों को खिलाती। इसके बाद जल्दी-जल्दी नहाकर पूरे परिवार के लिए खाना बनाती।
इतने बड़े परिवार के लिए खाना बनाना कोई आसान काम नहीं था। 2-3 किलो आटा गूंधना पड़ता, ढेर सारी सब्जियाँ काटनी पड़तीं। दिनभर काम करते-करते मेरी कमर टूट जाती थी। रात को जैसे ही मैं बिस्तर पर लेटती, थकान से मेरी आँखें अपने आप बंद हो जाती थीं। मेरे पति रामकुमार को भी इस बात की शिकायत रहती थी। वो कहते, “ललिता, जब मैं तुझे चोदना चाहता हूँ, तू तो सो जाती है।” रात के 2-3 बजे, जब मेरी नींद खुलती, तब मैं पति को अपनी चूत देती। लेकिन रामकुमार की भूख कुछ ज्यादा ही थी। वो सारी रात मुझे पेलना चाहते थे। एक-दो बार की चुदाई से उनका मन नहीं भरता था। मैं जैसे-तैसे अपनी जिंदगी काट रही थी। गाँव में बिजली भी नहीं थी, तो टीवी देखना तो दूर की बात थी।
हर रात मैं बप्पा को खाना उनकी थाली में परोसकर उनके कमरे में दे आती थी। बप्पा का कमरा हमारे कमरे के ठीक बगल में था, और उसके बाद आँगन। एक दिन सुबह-सुबह कुछ ऐसा हुआ, जिसने मेरे दिल में हलचल मचा दी। मैं सुबह 6 बजे उठी। घर में सब सो रहे थे। मैं आँगन में नहाने लगी। अपने गोरे-गोरे भरे हुए हाथों, पेट, मम्मों, और पतली कमर पर साबुन मल रही थी। करीब 15 मिनट तक मैं अपने नंगे बदन को साबुन से रगड़ती रही। अचानक मेरी नजर बप्पा के कमरे की ओर गई। वो चारपाई पर बैठे मुझे ताड़ रहे थे, उनकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। मैंने झट से अपना पीला सूती पेटीकोट उठाया, गले में डाला, और अपने कमरे में भाग गई। उस दिन मुझे समझ आ गया कि बप्पा, जिन्हें मैं इतना इज्जत देती थी, एक ठरकी इंसान थे। मौका मिला, तो ये मुझे चोदने से नहीं चूकेंगे। उस दिन के बाद मैं बप्पा से सावधान रहने लगी।
बप्पा 70 साल के थे, लेकिन गाँव का देसी खाना, दूध-मलाई खाने की वजह से उनके बदन में अभी भी ताकत थी। शहर के लोग 70 की उम्र में दुनिया छोड़ देते हैं, लेकिन बप्पा को देखकर लगता था कि वो अभी 10 साल और आराम से जिएंगे। एक दिन मैं बप्पा के लिए खाना लेकर उनके कमरे में गई। साड़ी का पल्लू मुँह में दबाए, मैंने थाली उनके सामने रखी। बप्पा ने मुझे देखते हुए कहा, “छोटी बहू, तुझसे एक जरूरी बात करनी है। अगर तू हफ्ते में दो बार मेरे पैरों में तेल मल दिया करे, तो मैं तेरे नाम ज्यादा दौलत कर दूँगा। तुझे ज्यादा जानवर, ज्यादा खेती दे दूँगा।”
मैं समझ गई कि ये तेल मलने की बात सिर्फ एक बहाना है। असल में वो मुझे चोदना चाहते थे। गाँव में ये कोई नई बात नहीं थी। ससुर अपनी बहू को चोदते हैं और बदले में उनके नाम जमीन-जायदाद लिख देते हैं। मैंने कहा, “जी बप्पा, मैं सोचकर बताऊँगी।” मैं वहाँ से चली आई। कुछ दिन मैंने ये बात अपने पति से छुपाई, लेकिन फिर एक रात मैंने रामकुमार को सब बता दिया। वो तो सुनकर खुश हो गए। बोले, “देख ललिता, तुझे तो हर रात चुदना ही है। अब चाहे मैं चोदूँ या बप्पा, क्या फर्क पड़ता है? मुझसे चुदेगी, तो तुझे कुछ नहीं मिलेगा। चार साल में मैं तुझे एक सोने की जंजीर भी नहीं दे पाया। लेकिन अगर तू बप्पा को अपनी चूत दे देगी, तो तुझे ढेर सारा माल मिलेगा। सोने की जंजीर तो पक्की है, और बप्पा खेती भी हमारे नाम कर देंगे। ये सब हमारे बच्चों के काम आएगा।”
उनकी बात सुनकर मैं कुछ देर सोच में पड़ गई। रामकुमार दूध बेचकर हमारा गुजारा करते थे, लेकिन सोने की जंजीर जैसी चीज वो कभी नहीं दिला सकते थे। मैंने 2-4 दिन सोचा और फैसला कर लिया कि बप्पा का ऑफर मान लेना चाहिए।
अगली रात 9 बजे, मैं बप्पा के कमरे में खाना लेकर गई। साड़ी का पल्लू मुँह में दबाए, मैंने थाली रखी। बप्पा ने पूछा, “छोटी बहू, कुछ सोचा तेल मलने के बारे में?”
मैंने धीरे से कहा, “जी बप्पा, मैं चूल्हा-चौका और बर्तन धोने के बाद आती हूँ।” बप्पा की आँखें चमक उठीं। रात 11 बजे तक मेरा सारा काम खत्म हुआ। मैंने एक कटोरी में सरसों का तेल लिया, लालटेन उठाई, और बप्पा के कमरे में चली गई। दोस्तों, आप सोच रहे होंगे कि मैं गलत कर रही थी। लेकिन मेरे लिए सोने की जंजीर पहनना एक बड़ा सपना था। इसके लिए मैं कुछ भी कर सकती थी।
बप्पा के कमरे में पहुँचते ही मैंने घूँघट में कहा, “बप्पा, मैं आ गई।” लालटेन की पीली रोशनी कमरे में फैली हुई थी। बप्पा बोले, “छोटी बहू, लालटेन का क्या काम? इसे आँगन में रख दे।” मैंने लालटेन बाहर रख दी और वापस आई। कमरे में अब सिर्फ चाँद की हल्की रोशनी थी। बप्पा ने अपनी धोती पहले ही ऊपर कर रखी थी। मैं उनकी चारपाई पर बैठ गई। मैंने कटोरी से सरसों का तेल लिया और उनके पैरों में मालिश करने लगी। उनके पैर मजबूत थे, जैसे अभी भी उनमें जवानी बाकी हो। करीब आधा घंटा मैंने उनके पैर दबाए, उनकी सेवा की।
अचानक बप्पा ने मुझे अपनी ओर खींच लिया। मैं उनकी बगल में लेट गई, जैसे उनकी जोरू बन गई हो। उनके हाथ मेरे गोल-मटोल, भरे हुए मम्मों पर चढ़ने लगे। मैंने मन में सोचा, “लगता है बप्पा आज मुझे कसकर चोदेंगे।” धीरे-धीरे उनके हाथ मेरे ब्लाउज के बटनों तक पहुँचे। गाँव में मैं ब्रा नहीं पहनती थी, क्योंकि यहाँ सब कुछ देसी था। मेरे 36 इंच के गदराए मम्मे उनके हाथों में आ गए। वो उन्हें सहलाने लगे, धीरे-धीरे दबाने लगे। मैंने कुछ नहीं कहा। उनकी उंगलियाँ मेरे निप्पलों को छू रही थीं, और मेरे बदन में एक सिहरन सी दौड़ रही थी। “आह्ह… बप्पा, आराम से,” मैंने धीरे से कहा।
“छोटी बहू, क्या चाहिए तुझे?” बप्पा ने पूछा, उनकी आवाज में एक अजीब सी मादकता थी।
“बप्पा, मेरे पास सोने की जंजीर नहीं है। कब से चाह रही हूँ, पर रामकुमार नहीं दिला पाए,” मैंने नखरे के साथ कहा।
“कल ही तेरे लिए सोने की चैन ला दूँगा, बहू,” बप्पा ने वादा किया। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मैंने खुद ही अपने ब्लाउज के सारे बटन खोल दिए। मेरे गोरे-गोरे मम्मे चाँदनी रात में चमक रहे थे। बप्पा पागल से हो गए। वो मेरे मम्मों पर टूट पड़े, जैसे भूखा भेड़िया। उनके मुँह ने मेरे एक निप्पल को चूसना शुरू किया। “आह्ह… उई… बप्पा, धीरे,” मैं सिसकारी ले रही थी। उनके दाँत मेरे निप्पलों को हल्के-हल्के काट रहे थे, और मेरे बदन में आग सी लग रही थी। वो एक मम्मा चूसते, फिर दूसरे को मुँह में लेते। “छोटी बहू, तेरे मम्मे तो दूध की कटोरी जैसे हैं,” बप्पा ने कहा, और फिर से मेरे मम्मों को चूसने लगे।
करीब एक घंटा वो मेरे मम्मों से खेलते रहे। मेरी साड़ी पहले ही खुल चुकी थी। अब बप्पा ने मेरे पेटीकोट का नाड़ा खींचा और उसे नीचे सरका दिया। मैं अब पूरी तरह नंगी थी। उनकी उंगलियाँ मेरे मखमली पेट पर फिसलने लगीं, मेरी नाभि को चूमने लगीं। “आह्ह… बप्पा, ये क्या कर रहे हो?” मैंने सिसकारी लेते हुए कहा, लेकिन मुझे मजा आ रहा था। उनकी जीभ मेरी नाभि के चारों ओर चक्कर काट रही थी, और मेरे बदन में गुदगुदी सी हो रही थी। धीरे-धीरे उनकी जीभ मेरी चूत तक पहुँच गई। “उई माँ… आह्ह… बप्पा!” मैं जोर से सिसकारी। उनकी जीभ मेरी चूत के होंठों को चाट रही थी, जैसे कोई बच्चा आइसक्रीम चाटता हो। “छोटी बहू, तेरी चूत तो रसीली है,” बप्पा ने कहा और फिर से मेरी चूत को चूसने लगे। बीच-बीच में वो मेरे भगनासा को हल्के से दाँतों से काट लेते, और मैं तड़प उठती। “आह्ह… उई… बप्पा, धीरे… मर जाऊँगी!” मैं चीख रही थी।
बप्पा ने अपना लंड मेरे हाथ में दे दिया। मैंने उसे सहलाना शुरू किया। उनका लंड 70 साल की उम्र में भी मजबूत था, करीब 7 इंच लंबा और मोटा। मेरे पति का लंड इससे छोटा और पतला था। मैंने धीरे-धीरे उनके लंड को मुठ मारना शुरू किया। “छोटी बहू, तू तो कमाल है,” बप्पा ने सिसकारी ली। उनका लंड और सख्त हो गया। अब बप्पा ने मेरी चूत पर अपना लंड रखा और एक हल्का सा धक्का मारा। “आह्ह… माँ!” मैं चीखी, उनका मोटा लंड मेरी चूत में घुस गया। शुरू में वो धीरे-धीरे धक्के मार रहे थे, लेकिन फिर उनकी रफ्तार बढ़ गई। “फच-फच-फच…” की आवाज कमरे में गूँज रही थी। “छोटी बहू, तेरी चूत तो जन्नत है,” बप्पा बोले और मुझे और जोर से पेलने लगे।
“आह्ह… उई… बप्पा, धीरे… मेरी चूत फट जाएगी!” मैं सिसकार रही थी। लेकिन बप्पा रुके नहीं। वो 20 साल के जवान लड़के की तरह मुझे चोद रहे थे। मेरे मम्मे उछल रहे थे, मेरा बदन पसीने से तर था। “फच-फच-फच…” की आवाज के साथ बप्पा का लंड मेरी चूत की गहराइयों में उतर रहा था। “छोटी बहू, तुझे चोदने में मजा आ रहा है,” बप्पा बोले। मैं भी अब मजे ले रही थी। “बप्पा, चोदो मुझे… और जोर से!” मैंने कहा। बप्पा ने मेरी कमर पकड़ी और मुझे और तेजी से पेलने लगे। मेरी चूत पूरी तरह गीली थी, और हर धक्के के साथ “चप-चप-चप…” की आवाज आ रही थी।
करीब 20 मिनट तक वो मुझे चोदते रहे। मैं दो बार झड़ चुकी थी। “आह्ह… उई… बप्पा, मैं गई… आह्ह!” मैं चीख रही थी। लेकिन बप्पा का जोश कम नहीं हुआ। उन्होंने मुझे पलटा और मेरी गांड की ओर देखने लगे। “छोटी बहू, तेरी गांड तो मक्खन जैसी है,” बप्पा ने कहा और मेरी गांड पर एक चपत मारी। फिर उन्होंने मेरी गांड में तेल लगाया और अपना लंड मेरी गांड के छेद पर रखा। “नहीं बप्पा… वहाँ नहीं… दर्द होगा!” मैंने डरते हुए कहा।
“अरे बहू, थोड़ा दर्द तो बर्दाश्त कर,” बप्पा ने कहा और धीरे से अपना लंड मेरी गांड में घुसा दिया। “आह्ह… माँ… मर गई!” मैं चीखी। दर्द के साथ-साथ मजा भी आ रहा था। बप्पा ने धीरे-धीरे मेरी गांड मारनी शुरू की। “फट-फट-फट…” की आवाज के साथ उनका लंड मेरी गांड में अंदर-बाहर हो रहा था। “छोटी बहू, तेरी गांड तो चूत से भी टाइट है,” बप्पा बोले। मैं सिसकार रही थी, “आह्ह… उई… बप्पा, बस करो… नहीं तो मैं मर जाऊँगी!”
करीब 10 मिनट तक बप्पा ने मेरी गांड मारी। फिर वो झड़ गए। उनका गर्म माल मेरी गांड में भर गया। मैं पसीने से तर थी, मेरा बदन थरथरा रहा था। बप्पा ने मुझे अपनी बाहों में ले लिया। हम दोनों नंगे एक-दूसरे से लिपटे हुए थे। उनकी साँसें मेरे गले पर पड़ रही थीं, और मेरे बदन की मादक खुशबू उन्हें और पागल कर रही थी। “छोटी बहू, तूने तो मुझे जवान कर दिया,” बप्पा ने कहा। मैंने कुछ नहीं कहा, बस उनकी बाहों में लेटी रही।
अगले दिन बप्पा मुझे बैंक ले गए। उन्होंने 50 हजार रुपये निकाले और मेरे लिए एक चमचमाती सोने की जंजीर बनवाई। वो रात मैं कभी नहीं भूल सकती। मेरे लिए वो सिर्फ चुदाई की रात नहीं थी, बल्कि मेरे सपनों को पूरा करने की रात थी। मैं दिल से शुक्रिया अदा करना चाहूँगी उन सभी का, जिन्होंने मेरी कहानी पढ़ी। कृपया अपने कमेंट्स जरूर लिखें और बताएँ कि आपको मेरी इस रंगीली रात की कहानी कैसी लगी।